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Friday, 29 March, 2024
होमदेशआतंकी हमले में भारतीय राजनयिकों को बचाने के 4 साल बाद अता नूर को भारत से मदद की दरकार

आतंकी हमले में भारतीय राजनयिकों को बचाने के 4 साल बाद अता नूर को भारत से मदद की दरकार

अता नूर चाहते हैं कि 'बड़ा और मजबूत ’भारत काबुल-तालिबान शांति वार्ता में अधिक सक्रिय भूमिका निभाए. वह डरते हैं विफल वार्ता से क्योंकि वह अफगानिस्तान को एक अंधेरे समय में वापस ले जा सकता है.

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नई दिल्ली: 2016 में एक आतंकी हमले के दौरान भारतीय राजनयिकों की जान बचाने के लिए खुद राइफल उठा लेने वाले अफगान नेता अता मोहम्मद नूर को अब अफगानिस्तान में जारी काबुल-तालिबान शांति वार्ता में नई दिल्ली की मदद की दरकार है, क्योंकि अफगानिस्तान में स्थिति संवेदनशील और तनावपूर्ण बनी हुई है.

अपनी पूरी जिंदगी तालिबान के खिलाफ लड़ने में बिता देने वाले नूर भारत आकर सरकार को इस बातचीत में और सक्रिय भूमिका निभाने के लिए मनाने में जुटे हैं. नई दिल्ली में इन आशंकाओं के बीच कि तालिबान 1996 की तरह एक बार फिर की सत्ता पर काबिज हो सकता है, जमीयत पार्टी के सीईओ नूर भारत का दौरा करने वाले अफगानिस्तान के तीसरे प्रमुख नेता हैं. तालिबान और अफगानिस्तान सरकार के बीच वार्ता प्रक्रिया तेज होने के बीच पिछले महीने हाई काउंसिल फॉर नेशनल रिकंसिलिएशन (एचसीएनआर) के अध्यक्ष अब्दुल्ला अब्दुल्ला और अफगानिस्तान के पूर्व उपराष्ट्रपति मार्शल अब्दुल रशीद दोस्तम ने भारत का दौरा किया था.

नूर ने दिल्ली के एक होटल में चाय की चुस्कियां लेते हुए दिप्रिंट को फारसी में बताया, ‘अफगानिस्तान की मौजूदा स्थिति बेहद जटिल है. यही वजह है कि मैं यहां भारत में हूं. मुझे पूरी उम्मीद है कि भारत अधिक सक्रिय भूमिका निभाएगा क्योंकि भारत के पास ताकत है, वह प्रभावशाली स्थिति में है और क्षेत्र में इसका दबदबा भी है.’

नूर ने कहा, ‘अगर भारत ऐसा नहीं करता है, तो इससे पाकिस्तानियों को और ज्यादा मौका मिलेगा. अब जबकि अमेरिकी देश छोड़ रहे हैं, पाकिस्तानी अफगानिस्तान में अपनी जगह मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं.’

यद्यपि, भारत सीधे तौर पर 29 फरवरी को डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन और तालिबान नेताओं के बीच हुए अमेरिकी नेतृत्व वाले शांति समझौते का हिस्सा नहीं था, नई दिल्ली की अब पिछले महीने दोहा में शुरू हुई इंट्रा-अफगान वार्ता में सक्रिय भागीदारी है. हालांकि, यह भारत की घोषित नीति रही है कि वह तालिबान के साथ जुड़ाव नहीं रखेगा क्योंकि वह मानता रहा है कि इस कट्टरपंथी समूह को पाकिस्तान से समर्थन मिलता है.

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जब उन्होंने भारतीय राजनयिकों को बचाया

अब 56 वर्ष के हो चुके नूर ने 19 साल की उम्र में सोवियत-अफगान युद्ध (1979-1989) के दौरान एक लड़ाके के तौर पर प्रशिक्षण हासिल किया था. वह बाद में तालिबान के खिलाफ जंग लड़ने वाले नार्दन एलायंस में शामिल हो गए.

अफगानिस्तान के बाल्ख प्रांत में गवर्नर रहने के दौरान उन्होंने देश के सबसे बड़े शहरों में से एक मजार-ए-शरीफ में भारतीय वाणिज्य दूतावास पर एक आतंकवादी हमले को नाकाम करने में मदद की थी.

जनवरी 2016 में बारिश के एक दिन के बीच वाणिज्य दूतावास पर हमला किया गया था. हमला ऐसे समय हुआ जब भारत पठानकोट के एक वायु सेना स्टेशन पर एक अन्य आतंकी हमले का मुकाबला कर रहा था.

नूर ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि वह 12 मिनट के अंदर मजार-ए-शरीफ में घटनास्थल पर पहुंच गए और ‘मैंने अपनी एम4 स्नाइपर राइफल के साथ तालिबान और अन्य कश्मीरी आतंकवादियों को निशाना बनाना शुरू कर दिया.’

2016 में मज़ार-ए-शरीफ में भारतीय वाणिज्य दूतावास पर आतंकी हमले के स्थल पर अता मोहम्मद नूर | फोटो: भारत में अफगान दूतावास
2016 में मज़ार-ए-शरीफ में भारतीय वाणिज्य दूतावास पर आतंकी हमले के स्थल पर अता मोहम्मद नूर | फोटो: भारत में अफगान दूतावास

उन्होंने आगे कहा, ‘मैंने अपनी जान जोखिम में डाल दी, लेकिन मुझे राजनयिकों और भारतीय दोस्तों की रक्षा करनी थी. मुझे लगा कि कठिन समय पर भारत ने हमारे लिए जो किया है, उसके बदले में हमें यह करना चाहिए. कुछ आतंकी थे जो कश्मीर से भी आए थे. मैं 12 मिनट में वहां पहुंच गया, अपने हथियार उठाए और बचाव के लिए वाणिज्य दूतावास पहुंच गया.’

उन्होंने बताता, ‘मैं उस समय गवर्नर था और 10,000 से अधिक सैनिक मेरे नियंत्रण में थे. लेकिन मैंने वहां फंसे अपने हिन्दुस्तानी भाइयों को बचाना अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारी समझा.’

उनके मुताबिक, ऑपरेशन के दौरान आतंकवादियों ने दो बार भारतीय वाणिज्य दूतावास में घुसने करने का प्रयास किया लेकिन इसमें सफल नहीं हो पाए क्योंकि उन्होंने और उनके लोगों ने वहां जाने वाले रास्ते को बाधित कर दिया था. हालांकि, आतंकियों ने एक अन्य इमारत तक पहुंचने का रास्ता बना लिया, जहां से उन्होंने फायरिंग शुरू कर दी थी.

उन्होंने बताया, ‘मैंने अपने लोगों के साथ मिलकर फायरिंग शुरू की और यह सिलसिला सुबह तक जारी रखा ताकि वे फिर से हमला न कर सकें. मुझे यकीन है कि पहला व्यक्ति मेरे ही हाथों से मारा गया था और अंतत: सभी को ढेर कर दिया गया. उन्होंने दीवार पर अपने खून से कश्मीर और अफजल लिखा था.’

नूर ने सैनिकों को लाने के लिए ऑपरेशन में हेलीकॉप्टर भी लगाए और बताया कि उन्होंने पायलटों को आवश्यक दिशानिर्देश भी दिए.

उन्हें ‘भारत का दीर्घकालिक मित्र’ माना जाता है, जैसा कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इस हफ्ते के शुरू में किए गए एक ट्वीट में भी स्पष्ट किया था.

‘भारत बड़ा और सशक्त देश’

दोहा में काबुल-तालिबान वार्ता जारी रहने के बीच अब तक कोई ठोस पहल नहीं हो पाई है, ऐसे में नूर को यह चिंता सता रही है कि कहीं अफगानिस्तान फिर उसी हालात में न पहुंच जाए जैसे कभी पहले हुआ करते थे.

उन्होंने कहा कि भारत के पास शांति वार्ता का ‘सूत्रधार’ बनने और समान भूमिका निभा रहे अन्य देशों को साथ लाने की क्षमता है.

उन्होंने कहा, ‘कतर में जारी शांति वार्ता का अभी तक कोई परिणाम नहीं निकला है. और तालिबान और आक्रामक हो रहे हैं. ऐसा लगता है कि उन्हें कहीं से समर्थन मिल रहा है….भारत एक विशाल और सशक्त देश है, यह इसमें मददगार साबित हो सकता है.’

साथ ही जोड़ा, अन्यथा ऐसी स्थिति आ सकती है कि तालिबान के कुछ नेता सत्ता में शामिल हो जाएं और सरकार का हिस्सा बन जाएं, जबकि अन्य लगातार हमलों को अंजाम देते रहें.

उन्होंने कहा, ‘अगर ऐसा होता है, तो हम 1996 की जैसी स्थिति में पहुंच जाएंगे. हालात उससे भी बदतर हो सकते हैं.’ उन्होंने कहा कि विकास प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण हिस्सेदार होने के नाते भारत ऐसा नहीं होने दे सकता. ‘मैं पूरी उम्मीद करता हूं कि भारत अधिक सक्रिय भूमिका निभाएगा. अफगानिस्तान में भारत के काफी राष्ट्रवादी और रणनीतिक मित्र हैं.’

‘भारत को तालिबान से संपर्क में रहे लेकिन उन्हें वैधता नहीं दे’

नूर के अनुसार, यह शांति वार्ता भारत के लिहाज से एकदम भिन्न किस्म के नतीजों वाली हो सकती है.

उन्होंने कहा, ‘मौजूदा शांति वार्ता से दो स्थितियां सामने आएंगी. या तो यह पूरी होगी और एक नई सरकार बनेगी या फिर शांति वार्ता नाकाम होगी और जंग जारी रहेगी. अगर नई सरकार आती है तो अन्य देशों की साजिशों को नाकाम करते हुए हमेशा की तरह उसमें भारत के रणनीतिक साझीदार होंगे.’

‘दोनों देश आतंकवाद के खिलाफ लड़ रहे हैं… हम भारत को दीर्घकालिक जंग में घसीटना नहीं चाहते हैं. लेकिन भारत को तालिबान से संपर्क बनाना चाहिए…मैं चाहता हूं कि भारत तालिबान के साथ जुड़े लेकिन उन्हें वैधता न दे.’

उनके अनुसार, चीन शांति वार्ता में अपनी भूमिका ‘आक्रामकता’ के साथ निभा रहा है और रूस और ईरान भी ऐसा कर रहे हैं.

नूर बुधवार को जब जयशंकर से मिले, तो उन्होंने उनसे तालिबान के साथ बातचीत शुरू करने के लिए कहा. अफगानिस्तान की सरकार भी नई दिल्ली से ऐसा करने के लिए कहती रही है क्योंकि अमेरिकी नेतृत्व वाली सेनाएं 19 साल के लंबे युद्ध के बाद देश छोड़ना शुरू कर चुकी हैं.

यदि वार्ता नाकाम होती है तो विद्रोहियों का ‘पलड़ा भारी’ रहेगा और इससे पाकिस्तान को ही ज्यादा फायदा होगा.

नूर ने कहा, ‘उस समय हमें अफगान सरकार के साथ खड़े रहने की जरूरत होगी… अगर हालात ऐसे बने तो हमें तालिबान के खिलाफ एकजुट प्रतिरोध करना होगा.’

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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