वाराणसी: स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव सोमवार को वाराणसी में थे. योगेंद्र यादव ने नागरिकता संशोधन कानून को सरल भाषा में समझाते हुए कहा कि इसके पांच चरण है. उन्होंने हाथ की पांच उंगलियों से इन चरणों की तुलना करते हुए कहा कि इसकी शुरुआत सरकारी मुलाज़िम द्वारा आपके घर आकर आपसे मौखिक रूप से अपने परिवार के सदस्यों के बारे में बताने के लिए कहने से होती है और इसका अंत नागरिकता साबित करने में विफल रहने वाले लोगों को नज़रबंदी शिविर में भेजने से होगा.
योगेंद्र यादव वाराणसी के शास्त्री घाट पर आयोजित नागरिक अधिकार सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे. पूर्व आईएएस अधिकारी कन्नन गोपीनाथन भी यहां मौजूद थे.
‘सीएए नागरिकता देने का कानून है, नागरिकता लेने का नहीं’
पूर्व आईएएस अधिकारी कन्नन गोपीनाथन ने कहा कि मोदी सरकार के तमाम जिम्मेदार लोग कह रहे हैं कि सीएए नागरिकता देने का कानून है, नागरिकता लेने का नहीं. सरकार जब सभी नागरिकों से उनकी नागरिकता का प्रमाण मांगने जा रही है तो इसका मतलब यह हुआ कि कोई नागरिक ही नहीं है तो आप नागरिकता छीनेंगे कैसे? कुत्ता जैसे हर कार को देखकर उसके पीछे दौड़ता है और उसे पता नहीं होता कि कार के पास पहुंचकर उसे करना क्या है, वही दशा आज मोदी सरकार की है. उसने नागरिकता संशोधन कानून की कवायद तो शुरू कर दी है, लेकिन उसे पता नहीं कि करना क्या है?
‘सबसे पहले एनपीआर का करना होगा विरोध’
एनपीआर के बारे में समझाते हुए स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने कहा कि सबसे पहले आपसे मौखिक रूप से अपने घर के सदस्यों के बारे में विवरण देने को कहा जाएगा. आपसे आपके माता-पिता के जन्मस्थान आदि के बारे में जानकारी मांगी जाएगी. इसे एनपीआर यानि कि राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर बनाने के काम में लाया जाएगा और फिर दूसरे चरण में आपसे अपने द्वारा दी गई जानकारी का प्रमाण मांगा जाएगा, इसे राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर बनाने में उपयोग में लाया जाएगा. उन्होंने कहा कि दूसरे चरण से ही असल खेल शुरू होता है, जो सरकार कपड़ों से दंगाइयों की पहचान करती हो, उसके बारे में यह समझना मुश्किल नहीं होगा कि वह मुख्य रूप से आबादी के किस हिस्से पर शिकंजा कसना चाहती है.
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सरकार की मंशा को बताते हुए योगेंद्र यादव बताते हैं कि तीसरे चरण में जिन लोगों के नाम के आगे ‘डी’ यानि डाउटफुल लिखा होगा उन्हें अपनी नागरिकता साबित करने के लिए ट्रिब्यूनल में जाने के लिए कहा जाएगा. चौथे चरण में अपनी नागरिकता साबित करने और दस्तावेज जुटाने के लिए नागरिकों को नाकों चने चबाने पड़ेंगे और पानी की तरह पैसे बहाने के बाद भी मोदी सरकार की सांप्रदायिक सोच के चलते बहुत से लोग खुद को नागरिक नहीं साबित कर पाएंगे. उन्होंने कहा कि जो लोग अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाएंगे उन्हें नज़रबंदी शिविर में भेज दिया जाएगा.
स्वराज इंडिया के अध्यक्ष ने कहा कि अगर हम इस आफत से बचना चाहते हैं तो हमें पहले ही चरण यानि कि एनपीआर को लेकर ही अपना विरोध दर्ज कराना होगा और कोई भी जानकारी देने से सरकारी मुलाजिम को मना कर देना होगा.
‘हमें अपनी विरासत को बचाकर रखना होगा’
इस कार्यक्रम में शिरकत करने आए भाकपा माले, लिबरेशन के पोलित ब्यूरो सदस्य रामजी राय ने कहा, ‘भारत गंगा-जमुनी तहज़ीब का देश है और इसकी आत्मा को कोई भी नष्ट नहीं कर पाएगा. उन्होंने बताया कि अंग्रेजों ने बहादुर शाह जफर की पेंशन खत्म कर दी थी और बाद में जब अंग्रेजों ने कपड़े से ढंककर उनके दोनों बेटों का कटा हुआ सिर उनके पास भेजा तो उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान में बेटे अपने पिता के सामने इसी तरह से सुर्ख-रूह होकर आते हैं. हमें अपनी इस विरासत को किसी भी तरह बचाकर रखना है.’
जनांदोलनों का लेना पड़ेगा सहारा
इसी मंच पर अपनी बात रखते हुए भगत सिंह अंबेडकर विचार मंच के सह-संस्थापक एसपी राय ने कहते हैं, ‘हमें भारत की प्रजातांत्रिक विरासत को बचाने के लिए एकजुट होकर जनांदोलनों का सहारा लेना पड़ेगा.’ स्वराज इंडिया के रामजनम ने कहा कि मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने की शुरुआत आज काशी से हो गई है. इस एकजुट प्रयास से यह बात साबित हो जाती है कि समाज का हर तबका मौजूदा सरकार की नीतियों से खफा है और उसे उखाड़ फेंकने के लिए कटिबद्ध है.
‘मोदी सरकार का हश्र हिटलर की तरह ही होगा’
प्रोफेसर दीपक मलिक ने कहा कि ब्रिटिश सरकार के खिलाफ इसी तरह जनता सड़कों पर आई थी और दुनिया में जिसका सूरज अस्त नहीं होता था, उसे बोरिया बिस्तर बांधकर भारत छोड़ना पड़ा था. आज मोदी सरकार जिस तरह से नागरिकों को प्रताड़ित कर रही है, लोकतांत्रिक संस्थाओं को नष्ट कर हिंदुत्व की विचारधारा को लाद रही है, वह असंवैधानिक है और लोकतंत्र के लिए हितकर नहीं है. इनका भी हश्र हिटलर की तरह ही होगा. लोग सड़कों पर आ रहे हैं और गांधीवादी आंदोलन जैसा वातावरण बन रहा है. ऐसे में इन सांप्रदायिक ताकतों के गैर-लोकतांत्रिक मंसूबे कामयाब नहीं होंगे.
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‘यह सब कुछ प्रदान करना सरकार का काम’
इतिहासकार और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. मोहम्मद आरिफ ने कहा कि रोजी-रोटी, मकान, शिक्षा-स्वास्थ्य, सस्ता-सुलभ परिवहन जैसे मुद्दों को लेकर प्रायः जनता उद्वेलित नहीं होती, क्यों? क्योंकि उसके दिमाग में अभी तक यह बात घर नहीं कर सकी है कि यह सब कुछ प्रदान करना सरकार का काम है. जब अमित शाह गरज़ता है कि मित्रों मोदी जी ने धारा 370 को हटाकर अच्छा काम किया कि नहीं, बोलो-बताओ कश्मीर भारत माता का अभिन्न अंग है कि नहीं? तो देख रहे हैं आप कि समूचे विमर्श को ले जाकर किन नारों पर केंद्रित कर दिया गया है. एक बड़ी आबादी के दिलो-दिमाग में जगह बना चुके कुछ विमर्श इस प्रकार से हैं- मंदिर-मस्जिद, कश्मीरी पंडित, मुस्लिम आबादी का सामाजिक पिछड़ापन, इस्लामिक आतंकवाद, लव-जिहाद (यह अभी उस तरह से आमजन की ज़ुबान पर नहीं चढ़ा है) आदि-आदि.
छात्र, नेता, किसान, बुनकर, सभी रहे उपस्थित
इस कार्यक्रम में मंच पर काशी हिंदू विश्वविद्यालय की प्रो. प्रतिमा गौड़, माले की राज्य समिति के सदस्य अमरनाथ राजभर, प्रदेश सचिव सुधाकर यादव, जिला सचिव मनीष शर्मा, प्रगतिशील लेखक संघ के डॉ. संजय श्रीवास्तव, गोरखनाथ पांडेय, प्रो. असीम मुखर्जी मौजूद थे. इन सबके अलावा यहां शिव कुमार पराग, डॉ. प्रशांत शुक्ल, डॉ. एमपी सिंह, मो. नईम अख्तर, ऐपवा से संबद्ध कुसुम वर्मा, डॉ. नूर फातमा, स्मिता बागड़े, डॉ. मुनीजा खान, कृपा वर्मा, कॉ. बी. के. सिंह, मौलाना मुफ्ती बातिन नोमानी, पीवीसीएचआर के अधिशाषी निदेश डॉ. लेनिन रघुवंशी मौलाना हारून नक्शबंदी, बोदा भाई, भगत सिंह छात्र मोर्चा के विनय कुमार, अनुपम कुमार, आकांक्षा आजाद, और आईसा, एआईएसआफ के अनेक छात्र और दूर-दराज से आए किसानों, बुनकारों ने भी उपस्थित थे.
(रिज़वाना तबस्सुम स्वतंत्र पत्रकार हैं)