गुवाहाटी, 10 दिसंबर (भाषा) असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने बुधवार को कहा कि राज्य जनसांख्यिकीय बदलाव की एक गंभीर चुनौती का सामना कर रहा है, क्योंकि राज्य की 40 प्रतिशत आबादी बांग्लादेश से है।
शर्मा ने यह टिप्पणी शहीद स्मारक का उद्घाटन करते हुए की, जो असम आंदोलन के दौरान मारे गए 860 से अधिक लोगों की स्मृति में बनाया गया है। छह साल तक चले इस हिंसक विदेशियों के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत 1979 में हुई थी।
मुख्यमंत्री ने कार्यक्रम के दौरान संवाददाताओं से बात करते हुए कहा, “कानूनी पहलुओं से इतर, आज हम अपनी ही भूमि में उपेक्षित हैं…हमारी संस्कृति हाशिये पर है और हमारी अर्थव्यवस्था उन लोगों के हाथों में तेजी से जा रही है, जिनका हमारी संस्कृति और इतिहास से कोई संबंध नहीं रहा।”
उन्होंने कहा कि यह चुनौती आज भी बनी हुई है लेकिन सकारात्मक बात यह है कि इसका सामना करने के लिए एक सामूहिक भावना मौजूद है।
उन्होंने कहा, “मैं आश्वस्त हूं कि हमारी नयी पीढ़ी संघर्ष जारी रखेगी। ईश्वर की कृपा से हम डटे रहेंगे।”
शर्मा ने कहा कि ‘आई (माता) असोम’ की अस्मिता के लिए लड़ने वालों की स्मृति में ‘शहीद स्मारक’ समर्पित करना उनके जीवन का सबसे बड़ा सम्मान है।
उन्होंने अपने संबोधन में कहा, “हमारा हर पल, हर कदम, असम के सम्मान और हमारे वीरों के बलिदान को सलाम करने के लिए समर्पित है।”
मुख्यमंत्री ने कहा कि असम आंदोलन का निर्णायक मोड़ वह था जब लोगों ने मतदाता सूची से विदेशियों के नाम हटाने की मांग उठाई थी और चेतावनी दी थी कि जब तक ऐसा नहीं होता, वे राज्य में चुनाव होने नहीं देंगे।
उन्होंने कहा, “सदिया से धुबरी तक जनभावना उफान पर थी। लोग हर राजनीतिक दल और संभावित उम्मीदवारों के पास गए और उनसे चुनाव न लड़ने की अपील की, क्योंकि वे विदेशी-मुक्त मतदाता सूची चाहते थे लेकिन तत्कालीन सरकार ने उनकी नहीं सुनी।”
तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद की पत्नी बेगम अबीदा अहमद 10 दिसंबर 1979 की सुबह नामांकन पत्र दाखिल करने के लिए गुवाहाटी के लखटकिया से बरपेटा गईं।
शर्मा ने कहा, “उस समय मैं पांचवीं कक्षा में था। मुझे याद है कि प्रदर्शनकारियों को रास्ता से हटाने के लिए पुलिस ने उन्हें लाठियों से पीटा ताकि वे बरपेटा जा सकें, लेकिन रास्ते में उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा।”
उन्होंने कहा कि भबानीपुर कस्बे में हाउली कॉलेज के प्रथम वर्ष के छात्र और भबानीपुर क्षेत्रीय छात्र संघ के सचिव खर्गेश्वर तालुकदार को पुलिस ने घसीटकर पास की खाई में फेंक दिया था और असम आंदोलन के पहले शहीद के रूप में उन्होंने प्राण न्यौछावर किए।
शर्मा ने कहा, “खर्गेश्वर तालुकदार के दिखाए रास्ते पर चलते हुए 860 शहीदों ने ‘आई असोम’ की रक्षा, उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करने और एक स्वाभिमानी, विकसित राज्य के निर्माण के लिए अपने प्राण न्योछावर किए। आज हम असम आंदोलन के इन 860 वीरों के साहस और बलिदान को नमन करते हैं, जिन्होंने हमारी मातृभूमि की पहचान बचाने के लिए अपनी जान दी।”
मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया कि असम के इन बेटे-बेटियों को आवाज उठाने के कारण अवैध घुसपैठियों और तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने बेरहमी से मार डाला।
शर्मा ने कहा कि अवैध घुसपैठ का मुद्दा किसी एक कालखंड तक सीमित नहीं है, बल्कि इसकी जड़ें स्वतंत्रता-पूर्व काल तक जाती हैं, जब पूर्वी बंगाल और बाद में पूर्वी पाकिस्तान से बड़ी संख्या में लोग जमीन और बेहतर अवसरों की लालसा में अवैध रूप से असम में आए।
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राखी प्रशांत
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