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Monday, 18 November, 2024
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हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा- असम के मुस्लिम प्रवासी मुसलमानों के साथ मिलना नहीं चाहते

असम CM हिमंता बिस्वा सरमा ने शनिवार को कहा कि राज्य सरकार असम में स्वदेशी और प्रवासी मुसलमानों की पहचान पर, एक उप-समिति के निष्कर्षों का अध्ययन कर रही है.

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गुवाहाटी: मुद्दे का अध्ययन करने के लिए गठित एक उप-समिति की रिपोर्ट का हवाला देते हुए, असम मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने शनिवार को कहा कि असम के मुसलमान राज्य में रह रहे प्रवासी मुसलमानों के साथ नहीं मिलना नहीं चाहते.

सरमा ने कहा,असम में मुस्लिम समुदाय का धर्म एक है, लेकिन उनकी संस्कृति और उनका मूल अलग हैं. उनमें से एक असम मूल का है और जिसका पिछले 200 वर्षों में प्रवास का कोई इतिहास नहीं रहा है.’

वो वर्ग चाहता है कि उन्हें प्रवासी मुसलमानों के साथ न मिलाया जाए, और एक अलग पहचान दी जाए. लेकिन ये एक उप-समिति की रिपोर्ट है, सरकार ने अभी तक कोई फैसला नहीं लिया है. उन्होंने आगे कहा कि रिपोर्ट राज्य सरकार को पेश कर दी गई है.

उन्होंने ये भी कहा कि रिपोर्ट के आधार पर राज्य सरकार असम में स्वदेशी और प्रवासी मुसलमानों की पहचान की अधिसूचना जारी करने पर फैसला लेगी.

सीएम का ये कहते हुए हवाला दिया गया, वो (राज्य सरकार) भविष्य में फैसला करेगी कि स्वदेशी मुसलमान कौन है और प्रवासी मुसलमान कौन है. असम में इसका कोई विरोध नहीं है. उन्हें अंतर मालूम है, इसे एक धिकारिक रूप दिया जाना है.

UCC के समर्थन में CM

दिल्ली में पत्रकारों से बात करते हुए, असम मुख्यमंत्री ने यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) का भी समर्थन किया.

सीएम सरमा ने नई दिल्ली में पत्रकारों से कहाकोई मुसलमान महिला नहीं चाहेगी कि उसका पति तीन पत्नियां रखे. कोई ऐसा नहीं चाहेगी. मुस्लिम महिलाओं और माताओं को इंसाफ दिलाने के लिए, तीन तलाक़ पर पाबंदी के बाद समान नागरिक संहिता भी लागू किया जाना चाहिए’.

उन्होंने आगे कहा, मैं एक हिंदू हूं, मेरी बेटी और बहन के लिए यूसीसी है. अगर मेरी बेटी और बहन यूसीसी से संरक्षित हैं, तो मुसलमान महिलाओं के लिए भी वही संरक्षण होना चाहिए.

यूसीसी कुछ सामान्य नागरिक क़ानून हैं जो सभी नागरिकों के लिए धर्म की परवाह किए बिना, विवाह, तलाक़, गोद लेनेविरासत और उत्तराधिकार जैसे विषयों पर मार्गदर्शन करते हैं.   

संविधान के अनुच्छेद 44 में भारत के नागरिकों के लिए, राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत के तहत एक समान नागरिक संहिता का प्रावधान है. 2019 के अपने चुनावी घोषणापत्र में बीजेपी ने सभी महिलाओं के अधिकारों को संरक्षण देने के लिए, एक समान नागरिक संहिता तैयार करने की प्रतिबद्धता जताई थी.  

लेकिन फिलहाल ये बहस तब शुरू हुई जब उत्तराखंड सीएम पुष्कर सिंह धामी ने, राज्य में एक समान नागरिक संहिता तैयार करने के लिए एक पैनल गठित करने का फैसला किया. हिमाचल प्रदेश सीएम जयराम ठाकुर ने भी सार्वजनिक रूप से कहा है, कि उनकी सरकार यूसीसी को लागू करने के प्रति खुला मन रखती है.  

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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