नयी दिल्ली, 19 अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को दिल्ली के महरौली पुरातत्व पार्क के अंदर स्थित स्मारकों की निगरानी पर विचार करना चाहिए, जिनमें 13वीं शताब्दी की ‘‘आशिक अल्लाह दरगाह’’ और सूफी संत ‘‘बाबा फरीद की चिल्लागाह’’ शामिल हैं।
उच्चतम न्यायालय दो अपील पर सुनवाई कर रहा था, जिनमें महरौली या संजय वन में दरगाह और आसपास के अन्य ऐतिहासिक स्मारकों को ध्वस्त करने या हटाने से रोकने के लिए अधिकारियों को निर्देश देने का अनुरोध किया गया।
न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत ने 28 फरवरी को आदेश दिया था कि उसकी अनुमति के बिना इस क्षेत्र में मौजूदा ढांचों में कोई निर्माण या परिवर्तन न किया जाए। पीठ ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के वकील से पूछा, ‘आप इसे पहले ही क्यों ध्वस्त करना चाहते हैं?’
डीडीए के वकील ने कहा कि प्राधिकरण दरगाह के खिलाफ नहीं है, लेकिन आसपास कई अन्य अनधिकृत ढांचे बने हुए हैं। वकील ने कहा, ‘वास्तव में सवाल यह उठता है कि इसका कितना हिस्सा संरक्षित स्मारक है और कितना हिस्सा अतिक्रमण है।’
पीठ ने स्मारक के संरक्षण पर ज़ोर देते हुए कहा कि आगे कोई निर्माण कार्य नहीं होना चाहिए। पीठ ने कहा, ‘उस स्मारक का संरक्षण किया जाना चाहिए। हमारा सरोकार सिर्फ़ उस स्मारक से है।’
इस मामले से संबंधित दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील करने वाले अपीलकर्ताओं के वकील ने दलील दी कि संबंधित स्मारक अतिक्रमण वाली जमीन पर नहीं है, क्योंकि वे 12वीं शताब्दी से ही इस क्षेत्र में मौजूद हैं।
एएसआई की वस्तु स्थिति रिपोर्ट का हवाला देते हुए अपीलकर्ताओं ने दलील दी कि हालांकि ढांचों को केंद्रीय संरक्षित स्मारक नहीं माना गया है, फिर भी एएसआई उनकी मरम्मत और रखरखाव की निगरानी कर सकता है।
हालांकि, डीडीए के वकील ने दलील दी कि प्राधिकरण का संबंध केवल उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित आदेशों के अनुसार सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण करने वाले अनधिकृत ढांचों को गिराने से है।
पीठ ने कहा, ‘परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, हम इन अपीलों का निपटारा इस टिप्पणी के साथ करते हैं कि एएसआई को संबंधित स्मारकों की मरम्मत और पुनर्निर्माण के मामले में उनकी देखरेख पर विचार करना चाहिए।’
एक अपीलकर्ता ने पुरातत्व पार्क के अंदर स्थित धार्मिक ढांचों को ध्वस्त किए जाने से बचाने का अनुरोध किया था।
एएसआई ने पूर्व में कहा था कि पुरातत्व पार्क के अंदर स्थित दोनों ढांचों का धार्मिक महत्व है क्योंकि श्रद्धालु रोज़ाना इन दरगाहों पर आते हैं।
एएसआई ने कहा कि शेख शहाबुद्दीन (आशिक अल्लाह) के मकबरे पर लगे शिलालेख के अनुसार इसका निर्माण 1,317 ई. में हुआ था।
एएसआई ने कहा कि यह मकबरा पृथ्वीराज चौहान के दुर्ग के नजदीक है और प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम के अनुसार 200 मीटर के विनियमित क्षेत्र में आता है। ऐसे में, किसी भी मरम्मत, नवीनीकरण या निर्माण कार्य के लिए सक्षम प्राधिकारी की पूर्व अनुमति आवश्यक है।
एएसआई की रिपोर्ट में कहा गया, ‘दोनों जगहों पर अक्सर लोग जाते हैं। श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए आशिक दरगाह पर दीये जलाते हैं। वे बुरी आत्माओं और अपशकुन से मुक्ति पाने के लिए चिल्लागाह जाते हैं। यह स्थान एक विशेष धार्मिक समुदाय की धार्मिक भावना और आस्था से भी जुड़ा है।’
भाषा आशीष पवनेश
पवनेश
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