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Friday, 22 November, 2024
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दुर्गा की पत्थर की प्रतिमा, नटराज की मूर्ति—ASI ने UK, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से 36 प्राचीन वस्तुएं हासिल कीं

केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्रालय का कहना है कि पिछले पांच सालों में बरामद सभी प्राचीन कृतियां संग्रहालयों और संबंधित अधिकारियों की तरफ से स्वेच्छा से मुहैया कराई गई हैं.

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नई दिल्ली: केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्रालय ने बताया है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने पिछले पांच सालों के दौरान ब्रिटेन अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से 36 प्राचीन वस्तुएं हासिल की हैं.

संस्कृति और पर्यटन राज्य मंत्री प्रह्लाद पटेल ने मंगलवार को राज्यसभा सदस्य मानस रंजन भूनिया की तरफ से उठाए गए एक सवाल के जवाब में बरामद की गई प्राचीन वस्तुओं का ब्योरा संसद को उपलब्ध कराया.

पटेल ने कहा कि बरामद की गई सभी कृतियां संग्रहालयों और संबंधित अधिकारियों की तरफ से स्वेच्छा से मुहैया कराई गई हैं.

उन्होंने जो जानकारी साझा की उसके मुताबिक ये 36 प्राचीन वस्तुएं भारत को वापस मिली हैं.


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मौर्य काल से लेकर चोला वंश तक

संत मणिक्कवाचकर की एक कांस्य प्रतिमा 2016 में अमेरिका ने स्वेच्छा से लौटाई थी. 9वीं शताब्दी के इन तमिल कवि ने भगवान शिव पर भजन लिखे थे. वह तमिल भाषा के प्रमुख धार्मिक ग्रंथ शैव सिद्धांत के लेखक भी थे, जो आधुनिक हिंदू धर्म के तीन प्रमुख रूपों में से एक शैववाद का आधार है. अभी यह प्रतिमा तमिलनाडु की आइडल विंग के संरक्षण में है.

अमेरिका ने 2016 में गणेश की एक धातु की मूर्ति भी लौटाई थी. यह अभी तमिलनाडु सरकार की आइडल विंग के पास ही है.

इस मूर्ति को अमेरिकी गृह विभाग ने ‘ऑपरेशन हिडन आइडल’ नाम से चलाए गए एक अभियान के तहत बरामद किया जो न्यूयॉर्क में एक भारतीय आर्ट क्यूरेटर और आर्ट ऑफ द पास्ट गैलरी के मालिक सुभाष कपूर द्वारा चुराई गई प्राचीन वस्तुओं को बरामदगी के उद्देश्य से शुरू किया या था.

टेराकोटा से बनी एक महिला आकृति, जो मौर्य काल की है और पहले अमेरिका के हवाई स्थित होनोलुलु संग्रहालय में रखी थी, को भी उसी साल लौटाया गया. अभी इसे नई दिल्ली के पुराना किला स्थित संग्रहालय में रखा गया है.

मौर्य काल, लगभग 300 साल ईसा पूर्व, को टेराकोटा की कलाकृतियों की शुरुआत के लिए जाना जाता है. इस महिला की आकृति को एक देवी की मूर्ति माना जाता है, जिसे उस काल में पूजा जाता था.

एक देवता की आकृति को भी होनोलुलु संग्रहालय से लौटाया गया था. जो मूलत: मध्य प्रदेश के खजुराहो से संबंधित है. खजुराहो के मंदिरों को नागर शैली का एक नमूना हैं. कंदारिया महादेव और विश्वनाथ मंदिर में चौड़े कूल्हों, भारी ब्रेस्ट और चमकदार आंखों वाली अप्सराओं की मूर्तियां हैं, जो महिला सौंदर्य और उनकी प्रजनन क्षमता को लेकर विचारों को दर्शाती हैं.

कश्मीर में हरवन से जुड़ी एक फ्लोरल टाइल 2016 में अमेरिका ने लौटाई थी. मौजूदा समय में इसे पुराना किला के संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है.

अमेरिका ने 2016 में ही चोल वंश के दौरान की देवी श्रीदेवी की एक कांस्य प्रतिमा भी लौटाई थी. अभी पुराना किला संग्रहालय में संरक्षित यह कृति चोल वंश के दौरान बनाई गई तमाम कांस्य प्रतिमाओं में से एक है. चोल वंश (9-13वीं शताब्दी) के दौरान बनाई गई कांस्य की मूर्तियां उस समय दक्षिण एशिया में बनी सबसे शानदार कलाकृतियों में शुमार हैं.

बाहुबली की धातु की एक प्रतिमा, जो संभवतः आंध्र प्रदेश से संबद्ध है, भी उसी वर्ष वापस आई थी. वर्तमान समय में यह पुराना किला के केंद्रीय पुरातन संग्रह (सीएसी) अनुभाग के संरक्षण में है. बाहुबली भरत के भाई और पहले जैन तीर्थंकर ऋषभनाथ के पुत्र थे.

मूलत: तमिलनाडु से संबंध रखने वाली हिंदू देवी पार्वती की एक धातु प्रतिमा भी पुराना किला के सीएसी अनुभाग में रखी है.

इसी तरह की एक कृति टेराकोटा का तख्तीनुमा टुकड़ा है, जिसे मूलत: पश्चिम बंगाल का माना जाता है.

तमाम देवी-देवताओं की मूर्तियां

तमिलनाडु की भूदेवी की एक धातु की मूर्ति 2016 में वापस आई. इसे तमिलनाडु की आइडल विंग ने संभालकर रखा है. भूदेवी देवी सीता की माता के रूप में पूजनीय देवी हैं. उनकी प्रतिमाओं को धरती माता का दर्जा दिया जाता है.

तमिलनाडु से संबद्ध भगवान चक्रकरथलवार की एक धातु प्रतिमा 2016 में ही अमेरिका ने लौटाई थी. अभी यह तमिलनाडु की आइडल विंग के पास है. भगवान चक्रकरथलवार, जिन्हें भगवान वाराह और भगवान नरसिंह का संयुक्त रूप माना जाता है, को भगवान नारायण से जुड़े अधिकांश मंदिरों में एक अलग जगह हासिल है.

उत्तर प्रदेश के मथुरा क्षेत्र संबंध रखने वाली भगवान बुद्ध की आसन की मुद्रा वाली एक प्रतिमा ऑस्ट्रेलिया ने 2016 में लौटाई थी. मौजूदा समय में इसे दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखा गया है. आसन की मुद्रा में ध्यान मग्न बुद्ध की यह प्रतिमा सप्ताह के चौथे दिन का प्रतिनिधित्व करती है.

ऑस्ट्रेलिया ने 2016 में आंध्र प्रदेश से संबंधित बुद्ध के भक्तों का पैनल भी लौटाया था. यह भी इस समय नेशनल म्यूजियम का हिस्सा है.

तमिलनाडु की देवी प्रत्यांगिरा की एक पत्थर की मूर्ति भी ऑस्ट्रेलिया की तरफ से लौटाई गई प्राचीन वस्तुओं में शामिल थी. अभी इसे तमिलनाडु की आइडल विंग के संरक्षण में रखा गया है. प्रत्यांगिरा देवी के रूप में देवी को काली रूप में दर्शाया जाता है और उन्हें आमतौर पर मां दुर्गा के तौर पर चित्रित किया जाता है. इस मूर्ति में देवी अपनी जीभ बाहर निकाले हुए असुरों का नाश करती दिखाई देती हैं.

अन्य चीजों में त्रिभंग मुद्रा में एक पुरुष की आकृति, एक महिला की आवक्ष प्रतिमा, एक टूटी हुई अंगुली आदि खजुराहो वाली सैंडस्टोन की कलाकृतियां शामिल हैं जिन्हें 2017 में अमेरिका ने लौटाया था. ये सब अभी पुराना किला के सीएसी अनुभाग के पास हैं.

अमेरिका ने दुर्गा की एक पत्थर की मूर्ति भी लौटाई है, जिसे अब पुराना किला में रखा गया है. रिपोर्टों के मुताबिक 8वीं शताब्दी की पत्थर की यह मूर्ति न्यूयॉर्क के मेट्रोपॉलिटन म्यूजियम ऑफ आर्ट्स में रखी थी. संग्रहालय के कर्मचारियों को इसका पता के.पी. नौटियाल के 1969 के एक पब्लिकेशन द आर्कियोलॉजी ऑफ कुमांऊ से लगा, जिसमें दुर्गा की प्रतिमा उत्तर भारतीय राज्य उत्तराखंड की मध्ययुगीन राजधानी बैजनाथ स्थित चक्रवर्तेश्वर मंदिर में होने का जिक्र किया गया था.

भगवान शिव के अलौकिक नृत्य मुद्रा दर्शाने वाले रूप नटराज की एक टूटी-फूटी सैंडस्टोन प्रतिमा, जो कि मध्य भारत से संबंधित है, को 2017 में वापस लाया गया था. अभी यह पुराना किला संग्रहालय में है.

अमेरिका ने 2017 में मध्य भारत से संबंध रखने वाला एक सैंडस्टोन पैनल जिसमें दो पुरुषों (पौराणिक रूप से अलौकिक शक्तियों वाले विद्याधर) और राजस्थान के एक जोड़े को दर्शाने वाली पत्थर की कृति भी लौटाई थी. दोनों कलाकृतियां पुराना किला के सीएसी अनुभाग में हैं.

मूलत: गुजरात से संबंधित एक प्राचीन कलाकृति, जिसमें भगवान ब्रह्मा और ब्राह्माणी को दर्शाया गया है, को 2017 में ब्रिटेन से हासिल किया गया था. यह भी पुराना किला संग्रहालय में ही है.

देवी-देवताओं की धातु की मूर्तियां

अमेरिका के मेट्रोपॉलिटन म्यूजियम ऑफ आर्ट ने 2018 में देवी दुर्गा और राक्षस महिषासुर की एक प्रतिमा लौटाई थी. इसे उत्तराखंड की माना जाता है और फिलहाल पुराना किला संग्रहालय में है.

आंध्र प्रदेश की मानी जाने वाली बोधिसत्व प्रमुख की एक कृति मेट म्यूजियम ने 2018 में लौटाई थी. इसे शाक्य मुनि की आवक्ष प्रतिमा माना जाता है. मेट म्यूजियम में ऐसी ही एक अन्य आवक्ष प्रतिमा अब भी मौजूद है, जिसके बारे में माना जाता है कि यह उस कृति का हिस्सा है जो 12 फीट से अधिक लंबी थी और और संभवतः एक स्तूप के नजदीक पवित्र बौद्ध स्थल में लगी थी.

ब्रिटेन ने 2019 में बिहार से संबंधित बुद्ध की एक प्रतिमा भी लौटाई थी. यह अभी पुराना किला संग्रहालय में है. 2019 में ऑस्ट्रेलिया ने तमिलनाडु की नटराज की एक कांस्य प्रतिमा लौटाई थी.

कैनबरा ने पिछले साल मध्य भारत में पाई गई नागराज की एक पत्थर की मूर्ति भी लौटा दी थी. इसे अब पुराना किला के सीएसी अनुभाग में रखा गया है. नागराज या नागों के राजा को हिंदू देवी मानसा का वाहन माना जाता है.

ऑस्ट्रेलिया ने 2020 में एक द्वारपाल की पत्थर की मूर्ति, जिसे तमिलनाडु से माना जाता है, लौटाई है. इसे सीएसी अनुभाग को सौंपा गया है. द्वारपाल, जिसका अर्थ होता है द्वार की रक्षा करने वाला, की प्रतिमाएं हिंदू, बौद्ध और जैन संस्कृतियों के मंदिरों में प्रवेश द्वार पर काफी प्रमुखता से लगाई जाती हैं.

ब्रिटेन ने भगवान शिव की नृत्य मुद्रा वाली राजस्थान की एक मूर्ति और आंध्र प्रदेश का माना जा रहा लाइमस्टोन का एक स्तंभ 2020 में लौटाया था.

तमिलनाडु की भगवान राम, लक्ष्मण और देवी सीता की धातु की मूर्तियों को पिछले साल ब्रिटेन की तरफ से लौटाया गया है. अभी यह राज्य की आइडल विंग के पास सुरक्षित हैं.

इस साल के शुरू में ब्रिटेन ने नवनीत कृष्ण की प्रतिमा लौटाई जिसे दक्षिण भारत का माना जा रहा है. नवनीत कृष्ण बाल कृष्ण के घुटनों पर चलते रूप को दर्शाता है जिनकी 12वीं शताब्दी में चोल शासन के दौरान प्रमुखता से पूजा-अर्चना की जाती थी.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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