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Wednesday, 9 October, 2024
होमदेशहरियाणा में 'अच्छे वेतन और जॉब को रेग्युलराइज़ करने' की मांग कर रहीं आशा वर्कर्स, एक महीने से हैं हड़ताल पर

हरियाणा में ‘अच्छे वेतन और जॉब को रेग्युलराइज़ करने’ की मांग कर रहीं आशा वर्कर्स, एक महीने से हैं हड़ताल पर

आशा कार्यकर्ताओं का आरोप है कि बिना वेतन बढ़ोत्तरी के उनका काम बढ़ाया जा रहा है. हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज का कहना है कि उन्होंने 13 सितंबर को आशा कार्यकर्ताओं के प्रतिनिधियों की बैठक बुलाई है.

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चंडीगढ़: “सम्मानजनक” वेतन और बेहतर कार्य स्थितियों की मांग करते हुए, 20,000 से अधिक मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता, या आशा – हाशिए पर रहने वाले समुदायों को स्वास्थ्य सेवा प्रणाली से जोड़ने के लिए जिम्मेदार जमीनी स्तर के कार्यकर्ता – एक महीने से अधिक समय से हरियाणा में हड़ताल पर हैं.

आशा को वर्तमान में 4,000 रुपये का मासिक मानदेय मिलता है, जो कुछ इंसेंटिव के साथ, 7,000 रुपये से 9,000 रुपये तक हो जाता है (एक महीने में उन्हें मिलने वाले इंसेटिव-बेस्ड काम की मात्रा के आधार पर).

सेंटर फॉर इंडियन ट्रेड यूनियंस (सीटू) और सर्व कर्मचारी संघ, हरियाणा से संबद्ध आशा वर्कर्स यूनियन, हरियाणा की अध्यक्ष सुरेखा (जो केवल अपना पहला नाम इस्तेमाल करती हैं) ने कहा, “हम सम्मानजनक वेतन, 26,000 रुपये प्रति माह, पेंशन, ग्रेच्युटी और भविष्य निधि के सभी लाभों के साथ हमारी सेवाओं को नियमित करने की मांग कर रहे हैं.” .

उन्होंने कहा, “उचित दरों पर सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सुविधाएं. जिला और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) स्तर पर डॉक्टरों और नर्सों के रिक्त पदों को भरना और पीएचसी स्तर पर रेडियोग्राफरों की तैनाती के साथ अल्ट्रासाउंड और एक्स-रे मशीनें स्थापित करना,”

आशा वर्कर्स यूनियन की महासचिव सुनीता रानी ने शनिवार को दिप्रिंट को बताया कि, फरवरी 2018 तक आशा वर्कर्स को मात्र 1,000 रुपये प्रति माह मानदेय मिलता था.

उन्होंने कहा, “हमारे लंबे संघर्ष के बाद, इसे बढ़ाकर 4,000 रुपये प्रति माह कर दिया गया. सरकार ने 2018 के बाद से कोई बढ़ोत्तरी नहीं की है, हमारे सदस्य 8 अगस्त से हड़ताल पर हैं, लेकिन सरकार ने हमसे बात करने की जहमत तक नहीं उठाई. जब हमारे सदस्यों ने राज्य विधानसभा सत्र के दौरान 28 अगस्त को चंडीगढ़ में विरोध प्रदर्शन करने का फैसला किया, तब राज्य सरकार ने हमें चंडीगढ़ जाने से रोकने के लिए दमनकारी उपायों का इस्तेमाल किया.”

हड़ताल के तहत कर्मचारी अलग-अलग जिलों में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.

आशाओं की मुख्य शिकायतों में से एक यह है कि मुआवजे में कोई वृद्धि किए बिना उनका दायरा बढ़ाया जा रहा है.

रानी ने कहा, प्रारंभ में, उन्हें मां एवं नवजात बच्चे की देखभाल से संबंधित उन्हें 40 बुनियादी कर्तव्य दिए गए थे. लेकिन, सरकार कई नए काम इसमें जोड़ रही है, जिसमें कैंसर, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, मोटापा आदि जैसे गैर-संचारी रोगों के लिए एक ऑनलाइन सर्वेक्षण, आयुष्मान भारत कार्ड के लिए केवाईसी (अपने ग्राहक को जानें) दस्तावेज़ को पूरा करना, टीबी के रोगियों व नशे के आदी हो चुके लोगों के लिए सर्वेक्षण करना शामिल है.

उन्होंने कहा, “जब हम अन्य सरकारी कर्मचारियों की तरह सम्मानजनक वेतन की मांग करते हैं, तो हमें बताया जाता है कि हम स्वैच्छिक कर्मचारी हैं, लेकिन जब हम अतिरिक्त ड्यूटी से इनकार करते हैं, तो हमें धमकी दी जाती है कि हमें सेवा से हटा दिया जाएगा. सरकार दोहरे मापदंड अपनाती है. जब उन्हें हमारा वेतन तय करना होता है, और जब उन्हें हमारी नौकरी की स्थिति तय करनी होती है तो यह अलग-अलग होता है.”

टिप्पणी के लिए संपर्क किए जाने पर हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने कहा कि उन्होंने 13 सितंबर को आशा कार्यकर्ताओं के प्रतिनिधियों की एक बैठक बुलाई है. “उस बैठक के दौरान स्वास्थ्य विभाग के सभी अधिकारी उपस्थित रहेंगे. हम उनकी शिकायतें सुनेंगे,”

इस बात की पुष्टि करते हुए सुरेखा ने कहा कि हालांकि बैठक स्वास्थ्य कार्यक्रमों पर चर्चा के लिए बुलाई गई है, पर मंत्री का पत्र अधिकारियों को आशा कार्यकर्ताओं के मुद्दों पर चर्चा करने और उन्हें एक प्रस्ताव सौंपने का भी निर्देश देता है.

शनिवार को दिप्रिंट से बात करते हुए उन्होंने कहा, “पत्र की सामग्री के अनुसार, संबंधित अधिकारियों को हमारे साथ हमारे मुद्दों पर चर्चा करनी चाहिए थी, लेकिन अभी तक किसी ने भी हमसे संपर्क नहीं किया है. चूंकि हम हड़ताल पर हैं, इसलिए हम स्वास्थ्य कार्यक्रमों पर चर्चा के लिए बुलाई गई बैठक में शामिल नहीं होते. फिर भी, चूंकि मंत्री ने पहल की है, इसलिए हम निश्चित रूप से इस बैठक में भाग लेने जाएंगे.”


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आशा कार्यकर्ता कौन हैं?

आशा को सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता के रूप में नियोजित करने की योजना सरकार द्वारा 2005 में राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) के तहत शुरू की गई थी – जिसे बाद में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) नाम दिया गया.

एनएचएम वेबसाइट कहती है, “राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के प्रमुख घटकों में से एक देश के हर गांव को एक प्रशिक्षित महिला सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता, आशा या मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता प्रदान करना है. गांव से ही चयनित और उसके प्रति जवाबदेह, आशा को समुदाय और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के बीच एक इंटरफेस के रूप में काम करने के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा.”

वेबसाइट का कहना है कि आशा एनएचएम पिरामिड के सबसे निचले स्तर पर हैं, और स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार के लिए “परिवर्तन एजेंट” के रूप में काम करती हैं.

उनसे जमीनी स्तर पर स्वास्थ्य संकेतकों, विशेषकर शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) और मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) में सुधार लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की उम्मीद है.

हरियाणा एनएचएम वेबसाइट के अनुसार, हरियाणा की वर्तमान आईएमआर प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर 28 है (भारत के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा जारी नमूना पंजीकरण प्रणाली सांख्यिकीय रिपोर्ट 2020 डेटा से), जो 2013 के बाद से 41 से 13 अंक कम हो गई है.

पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर में 12 अंकों की गिरावट आई है, जो 45 (एसआरएस 2013) से 33 (एसआरएस 2020) हो गई है.

एनएचएम वेबसाइट से पता चलता है कि हरियाणा का वर्तमान एमएमआर 110 (एसआरएस 2018-20) है. आशाओं का कहना है कि 2022 में यह घटकर 95 रह गई.

उनकी अन्य भूमिकाओं में 24×7 डिलीवरी सुविधाओं को चालू करके संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देना है. एनएचएम वेबसाइट का कहना है कि संस्थागत प्रसव 2022-23 में बढ़कर 97.5 प्रतिशत हो गया (केंद्र सरकार की स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली से प्राप्त डेटा), जो 2017 में 90.37 प्रतिशत था.

केंद्र सरकार की जननी सुरक्षा योजना (मातृत्व सुरक्षा योजना) के तहत, आशा को संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के लिए गर्भवती महिलाओं को जांच के लिए सरकारी अस्पतालों में लाने के लिए इंसेटिव दिया जाता है. इसी प्रकार, विभिन्न चरणों में बच्चों के टीकाकरण की सुविधा के लिए इंसेटिव दिया जाता है.

अखिल भारतीय लोकतांत्रिक महिला संघ (एआईडीडब्ल्यूए) की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जगमती सांगवान ने कहा कि आशा कार्यकर्ता जमीन पर अपने कर्तव्यों को इतनी खूबसूरती से निभा रही हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी कोविड 19 महामारी के दौरान उनके काम की सराहना की.”

उन्होंने कहा, “यह उनके उत्कृष्ट कार्य का ही परिणाम है कि हमने पिछले लगभग दो दशकों में मातृ मृत्यु दर (एमएमआर), शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) और टीकाकरण में सुधार देखा है. हालांकि, जब उन्हें उनके काम के लिए उचित पारिश्रमिक प्रदान करने की बात आती है, तो सरकार अपने पैर खींचती नजर आती है.”

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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