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Wednesday, 22 May, 2024
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केशवानंद भारती के फैसले के 50 साल पूरे होने पर SC ने इसकी जानकारी के लिए वन-स्टॉप वेबपेज शुरू किया

केशवानंद भारती के फैसले में मूल संरचना सिद्धांत को अपनाया गया था और कहा गया था कि संविधान की कुछ मूलभूत विशेषताएं हैं, जैसे कि लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, संघवाद और कानून का शासन आदि, को संसद द्वारा संशोधित नहीं किया जा सकता है.

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नई दिल्ली: केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामले में अपने ऐतिहासिक फैसले की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर, सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को समर्पित एक वेबपेज बनाया है जिसे सोमवार को अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड किया गया. यह पेज में फैसले का हिंदी अनुवाद भी है, जिसे पहली बार सार्वजनिक किया गया है.

24 अप्रैल 1973 को दिए गए, केशवानंद भारती के फैसले में मूल संरचना सिद्धांत को अपनाया गया था और कहा गया था कि संविधान की कुछ मूलभूत विशेषताएं हैं, जैसे कि लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, संघवाद और कानून का शासन आदि, को संसद द्वारा संशोधित नहीं किया जा सकता है.

7:6 के बहुमत से, इस ऐतिहासिक फैसले ने यह भी घोषित किया था कि न्यायिक समीक्षा संविधान की मूल संरचना का एक अभिन्न अंग है, और इसे किसी भी संवैधानिक संशोधन के माध्यम से मिटाया नहीं जा सकता है.

केशवानंद भारती के फैसले को कई पथप्रदर्शक फैसलों की नींव रखने का श्रेय दिया जाता है.

पेज के विमोचन की घोषणा करते हुए, भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी.वाई. चंद्रचूड़ ने सोमवार को कहा कि यह वेबपेज – प्रत्येक न्यायाधीश की व्यक्तिगत राय, लिखित सबमिशन और मामले से जुड़ी हर चीज के साथ – उन सभी शोधकर्ताओं और छात्रों के लिए उपलब्ध होगा जो इसके बारे में अधिक जानना चाहते हैं.

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इस साल जनवरी में 18वें नानी पालकीवाला मेमोरियल लेक्चर में बोलते हुए, CJI चंद्रचूड़ ने केशवानंद भारती फैसले को एक ‘ग्राउंडब्रेकिंग’ के रूप में वर्णित किया था, जो संविधान की व्याख्या और कार्यान्वयन की आवश्यकता वाले मामलों में ‘नॉर्थ स्टार’ की तरह न्यायाधीशों का मार्गदर्शन करता है. पालकीवाला ने मामले में मुख्य याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व किया था.

13-न्यायाधीशों की पीठ ने उस मामले की सुनवाई की थी जो भूमि सुधार मुकदमेबाजी से शुरू हुआ था.

भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एस.एम. सीकरी ने इस बेंच का नेतृत्व किया, जिसमें जस्टिस जे.एम. शेलट, के.एस. हेगड़े, ए.एन. ग्रोवर, ए.एन. रे, पी. जगनमोहन रेड्डी, डी.जी. पालेकर, एच.आर. खन्ना, के.के. मैथ्यू, एम.एच. बेग, एस.एन. द्विवेदी, बी.के. मुखर्जी और वाई.वी. चंद्रचूड़ शामिल थे.

दलीलें सुनने और फैसला सुनाने में छह महीने लग गए थे.

धार्मिक नेता और ज़मींदार केशवानंद भारती द्वारा दायर, याचिका में केरल भूमि सुधार अधिनियम के खिलाफ तर्क दिया गया था, जिसमें दावा किया गया था कि यह संपत्ति के उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है जो संविधान द्वारा नागरिकों को दिया गया एक अधिकार है.

उनके द्वारा यह तर्क दिया गया था कि संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति असीमित थी और कुछ अधिकार – जैसे संपत्ति का अधिकार – किसी भी संशोधन के दायरे से बाहर थे.

केरल राज्य ने कानून की संवैधानिकता का बचाव किया और इसे संपत्ति के अधिकार पर एक उचित प्रतिबंध करार दिया. जहां तक संसद की शक्ति का सवाल है, केंद्र का तर्क था कि इस शक्ति की कोई सीमा नहीं है.

क्या क्या है वेबपेज में?

इस वेबपेज में न केवल 13 मतों की स्कैन प्रतियां हैं, बल्कि यह इस मामले की पृष्ठभूमि के साथ-साथ इसकी पूरी जानकारी भी देता है. 

इसके अलावा, प्रमुख कानूनी मुद्दों को भी बेंच द्वारा अंतिम निष्कर्ष के साथ वेबपेज पर निर्धारित किया गया है. इसके अलावा, याचिका की स्कैन प्रतियां, याचिकाकर्ता द्वारा अग्रेषित प्रस्ताव, याचिकाकर्ता और प्रतिवादी दोनों द्वारा दिए गए लिखित तर्क और हस्तक्षेपकर्ताओं की दलीलें भी अपलोड की गई हैं.

आंध्र प्रदेश, असम, नागालैंड, जम्मू और कश्मीर, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मेघालय, उड़ीसा, राजस्थान, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के हस्तक्षेप को भी इसमें जगह मिली है.

शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि पेज बनाने में दो डिपार्टमेंट का सहयोग लिया गया जिसमें पुस्तकालय और सूचना प्रौद्योगिकी शामिल हैं.

सूत्रों में से एक ने कहा, ‘सीजेआई द्वारा ऐतिहासिक फैसले के 50 साल पूरे होने के मौके पर एक समर्पित लिंक विकसित करने का विचार आने के लगभग एक महीने पहले काम शुरू हुआ था.’

हालांकि फैसले की मूल फाइल सुप्रीम कोर्ट के संग्रहालय में रखी हुई है. पुस्तकालय विभाग ने याचिका की एक प्रति, लिखित तर्क और हस्तक्षेप आवेदन जैसे आवश्यक दस्तावेजों को ढूंढ़कर निकाला और उसका स्कैन किया.

एक अन्य सूत्र ने कहा, ‘इसकी मौलिकता बनाए रखने के लिए, दस्तावेजों को उसी टाइप किए गए प्रारूप में स्कैन किया गया था, जिसमें मामले की सुनवाई के दौरान उन्हें अदालत में जमा किया गया था.’

रजिस्ट्री उन न्यायविदों तक भी पहुंची जिन्होंने फैसले पर लेख लिखे या किताबें लिखीं.

दूसरे श्रोत ने कहा, ‘हमें कुछ से प्रतिक्रिया मिली है और ‘संदर्भ सामग्री’ के उपशीर्षक के तहत अपना काम अपलोड किया है. हम अभी भी और इससे जुड़ी सामाग्री खोजने की प्रक्रिया में हैं, और जैसे ही हमें वह मिलेगा, उन्हें भी अपलोड कर दिया जाएगा.’ 

फैसले की हिंदी प्रति के लिए, शीर्ष अदालत ने विधि साहित्य प्रकाशन – केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय के विधायी विंग के तहत एक विभाग – से निर्णय के अनुवादित संस्करण को साझा करने के लिए अनुरोध किया.

पहले सूत्र ने कहा, ‘यह पहली बार है कि 1973 के फैसले का हिंदी संस्करण सार्वजनिक किया गया है.’

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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