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Friday, 22 November, 2024
होमदेशकोविड से जूझ रहे सरकारी अस्पतालों के बीच निजी क्षेत्र पर शिफ्ट हुआ ‘मोदीकेयर’ बिजनेस

कोविड से जूझ रहे सरकारी अस्पतालों के बीच निजी क्षेत्र पर शिफ्ट हुआ ‘मोदीकेयर’ बिजनेस

फरवरी के बाद के सरकारी आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है, कि पीएम-जे क्लेम्स में निजी अस्पतालों की हिस्सेदारी बढ़ गई है, चूंकि कोविड महामारी का सबसे ज़्यादा बोझ सरकारी सुविधाएं उठा रही हैं.

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नई दिल्ली: दो महीने की अनलॉकिंग के बाद ज़्यादातर राज्यों में, प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएम-जे) का इस्तेमाल, लॉकडाउन से पहले के स्तर पर आ गया है. लेकिन इसमें एक पेंच है. सरकारी सुविधाओं के कोविड केयर में फंसे होने के कारण, ज़्यादातर राज्यों में पीएम-जे क्लेम्स में निजी अस्पतालों की हिस्सेदारी काफी बढ़ गई है.

पीएम-जे सरकार की एक प्रमुख स्वास्थ्य बीमा स्कीम है. ये आयुष्मान भारत का हिस्सा है जिसमें द्वितीयक और तृतीयक केयर दी जाती है और जिसे मोदीकेयर भी कहा जाता है. इसके तहत सरकार का उद्देश्य ऐसे क़रीब 10.74 करोड़ परिवारों को 5 लाख रुपए का सालाना हेल्थ कवर मुहैया कराना है, जो भारत की आबादी का 40 प्रतिशत निचला हिस्सा हैं.

पिछले महीने पीएम-जे की कार्यान्वयन एजेंसी, नेशनल हेल्थ अथॉरिटी (एनएचए) ने एक विश्लेषण किया. जिससे पता चला कि स्कीम के तहत पैनल पर रखे गए अस्पतालों ने कोविड से पहले का अपना 77 प्रतिशत बिज़नेस फिर से पा लिया है. लेकिन, निजी अस्पतालों में ये रिकवरी जहां 99 प्रतिशत है. सरकारी सुविधाओं में ये केवल 63 प्रतिशत है.

दिप्रिंट ने पीएम-जे के इस्तेमाल के पिछले 6 महीने के राज्यवार आंकड़े देखे और पाया कि क्लेम्स में निजी अस्पतालों की हिस्सेदारी, कोविड से पहले के स्तरों से अधिक दर्ज की गई है.

तमिलनाडु में, जुलाई में पीएम-जे क्लेम्स में निजी सेक्टर की हिस्सेदारी बढ़कर 68 प्रतिशत हो गई, जोकि लॉकडाउन से पहले (फरवरी में) 42 प्रतिशत थी. मध्यप्रदेश में ये हिस्सेदारी 41 प्रतिशत से बढ़कर 63 प्रतिशत हो गई और बिहार में 48 प्रतिशत से बढ़कर 67 प्रतिशत पहुंच गई. बढ़ोतरी की ये दर तमिलनाडु में 26 प्रतिशत बिंदु से लेकर गुजरात में 2 प्रतिशत बिंदु तक है और पूरे देश में ही ये बढ़ोतरी देखी गई है.

दिप्रिंट से बात करते हुए एनएचए सूत्रों ने कहा कि इन नम्बरों के बढ़ने की वजह ये है कि लॉकडाउन के दौरान पैनल पर रखने का एक सरल मॉड्यूल लॉन्च किया गया था. ताकि लोग ग़ैर-कोविड बीमारियों में अस्पताल की देखरेख से वंचित न रहें.

इस मॉड्यूल के तहत अस्पताल अस्थाई तौर से पैनल पर आने के लिए अनुरोध कर सकते थे, जिसमें पीएम-जे के तहत पंजीकरण के लिए कम से कम डिटेल्स और डॉक्युमेंट्स की ज़रूरत पड़ती थी.

लेकिन, सूत्रों ने कहा कि पब्लिक सेक्टर की रिकवरी की राह में सबसे बड़ी बाधा ये है कि अधिकांश सरकारी अस्पताल अभी भी, कोविड केयर से जूझ रहे हैं.


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क्या कहते हैं आंकड़े

फरवरी में, गुजरात के कुल 98,260 क्लेम्स में से, 68 प्रतिशत निजी अस्पतालों से थे. जुलाई में ये संख्या कुल 96,136 क्लेम्स का 70 प्रतिशत थी. केरल में, कुल 70,484 दावों में निजी अस्पतालों की हिस्सेदारी बढ़कर 25 प्रतिशत हो गई, जो पहले कुल 90,591 दावों का 23 प्रतिशत थी. सरकारी अस्पतालों के क्लेम्स फरवरी में 69,755 के मुक़ाबले, जुलाई में घटकर 52,863 पर आ गए.

एनएचए के एक अधिकारी ने कहा, ‘सिर्फ प्रतिशत पर नज़र डालने से, सरकारी अस्पतालों की कम हिस्सेदारी की सही तस्वीर नहीं मिलेगी.’ उन्होंने आगे कहा, ‘आपको इसे निरपेक्ष संख्या में कमी के संदर्भ में देखना होगा और ये भी देखना होगा कि निजी सेक्टर की हिस्सेदारी में 5 प्रतिशत वृद्धि के भी निहित अर्थ होते हैं. मसलन, अगर ये अनुपात 50-55 से बदलकर 45-55 हो जाता है, तो ये अंतर काफी अहम है.’

इन संभावित निहितार्थों को समझाने के लिए, अधिकारी ने एनएचए के जुलाई की बिज़नेस रिकवरी के आंकलन का हवाला दिया. ‘पिछले महीने, हमने दो हफ्ते की रिकवरी का विश्लेषण किया और पता चला कि निजी सेक्टर कोविड से पहले के 99 प्रतिशत स्तर पर है, लेकिन सरकारी सेक्टर केवल 63 प्रतिशत पर है.’

तमिलनाडु में, निजी अस्पतालों के लिए रिकवरी 100 प्रतिशत से अधिक रही है, जिसमें कुल क्लेम्स की संख्या, फरवरी के 31,978 से बढ़कर, जुलाई में 46,584 पहुंच गई.

मध्यप्रदेश में, सरकारी अस्पतालों के क्लेम्स की संख्या, 18,621 से गिरकर, 11,244 पर आ गई है.

लॉकडाउन के बाद गिरावट

लॉकडाउन के शुरूआती महीनों में तक़रीबन सभी राज्यों में पीएम-जे क्लेम्स में भारी गिरावट देखी गई.

कर्नाटक में क्लेम्स की संख्या फरवरी में 79,595 से गिरकर, अप्रैल में 27,173 पर आ गई. फरवरी के क्लेम्स में 12 प्रतिशत निजी सेक्टर से थे. जुलाई के कुल 37,561 क्लेम्स में, 21 प्रतिशत निजी सेक्टर से थे.

पंजाब इस मामले में पराया है कि वहां पीएम-जे क्लेम्स, फरवरी की अपेक्षा (33,975 क्लेम्स, या 55 प्रतिशत निजी क्षेत्र से) जुलाई में (47,783 या 61 प्रतिशत निजी क्षेत्र से) ज़्यादा थे.

ऊपर बताए गए एनएचए अधिकारी ने कहा, ‘वहां पर संख्या भले नही ज़्यादा न हो, लेकिन कुछ राज्य जिनमें निजी सेक्टर की हिस्सेदारी काफी बढ़ी है, वो उत्तरपूर्व के राज्य हैं जहां सरल पंजीकरण भी अधिक था.’ उन्होंने आगे कहा, ‘कुछ उत्तरपूर्वी राज्यों में, निजी क्षेत्र में इसका इस्तेमाल दोगुना हो गया है, जबकि अन्य में ये रिकवरी 100 प्रतिशत से अधिक रही है.’


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बिहार पिछड़ा

बिहार में पीएम-जे की संख्या कोविड के झटके से उबरी नहीं है. फरवरी में, इस राज्य से कुल 15,056 क्लेम्स थे, जिनमें 48 प्रतिशत निजी क्षेत्र से थे. जुलाई में कुल 4,913 क्लेम्स थे, जिनमें से 67 प्रतिशत निजी क्षेत्र से थे.

इस निरंतर गिरावट ने चिंता पैदा कर दी है, और समस्या को समझने के लिए, एनएचए ने राज्य के अधिकारियों से बातचीत की है.

ऊपर हवाला दिए गए अधिकारी ने कहा, ‘बिहार में, सुविधाएं खुल ही नहीं रहीं हैं- न सरकारी न ही निजी. कुछ निजी सुविधाएं अब खुल गईं हैं, लेकिन हम जितना समझते हैं, वो अभी भी कोविड से पहले की संख्या का क़रीब एक तिहाई है.’ अधिकारी ने आगे कहा, ‘शुरूआत में ही अप्रैल में यहां सब कुछ बंद हो गया था. ये समझना मुश्किल है कि क्या वो नक़दी प्रवाह के डर या चिंता की वजह से था.’ उन्होंने ये भी कहा, लेकिन अभी भी चीज़ें सुधर नहीं रहीं हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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