scorecardresearch
Saturday, 21 December, 2024
होमडिफेंसपाकिस्तान के लिए गोला-बारूद का भंडार तैयार, सेना का अब चीन के खिलाफ तैयारी पर ज़ोर

पाकिस्तान के लिए गोला-बारूद का भंडार तैयार, सेना का अब चीन के खिलाफ तैयारी पर ज़ोर

2016 के उरी हमले के बाद सरकार को अहसास हुआ था कि सेना वास्तव में गोला-बारूद की कमी से जूझ रही है.

Text Size:

नई दिल्ली : सेना ने पाकिस्तान के साथ 10 दिनों के ‘गहन युद्ध’ के लिए पर्याप्त गोला-बारूद का भंडार तैयार कर लिया है, और दिप्रिंट को मिली जानकारी के अनुसार वह अब चीन के साथ किसी भी संभावित संघर्ष के लिए साज़ो-सामान तैयार रखने पर ध्यान केंद्रित कर रही है.

रक्षा सूत्रों के अनुसार, सेना उत्तरी और पूर्वी सीमाओं पर युद्ध अपव्यय रिज़र्व (डब्ल्यूडब्ल्यूआर) को ‘30 दिनों के गहन युद्ध’ लायक बनाने के काम में जुट भी चुकी है.

डब्ल्यूडब्ल्यूआर से मतलब गोला-बारूद के उस स्तर के सुरक्षित भंडार से है जो कि 40 दिनों के गहन युद्ध या पूर्ण युद्ध के लिए पर्याप्त हो. हालांकि, इतने बड़े स्तर पर गोला-बारूद का संग्रह एक दुस्साध्य काम माना जाता है. इस पर आने वाली लागत के कारण ही नहीं, बल्कि भंडारण से जुड़ी व्यावहारिक दिक्कतों के कारण भी.

इसलिए 2016 के उरी हमले के बाद जब सेना के उपप्रमुख को ज़रूरी गोला-बारूद और हथियार खरीदने का आपात अधिकार दिया गया, तो ये तय किया गया था कि शुरू में पाकिस्तान के साथ 10 दिनों के गहन युद्ध के लिए भंडार तैयार करने पर ध्यान दिया जाए.

इस बारे में सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने पिछले दिनों दिप्रिंट को दिए साक्षात्कार में कहा था, ‘मेरा फोकस ज़्यादा बड़ा भंडार तैयार करने पर था. हमने सेना के भीतर विचार-विमर्श किया और पश्चिमी सीमा पर 10 दिनों (के गहन युद्ध) पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया.’

जनरल रावत ने कहा, ‘यदि हम पाकिस्तान के साथ 10 दिनों में युद्ध नहीं जीत सके तो फिर युद्ध का कोई मतलब ही नहीं होगा.’

गंभीर चिंता की बात

गोला-बारूद की कमी हाल के वर्षों में सेना के लिए गंभीर चिंता की बात रही है और विगत में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) भी इस चिंता को स्वर दे चुके हैं.

जब जनरल रावत 2016 में सेना प्रमुख नियुक्त हुए, तो सेना के आयुध भंडार में हर टैंक के लिए एक-एक एंटी-टैंक मिसाइल (एपीएफएसडीएस) तक नहीं थी. ऐसी एक मिसाइल की लागत 4 लाख रुपये आती है. तोप के गोले और फ्यूज़ चिंता की एक और वजह हैं.


यह भी पढ़ें : सैटेलाइट की तस्वीरों से साफ, चीन ने भारत में बनाई सड़क : रक्षा विशेषज्ञ


उरी हमले के बाद सरकार को अहसास हुआ था कि सेना वास्तव में गोला-बारूद की कमी से जूझ रही है, और भारत के सर्जिकल स्ट्राइक की प्रतिक्रिया में यदि पाकिस्तान ने दीर्घावधि की जवाबी कार्रवाई का विकल्प चुना तो भारतीय सशस्त्र बल दबाव की स्थिति में आ जाएंगे.

अंतत: सेना के उपप्रमुख को ज़रूरी हथियार एवं गोला-बारूद खरीदने के लिए अधिकृत किए जाने के बाद सेना खरीदारी में जोर-शोर से जुट गई.

रातों-रात, वरिष्ठ अधिकारियों को विशेष विमानों से रूस और इज़राइल समेत अलग-अलग देशों में पहुंचाया गया, और बड़ी मात्रा में खरीदारी की गई, जिनमें कुछ साजो-सामान तो बहुत ही ऊंची कीमत पर खरीदे गए.

जनरल रावत ने कहा, ‘आप यकीन नहीं करेंगे कि अधिकारियों ने दुनिया भर के बाज़ारों के कितने चक्कर लगाए. गोला-बारूद का एक नया बैच बहुत जल्दी उपलब्ध होने वाला है. हमने वास्तव में गोला-बारूद का भंडार बनाने पर फोकस किया है, जिनमें तोपों के गोले भी शामिल हैं.’

मार्च 2018 में, रक्षा मंत्रालय ने हथियार या गोला-बारूद की खेप विशेष की खरीद के लिए सशस्त्र सेनाओं के तीन उप-प्रमुखों के वित्तीय अधिकार को 100 करोड़ से बढ़ा कर 500 करोड़ रुपए कर दिए थे. इस साल के लिए इसमें अतिरिक्त 300 करोड़ रुपए की वृद्धि की गई है.

चीन के खिलाफ़ क्षमता

जनरल रावत ने कहा कि चीन के साथ किसी भी संभावित युद्ध के लगातार कई दिनों तक चलने की आशंका नहीं है. उनके अनुसार चीन आरंभिक चरणों में पूर्ण गहन युद्ध शुरू करने के बजाय, पहले मिसाइलों से भारत के कमान, नियंत्रण और आयुध भंडारों पर हमले करेगा. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के विरुद्ध लगातार चलने वाले गहन अभियान के विपरीत चीन के साथ संभावित भावी युद्ध लंबा खिंचेगा.

जनरल रावत ने कहा, ‘इसलिए ये महसूस किया गया कि हम 30 दिनों की तैयारी करें. साथ ही ज़रूरत पड़ी तो हम हमेशा ही हथियार, गोला-बारूद और सैनिकों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचा सकते हैं.’

उन्होंने आगे कहा कि पूरी रसद प्रणाली के डिजिटाइजेशन के बाद सेना मुख्यालय और संबंधित विभागों को पता रहता है कि कहां पर कितनी मात्रा में गोला-बारूद उपलब्ध है.

हालांकि, सेना प्रमुख ने इस वक्त किसी युद्ध की आशंका से इनकार किया है. उन्होंने ये भी स्पष्ट किया कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारत और चीन के भिन्न नज़रिए के कारण हाल में लद्दाख में बने गतिरोध जैसी घटनाएं आगे भी होती रहेंगी.

उन्होंने कहा, ‘चीन का अपना एक दृष्टिकोण और योजना है. मैं नहीं समझता अभी वो कोई कदम उठाएगा या कुछ करेगा. ऐसी कार्रवाइयों (लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने का फैसला) के कारण वे अपनी योजना को नहीं बदलेंगे. उन्हें पता है कि कब उन्हें कार्रवाई करनी है. छोटी-मोटी झड़पें होंगी.’

जनरल रावत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि भारत के लिए गोला-बारूद के बड़े भंडार तैयार करने का वक़्त आ गया है. उन्होंने कहा, ‘हम पुनर्गठन कर रहे हैं…हमें रिज़र्व भंडार बनाने चाहिए, सीमा पर निगरानी के लिए प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करना चाहिए.’

सेना प्रमुख ने दावा किया कि चिनूक हेलीकॉप्टरों को शामिल किए जाने और अग्रिम इलाकों में नई अत्याधुनिक हवाई पट्टियों के निर्माण के बाद सीमा पर आधारभूत ढांचे तैयार करने के काम में तेज़ी आई है.


यह भी पढ़ें : भारतीय सेना ने अरुणाचल में चीनी अतिक्रमण पर दिप्रिंट के लेख को गलत बताया


उन्होंने कहा कि पर्वतीय इलाकों में युद्ध को ध्यान में रखते हुए अमेरिका से 145 हल्के एम777 तोपों की खरीद की जा रही है. उन्होंने कहा कि इन तोपों को चिनूक हेलीकॉप्टरों के सहारे आसानी से एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाया जा सकता है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

share & View comments