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Friday, 26 April, 2024
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भारतीय सेना ने अरुणाचल में चीनी अतिक्रमण पर दिप्रिंट के लेख को गलत बताया

लेखक अभिजीत अय्यर-मित्रा ने अपने दावे के समर्थन में और भी उपग्रह चित्र पेश किए और उन्होंने भारतीय सेना के समक्ष नए सवाल भी उठाए हैं.

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भारतीय सेना के प्रवक्ता कर्नल अमन आनंद ने 6 सितंबर 2019 को प्रकाशित दिप्रिंट के लेख ‘सैटेलाइट इमेजेज़ शो चाइना रोड रन्स डीप इनटू अरुणाचल’ (उपग्रह चित्रों ने दिखाया, अरुणाचल के भीतर तक आती है चीनी सड़क) को पूरी तरह गलत बताते हुए लेखक पर जानबूझ कर 2017 की एक महत्वहीन खबर को सनसनीखेज बना कर पेश करने का आरोप लगाया है.

प्रवक्ता ने कहा, ‘रिपोर्ट और शीर्षक भ्रामक हैं और सिर्फ सनसनी पैदा करने के इरादे से लिखे गए हैं.’

कर्नल आनंद ने कहा, ‘लेख में वर्णित सड़क का निर्माण चीनी सेना ने 2017 में अनजाने में किया था और वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) का अतिक्रमण करने पर उन्हें तत्काल भारतीय सेना के विरोध का सामना करना पड़ा था. मीडिया ने दिसंबर 2017 में उस घटना की रिपोर्टिंग की थी. तब अपनी गलती का अहसास होते ही चीनी सेना तुरंत वापस लौट गई थी. उसके बाद सीमा प्रबंधन की मौजूदा व्यवस्था के तहत विवाद का सौहार्दपूर्ण तरीके से समाधान कर लिया गया. अतिक्रमण वाले हिस्से में भारतीय सेना ने वृक्षारोपण किया था और एलएसी को स्पष्टता से चिन्हित करने के लिए पत्थर की एक दीवार भी खड़ी की थी. वर्तमान में चीनी सेना अपनी सीमा के भीतर सीमित है.’

प्रवक्ता ने आगे कहा, ‘सीमा संबंधी तमाम मुद्दों के समाधान के लिए भारत और चीन ने मजबूत कूटनीतिक और सैन्य तंत्र स्थापित कर रखे हैं. दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हैं कि व्यापक द्विपक्षीय संबंधों के सुचारू विकास के लिए भारत-चीन सीमा पर अमन और शांति को बनाए रखना आवश्यक है. दोनों पक्षों ने राजनीतिक मापदंडों एवं मार्गदर्शक सिद्धांतों संबंधी 2005 के समझौते के अनुरूप सीमा विवाद के निष्पक्ष, तार्किक और परस्पर स्वीकार्य समाधान की दिशा में काम करने पर भी सहमति व्यक्त की है.’


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लेखक अभिजीत अय्यर-मित्रा का जवाब:

भारतीय सेना के प्रवक्ता के स्पष्टीकरण में सिर्फ दो प्रत्यक्ष दावे हैं. इन दोनों दावों – वृक्षारोपण और दीवार का निर्माण, की पुष्टि 25 अगस्त 2019 को ली गई नवीनतम तस्वीरों से भी नहीं होती है. कर्नल आनंद ने उन अहम विवरणों को सामने नहीं रखा है, जो कि स्थिति को स्पष्ट करने में मददगार साबित हो सकती थीं.

सेना का दावा: वृक्षारोपण किया और पत्थर की एक दीवार भी खड़ी की.

पहली तस्वीर । सौजन्य :@sbreakintl

हाई रिजोल्यूशन वाला चित्र-1 , 25 अगस्त 2019 का है. इसमें पूरी सड़क भारतीय हिस्से में दिखती है, पर पेड़ और दीवार कहीं नहीं दिख रहे.

सेना को हमसे पेड़ों और दीवार के भौगोलिक निर्देशांक शेयर करने चाहिए. उस स्थल के भौगोलिक निर्देशांक भी जो कि सेना के अनुसार वास्तविक एलएसी है और साथ ही उसे ये भी स्पष्ट करना चाहिए कि इस सेक्टर में एलएसी का गूगल मैप पर सीमांकन सही है या नहीं.

दूसरी तस्वीर । सौजन्य : @Detresfa_

चित्र-2, अगस्त 2018 में लिया गया है और इसमें वास्तव में एक दीवार दिखती है, पर ये पूरी तरह चीनी सीमा में है. (इससे बिल्कुल साफ है कि हम छोटी-सी दीवार को भी देख सकते हैं, जो कि भारतीय सीमा में हमें नहीं दिखी थी).

तीसरी तस्वीर । सौजन्य : @Detresfa_

पर जैसा कि जून 2019 में खींचे गए चित्र-3 से जाहिर होता है, 2018 में निर्मित दीवार गायब हो चुकी है. ये स्पष्ट नहीं है कि क्या भारतीय सेना ने दीवार हटाई (यदि हां, तो भला क्यों. क्योंकि सेना के प्रवक्ता ने इसे हटाए जाने का ज़िक्र नहीं किया है.) या फिर चीनियों ने दीवार तोड़ दी और भारतीय क्षेत्र में दोबारा अतिक्रमण किया.

साथ ही, भारत की तरफ के खुले क्षेत्र और दीवार के बीच के हिस्से को कवर कर रहे पेड़ पूरी तरह परिपक्व पेड़ हैं, उनकी ऊंचाई इर्द-गिर्द मौजूद घने जंगलों के अनुरूप है. इसलिए हाल में पेड़ लगाए जाने का दावा खारिज हो जाता है.

चौथी तस्वीर । सौजन्य : @Detresfa_

अतिरिक्त झुकाव वाली दिसंबर 2017 (चित्र-4) और फरवरी 2018 (चित्र-5) की तस्वीरों में भी पेड़ लगाए जाने या दीवार की तामीर किए जाने का कोई सबूत नहीं दिख रहा है.

पांचवी तस्वीर । सौजन्य : @Detresfa_

इन तस्वीरों से निम्नांकित सवाल पैदा होते हैं:

क) क्या चित्र-2 में प्रदर्शित दीवार ही वास्तव में सीमा पर निर्मित दीवार की जगह है?
ख) कैसे और कब यह दीवार गायब हुई?
ग) यदि चीन अब उस सड़क का इस्तेमाल नहीं करता है, तो फिर ये इतना साफ (यानि काम में ली जा रही) क्यों दिखती है, क्योंकि क्षेत्र में वर्षण और पेड़-पौधों की तेज़ वृद्धि को देखते हुए दो साल में सड़क ढंक जानी चाहिए थी?
घ) साथ ही, यदि भारत ने वहां भारी मशीनरी का इस्तेमाल किया है, तो किसी पहुंच मार्ग की अनुपस्थिति में मशीनरी को वहां कैसे पहुंचाया गया?

सेना का दावा: चीनी सेना ने 2017 में अनजाने में निर्माण किया और गलती का अहसास होने पर वह तुरंत वापस लौट गई.

दिप्रिंट के 6 सितंबर के लेख में निम्नांकित कारणों से चीनियों के अतिक्रमण को जानबूझ कर किया गया बताया गया था:

1) इसमें सोच-विचार कर और नियोजित तरीके से कम से कम तीन वर्षों की अवधि में निर्माण किए जाने और इस निर्माण को नियमित अंतराल पर चीनी पक्ष से मदद के लिए ज़रूरी आधारभूत ढांचे के सबूत दिखते हैं.

2) ऐसी खबरें सामने आई हैं कि इस क्षेत्र में अतिक्रमण की एक नहीं बल्कि दो (टूटिंग और अपर शियांग) घटनाएं हुई हैं.

3) सड़क की दिशा से साफ जाहिर है कि बिशिंग के चीन की तरफ निकले हिस्से को काटने का सोचा-समझा प्रयास चल रहा है जैसा कि मैंने अपने लेख में बताया था और ये बारंबार किए जा रहे प्रयासों की श्रृंखला के तहत है.

4) सड़क बनाने के चीन के पूरे उपक्रम को ‘अनजाने में’ हुई ‘भूल’ बताने की भारतीय सेना की दलील का मतलब तो यही हुआ कि चीनी सैनिक कमांडरों ने यों ही बिना किसी उद्देश्य के ऊंची लागत वाली एक सड़क का निर्माण कर दिया, किसी स्पष्ट कारण के बिना आधारभूत ढांचे का असाधारण तंत्र स्थापित किया और 2017 से 2019 तक तीन वर्षों तक उनके नेविगेशन उपकरणों, सैनिक कमांडरों और सड़क बनाने वाले कामगारों को कथित गलती का अहसास नहीं हुआ.

सेना से मेरा सवाल है: भारतीय सेना इस नतीजे पर कैसे पहुंची कि चीन ने ये सड़क ‘अनजाने में’ और ‘भूलवश’ बनाई थी?


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साथ ही, ये आरोप मैंने नहीं लगाए थे. चीनी अतिक्रमण संबंधी दावे सत्तारूढ़ भाजपा के सांसद तापिर गाव ने किए थे, जो कि 4 सितंबर 2019 के एक वीडियो में दर्ज है. वीडियो में, वह साफ-साफ कह रहे हैं (शुरुआत 2:30 वें मिनट पर) कि बिशिंग में पिछले साल (2018) दो किलोमीटर अंदर तक अतिक्रमण हुआ था. मैंने तो भाजपा सांसद के दावे का चित्रमय सबूत भर दिया है.

दिप्रिंट अपने लेख पर कायम है.

(लेखक इंस्टिट्यूट ऑप पीस एंड कॉनफ्लिक्ट स्टडीज के वरिष्ठ फेलो हैं. यह उनके निजी विचार हैं.)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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