नई दिल्ली: दिल्ली के पुराना किला की पांचवीं बार खुदाई की जा रही है और पुरातत्वविद इस बार पूर्व-मौर्य काल तक पहुंच चुके हैं.
दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में लोगों से खचाखच भरे हॉल में एक प्रस्तुति के दौरान पुरातत्वविद वसंत कुमार स्वर्णकार ने कहा, “दिल्ली में यह एकमात्र स्थान है जो 2,500 वर्षों से अधिक के निरंतर इतिहास को दिखाता है.”
जिस बात ने उन्हें और चर्चा के मॉडरेटर बी.एम. पांडे को और ज्यादा हैरान किया, वह यह था कि पुरातत्व पर बात सुनने के लिए इतने सारे लोग आए थे. आज भारतीयों में अपने इतिहास को जानने के लिए एक अलग ही तरह की दिलचस्पी है.
पांडे ने कहा, “एक जमाना था जब ऐसी चर्चाओं में गिने-चुने लोग ही हिस्सा लेते थे और आज इतने लोग हैं कि बैठने की जगह नहीं है. यह एक अच्छा संकेत है.”
अपनी 45 मिनट की प्रस्तुति के दौरान, स्वर्णकार ने विभिन्न अवधियों: 1954-1955, 1969-1973, 2013-2014, 2017-2018 और फिर हाल ही में 2023 में किए गए पुराना किला उत्खनन का एक व्यापक विवरण दिया. इसके साथ ही उन्होंने कहा, “पिछली खुदाई के दौरान लक्ष्य तक नहीं पहुंचा जा सका था.”
जैसे ही पुरातत्वविद् ने अपनी प्रस्तुति समाप्त की, एक दर्शक सदस्य ने पूछा कि एक ही स्थान की बार-बार खुदाई क्यों की जा रही है. स्वर्णकार ने उत्तर दिया, “पुराना किला एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है. इसके एक तरफ एक ऐतिहासिक व्यापार मार्ग है और दूसरी तरफ यमुना नदी है.”
स्वर्णकार की प्रस्तुति में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के पूर्व निदेशक ब्रज बस्सी लाल के युग के दुर्लभ उत्खनन चित्र भी दिखाए गए, जिसने वहां मौजूद लोगों को और आश्चर्यचकित कर दिया.
बी बी लाल ने पुराना किला को महाभारत काल से जोड़ा था, लेकिन इसकी पुष्टि के लिए अभी तक कोई पुख्ता सबूत नहीं मिले हैं. इस प्रकार, यह समझने के लिए कि कौन पहले आया, पुरातत्वविद प्राकृतिक मिट्टी तक पहुंचने का लक्ष्य बना रहे हैं – और उन्होंने इसमें काफी प्रगति भी की है.
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पुराना किला में नई खोज
स्वर्णकार के अनुसार, खुदाई, जो जनवरी में शुरू हुई थी, पहले ही मिट्टी की स्तरीकृत परत के भीतर चित्रित ग्रे वेयर का पता लगा चुकी है. नौ सांस्कृतिक स्तर और 18 तल वाला एक मौर्य काल का कुआं भी खोजा गया है.
उनके निष्कर्षों ने न केवल संचालक पांडे के साथ, बल्कि दर्शकों में कई इतिहासकारों और पुरातत्वविदों के साथ भी एक जीवंत चर्चा को प्रेरित किया.
वरिष्ठ पुरातत्वविद् केएन श्रीवास्तव ने स्वर्णकार को टोका और पूछा कि ये कुएं किस सामग्री से बने हैं. स्वर्णकार ने कहा कि वे टेराकोटा से बने थे, और कुषाण काल से मौर्य मनके बनाने की संस्कृति और ईंट के घर के परिसरों के निशान के साथ-साथ एक औद्योगिक सेट-अप के साक्ष्य का भी पता लगाया गया है.
इसके अलावा, उत्खनन से कई अन्य कलाकृतियां मिली हैं, जैसे कि एक राजपूत काल वैकुंठ विष्णु, एक गज लक्ष्मी पट्टिका, सुंग-युग की मूर्तियां, कर्मकांड की वस्तुएं, गुप्त काल का पासा, विभिन्न स्तरों पर विभिन्न आकारों के मनके, एक कुषाण काल का तांबे का पहिया, तांबे के सिक्के, और चूड़ियां.
स्वर्णकार ने आगे कहा कि पुराना किला के खुदाई से 17 मीटर तक के सांस्कृतिक भंडार प्राप्त होंगे, जिनमें से 10 मीटर की खुदाई की जा चुकी है.
80 वर्षीय सुमित्रा नाग न जाने कब से पुराना किला पर केंद्रित एक कार्यक्रम के लिए तरस रही थीं, और उनकी यह लंबी खोज आईआईसी कार्यक्रम में समाप्त हुई. 1969 और 1973 के बीच दूसरी खुदाई के दौरान उन्होंने नियमित रूप से साइट का दौरा किया और इससे उनकी कई यादें जुड़ी हुई हैं.
उन्होंने कहा, “यह एक अद्भुत अनुभव था. मैं पुराना किला के पास रहता था और हर दिन खुदाई देखने जाता था. हर दिन जमीन के नीचे से कुछ न कुछ निकलता था, जो मुझे आकर्षित करता था.”
‘खुला उत्खनन स्थल’
केंद्रीय मंत्री जी किशन रेड्डी ने भी 30 मई को पुराना किला का दौरा किया था. उन्होंने ऐतिहासिक स्थल के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा था, “यह दिल्ली-एनसीआर में एकमात्र ऐसी साइट है जहां खुदाई के अवशेषों के माध्यम से पूर्व-मौर्य काल से लेकर मुगल काल तक दिल्ली के निरंतर इतिहास को देखा जा सकता है. निष्कर्ष हमारे देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करते हैं.”
रेड्डी ने आगे कहा था कि “पुराना किला फिर से खोल दिया जाएगा, और खुदाई के अवशेषों को संरक्षित करके रखा जाएगा. साइट को ओपन-एयर साइट संग्रहालय के रूप में प्रदर्शित किया जाएगा, जिससे विज़िटर्स को दिल्ली की समृद्ध ऐतिहासिक विरासत का अनुभव करने का मौका मिलेगा.”
जैसे ही चर्चा समाप्त हुई, वहां मौजूद उत्सुक दर्शकों ने स्वर्णकार से खुदाई स्थल को सप्ताह में कम से कम एक दिन खोलने का अनुरोध किया ताकि लोग उसे देख सके.
उन्होंने आश्वासन देते हुए कहा, “इस पर विचार किया जाएगा.”
(संपादन: अलमिना खातून)
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