कोच्चि, 10 मार्च (भाषा) केरल उच्च न्यायालय ने उस जनहित याचिका पर राज्य सरकार से जवाब मांगा जिसमें मंत्रियों, विधानसभा में विपक्ष के नेता और मुख्य सचेतक के निजी स्टॉफ की नियुक्ति के साथ-साथ ऐसे कर्मचारियों को पेंशन और पारिवारिक पेंशन देने के नियमों को चुनौती दी गई है।
मुख्य न्यायाधीश एस. मणिकुमार और न्यायमूर्ति शाजी पी. चाली की पीठ ने केरल सरकार को नोटिस जारी किया और ‘मेनन फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड’ के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक दिनेश मेनन की याचिका पर उनका रुख जाना। मेनन ने निजी कर्मचारियों को सरकारी क्वार्टर आवंटित करने का भी विरोध किया है।
मेनन ने अधिवक्ता वी. सेतुनाथ, मनोरंजन वी. आर और हरिकुमार. के, के माध्यम से दायर अपनी याचिका में दावा किया है कि राज्य सरकार ऐसे कर्मचारियों की पेंशन पर अन्य लाभों के अलावा प्रतिवर्ष कम से कम 80 करोड़ रुपये खर्च कर रही है।
उन्होंने अपनी याचिका में दावा किया कि इसके अलावा, सरकार निजी कर्मचारियों के वेतन और यात्रा किराए पर भी हर साल कम से कम 40 करोड़ रुपये खर्च कर रही है।
मेनन ने दलील दी कि न तो केंद्र और न ही देश में कोई अन्य राज्य निजी कर्मचारियों को पेंशन और पारिवारिक पेंशन दे रहा है और केवल केरल में ही ऐसा किया जा रहा है।
याचिका में कहा गया है, ‘‘राज्य आर्थिक रूप से संघर्ष कर रहा है, और ऐसे में 362 निजी कर्मचारियों को सीधे 21 मंत्रियों और राज्य सरकार के मुख्य सचेतक द्वारा नियुक्त किया गया। उन्हें वेतन के रूप में भुगतान करने के लिए आवश्यक न्यूनतम राशि लगभग 1.12 करोड़ रुपये प्रति माह है।’’
इसमें कहा गया है, ‘‘कुल 1,223 व्यक्ति, जिन्होंने केरल में पूर्व निजी कर्मचारी के रूप में काम किया, वर्तमान में राज्य से पेंशन प्राप्त कर रहे हैं।’’
केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान द्वारा मंत्रियों के निजी स्टॉफ को दो साल की सेवा के बाद पेंशन के लिए पात्र होने का मुद्दा उठाए जाने के बाद मेनन ने उच्च न्यायालय का रुख किया।
राज्यपाल ने दो साल पूरे करने के बाद मंत्रियों के निजी कर्मचारियों को पेंशन देने की प्रथा को ‘‘अधिकारों का दुरुपयोग’’ और ‘‘केरल के लोगों के पैसे का दुरुपयोग’’ बताया था।
भाषा
देवेंद्र उमा
उमा
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