नयी दिल्ली, 23 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने 1984 के सिख विरोधी दंगों के दौरान कर्तव्य में लापरवाही बरतने और कदाचार के आरोपी एक सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी को पेंशन में संशोधन समेत अन्य लाभ प्रदान करने का बुधवार को आदेश दिया।
न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने किंग्सवे कैंप पुलिस थाने के तत्कालीन एसएचओ दुर्गा प्रसाद की अपील स्वीकार कर ली और कहा कि गिरफ्तारियां की गईं, लाठीचार्ज किया गया और गोलीबारी की गई।
उच्चतम न्यायालय प्रसाद द्वारा दायर उस याचिका पर सुनवाई कर रही था जिसमें दिल्ली उच्च न्यायालय के एक आदेश को चुनौती दी गई थी। उच्च न्यायालय के आदेश में अनुशासनात्मक प्राधिकारी को उनके खिलाफ सजा का नया आदेश जारी करने का निर्देश दिया गया था।
प्रसाद पर उनके विभाग द्वारा एसएचओ के रूप में उनके अधीन क्षेत्र में दंगों को नियंत्रित करने में कर्तव्य की उपेक्षा या लापरवाही का आरोप लगाया गया था।
पीठ ने कहा, ‘‘सीमित उपलब्ध बल को देखते हुए, महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों और संभावित लक्ष्यों को बचाने पर ध्यान केंद्रित किया गया। अपीलकर्ता के वरिष्ठ रहे, जो बचाव पक्ष के गवाह के रूप में उपस्थित हुए, ने कहा कि अपीलकर्ता ने अपने पास उपलब्ध सीमित संसाधनों के साथ सराहनीय काम किया।’’
उच्चतम न्यायालय ने इस बात पर गौर किया कि गवाह भी दंगों को नियंत्रित करने वाली टीम का हिस्सा था, लेकिन उनके खिलाफ आरोप पत्र दाखिल नहीं किया गया।
इसने कहा, ‘‘इसलिए, जांच अधिकारी ने उनके बयान पर भरोसा किया। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ऐसा कोई सबूत नहीं था जिससे पता चले कि पुलिस निष्क्रिय बैठी थी।’’
मई 1985 में प्रसाद को सहायक पुलिस आयुक्त के रूप में पदोन्नत किया गया, लेकिन बाद में 1984 के दंगों से प्रभावी ढंग से निपटने में पुलिस की विफलता की जांच के लिए एक समिति गठित की गई।
जब जांच अधिकारी ने उनके खिलाफ आरोपों पर रिपोर्ट प्रस्तुत की, तो अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने निष्कर्षों से असहमति जताई और प्रसाद के खिलाफ एक नया आरोप-पत्र दायर किया गया।
प्रसाद ने इस निर्णय को केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण में चुनौती दी थी।
भाषा
देवेंद्र माधव
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