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Monday, 23 December, 2024
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कोरोना के प्रकोप के बीच चमकी बुखार के मामलों से बिहार में स्वास्थ्य संकट और गहराया

एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम या चमकी बुखार, जो मुख्य रूप से बच्चों को प्रभावित करता है की वजह से पिछले साल बिहार में 176 मौतें हुई थीं. सरकार का कहना है कि इस बार तैयारी बेहतर है.

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मुजफ्फरपुर: कोरोना के खिलाफ लड़ाई के बीच बिहार एक और स्वास्थ्य संकट एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) की चपेट में आ गया है, जिसे स्थानीय रूप से चमकी बुखार के नाम से जाना जाता है – जो मस्तिष्क की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाता है और विशेष रूप से बच्चों को होता है.

इस साल अब तक पांच बच्चों की इस बीमारी से मौत हो चुकी है. जबकि 13 मई तक रिपोर्ट किए गए मामलों की संख्या 49 है, जो चिंताजनक है. क्योंकि एईएस जून और जुलाई में चरम पर माना जाता है. पिछले साल के प्रकोप के केंद्र मुजफ्फरपुर में इस साल पहले ही 20 मामले दर्ज किए गए हैं, जबकि पूर्वी चंपारण जिले में 13 दर्ज किए गए हैं.

केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री अश्विनी चौबे ने पिछले साल लोकसभा में बताया था कि बिहार में एईएस के प्रकोप से 176 लोगों की मौत हुई थी और इस बार विपक्ष ने नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जद (यू)-भाजपा सरकार द्वारा की गई तैयारियों पर सवाल उठाना शुरू कर दिया है.

इससे पहले मई में, बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने इस वर्ष एईएस के लिए राज्य की तैयारियों को विस्तृत रूप से बताया था. ‘केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन की पिछले साल की घोषणा और आठ महीने के श्रम के बाद मुजफ्फरपुर में एक नए अस्पताल का निर्माण किया गया है,’ मंत्री ने दिप्रिंट को बताया.

एईएस क्या है और यह कैसे होता है?

एईएस के कुछ शुरुआती लक्षणों में हाइपोग्लाइकेमिया के साथ उच्च तापमान, सिरदर्द, उल्टी शामिल है. शरीर के शुगर के स्तर में गिरावट भी कई मामलों में देखा जा रहा है.

नेशनल हेल्थ पोर्टल ऑफ़ इंडिया का कहना है, ‘यह बीमारी बच्चों और युवा वयस्कों को सबसे अधिक प्रभावित करती है और इससे मृत्यु दर सामान्य से अधिक हो सकती है.’

बिहार के स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का कहना है कि एईएस की घटना के पीछे कई सिद्धांत हैं, जिसमें लीची के फल की खपत भी शामिल है, लेकिन इसका अभी तक कोई ठोस सबूत नहीं मिला है.

इसने राज्य को शोध करने के लिए अन्य संगठनों को शामिल करने और बीमारी के कारणों का पता लगाने के लिए प्रेरित किया है. एईएस के बढ़ने पीछे कुछ कारकों में से कुपोषण, स्वच्छता, गर्मी और डिहाइड्रेशन होते है.

बिहार के प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) संजय कुमार ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम इस साल बेहतर तरीके से तैयार हैं. इस वर्ष, ऐसी एजेंसियां ​​हैं, जिनसे हमने आगे आकर शोध करने का अनुरोध किया है. हमने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं और हमें बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन से समर्थन मिल रहा है.

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद की सभी प्रयोगशालाओं को भी काम पर रखा है, क्योंकि हमें इस पर स्पष्टता प्राप्त करने की आवश्यकता है.

एक पिता का दर्द

लोग एईएस के बारे में इतना कम जानते हैं. सुखलाल साहनी, जिनकी जुड़वां बेटियों की अप्रैल के अंत में बीमारी से मृत्यु हो गई थी, अभी भी बहुत अच्छी तरह से समझ में नहीं आया कि उनके साथ क्या हुआ था.

मुजफ्फरपुर जिले के रोशनपुर के रहने वाले साहनी ने 24 अप्रैल को अपनी चार साल की बेटियों मौसम और सुखी को श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती कराया. 27-28 अप्रैल को उनकी मृत्यु हो गयी.

उन्होंने बताया, लगभग 1 बजे उन्हें हल्का बुखार आया, इसलिए हमने उनकी निगरानी की और सुबह जल्दी ही हम उन्हें अस्पताल ले गए. गांव में पक्की सड़क नहीं है, इसलिए एम्बुलेंस का आना मुश्किल है. मैंने एक को अपने साइकिल पर लिया और किसी ने दूसरे को मोटरसाइकिल पर ले लिया. कुछ दिनों के लिए वे वहां भर्ती हुए और फिर मर गए.

हालांकि, श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज के अधीक्षक डॉ सुनील कुमार शाही ने कहा कि यदि कोई लक्षण दिखाई दे तो लोगों से तत्काल मदद लेने को कहा गया है.

उन्होंने कहा ‘हम इस वर्ष अधिक आश्वस्त हैं क्योंकि इस बार अधिक जागरूकता है. सभी को बताया गया है कि यदि कोई लक्षण दिखाई दे तो उन्हें तत्काल मदद लेनी चाहिए. अगले दो महीने बहुत महत्वपूर्ण हैं.’

कोरोना ने तैयारियों को प्रभावित किया है

मुजफ्फरपुर के श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज में 100-बेड वाले पीडियाट्रिक्स इंटेंसिव केयर यूनिट का निर्माण लॉकडाउन के कारण प्रभावित हुआ. राज्य सरकार के अधिकारियों का कहना है कि यह साल वो समय है जब एईएस की अधिकांश तैयारियां की जाती हैं, लेकिन कोरोना ने इस वर्ष सब कुछ स्थिर कर दिया है.

बिहार के एक वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारी ने कहा, ‘राज्य ने पिछले 10 वर्षों में 2012, 2014 और 2019 में तीन एईएस पीक को देखा है. कोरोनोवायरस आ गया है और सब कुछ विस्थापित हो गया है, लेकिन हम अपनी पूरी कोशिश कर रहे हैं.

अधिकारी ने कहा कि पिछले साल दर्ज किए गए मामलों के एक अध्ययन से पता चला है कि उनमें से 80 प्रतिशत चार जिलों – मुजफ्फरपुर, वैशाली, सीतामढ़ी और पूर्वी चंपारण से आते हैं. इनमें से 60 प्रतिशत मामले अकेले मुजफ्फरपुर के हैं विशेष रूप से मुशहरी ब्लॉक के पांच ब्लॉकों से, जहां साहनी का गांव रोशनपुर है.

एक दूसरे अधिकारी ने बताया, ‘मुज़फ़्फ़रपुर में रिपोर्ट किए गए अधिकांश मामले नदी के दोनों ओर के ब्लॉक से हैं. हमें नहीं पता कि लिंक क्या है.’

मुज़फ़्फ़रपुर के श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज में 100-बेड वाले पीडियाट्रिक्स इंटेंसिव केयर यूनिट का निर्माण लॉकडाउन के कारण प्रभावित हुआ, क्योंकि मजदूर उपलब्ध नहीं थे.

प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) कुमार ने कहा, ’12 मई को चालीस बेड चालू हो गए, 15 मई तक 70 चालू हो जाएंगे और महीने के अंत तक, हम 100 बेड पूरे कर लेंगे. यह देश का सबसे बड़ा पीडियाट्रिक्स इंटेंसिव केयर यूनिट होने जा रहा है.

कुमार ने आगे कहा कि जैसे ही एईएस की शुरुआत होती है और बच्चों को सुबह 4 बजे से 8 बजे के बीच स्वास्थ्य सुविधाओं में लाया जाता है. प्रभारी चिकित्सा अधिकारियों को उनकी टीमों के साथ सुबह उपस्थित रहने के लिए निर्देशित किया गया है. कुमार ने कहा, ‘यह सुनिश्चित करने के लिए उनकी निगरानी की जा रही है कि कोई कमी न हो.’

एईएस पर राजनीति

बिहार में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं और विपक्षी दल पहले ही कोरोना को संभालने के लिए सरकार पर निशाना साध रहे हैं.

बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष मदन मोहन झा ने कहा, ‘मुख्यमंत्री को इस (एईएस) पर तुरंत ध्यान केंद्रित करना चाहिए. इसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए क्योंकि पांच मौतें पहले ही हो चुकी हैं. मैंने सीएम को एक पत्र भी लिखा था, लेकिन अब तक बहुत कुछ नहीं किया गया है.

राज्यसभा सांसद और राष्ट्रीय जनता दल के प्रवक्ता मनोज झा ने कहा, ‘बिहार सरकार ने समस्या की भयावहता को नहीं समझा है और एक प्रमुख संकेतक यह है कि स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे का कोई निर्माण नहीं किया गया है. बिहार सरकार मौन है.’

राजद के नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि बिहार सरकार ने देरी से प्रतिक्रिया दी है.

उन्होंने कहा, ‘पिछले 10 वर्षों में हजारों बच्चे चमकी बुखार के कारण मर चुके हैं. इस सरकार के हाथ गरीब बच्चों के खून से सने हैं. इस वार्षिक बीमारी से निपटने के लिए बिहार सरकार को आक्रामक प्रतिक्रिया अपनाना चाहिए, क्योंकि इस सरकार से सक्रिय प्रतिक्रिया की उम्मीद करना बहुत दूर का सपना है.

यादव ने कहा, ‘हम लंबे समय से बिहार सरकार को एईएस के खतरे के बारे में सचेत कर रहे थे, लेकिन सरकार बीमारी और इसके प्रसार के बजाय धारणा के प्रबंधन के बारे में अधिक चिंतित है.’

सीएम नीतीश कुमार के ‘सुशासन बाबू’ की छवि पर कटाक्ष करते हुए यादव ने कहा कि अंतिम समय पर खर्च ‘सुशासन बाबू’ के ‘बाबुओं’ (अधिकारियों) के लिए भ्रष्टाचार के लिए कई रास्ते खोलेगा.’

हालांकि, अधिकारियों का कहना है कि सरकार चिंतित है और हर संभव उपाय कर रही है.

एक सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘मुख्यमंत्री वास्तव में हुई पांच मौतों के बारे में चिंतित हैं और उन्होंने हमें मुजफ्फरपुर की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का आकलन करने के लिए एक सर्वेक्षण करने के लिए कहा है. इसके बाद, राशन कार्ड जारी किए गए और बच्चों को आईसीडीएस में भी नामांकित किया गया.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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