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Thursday, 19 December, 2024
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कोविड की एक और लहर, सरकारों के पास ‘खर्च करने की बहुत कम गुंजाइश’ छोड़ेगी : IMF की गीता गोपीनाथ

'ऑफ द कफ' कार्यक्रम में शेखर गुप्ता के साथ बातचीत के दौरान गीता गोपीनाथ का कहना है कि भारत को अपनी अर्थव्यवस्था को समर्थन देने के लिए सार्वजानिक खर्च पर अपनी रफ्तार कायम रखनी चाहिए.

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नई दिल्ली: अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ का कहना है कि कोरोनावायरस के ओमीक्रॉन वैरिएंट के खतरे का सामना करते हुए दुनिया भर की सरकारों के पास अपनी-अपनी अर्थव्यवस्थाओं को समर्थन देने और आर्थिक सुधार को जारी रखने के लिए अतिरिक्त खर्च के लिए बहुत कम गुंजाईश होगी.

ऑफ द कफ ‘ कार्यक्रम के दौरान दिप्रिंट के एडिटर-इन-चीफ शेखर गुप्ता से बात करते हुए गीता गोपीनाथ ने बताया, ‘अगर हम एक और लंबे समय तक चलने वाले स्वास्थ्य संकट में फंसते हैं, तो दुनिया भर के देशों को इससे निपटने के लिए कर्ज के उस स्तर का सामना करना होगा जो कि 2020 की तुलना में बहुत अधिक है. उनके पास उन नीतियों पर खर्च करने के लिए बहुत कम जगह है, जिन पर उन्होंने पिछले दौर में काम किया था. सभी देशों के केंद्रीय बैंकों को अब यह महसूस करना होगा कि मुद्रास्फीति की जड़ें अब गहराई तक जम सकती हैं और उन्हें ब्याज दरें बढ़ाने के मसले पर और तेजी से आगे बढ़ना पड़ सकता है.’

यह पूरी बातचीत दिप्रिंट के यूट्यूब चैनल पर शुक्रवार, 17 दिसंबर को शाम 7 बजे प्रसारित की जाएगी.

उनका अनुमान है कि वैश्विक स्तर पर सरकारों ने कोविड-19 के आर्थिक दुष्प्रभाव को कम करने के लिए कुल मिलाकर 17 ट्रिलियन डॉलर की वित्तीय सहायता प्रदान की है.

महामारी की प्रतिक्रिया के रूप में, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और जर्मनी जैसी उन्नत अर्थव्यवस्था वाले देशों ने अपने नागरिकों के खातों में पैसे जमा करके उन्हें आय अर्जित करने में सहायता प्रदान की है. इस बीच, भारत ने बड़े पैमाने पर खुद के वित्तीय उपायों को छोटे और मध्यम आकार के व्यवसायों को ऋण की सुविधा (क्रेडिट लाइन) प्रदान करने, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत लाभार्थियों को मुफ्त खाद्यान्न देने और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के लिए अधिक धन प्रदान करने तक सीमित किया है.

गोपीनाथ ने कहा कि इसी राह पर आगे बढ़ते हुए भारत को अपनी अर्थव्यवस्था को आवश्यक समर्थन देने के लिए सार्वजनिक खर्च के मामले में अपनी रफ्तार कायम रखनी चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘भारत के लिए सलाह यह है कि निकट भविष्य में राजकोषीय नीति उदार बनी रहनी चाहिए. इस वित्तीय वर्ष में राजस्व संग्रह में जोरदार वृद्धि हुई है लेकिन अभी भी खर्च किया जाना बाकी है. इसलिए, भारत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि राजकोषीय घाटा कम करके इसे लागू न किया जाये.’

केंद्र सरकार ने 2021-22 के लिए राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 6.8 प्रतिशत के बराबर रहने का अनुमान लगाया है. राजकोषीय घाटा सरकार को प्राप्त राजस्व और उसके द्वारा किये गए खर्च के बीच के अंतर को दर्शाता है.

गोपीनाथ ने कहा कि वैश्विक स्तर पर वस्तुओं की मांग में जोरदार वापसी हुई है, अधिक संख्या में लोग ऑनलाइन खरीदारी कर रहे हैं और इसने मुद्रास्फीति को बढ़ावा दिया है.

उन्होंने कहा, ‘उम्मीद है कि वर्ष की दूसरी छमाही में, यह मांग वस्तुओं से हटकर सेवाओं की ओर वापस आ जाएगी, क्योंकि हमारे पास महामारी से संबंधित और व्यवधान नहीं होंगे और फिर आप मुद्रास्फीति पर इन दबावों को नहीं देखेंगे.’

वैश्विक स्तर पर मुद्रास्फीति के ऊंचे स्तर की वजह से उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में केंद्रीय बैंक अब ब्याज दरों में वृद्धि की आवश्यकता की ओर संकेत दे रहे हैं.

यूएस फेडरल रिजर्व को 2022 में तीन बार ब्याज दरों में बढ़ोतरी की उम्मीद है, जबकि बैंक ऑफ इंग्लैंड पहले ऐसे प्रमुख केंद्रीय बैंक के रूप में सामने आया है जिसने मुद्रास्फीति के दबाव की वजह से अपनी प्रमुख नीतिगत दर में 25 बेसिस प्वाइंट्स की बढ़ोतरी की है.

घरेलू मोर्चे पर, भारतीय रिजर्व बैंक ने कहा है कि वह तब तक एक उदार मौद्रिक रुख अपनाये रखेगा जब तक कि टिकाऊ आधार पर विकास को पुनर्जीवित करने और इसे बनाए रखने के लिए ऐसा करना आवश्यक हो.


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क्रिप्टोकरेंसी का विनियमन, नोटबंदी का अल्पकालिक प्रभाव

निजी डिजिटल मुद्राओं को विनियमित करने की आवश्यकता पर गोपीनाथ ने कहा कि आईएमएफ क्रिप्टोकरेंसी का कानूनी रूप से वैध मुद्रा के रूप में उपयोग किये जाने का विरोध करता है लेकिन देशों को इसमें अंतर्निहित तकनीक का उपयोग करना चाहिए.

गोपीनाथ ने कहा, ‘इसमें कोई संदेह नहीं है कि इन्हें विनियमित करने की आवश्यकता है. असलियत यह कि यदि आप एक वित्तीय संस्थान हैं और यदि आपके पास इन क्रिप्टो एसेट्स (परिसंपत्ति) वाला जोखिम है, तो आप को सुनिश्चित करना होगा कि आपके पास अतिरिक्त पूंजी का बफर है, जैसे कि आप के पास जोखिम भरे एसेट क्लासेस (परिसंपत्ति वर्ग) में निवेश करते समय होता है. हम वैध मुद्रा के रूप में उपयोग की जाने वाली क्रिप्टोकरेंसी के विरुद्ध हैं.’

भारत वर्तमान में निजी क्रिप्टोकरेंसी को विनियमित करने के लिए एक कानून, जिसे क्रिप्टोकरेंसी एंड रेगुलेशन ऑफ ऑफिसियल डिजिटल करेंसी बिल 2021 कहा जा रहा है, को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में है.

भारत में क्रिप्टोकरेंसी का बाजार बढ़ने के साथ ही इसके विनियमन के लिए उठने वाली मांग भी बढ़ गयी है. हालांकि सरकार क्रिप्टोकरेंसी में हुए लेन देन को रिकॉर्ड नहीं करती है, फिर भी निजी अनुमानों ने 2020-21 में इसके बाजार को $75 मिलियन के बराबर आंका है.

महामारी से पहले घरेलू अर्थव्यवस्था पर विमुद्रीकरण (नोटबंदी) के प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर गोपीनाथ ने कहा कि इससे भारत को निकट अवधि में अपने सकल घरेलू उत्पाद के 2 प्रतिशत का नुकसान हुआ था लेकिन वह अभी भी लंबी अवधि में विकास के लिए इसकी वजह से कोई जोखिम नहीं देखती है.

उन्होंने कहा, ‘मैं यह नहीं कहूंगी कि विमुद्रीकरण का प्रभाव काफी कम था. यह (भारत के) जीडीपी का करीब 2 फीसदी था. लेकिन जिन सबूतों को हमने देखा, उनसे यह नहीं पता चलता कि कई वर्षों तक इसके बहुत अधिक मात्रा में सार्थक दीर्घकालिक प्रभाव होंगे. एक बार जब नकदी व्यवस्था में वापस आने लगी, तो वे प्रभाव समाप्त हो गए.’

बता दें कि 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह घोषणा की थी कि अर्थव्यवस्था में काले धन के उपयोग को रोकने के लिए 500 और 1000 रुपये के मूल्य के नोट उस दिन आधी रात के बाद से वैध मुद्रा के रूप में मान्य नहीं रहेंगे. इस घोषणा ने पूरे देश में भूचाल सा ला दिया था जिससे उन गरीबों और छोटे व्यवसायों पर गहरा असर पड़ा जो विशुद्ध रूप से नकद लेन देन पर निर्भर करते हैं.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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