मुंबई: एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले के आरोपी एवं सामाजिक कार्यकर्ता आनंद तेलतुंबड़े ने यह दावा करते हुए बृहस्पतिवार को यहां एक विशेष एनआईए अदालत के समक्ष आरोपमुक्त करने के लिए एक अर्जी दायर की कि जांच एजेंसी ने मामले में उनकी कथित भूमिका और यह दिखाने के लिए कोई सामग्री पेश नहीं की है कि वह माकपा (माओवादी) सदस्य हैं.
तेलतुंबड़े (70) को अप्रैल 2020 में एल्गार परिषद मामले से उनके कथित संबंधों के लिए गिरफ्तार किया गया था और वह नवी मुंबई की तलोजा जेल में बंद है. सामाजिक कार्यकर्ता ने अपने अधिवक्ताओं सत्यनारायणन और नीरज यादव के माध्यम से विशेष एनआईए न्यायाधीश डी ई कोठालिकर के समक्ष आरोपमुक्त करने की अर्जी दायर की.
याचिका के अनुसार, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने आरोप लगाया है कि तेलतुंबड़े और सात अन्य भाकपा (माओवादी) के सदस्य हैं और विभिन्न माध्यमों से प्रतिबंधित संगठन के एजेंडे को आगे बढ़ाने में गहराई से शामिल थे.
भाकपा (माओवादी) का मानना है कि भारत को साम्राज्यवादी, पूंजीपति और सामंतों के सहयोग से चलाया जा रहा है और संगठन का अंतिम उद्देश्य सशस्त्र संघर्ष की प्रतिबद्धता के साथ क्रांति के माध्यम से जनता सरकार की स्थापना करना है.
तेलतुंबड़े ने अपनी अर्जी में दावा किया कि एनआईए ने यह दिखाने के लिए अदालत के समक्ष कोई सामग्री पेश नहीं की कि वह भाकपा (माओवादी) का सदस्य है. जांच एजेंसी के इस आरोप पर प्रतिक्रिया देते हुए कि उन्होंने एल्गार परिषद के बैनर तले आयोजित कार्यक्रम में अन्य कार्यकर्ताओं के साथ हिस्सा लिया, तेलतुंबड़े ने दावा किया कि पूर्व में दिये बयानों के अलावा, आरोप के समर्थन में आरोपपत्र में कोई सामग्री नहीं है.
जांच एजेंसी ने आरोप लगाया है कि आरोपी भाकपा (माओवादी) का वरिष्ठ सदस्य है और गिरफ्तार किए गए अन्य आरोपियों के संपर्क में था. एजेंसी के अनुसार वह सीपीडीआर महासचिव और अनुराधा गांधी मेमोरियल कमेटी (एजीएमसी) का सदस्य था, जो भाकपा (माओवादी) का प्रमुख संगठन है.
तेलतुंबड़े ने दावा किया कि अभियोजन पक्ष यह दिखाने के लिए कोई सामग्री रिकॉर्ड में नहीं लाया है कि सीपीडीआर सीपीआई (माओवादी) का एक प्रमुख संगठन है, और जांच के दौरान एकत्र किए गए सबूत वास्तव में यह दिखाएंगे कि दोनों संगठनों के बीच कोई संबंध नहीं है.
सामाजिक कार्यकर्ता ने एनआईए के इस आरोप का भी खंडन किया कि भीमा कोरेगांव कार्यक्रम के संबंध में उनकी भूमिका की भाकपा (माओवादी) ने सराहना की थी और इस बात के सबूत हैं कि प्रतिबंधित संगठन द्वारा उनके अंतरराष्ट्रीय अभियान के वास्ते और एजेंडे को आगे बढ़ाने के वास्ते यात्राओं के लिए उन्हें 10 लाख रुपये आवंटित किए गए थे.
अर्जी में कहा गया है कि अभियोजन पक्ष ने दस्तावेजों की एक सूची में कई पत्राचार पेश किए हैं जिनका कथित तौर पर विभिन्न आरोपियों के बीच आदान-प्रदान किया गया है. इसके अनुसार हालांकि, उनके पास यह दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है कि भीमा कोरेगांव के संबंध में तेलतुंबड़े की भूमिका की सराहना की गई थी.
तेलतुंबड़े ने मामले में आरोपमुक्त करने के लिए अर्जी में कहा है कि अदालत अभियोजन पक्ष के ‘केवल एक डाकघर या मुखपत्र के रूप में कार्य नहीं कर सकती है’ बल्कि उसे मामले की व्यापक संभावनाओं, अदालत के समक्ष पेश सबूतों और दस्तावेजों के कुल प्रभाव पर विचार करना होगा.
अर्जी में कहा गया है कि रिकॉर्ड में मौजूद सामग्री के संभावित मूल्यों पर विचार, आरोप तय करते समय नहीं बल्कि उससे पहले किया जाना चाहिए, अदालत को रिकॉर्ड में रखी गई सामग्री पर अपना न्यायिक दिमाग लगाना चाहिए और इस बात से संतुष्ट होना चाहिए कि आरोपी द्वारा अपराध संभव था.
तेलतुंबड़े के अलावा, अन्य आरोपियों सुधीर दावले और महेश राउत ने भी मामले में आरोप मुक्त किये जाने का अनुरोध किया.
इस बीच, एनआईए ने कलाकार और गायक ज्योति जगताप की आरोपमुक्त किये जाने के अनुरोध वाली अर्जी पर अपना जवाब दाखिल किया. जांच एजेंसी ने दावा किया है कि आरोपी के खिलाफ आरोप को बनाए रखने के लिए पर्याप्त आधार और रिकॉर्ड में पर्याप्त सबूत है.
यह मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे के शनिवारवाड़ा में आयोजित ‘एल्गार परिषद’ सम्मेलन में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित है, जिसके बारे में पुलिस ने दावा किया था कि शहर के बाहरी इलाके में कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास अगले दिन हिंसा हुई थी.
पुणे पुलिस ने दावा किया था कि सम्मेलन को माओवादियों का समर्थन प्राप्त था. मामले की जांच बाद में राष्ट्रीय जांच एजेंसी को सौंप दी गई थी जिसमें एक दर्जन से अधिक कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों को आरोपी बनाया गया है.
अदालत इस मामले में चार मई को सुनवाई करेगी.
भाषा अमित मनीषा
मनीषा
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