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Wednesday, 20 November, 2024
होमएजुकेशनकॉलेज की पढ़ाई, सरकारी काम, भर्ती परीक्षाएं, सब कुछ हिंदी में हो– शाह के नेतृत्व वाले भाषा पैनल की सिफारिश

कॉलेज की पढ़ाई, सरकारी काम, भर्ती परीक्षाएं, सब कुछ हिंदी में हो– शाह के नेतृत्व वाले भाषा पैनल की सिफारिश

संसदीय समिति की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि हिंदी भाषी राज्यों में हाई कोर्ट की कार्यवाही भी हिंदी में होनी चाहिए. रिपोर्ट उन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की भी सिफारिश करती है जो 'जानबूझकर हिंदी में काम नहीं करते हैं.'

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नई दिल्ली: केंद्रीय विद्यालयों से लेकर आईआईटी और सेंट्रल यूनिवर्सिटी तक की पढ़ाई हिंदी माध्यम से की जानी चाहिए, सरकारी भर्ती परीक्षाओं में अनिवार्य अंग्रेजी की जगह हिंदी के पेपर हो और संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को आधिकारिक भाषा के रूप में इस्तेमाल किया जाए- ये कुछ ऐसे सुझाव हैं जिनकी सिफारिश केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता वाली संसदीय राजभाषा समिति ने अपनी हालिया रिपोर्ट में की है.

दिप्रिंट को मिली रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि हिंदी भाषी राज्यों में उच्च न्यायालयों की कार्यवाही हिंदी में की जानी चाहिए. रिपोर्ट ने उन सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को, जो ‘जानबूझकर हिंदी में काम नहीं करते हैं’, यह कहते हुए आगाह किया कि उनसे स्पष्टीकरण मांगा जाए. और कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिलने की स्थिति में उनकी एनुअल परफॉर्मेंस रिपोर्ट में इसका जिक्र किया जाना चाहिए.’

यह समिति की रिपोर्ट के 11 वें खंड का हिस्सा है, जिसे शाह ने सितंबर में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पेश किया था.

राजभाषा अधिनियम, 1963में की गई व्यवस्थाओं के परिणामस्वरूप ‘राजभाषा पर संसदीय समिति’ अस्तित्व में आई. इसकी स्थापना 1976 में अधिनियम की धारा 4 के तहत की गई थी और इसमें 30 संसद सदस्य हैं. 20 लोकसभा से और 10 राज्यसभा से. इस समिति का मुख्य उद्देश्य सरकार के कामकाज में राजभाषा हिंदी के प्रयोग की प्रगति की समीक्षा करना है.

शिक्षण संस्थानों में हिंदी के इस्तेमाल पर रिपोर्ट कहती है, ‘देश के सभी तकनीकी और गैर-तकनीकी संस्थानों में शिक्षा और अन्य गतिविधियों का माध्यम हिंदी होना चाहिए और अंग्रेजी के उपयोग को वैकल्पिक बनाया जाना चाहिए.’

तकनीकी संस्थानों में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट और ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस जैसे संस्थान आते हैं. वहीं केंद्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय और केंद्रीय विश्वविद्यालय गैर-तकनीकी संस्थानों की श्रेणी में आते हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है, अंग्रेजी मीडियम में पढ़ाई सिर्फ वहीं होनी चाहिए जहां यह बेहद जरूरी हो. अंग्रेजी से धीरे-धीरे हिंदी की ओर बढ़ना होगा.

सरकारी नौकरियों के लिए होने वाली भर्ती परीक्षाओं पर चर्चा करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि अनिवार्य रूप से अंग्रेजी भाषा में तैयार किए गए प्रश्न पत्र यह दर्शाते हैं कि हमारे लिए अंग्रेजी ज्यादा महत्वपूर्ण है. इसलिए हमें उन्हें हिंदी-माध्यम के प्रश्नपत्रों में बदलना होगा.

रिपोर्ट कहती है, ‘भारत सरकार के संस्थानों में हिंदी में काम करना अनिवार्य है. ऐसे में कर्मचारियों को चयन के समय हिन्दी की जानकारी होनी चाहिए. इसलिए समिति सिफारिश करती है कि कर्मचारियों के चयन के समय उनके हिन्दी का ज्ञान की परीक्षा ली जाए.’

रिपोर्ट के मुताबिक, ‘वैश्वीकरण और उदारीकरण के कारण हिंदी खासी लोकप्रिय भाषा बन चुकी है.’ इसलिए इसे संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाया जाना चाहिए.

रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘रीजन ए’ में स्थित उच्च न्यायालयों की कार्यवाही हिंदी में होनी चाहिए . संवैधानिक जरूरत होने पर अंग्रेजी अनुवाद मुहैया कराया जा सकता है.

रीजन ए का मतलब उन राज्यों से है जो हिंदी बेल्ट से जुड़े हैं और जिनकी आधिकारिक भाषा हिंदी है. यह वर्गीकरण राजभाषा नियम, 1976 के अंतर्गत किया गया है.

समिति ने यह भी सिफारिश की है कि सरकारी विज्ञापनों के बजट का 50 फीसदी से ज्यादा हिंदी विज्ञापनों के लिए आवंटित किया जाता है और इसे आगे भी जारी रखा जाना चाहिए.

रिपोर्ट कहती है, ‘ जहां तक संभव हो विज्ञापन हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशित किए जाए. खर्च ज्यादा न बढ़े इसका ध्यान रखते हुए हिंदी विज्ञापन बड़े आकार में और मुख्य पृष्ठ पर दिए जाए, जबकि अंग्रेजी विज्ञापन छोटे आकार में और अंतिम या बीच के पेजों पर दिए जा सकते हैं.’

समिति ने यह भी सुझाव दिया है कि अगर हिंदी भाषा विशेषज्ञता की आवश्यकता वाले सरकारी पद तीन साल से ज्यादा समय से खाली पड़े हैं, तो संबंधित संगठन के प्रमुख को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाए. और इसका जिक्र उनकी एनुअल परफॉर्मेंस रिपोर्ट में किया जाए.


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रिपोर्ट में अन्य सिफारिशें

• केंद्र सरकार के कार्यालयों, मंत्रालयों या विभागों की ओर से पत्र, फैक्स और ईमेल जैसे पत्राचार हिंदी में हो.

• सरकारी कामकाज में सरल और आसान हिंदी का इस्तेमाल किया जाए.

• केंद्र सरकार की ओर से आयोजित किसी भी कार्यक्रम के लिए निमंत्रण पत्र और भाषण आदि सभी हिंदी भाषा में तैयार किए जाने चाहिए.

• ए और बी क्षेत्रों को भेजे जाने वाले पत्रों के लिफाफों पर पते हिंदी में लिखे जाए. क्षेत्र बी में गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब राज्य, और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़, दमन एवं दीव और दादरा और नगर हवेली शामिल हैं.

• केन्द्र सरकार के कार्यालयों में इस्तेमाल किए जाने वाले कम्प्यूटरों पर ज्यादा से ज्यादा काम हिन्दी में किया जाए.

• हिंदी में काम करने वाले केंद्र सरकार के अधिकारियों/कर्मचारियों को दी जाने वाली प्रोत्साहन राशि को बढ़ाया जाए.

• सरकारी नियमों में ऐसा प्रावधान किया जाना चाहिए कि जिस भी कर्मचारी की नियुक्ति की जाए, उसे पहले से हिंदी आती हो. सचिव, राजभाषा विभाग इसे सुनिश्चित करने के लिए कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के जरिए विभिन्न भर्ती एजेंसियों के साथ संपर्क कर सकता है.

• विदेशों में स्थित दूतावासों और संगठनों से समय-समय पर हिंदी के काम की रिपोर्ट मांगी जाए. साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि उनके काम की निगरानी की जा रही है.

• इंजीनियरिंग की डिग्री पा चुके जिन लोगों को हिंदी की अच्छी जानकारी है और एक जरूरी स्तर का हिंदी अनुवाद कार्य करने में सक्षम हैं, उन्हें केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो में नियुक्त किया जा सकता है.

• आधिकारिक स्तर की हिंदी और बोलचाल की हिंदी के बीच के अंतर को कम किया जाना चाहिए. अन्य भाषाओं के लोकप्रिय शब्द और कुछ शब्दों को बिना अनुवाद किए मूल रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. कुल मिलाकर अनुवादों को सरल और समझ में आने लायक बनाया होगा.

• हिंदी का प्रचार सिर्फ केंद्र सरकार का मामला नहीं है. सभी राज्य सरकारों को भी इसे अपने संवैधानिक दायित्वों में शामिल करना होगा. समिति को राज्य की सहमति से राज्य सरकार के कार्यालयों में राजभाषा नीतियों के कार्यान्वयन की समीक्षा करने का अधिकार होना चाहिए. पहला चरण क्षेत्र ए में स्थित राज्यों से शुरू करना होगा.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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