कोलकाता : पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शनिवार को अपने मुख्य सचिव अल्पन बंद्योपाध्याय को एक ऐसा अधिकारी बताया जो दिन में 24 घंटे उपलब्ध रहता है.
ममता ने कहा, ‘वह बेहद काबिल और अनुभवी अधिकारी हैं, जो चाहे सुबह 7 बजे हों और चाहे रात के 10 बजे हों, मेरा फोन उठाते हैं. वह 24 घंटे काम के लिए उपलब्ध होते हैं. उन्हें परेशान किया जा रहा है क्योंकि वह बंगाली है और आम लोगों के लिए काम कर रहे हैं.’
ये टिप्पणी ऐसे समय आई है जब ममता और बंद्योपाध्याय के प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में चक्रवात यास पर समीक्षा बैठक में शामिल नहीं होने के बाद मोदी सरकार ने 1987 बैच के आईएएस अधिकारी को वापस बुलाने का फैसला किया.
मुख्यमंत्री ने रविवार को प्रधानमंत्री को पांच पन्नों का पत्र लिखकर बंद्योपाध्याय को रिलीज करने से इनकार कर दिया, जिसके बाद उनकी सरकार को एक और पत्र मिला जिसमें राज्य के सबसे वरिष्ठ नौकरशाह को पूर्व में दिए गए निर्देश के मुताबिक दिल्ली स्थित कार्यालय ज्वाइन करने का निर्देश दिया गया.
हालांकि, पश्चिम बंगाल सरकार ने सोमवार को ही बंद्योपाध्याय, जिन्हें तीन माह का सेवा विस्तार मिला था को रिटायरमेंट की अनुमति देकर तीन साल के लिए मुख्यमंत्री के सलाहकार के तौर पर नियुक्त कर दिया, जो नियुक्ति मंगलवार से प्रभावी होगी.
यह पद केवल 1987 बैच के अधिकारी की सेवाएं जारी रखने के लिए बनाया गया है और यह उन्हें नीतिगत निर्णय लेने के लिए व्यापक अधिकार प्रदान करता है.
मुख्यमंत्री ने उनकी नई नियुक्ति के बाद कहा, ‘हम उनकी हिम्मत का सम्मान करते हैं. उन्होंने दबाव में झुकने के बजाय इस्तीफा देने का फैसला किया. हमें बंगाल के हित में उनकी सेवाओं की जरूरत है.’
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पिछले कुछ दिनों में ममता ने जो कदम उठाए हैं, उससे पता चलता है कि वह बंद्योपाध्याय और पश्चिम बंगाल के सिविल सेवा ढांचे में उनकी अहमियत को कितना महत्व देती हैं.
लेकिन मुख्यमंत्री अधिकारी के संरक्षण के लिए इस हद तक क्यों चली गईं और यहां तक कि मोदी सरकार की नाराजगी की भी परवाह नहीं की?
राज्य सचिवालय नबन्ना के सूत्रों के मुताबिक, ममता के लिए इस सिविल सेवक को महत्व देने के एक से ज्यादा कारण हैं.
नबन्ना के सूत्रों के मुताबिक, एक तो यही कि ममता अपनी अविश्वसनीय चुनावी जीत के लिए अपने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को श्रेय देने के अलावा अपने मुख्य सचिव की बनाई दुआरे सरकार जैसे कुछ योजनाओं को भी एक बड़ा कारण मानती हैं, जिन्होंने हवा का रुख उनके पक्ष में किया.
मुख्यमंत्री बंद्योपाध्याय पर इस हद तक भरोसा करती हैं कि पिछले दो वर्षों में राहत एवं पुनर्वास कार्यों के लिए गठित लगभग सभी समितियों की अगुवाई वही करते हैं, जिनमें कोविड-19 महामारी से लेकर चक्रवात अम्फान और यास तक शामिल हैं.
एक सेवानिवृत्त सिविल सेवक, जिसे कभी बंद्योपाध्याय रिपोर्ट किया करते थे, ने कहा कि अधिकारी का स्वभाव उन्हें सबका प्रिय बना देता है.
सेवानिवृत्त सिविल सेवक ने कहा, ‘अल्पन उन नौकरशाहों में शुमार हैं जो राजनीतिक व्यवस्था बदलने के साथ अपनी निष्ठा बदलने को लेकर बहुत सहज रहते हैं. वह कभी किसी विशेष सिस्टम के साथ काम करने के लिए बहुत टकराव की स्थिति नहीं लाते हैं, बल्कि इसे आसान बना देते हैं. वह कभी भी अपने राजनीतिक बॉस के साथ नियमों या वैधताओं को लेकर अनावश्यक उलझते नहीं हैं. वह वही करते हैं जो सरकार चाहती है. और वह हमेशा से ही नौकरशाही के लचीलेपन में भरोसा करने वालों में रहे हैं.’
राज्य के एक वरिष्ठ सेवारत अधिकारी ने कहा कि दोनों मुख्य सचिवों—बंद्योपाध्याय और राजीव सिन्हा—ने पिछले कुछ वर्षों में अपनी यह आदत बना ली थी कि टेलीविजन पर जिले की समीक्षा और प्रशासनिक बैठकों के दौरान बोलने की शुरुआत मुख्यमंत्री की प्रशंसा के साथ करते थे.
अधिकारी ने कहा, ‘ममता बनर्जी को भी प्रधानमंत्री मोदी की तरह हर समय अपनी प्रशंसा किया जाना पसंद है. लेकिन यह उनको सबसे ज्यादा तब भाता है जब नौकरशाह ऐसा करते हैं. क्योंकि पार्टी सहयोगियों की तरफ से ऐसा करना तो अपेक्षित है, लेकिन जब नौकरशाह, जिन्हें तटस्थ शिक्षित अधिकारी माना जाता है, ऐसा करते हैं तो इस पर अतिरिक्त ध्यान जाता है. अल्पन बाबू यह सब बहुत अच्छे से कर लेते हैं.’
ममता के पसंदीदा अफसर
रामकृष्ण मिशन में पढ़े और प्रेसीडेंसी कॉलेज से स्नातक अल्पन बंद्योपाध्याय ने बंगाल के सबसे लोकप्रिय स्थानीय दैनिक आनंद बाजार पत्रिका के साथ एक पत्रकार के रूप में अपना करिअर शुरू किया था.
बंगाली और अंग्रेजी दोनों पर जबर्दस्त पकड़ के लिए प्रशंसा पाने वाले अल्पन बंद्योपाध्याय अपने साथियों की तुलना में सिविल सेवा रैंक में तेजी से आगे बढ़े.
वाम मोर्चे के शासनकाल में उन्हें तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्जी के सबसे करीबी अधिकारियों में से एक माना जाता था. बंद्योपाध्याय भट्टाचार्जी की सरकार के दौरान कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे, जिसमें कोलकाता नगरपालिका आयुक्त का पद भी शामिल है.
जब तृणमूल कांग्रेस ने सत्ता संभाली तब भी बंद्योपाध्याय कभी पीछे नहीं रहे. नौकरशाही में फेरबदल के जरिये उन्होंने अपना रास्ता बनाया और 2019 के अंत में एमएसएमई सचिव के पद से गृह सचिव के पद तक पहुंच गए.
फिर उन्होंने एक अन्य अपेक्षाकृत युवा आईएएस अधिकारी अत्री भट्टाचार्य की जगह ले ली, जिन्होंने राज्य के गृह सचिव बनने के लिए कम से कम 20 वरिष्ठ अधिकारियों को सुपरसीड किया था, क्योंकि मुख्यमंत्री को उनकी कार्यशैली पसंद थी.
गृह सचिव बनने से पूर्व बंद्योपाध्याय परिवहन सचिव के तौर पर भी कार्यरत रहे थे, जब शुभेंदु अधिकारी, जो अब भाजपा विधायक और बंगाल में विपक्ष के नेता हैं, ममता सरकार में परिवहन मंत्री थे.
2019 के संसदीय चुनावों के बाद जब शुभेंदु अधिकारी की ममता बनर्जी और उनकी तृणमूल कांग्रेस से दूरियां बढ़ने लगीं तो बंद्योपाध्याय को ही विभाग का पूरा प्रभार दिया गया और उन्हें निर्णय लेने के अधिकार भी दे दिए गए.
लेकिन वह सर्वप्रिय हैं, यह बात मुख्यमंत्री और उनके मुख्य सचिव के खड़गपुर के पास कलाईकुंडा एयरबेस पर प्रधानमंत्री की बैठक में शामिल न होने को लेकर शुभेंदु अधिकारी के बयानों से साफ जाहिर होती है.
‘अल्पन बाबू’ को एक ‘कुशल अफसर’ बताते हुए शुभेंदू अधिकारी ने कहा, ‘उनकी कोई गलती नहीं है. मैंने बतौर परिवहन मंत्री उनके साथ काम किया है. वह हमेशा वही करते हैं जो उन्हें करने के लिए कहा जाता है.’
अगर निजी जीवन की बात करें तो बंद्योपाध्याय की पत्नी सोनाली चक्रवर्ती कलकत्ता यूनिवर्सिटी की कुलपति हैं और वह बंगाल के प्रख्यात कवि निरेंद्रनाथ चक्रवर्ती के दामाद हैं.
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