अनंतनाग, शोपियां, पुलवामा: अपनी मौत से 18 दिन पहले जम्मू-कश्मीर के डोगरा समुदाय की टीचर रजनी बाला ने कुलगाम जिले के मुख्य शिक्षा अधिकारी को पत्र लिखकर अपने पद से तत्काल स्थानांतरण की मांग और घाटी में स्थिति में सुधार होने तक छुट्टी पर जाने की बात कही थी. आतंकवादियों ने 31 मई को उनकी गोली मारकर हत्या कर दी थी.
36 साल की ये स्कूल टीचर सांबा जिले में कुलगाम के गोपालपोरा गांव के एक सरकारी हाई स्कूल में पढ़ाती थीं. उनके पति राज कुमार भी सांबा के ही रहने वाले थे और वह कुलगाम के एक अन्य सरकारी स्कूल में तैनात थे. मुख्य शिक्षा अधिकारी को लिखे अपने पत्र में बाला ने अपने ट्रांसफर और छुट्टी के अनुरोध के कारणों के रूप में ‘डर और असुरक्षा’ का जिक्र किया था.
राज कुमार ने प्रशासन पर उनके अनुरोधों पर ध्यान न देने और उनके ट्रांसफर में देरी करने का आरोप लगाया है. प्रशासन की ओर से कथित निष्क्रियता के एक लंबे चरण और बार-बार अनुरोध के बाद बाला और कुमार को उनके ट्रांसफर लेटर मिले थे. 31 मई को गोपालपोरा में उनका आखिरी दिन माना जा रहा था.
कुलगाम के सीईओ मोहम्मद अशरफ राथर ने कुमार के आरोपों का खंडन किया है. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘मैंने उन्हें जाने से कभी मना नहीं किया.’
बाला और कुमार घाटी में अल्पसंख्यक समुदाय के उन सरकारी कर्मचारियों में से हैं, जो सुरक्षा कारणों से मौजूदा पोस्टिंग से छुट्टी या तबादले की मांग कर रहे थे.
कश्मीर में एक बार फिर हत्याओं का नया दौर देखने को मिल रहा है. ‘टार्गेट अटैक’ माने जाने वाले इन हमलों में अब तक 19 नागरिक मारे जा चुके हैं. इनमें एक कश्मीरी पंडित सरकारी कर्मचारी राहुल भट भी शामिल हैं. विभिन्न राजनीतिक दलों के सदस्यों ने प्रधानमंत्री पुनर्वास पैकेज के तहत नियोजित हिंदू व्यक्तियों की हत्या की निंदा की है. जमीनी स्तर पर उग्रवादियों की नाराजगी का सामना कर रहे परिवारों का कहना है कि वे न केवल अपनी सरकार द्वारा ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं बल्कि उन्हें उत्पीड़न का भी सामना करना पड़ रहा है.
30 मई को दो कश्मीरी पंडित विवेक कौल और अश्विनी पंडिता को काम पर न आने की वजह से ब्लॉक विकास अधिकारी ने उनके खिलाफ नोटिस जारी किया था. ये दोनों 21 मई को श्रीनगर से कुपवाड़ा जिले के ग्रामीण विकास विभाग में स्थानांतरित हुए थे. इन दोनों कर्मचारियों ने राहुल भट की मौत के बाद से काम पर आना बंद कर दिया था. पत्र में तुरंत काम पर न लौटने की स्थिति में दोनों को कथित तौर पर ‘कड़ी कार्रवाई’ की चेतावनी दी गई.
दिप्रिंट से बात करते हुए बाला के पति राज कुमार ने कहा, ‘इस सरकार और उसके अधिकारियों को हमारी बिल्कुल भी परवाह नहीं है. वे सिर्फ हमारे नाम पर वोट चाहते हैं और फिर हमें मरने के लिए छोड़ देते हैं.’
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सरकारी कर्मचारियों के बीच आक्रोश की लहर
बाला की मौत ने हिंदुओं, खासकर घाटी में रहने वाले सरकारी कर्मचारियों के बीच आक्रोश की लहर पैदा कर दी. नतीजन लोग विरोध पर उतर आए हैं और कश्मीर के बाहर सुरक्षित क्षेत्रों में स्थानांतरित करने की मांग कर रहे हैं.
कुमार और बाला कुलगाम जिले के उन 800 परिवारों में शामिल थे, जिनका कश्मीर में प्रधानमंत्री विशेष रोजगार योजना के तहत पुनर्वास किया गया था. लेकिन बाला अकेली थीं जिन्हें दक्षिण कश्मीर के सबसे दूर-दराज के गांवों में से एक स्कूल में भेजा गया. राज कुमार अपनी पत्नी की मौत के लिए अधिकारियों को जिम्मेदार मानते हैं.
‘रजनी और मैं ट्रांसफर का अनुरोध कर रहे थे. 12 मई को राहुल भट की हत्या के बाद हम दो दिन तक अपने स्कूल नहीं गए. रजनी ने अपने हेडमास्टर से स्थिति में सुधार होने तक उसे छुट्टी पर भेजने का अनुरोध किया था. लेकिन हेडमास्टर ने कहा कि वह उच्च अधिकारी की बिना अनुमति के किसी भी व्यक्ति को छुट्टी पर नहीं भेज सकते हैं. हमने तब कुलगाम के मुख्य शिक्षा अधिकारी मोहम्मद अशरफ राथर को एक पत्र लिखा. लेकिन उन्होंने भी हमारे अनुरोध को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि डोगराओं को कोई खतरा नहीं है. यह कश्मीरी पंडित हैं (जो खतरे में हैं), इसलिए हमें छुट्टी लेने की जरूरत नहीं है और ड्यूटी पर लौट आना होगा. हमें उनके आदेश मानने पड़े. इसके बाद क्या हुआ ये हम सभी जानते हैं. मेरी पत्नी को आतंकवादियों ने स्कूल परिसर में बेरहमी से मार डाला और कोई कुछ नहीं कर सका. मुझे लगता है कि अधिकारी ही उसकी मौत के लिए जिम्मेदार हैं.’
कुलगाम के सीईओ मोहम्मद अशरफ राथर ने बाला के छुट्टी के अनुरोध को ठुकराने के आरोपों से इनकार किया है. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘जब रजनी बाला और उनके पति और अल्पसंख्यक संघ के अन्य लोग मुझसे मिलने आए, तो मैंने उन्हें तब तक छुट्टी लेने की पूरी आजादी दी जब तक कि वे सुरक्षित महसूस न करें. मैंने उनसे कहा कि वे अपने स्कूल जाने का समय बदल सकते हैं या वे छुट्टी पर जा सकते हैं.’
अनंतनाग में वेसु के शरणार्थी शिविर में रहने वाले कश्मीरी पंडित सरकारी कर्मचारियों से बात करने के बाद दिप्रिंट को पता चला कि इन कर्मचारियों को कारण बताओ नोटिस दिया गया था और यहां तक कि पिछले साल हुई हत्याओं के बाद सुरक्षा कारणों के वजह से काम पर न जाने के बाद, उनका वेतन महीनों तक रोक लिया गया था.
अक्टूबर 2021 में श्रीनगर में एक सिख स्कूल के कश्मीरी पंडित प्रिंसिपल और दो गैर-स्थानीय हिंदुओं सहित सात नागरिकों के मारे जाने के बाद घाटी के लोगों के बीच डर बैठ गया था, खासकर गैर-स्थानीय और कश्मीरी पंडित के बीच तो यह डर और भी ज्यादा था. उसी समय, बारामूला जिले में सड़क और भवन (आर एंड बी) विभाग में काम करने वाले छह कश्मीरी पंडितों को काम पर रिपोर्ट नहीं करने के लिए नोटिस दिया गया और अक्टूबर महीने के लिए उनके वेतन का भुगतान नहीं किया गया था. इस नोटिस की एक प्रति दिप्रिंट के पास है.
महीने बाद, आर एंड बी विभाग के कार्यकारी अभियंता ने अधीक्षक अभियंता को एक पत्र लिखा. पत्र में सूचित किया गया था कि सुरक्षा कारणों की वजह से अल्पसंख्यक समुदाय के कर्मचारी कार्यालय नहीं आ सके. इसके बाद ही उन्हें वेतन दिया गया.
नवंबर 2021 में जिला समाज कल्याण अधिकारी, अनंतनाग के कार्यालय ने विभाग में कार्यरत 26 कश्मीरी पंडित कर्मचारियों को नोटिस भेजकर उन्हें ड्यूटी पर न लौटने पर सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी गई थी.
नोटिस पाने वाले कश्मीरी पंडित कर्मचारियों में से एक ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि उनका वेतन दो महीने के लिए रोक दिया गया था और जब उन्होंने विरोध किया तो उसके बाद ही उन्हें वेतन मिल पाया और घाटी में कश्मीरी पंडितों की टारगेट किलिंग को अंतरराष्ट्रीय कवरेज मिला था.
एक महीने बाद जिला सूचना एवं जनसंपर्क कार्यालय ने नोटिस वापस ले लिया. दिप्रिंट ने इस वापसी नोट को देखा है.
दिप्रिंट ने फोन से कश्मीर के डिविजनल कमिश्नर पांडुरंग के.पोल से संपर्क किया है. उनकी प्रतिक्रिया मिलने के बाद रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.
रिपोर्ट के पुराने संस्करण में गलती से उल्लेख किया गया था कि कुमार और बाला को कश्मीर में प्रधान मंत्री की विशेष रोजगार योजना के तहत पुनर्वासित किया गया था. त्रुटि के लिए खेद है.
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