गत वर्ष पांच अगस्त को अनुच्छेद-370 की समाप्ति के बाद जम्मू-कश्मीर का स्वरूप व आकार तो बदला ही, साथ ही साथ वह तमाम मुद्दे भी बदल गए हैं, जिनके इर्द-गिर्द जम्मू-कश्मीर की राजनीति घूमा करती थी.
बदल चुकी परिस्थितियों में जम्मू-कश्मीर में नए मुद्दों को लेकर राजनीति की शुरूआत होने जा रही है, जो नए मुद्दे सामने आ रहे हैं उनमें डोमिसाइल (अधिवास) और जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा (स्टेटहुड) बहाल किए जाने की मांग प्रमुख है.
लगभग सभी दलों के सुर बदले हुए हैं और सभी डोमिसाइल (अधिवास) व राज्य के दर्जे की बहाली की बात करते दिखाई दे रहे हैं. यही नहीं दिलचस्प और महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि कहीं न कहीं नए मुद्दों को लेकर सभी राजनीतिक दल एकमत भी दिखाई दे रहे हैं. अक्सर कश्मीर और जम्मू क्षेत्रों के बीच मुद्दों का जो टकराव होता था वह भी नए मुद्दों के सामने आने से खत्म होता नज़र आ रहा है. दोनों ही क्षेत्रों से डोमिसाइल (अधिवास) और राज्य का दर्जा बहाल किए जाने के समर्थन में आवाज़े उठ रही हैं. जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में यह एक बड़ी बात है.
लगभग सभी राजनीतिक दल जम्मू-कश्मीर को फिर से राज्य का दर्जा बहाल करने और हिमाचल प्रदेश व उतर-पूर्वी राज्यों की तरह मूल निवासियों को ही ज़मीन के अधिकार दिए जाने पर ज़ोर दे रहे हैं.
भाजपा से लेकर कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस से लेकर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) तक, सभी किसी न किसी स्तर पर डोमिसाइल (अधिवास) और जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल किए जाने के सवाल पर एकमत दिखाई दे रहे हैं.
भाजपा की ओर से भी बार-बार यह आश्वासन दिया जा रहा है कि जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा जल्दी बहाल कर दिया जाएगा. खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह इस तरह के संकेत दे चुके हैं कि जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल किया जा सकता है. राम माधव और मुरली धर राव जैसे वरिष्ठ भारतीय जनता पार्टी नेता भी खुलकर कह चुके हैं कि जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा दोबारा मिल जाएगा. डोमिसाइल (अधिवास) के मुद्दे पर भी पार्टी नेता लगातार कहते रहे हैं कि जम्मू कश्मीर के लोगों के हितों का पूरा ध्यान रखा जाएगा. प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के नेता लगातार इन संवेदनशील मुद्दों का समर्थन करते रहे हैं.
यह भी पढ़ें : राम मंदिर, अनुच्छेद 370, तीन तलाक़ के बाद अब क्या है मोदी-शाह के एजेंडे में
उधर विपक्ष, विशेषकर कश्मीर केंद्रीत राजनीतिक दल भी वास्तविकता को समझ रहे हैं और धारा-370 को लेकर कोई बात करने की जगह डोमिसाइल (अधिवास) और जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा जल्दी बहाल करने की मांग कर रहे हैं.
हालांकि, आधिकारिक तौर पर जम्मू-कश्मीर के दोनों बड़े क्षेत्रीय दल नेशनल कांफ्रेस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) अभी ख़ामोश हैं. दोनों ही दलों का शीर्ष नेतृत्व गत पांच अगस्त से ही नज़रबंद है और दोनों ही दलों ने औपचारिक रूप से बदले हालात को लेकर अपना रुख़ साफ नहीं किया है.
लेकिन, संगठन में ज़बरदस्त बगावत झेल रही पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के अधिकतर नेता खुलकर जम्मू-कश्मीर के मूल निवासियों के हितों को लेकर डोमिसाइल (अधिवास) की वकालत कर रहे हैं, अंसतुष्ट पीडीपी नेता लगातार जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा जल्दी बहाल करने की मांग भी कर रहे हैं.
पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के वरिष्ठ नेता और पार्टी के संरक्षक मुज्जफर बेग ने पिछले दिनों कहा कि अब समय अनुच्छेद 370 से आगे सोचने का है. उन्होंने डोमिसाइल और राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग की और कहा कि हिमाचल प्रदेश व उत्तर पूर्व के राज्यों की तरह रोज़गार व भूमि पर डोमिसाइल हक मिलना ही चाहिए. उल्लेखनीय है कि बेग को इस बार गणतंत्र दिवस पर पद्म भूषण से सम्मानित किया गया है.
बेग के अतिरिक्त पीडीपी के ही असंतुष्ट गुट के कई नेता भी डोमिसाइल और राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग कर चुके हैं. इन नेताओं में पूर्व वित्त मंत्री अल्ताफ़ बुख़ारी और दिलावर मीर प्रमुख हैं.
नेशनल कांफ्रेस के कई नेता भी डोमिसाइल और जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग करने लगे हैं. भले ही पार्टी अभी अपने नेताओं डॉ फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला की रिहाई का इंतज़ार कर रही है, मगर अनौपचारिक बातचीत में नेशनल कांफ्रेस नेता भी मानते हैं कि अनुच्छेद 370 को लेकर अब किसी तरह की कोई बात करने का कोई लाभ नही है.
कांग्रेस की ओर से भी डोमिसाइल और राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग की जाने लगी है. इसी तरह से जम्मू-कश्मीर पैंथर्स पार्टी भी डोमिसाइल (अधिवास) और राज्य का दर्जा बहाल किए जाने की मांग को लेकर काफी मुखर है. वरिष्ठ पत्रकार अश्विनी कुमार मानते है कि आने वाले दिनों में डोमिसाइल (अधिवास) और राज्य का दर्जा बहाल किए जाने की मांग ज़ोर पकड़ेगी और भविष्य की राजनीति अब इन्हीं मुद्दों को लेकर होगी.
अप्रासंगिक हुए पुराने मुद्दे
दरअसल अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद जम्मू-कश्मीर की राजनीति में अचानक बहुत से बदलाव आए हैं. गौरतलब है कि लंबे समय से जम्मू-कश्मीर में भावनात्मक मुद्दों को लेकर राजनीति होती रही है. इन मुद्दों में अनुच्छेद 370, स्वायत्तता (ऑटोनामी) और सेल्फ़ रूल जैसे मुद्दे प्रमुख रहे हैं.
लेकिन, राजनीतिक दलों के लिए पुराने मुद्दों, विशेषकर अनुच्छेद 370 को लेकर राजनीति करना अब संभव नहीं रह गया है, मुद्दों को लेकर यह बदलाव सभी राजनीतिक दलों पर लागू हो रहा है. अनुच्छेद 370 के पक्ष में राजनीति करने वालों से लेकर उसका लगातार विरोध करने वाले राजनीतिक दलों के लिए अब अनुच्छेद 370 की कोई भी अहमियत नहीं रह गई है.
उल्लेखनीय है कि स्वतंत्रता के बाद से ही जम्मू-कश्मीर की राजनीति अनुच्छेद 370 के इर्द-गिर्द घूमती रही है. यहां नेशनल कांफ्रेस व पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) सहित अन्य कश्मीर केंद्रित दल अनुच्छेद 370 के समर्थन में भावनात्मक नारे लगाते रहे हैं, वहीं अनुच्छेद 370 को हटाने की मांग को लेकर भारतीय जनता पार्टी लगातार आंदोलन करती रही है, जबकि कांग्रेस इन बीते सालों में अनुच्छेद 370 को बनाए रखने का आश्वासन देते हुए राजनीति करती रही.
लेकिन जिस ढंग से परिस्थितियां बदली हैं उसके बाद अनुच्छेद 370 के आसपास होने वाली राजनीति के लिए अब कोई स्थान शेष नहीं बचा है.
स्वायत्तता (ऑटोनामी) और सेल्फ़ रूल भी हुए महत्वहीन
अनुच्छेद 370 ही नहीं स्वायत्तता (ऑटोनामी) और सेल्फ़ रूल जैसे भावनात्मक मुद्दों के सहारे भी जम्मू-कश्मीर में राजनीति होती रही है. मगर अब न सिर्फ अनुच्छेद 370 बल्कि स्वायत्तता (ऑटोनामी) और सेल्फ़ रूल जैसे भावनात्मक नारे व मुद्दों की भी कोई प्रासंगिकता शेष नहीं बची है.
उल्लेखनीय है कि नेशनल कांफ्रेस ने 1996 में स्वायत्तता (ऑटोनामी) का नारा दिया था और तब से सभी चुनाव इसी मुद्दे पर लड़ती आ रही थी, जबकि सेल्फ़ रूल का नारा पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की देन है और 1999 में अपने गठन से ही पीडीपी इसे ज़ोर शोर से उठाती रही है.
यह भी पढ़ें : वैश्विक लोकतंत्र सूचकांकों में भारत का दस स्थान लुढ़कना क्या कहता है
लेकिन गत पांच अगस्त के बाद जिस तरह से हालात ने करवट ली उसमें अनुच्छेद 370, स्वायत्तता (ऑटोनामी) और सेल्फ़ रूल जैसे मुद्दों के लिए भी कोई स्थान शेष नही बचा है और अनुच्छेद 370 सहित अन्य लगभग सभी पुराने मुद्दों की प्रासंगिकता समाप्त हो चुकी है.
लद्दाख में भी उठ रही डोमिसाइल का मांग
क्षेत्रफल के हिसाब से सबसे बड़ा संभाग लद्दाख अलग केंद्र शासित प्रदेश बन चुका है,परिणामस्वरूप लद्दाख से जुड़ी राजनीति और राजनीतिक मुद्दे भी बदल गए हैं. लद्दाख को शिकायत थी कि उसके साथ अक्सर भेदभाव होता है, लेकिन अब एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बनने से उसकी ये शिकायत दूर हो चुकी है और स्थानीय लोग केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिलने से खुश हैं.
लेकिन अपनी विशिष्ट पहचान, भाषा व संस्कृति को लेकर बेहद भावुक लद्दाख के लोगों में भी डोमिसाइल की मांग उठ रही है, लोग चाहते हैं कि लद्दाख के मूल नागरिकों के हितो की रक्षा की गारंटी होनी चाहिए.
इसी को देखते हुए कांग्रेस ने पहल करते हुए लद्दाख के लिए अपनी अलग इकाई की घोषणा भी कर दी है. ऐसा करने वाली कांग्रेस पहली पार्टी है. हालांकि, नई व्यवस्था के अंतर्गत लद्दाख में विधानसभा का प्रावधान नहीं है.
(लेखक जम्मू-कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार हैं)