नई दिल्ली: केंद्र सरकार और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने बुधवार को उन याचिकाओं का विरोध किया, जो शीर्ष अदालत के जुलाई 2022 के फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग करती हैं, जिसमें धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के कड़े प्रावधानों को बरकरार रखा गया था — एक कानून जो एजेंसी को व्यापक जांच शक्तियां देता है.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एस.वी. राजू ने केंद्र सरकार और जांच एजेंसी का प्रतिनिधित्व करने वाले न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अगुवाई वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध इन याचिकाओं की स्थिरता पर सवाल उठाया, उन्हें “कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग” करार दिया और सुप्रीम कोर्ट से “सतर्क” और “चिंतित” रहने का आग्रह किया.
अदालत कुछ मापदंडों पर अपने 27 जुलाई, 2022 के तीन-न्यायाधीशों की पीठ के फैसले पर पुनर्विचार की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी.
27 जुलाई, 2022 को विजय मदनलाल चौधरी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने पीएमएलए के तहत गिरफ्तारी, तलाशी, जब्ती और संपत्ति की कुर्की की ईडी की शक्तियों को बरकरार रखा. ज़ूम डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक विजय मदनलाल चौधरी को 2017 में मनी लॉन्ड्रिंग और बैंक धोखाधड़ी के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.
याचिकाओं का विरोध करने के लिए मेहता और राजू ने जो तर्क दिए, वे दोतरफा थे.
सबसे पहले, उन्होंने कहा कि पीठ याचिकाओं पर सुनवाई करने में असमर्थ है क्योंकि 2022 का फैसला भी तीन न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सुनाया गया था. इस संदर्भ में उन्होंने यह भी तर्क दिया कि पीठ उन पर ध्यान नहीं दे सकती थी क्योंकि जुलाई 2022 के फैसले के खिलाफ समीक्षा याचिकाएं अभी भी दूसरी पीठ के समक्ष लंबित हैं और इन पर नोटिस अगस्त 2022 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमण के नेतृत्व वाली पीठ द्वारा जारी किए गए थे.
दूसरा आधार जिस पर कानून अधिकारियों ने याचिकाओं के खिलाफ जोरदार तर्क दिया, वह यह है कि वे सुप्रीम कोर्ट के जुलाई 2022 के फैसले की शुद्धता पर सवाल उठाते हैं, जिसके बारे में उन्होंने तर्क दिया कि वर्तमान मामले की तरह नई रिट याचिका दायर करने के माध्यम से ऐसा नहीं किया जा सकता है.
मेहता ने पीठ से पूछा, जिसमें न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और बेला त्रिवेदी भी शामिल थे, “क्या यह पीठ किसी अन्य समन्वय पीठ के विरुद्ध अपील कर सकती है? क्या कोई व्यक्ति कल यह याचिका ला सकता है कि वह समलैंगिक विवाह मामले में पांच न्यायाधीशों की पीठ के फैसले से सहमत नहीं है और क्या इसे संदर्भित किया जा सकता है?”
अपनी ओर से पीठ सरकारी कानून अधिकारियों के इस रुख से सहमत नहीं थी कि पहले के फैसले पर दोबारा गौर नहीं किया जा सकता है.
पीठ पीएमएलए के उपयोग पर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है जिन्हें समेकित सुनवाई के लिए एक साथ रखा गया है. हालांकि, इनमें से अधिकांश विजय मदनलाल चौधरी का फैसला सुनाए जाने से पहले दायर किए गए थे, लेकिन अदालत ने तीन न्यायाधीशों की पीठ द्वारा पीएमएलए की संवैधानिक वैधता पर उठाए गए सवालों को देखते हुए उन्हें स्थगित रखा.
इनमें से चार याचिकाएं छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा दायर की गई थीं जो वर्तमान में कोयला और शराब घोटालों में ईडी जांच का सामना कर रहे हैं. इस मई में दो हज़ार करोड़ रुपये के कथित शराब घोटाले पर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए, न्यायमूर्ति कौल की अगुवाई वाली खंडपीठ ने “डर का माहौल” पैदा करने के लिए ईडी को कड़ी फटकार लगाई.
राज्य सरकार द्वारा एजेंसी पर घोटाले में “अंधाधुंध चलने”, “आबकारी अधिकारियों को धमकाने” और “मुख्यमंत्री को फंसाने की कोशिश” करने का आरोप लगाने के बाद पीठ ने कहा था, “जब आप इस तरह का व्यवहार करते हैं तो एक वास्तविक कारण भी संदिग्ध हो जाता है”.
बाद में इसने संघीय एजेंसी को कथित घोटाला मामले में कठोर कार्रवाई करने से रोक दिया, जबकि इन याचिकाओं को तीन न्यायाधीशों की पीठ को भेज दिया.
यह भी पढ़ें: ED को SC की फटकार, ‘पारदर्शी होने की उम्मीद, न कि बदला लेने की’, आरोपियों को गिरफ्तारी का बताएं आधार
‘सतर्क, लेकिन चितिंत नहीं’
कोर्ट के समक्ष अपनी दलीलों में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि विजय मदनलाल चौधरी के मामले में 2022 का फैसला काफी विचार-विमर्श के बाद दिया गया था. मेहता ने कोर्ट को बताया, “मैं कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग के बारे में बात कर रहा हूं. (याचिका में) दावा यह है कि याचिकाकर्ता एक प्रबुद्ध नागरिक है और उसे लगता है कि (पीएमएलए की) धारा 50 की गलत व्याख्या की गई है. क्या यह समन्वय पीठ के फैसले पर पुनर्विचार करने का आधार है? समीक्षा पर सुनवाई अभी बाकी है.”
अधिनियम की धारा-50 ईडी को लोगों को उनके बयान दर्ज करने के उद्देश्य से समन जारी करने की शक्ति देती है. इस प्रकार दर्ज किया गया बयान साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य है.
हालांकि, पीठ इन विचारों से सहमत नहीं थी.
न्यामूर्ति कौल ने कहा, “अदालत इस पर गौर करने या न करने का फैसला लेने में सावधानी दिखाएगी, लेकिन बार नहीं हो सकता. क्या यह पत्थर पर लिखा है कि एक पीठ दूसरे फैसले पर गौर नहीं कर सकती?” न्यायमूर्ति कौल ने आगे कहा कि हालांकि पीठ, पक्षों को सुनने के बाद, समीक्षा याचिका के नतीजे का इंतजार कर सकती है, लेकिन यह किसी अदालत को पहले के फैसले पर दोबारा विचार करने से नहीं रोकती है.
न्यायमूर्ति कौल ने अदालत से “सतर्क” और “चिंतित” रहने का आग्रह करने के लिए मेहता और राजू को भी फटकार लगाई.
उन्होंने कानून अधिकारियों से कहा, “मैं सतर्क हूं, चिंतित नहीं हूं और यह अदालत की भाषा नहीं है. जब पीठ ने इस मामले को आगे बढ़ाने का इरादा बताया.”
अदालत 24 नवंबर को याचिकाओं पर सुनवाई जारी रखेगी.
(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: सेना के कर्नल ने SC में MOD के नियंत्रण पर उठाए सवाल, कहा- सशस्त्र बल ट्रिब्यूनल कितना स्वतंत्र?