नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी में लगातार बढ़ रहे वायु प्रदूषण के मद्देनज़र राज्य सरकार ने सोमवार को घोषणा की कि प्रदेश में 13 से 20 नवंबर तक ऑड-ईवन लागू कर दिया जाएगा.
दिल्ली में ज़हरीली हो रही हवा को देखते हुए राज्य के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने प्रदेश में ‘ग्रेडेड रेस्पांस एक्शन प्लान’ (ग्रेप-IV) को लागू कर दिया है. इसके साथ आवश्यक सामान की सप्लाई वाले LNG, CNG और इलेक्ट्रिक ट्रकों के अलावा बाकी बड़े वाहनों के दिल्ली में प्रवेश और किसी भी प्रकार के कंस्ट्रक्शन या फिर डेमोलिशन के कार्य पर पूरी तरह रोक लगा दी है.
दिल्ली सरकार अब, एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) को सुधारने के लिए पूरी तरह से एक्शन मोड में है. गौरतलब है कि प्रदेश का एक्यूआई इन दिनों 401-450 के बीच बना हुआ है, जबकि ग्रैप स्टेज-1, स्टेज-2 और स्टेज-3 के नियम पहले से ही पूरे एनसीआर में लागू हैं.
राय ने कहा, ‘‘ग्रेप-3 में फ्लाईओवर, ओवरब्रिज और पावर ट्रांसमिशन पाइपलाइनों पर निर्माण कार्य को छूट दी गई थी…लेकिन, अब उन पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है.’’
कमिशन फॉर एयर क्वॉलिटी एंड मैनेजमेंट (सीएक्यूएम) के आदेशों के बाद, केजरीवाल सरकार ने दिल्ली में पेट्रोल की बीएस-III, डीजल की बीएस-IV गाड़ियों की आवाजाही पर रोक लगा दी थी, जो कि ग्रेप-IV में भी लागू रहेगी.
दिप्रिंट आपको बता रहा है कि साल 2000 में लाए गए भारत स्टेज एमिशन स्टैंडर्ड्स (बीएस) I,II,III,IV,VI आखिर है क्या.
केंद्र सरकार एमिशन स्टैंडर्ड्स इंटरनल कंबशन इंजन इक्विपमेंट (मोटर व्हीकल शामिल) से निकलने वाली प्रदूषित हवा को नियंत्रित करने के लिए मानक तय करती है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) समय-समय पर गाड़ियों के लिए अलग-अलग नॉर्म्स निर्धारित कर लागू करता है.
आसान शब्दों में कहें तो इन स्टेज के हिसाब से तय किया जाता है कि कोई गाड़ी कितना प्रदूषण फैलाती है.
इस तरह सरकार भारत स्टेज (बीएस) के साथ लगे नंबर से गाड़ी के इंजन से निकलने वाले प्रदूषण की मात्रा को तय करती है, जिन्हें क्रमश: बीएस, बीएस-I,बीएस-II बीएस-III और बीएस-IV और बीएस-VI कहा जाता है. इनमें बीएस-VI की गाड़ियों को कम प्रदूषित माना जाता है, जिसे 2020 में अपनाया गया था.
दरअसल, बीएस-I 2000-2005 से, बीएस-II 2005-2010 से, बीएस-III 2010-2017 से और बीएस-IV 2017-2020 से था और अब 2020 में सबसे बड़े उत्सर्जन परिवर्तन के साथ, बीएस-VI उत्सर्जन मानदंड एक अप्रैल, 2020 से लागू हो गए.
भारतीय मोटर वाहन ने उत्सर्जन मानदंड निष्क्रिय उत्सर्जन सीमाएं तय की थीं जो 1989 में लागू हुईं. इन नियमों को 1991 में पेट्रोल इंजन और 1992 में डीजल इंजन के लिए बड़े पैमाने पर उत्सर्जन सीमा द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था. 1995 तक महानगरों में बेची जानी वाली सभी कारों के लिए उत्प्रेरक कन्वर्टर्स का उपयोग अनिवार्य कर दिया गया था.
देश में 2026 तक बीएस-VI के पूरी तरह से लागू होने की दिशा में काम किया जा रहा है, जिससे पेट्रोल और डीजल कारों के बीच अंतर घटने की संभावना है. डीजल कारों से (पीएम-पार्टिकुलेट मैटर-प्रदूषण के कण) का उत्सर्जन 80 फीसदी तक कम हो सकता है.
भारत स्टेज उत्सर्जन मानक यूरोपीय मानदंडों पर आधारित हैं, जिन्हें आमतौर पर ‘यूरो 2’, ‘यूरो 3’, के रूप में वर्गीकृत किया जाता है.
यह नियम पहली बार भारत में 2000 में लॉन्च किए गए थे और पिछले दो दशकों में इसमें कई संशोधन देखे गए हैं. भारत 2000, जो ‘यूरो 1 मानकों पर आधारित था, को 2001 में भारत स्टेज-II (बीएसआईआई) मानदंडों के साथ बदल दिया गया था. इसके बाद बीएस- III मानक लागू किए गए, जबकि बाद वाले को बीएस-IV मानकों के साथ बदल दिया गया. इस समय देश में बीएस-VI लागू है.
बीएस- I क्या है?
बीएस- I जिसे 2000 में लाया गया कार निर्माताओं को कार्बोरेटर, सेकेंडरी एयर इनटेक सिस्टम, एग्जॉस्ट गैस रीसर्क्युलेशन सिस्टम को फिर से ट्यून करने, सिस्टम में ट्राइमेटल कोटिंग जोड़ने के साथ-साथ उत्प्रेरक क्षमता बढ़ाने की आवश्यकता थी.
बीएस- II क्या है?
बीएस-II कारों की बिक्री 2001 और 2010 के बीच हुई थी. भारत स्टेज II मानकों में अपग्रेड करने के लिए कार निर्माताओं द्वारा आवश्यक एक बड़ा बदलाव मल्टी-पॉइंट फ्यूल इंजेक्शन (एमपीएफआई) प्रणाली द्वारा कार्बोरेटर का प्रतिस्थापन था. इसके अलावा, भारत स्टेज II-अनुपालक ईंधन में सल्फर सामग्री 500 पीपीएम तक सीमित थी.
बीएस-III क्या है?
बीएस-III पहली बार 2005 में लागू किया गया था और 2010 तक पूरे देश में उनकी बिक्री अनिवार्य कर दी गई थी. अधिक कठोर मानदंडों की शुरुआत से पेट्रोल से चलने वाले यात्री वाहनों से उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी आई. कार निर्माताओं ने एक उत्प्रेरक कनवर्टर स्थापित करके बीएस-III उत्सर्जन का अनुपालन हासिल किया, जिसने कार्बन मोनोऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन के उत्सर्जन पर अंकुश लगाया.
बीएस-IV क्या है?
अप्रैल 2017 में पूरे देश में बीएस-IV मानदंड अनिवार्य कर दिए गए थे. III-अनुपालक इंजनों को IV इकाइयों में परिवर्तित करने के लिए, कार निर्माताओं ने नाइट्रोजन-आधारित उत्सर्जन को कम करने के लिए बड़े उत्प्रेरक कन्वर्टर्स जोड़े.
बीएस-VI क्या है?
भारत ने एक अप्रैल 2020 को बीएस-VI उत्सर्जन मानदंडों को अपना लिया. इस उत्सर्जन मानक से पेट्रोल कारों से टेलपाइप डिस्चार्ज को 1.0 ग्राम/किमी के कार्बन मोनोऑक्साइड उत्सर्जन, हाइड्रो कार्बन+नाइट्रोजन ऑक्साइड के 0.16 ग्राम/किमी के डिस्चार्ज और श्वसन योग्य निलंबित कण पदार्थ के 0.05 के डिस्चार्ज तक सीमित कर दिया गया.
बीएस-IV कारों पर बीएस-VI ईंधन का क्या प्रभाव पड़ेगा?
1 अप्रैल 2020 तक देश भर में बीएस-VI ईंधन के लागू होने के साथ, कई पुरानी कारें, जो बीएस-IV, बीएस-III या बीएस-II मानदंडों के अनुरूप होंगी, उन्हें स्वच्छ ईंधन पर चलना होगा. बीएस-VI ईंधन में सल्फर की मात्रा बीएस-IV ईंधन की तुलना में बहुत कम है. इसलिए, बेहतर ईंधन से ही प्रदूषण कम होगा. बीएस-IV कारों पर बीएस-VI ईंधन प्रभाव के बारे में बात करते हुए, बाद में लंबे समय में कुछ फाइन-ट्यूनिंग की आवश्यकता हो सकती है, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है जिसके बारे में कार मालिकों को चिंतित होना चाहिए.
कुछ हाई-एंड कार निर्माता, जैसे मर्सिडीज़, बीएमडब्ल्यू, ऑडी और वोल्वो, पहले ही बीएस-VI की कारें पेश कर चुके हैं. इसके अलावा, यहां तक कि होंडा कार्स इंडिया और मारुति सुजुकी जैसे मुख्यधारा के कार निर्माता भी ऐसे इंजन लेकर आए हैं जिन्हें बीएस-VI-अनुपालन प्राप्त करने के लिए आसानी से ट्यून किया जा सकता है.
‘द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट’ (टेरी) द्वारा 2018 में किए एक अध्ययन के अनुसार, राष्ट्रीय राजधानी में पीएम 2.5 प्रदूषण में वाहनों से निकलने वाले उत्सर्जन का तकरीबन 40 फीसदी योगदान रहता है.
इसके साथ ही पुराने डीजल वाहनों पर भी अस्थाई रूप से प्रतिबंध लगाया गया है. शहर के करीब 1.5 लाख पेट्रोल वाहन ‘प्रतिबंधित’ श्रेणी में रखे गए हैं. अगर कोई भी आदेशों का उल्लंघन करता हुआ पाया जाता है तो उस पर 20 हज़ार रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा.
इस नियम ने शहर की करीब 1.5 लाख चार पहिया वाहनों (पेट्रोल) को प्रतिबंधित श्रेणी में डाल दिया है, जिसमें से 1.3 लाख वाहन बीएस 3 श्रेणी के हैं. वहीं डीजल के करीब 2.3 लाख वाहन हैं, जो प्रतिबंधित श्रेणी में आ गए हैं.
दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी में प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए हॉटस्पॉट इलाकों में पानी का छिड़काव किया जा रहा है.
मंत्री ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘दिल्ली में 7000 से ज्यादा बसें हैं जिनमें से 1000 इलेक्ट्रिक बसें हैं, वाहन प्रदूषण सबसे ज्यादा देखा गया है तो इसे कंट्रोल करने के लिए 13 नवंबर से ऑड-ईवन का फैसला लिया गया है. इस योजना की अवधि बढ़ाने पर फैसला 20 नवंबर के बाद लिया जाएगा.’’
राय ने कहा कि योजना से छूट समेत इसकी डिटेल्स परिवहन विभाग के साथ विचार-विमर्श कर तय की जाएंगी.
साल 2016 में पहली बार लागू की गई इस योजना के तहत ऑड या ईवन रजिस्ट्रेशन संख्या वाली कारों को वैकल्पिक दिनों (एक दिन छोड़कर एक दिन) पर चलाने की अनुमति दी जाती है.अगले हफ्ते जब इसे लागू किया जाएगा तो यह चौथी बार होगा जब दिल्ली सरकार वाहनों से होने वाले प्रदूषण से निपटने के लिए यह योजना लागू करेगी.
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स्कूल भी रहेंगे बंद
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शहर में हवा की गुणवत्ता में और गिरावट के मद्देनज़र सोमवार को कैबिनेट सदस्यों और अधिकारियों के साथ एक उच्च स्तरीय बैठक की अध्यक्षता की. बैठक में दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय, मंत्री आतिशी और सौरभ भारद्वाज और संबंधित विभागों के अधिकारी उपस्थित रहे.
सीपीसीबी के अनुसार, राष्ट्रीय राजधानी में एक्यूआई लगातार पांचवें दिन ‘गंभीर’ श्रेणी में बनी हुई है. दिल्ली में आईटीओ पर सुबह 9 बजे AQI 400 यानी बहुत खराब श्रेणी में दर्ज किया गया.
ग्रेप-III के तहत केवल पांचवीं कक्षा तक के स्कूल बंद किए गए थे, लेकिन अब दिल्ली में केवल दसवीं और बाहरवीं कक्षा को छोड़ कर सभी स्कूल 10 नवंबर तक बंद रहेंगे.
दिल्ली की शिक्षा मंत्री आतिशी ने रविवार को सभी स्कूलों की प्राथमिक कक्षाओं को 10 नवंबर तक बंद करने की घोषणा की थी और कहा था कि स्कूलों के पास छठी से 12वीं कक्षा तक के विद्यार्थियों को ऑनलाइन पढ़ाने का विकल्प है.
सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी फोरकास्टिंग एंड रिसर्च (SAFAR-India) द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, राष्ट्रीय राजधानी में हवा की गुणवत्ता 488 दर्ज की गई, जो एक दिन पहले 410 थी.
भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार, आगामी पश्चिमी विक्षोभ के प्रभाव से प्रदूषकों को तितर-बितर करने के लिए अनुकूल परिस्थितियां मंगलवार रात से बनने की संभावना है. इसके कारण उत्तर पश्चिम भारत में बेमौसम बारिश हो सकती है.
डॉक्टरों के अनुसार, जहरीली धुंध मौजूदा श्वसन समस्याओं वाले लोगों के लिए गंभीर समस्याएं पैदा कर रही है.
मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियों, वाहनों से निकलने वाले उत्सर्जन, धान की पराली जलाने, पटाखों और अन्य स्थानीय प्रदूषण स्रोतों के साथ मौसम संबंधी प्रतिकूल परिस्थितियां हर साल सर्दियों के दौरान दिल्ली-एनसीआर में खतरनाक वायु गुणवत्ता स्तर में योगदान करती हैं.
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) के अनुसार, राजधानी में एक नवंबर से 15 नवंबर तक प्रदूषण उस समय चरम पर होता है, जब पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं की संख्या बढ़ जाती है.
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