मुंबई: शंकर मिश्रा, जिसने एयर इंडिया की एक उड़ान के दौरान अपनी एक साथी महिला यात्री पर पेशाब कर दिया था, के मामले ने काबू से बाहर हो चुके या हुड़दंग मचाने वाले हवाई यात्रियों से निपटने के लिए बनाये गए भारत के नियमों और इन दिशानिर्देशों को लागू करने में चालक दल के सदस्यों और पायलटों के सामने आने वाली व्यावहारिक चुनौतियों को सुर्खियों में ला दिया है.
कई वरिष्ठ और सेवानिवृत्त पायलटों तथा केबिन क्रू सदस्यों ने दिप्रिंट के साथ हुई उनकी बातचीत में बताया कि एयरलाइंस अक्सर समाचार माध्यमों में होने वाले संभावित बदनामी (बैड प्रेस) से डरती हैं, जो उनके द्वारा बेकाबू यात्रियों के खिलाफ कार्रवाई के साथ जुड़ी हो सकती हैं; दूसरी तरफ चालक दल के सदस्य और पायलट इसके विपरीत परिणामों और यात्रियों द्वारा उनके खिलाफ जवाबी शिकायत दर्ज कराये जा सकने की संभावना की वजह से सतर्कता बरतते हैं.
नतीजतन, नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डायरेक्टरेट जनरल ऑफ़ सिविल एविएशन- डीजीसीए) द्वारा अनियंत्रित हो चुके यात्रियों से निपटने के संबंध में दिशानिर्देश जारी किए हुए लगभग छह साल हो गए हैं.
उसके बाद के समय काल में, एयरलाइनों की तरफ से ऐसे कुछ ही मामले सामने आए हैं जिनमें कथित तौर पर हुड़दंग मचने वाले यात्रियों को एक निश्चित अवधि के लिए उनकी ‘नो फ्लाई लिस्ट’ में डाल दिया गया हो या उनके खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज की गई हो.
डीजीसीए आधिकारिक रूप से अलग-अलग एयरलाइनों द्वारा रिपोर्ट किए गए ‘अनियंत्रित’ यात्रियों से संबंधित घटनाओं की संख्या का डेटा साझा नहीं करता है. डीजीसीए के महानिदेशक अरुण कुमार ने दिप्रिंट को बताया, ‘गोपनीयता से जुड़े मुद्दों के कारण हम इस डेटा को साझा नहीं करते हैं.’
हालांकि, सेवानिवृत्त केबिन क्रू सदस्य और पायलट डीजीसीए द्वारा मई 2017 में अपने दिशानिर्देश प्रकाशित किए जाने के बाद से सामने आये ऐसे मामलों की कुल संख्या 15-20 से अधिक नहीं होने का अनुमान लगाते हैं.
अपना नाम न छापे जाने की शर्त पर एक वरिष्ठ पायलट ने दिप्रिंट को बताया, ‘लगभग हर उड़ान में, एक या दो यात्री ऐसे होते हैं जो बदतमीजी करते हैं. उसका स्तर भिन्न हो सकता है. उनमें से अधिकांश को आगे रिपोर्ट नहीं किया जाता है क्योंकि या तो चालक दल ऐसे यात्री द्वारा माफी मांगे जाने के बाद उसके साथ सुलह कर लेते हैं, या (विमान के) कैप्टन को बुलाया जा सकता है जो यात्री को इसके विपरीत परिणामों के बारे में चेतावनी दे सकता है.’
उन्होंने कहा, ‘एयरलाइंस नहीं चाहती कि ऐसे ‘मुश्किल’ यात्रियों के बहुत सारे मामले सार्वजनिक रूप से ज्ञात हों क्योंकि यह भी संभव है कि कुछ लोग इसे एयरलाइन में दी जा रही सेवा की गुणवत्ता के ख़राब होने के रूप में ले सकते हैं, जो यात्रियों और चालक दल के बीच अधिक झगड़े का कारण बन रही हो. इसलिए, किसी यात्री के बारे में सूचना देना और उसे नो-फ्लाई लिस्ट में डाल देना आमतौर पर एक अंतिम स्तर की कार्रवाई होती है.’
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क्या कहती है डीजीसीए की गाइडलाइंस
डीजीसीए ने ‘बेकाबू हो चुके या हुड़दंगी यात्रियों से निपटने’ के लिए अपने गाइडलाइंस (दिशानिर्देश) उस घटना के दो महीने बाद प्रकाशित किये थे, जब तत्कालीन शिवसेना सांसद रवींद्र गायकवाड़ का एयर इंडिया के एक कर्मचारी के साथ विवाद हुआ था और जिसके दौरान सांसद ने कथित रूप से उसके साथ दुर्व्यवहार किया था और साथ ही उस पर शारीरिक हमला भी किया था.
इस घटना के बाद एयर इंडिया के साथ-साथ अन्य एयरलाइंस ने उन्हें उड़ान भरने से रोक दिया था. लेकिन, चूंकि उस समक तक कोई आधिकारिक ‘नो फ्लाई’ गाइडलाइंस नहीं थे, अतः केंद्र सरकार को एयरलाइंस के फैसले की वैधता का अध्ययन करने और नियमों के एक सेट के साथ सामने आने के लिए मजबूर होना पड़ा.
डीजीसीए के दिशानिर्देश कहते हैं, ‘हालांकि, ऐसे अनियंत्रित यात्री यात्रियों के समग्र समहू के केवल एक छोटे से अनुपात का प्रतिनिधित्व करते हैं, मगर हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि एक भी आक्रामक यात्री पुरे उड़ान की सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है. ऐसे बेकाबू यात्री उड़ान संचालन से जुड़ी प्रक्रिया में शामिल सभी कर्मियों को प्रभावित करते हैं.’
इन दिशा-निर्देशों के अनुसार, सभी एयरलाइनों के पास ऐसे अनियंत्रित यात्रियों से निपटने के तरीके और इसमें ग्राउंड स्टाफ, क्रू मेंबर्स, एयरलाइन एयरपोर्ट मैनेजर, एयरलाइन सेंट्रल ऑपरेशन कंट्रोल आदि की भूमिका को स्पष्ट करने के लिए एक मैनुअल (निर्देश पुस्तिका) होने की आवश्यकता होती है.
दिशानिर्देश कहते हैं, यात्रियों का यह अनियंत्रित व्यवहार ‘असंतोषजनक सेवा/स्थिति या इस तरह की घटनाओं की एक श्रृंखला के प्रभाव का परिणाम हो सकता है.’ चालक दल के सदस्यों को इसके शुरुआती संकेतों की पहचान करने और ऐसे यात्रियों से निपटने की जरूरत है, न कि स्थितियों को बिगड़ने देने की. किस चीज को ऐसा अपराध माना जा सकता है, इस बात को हवाई अड्डा टर्मिनल के प्रमुख स्थानों पर यात्रियों की सुविधा के लिए स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किये जाने की आवश्यकता होती है.
डीजीसीए के दिशा निर्देश ‘अनियंत्रित व्यवहार’ को तीन स्तरों में वर्गीकृत करते हैं. लेवल 1 शारीरिक इशारों, मौखिक उत्पीड़न और बेकाबू रूप से शराब के सेवन के कारण होने वाले ‘हुड़दंगी व्यवहार’ को संदर्भित करता है, जिस स्थिति में कोई भी एयरलाइन यात्री को तीन महीने तक उड़ान भरने से रोक सकती है.
लेवल 2 में शारीरिक रूप से अपमानजनक व्यवहार के मामले शामिल हैं, जैसे- धक्का देना, लात मारना, किसी चीज को फेंक कर मारना, अनुचित रूप से स्पर्श करना आदि. ऐसे मामलों में संबंधित यात्री को छह महीने तक नो-फ्लाई लिस्ट में रखा जा सकता है.
लेवल 3, जानलेवा व्यवहार जैसे हत्या के प्रयास, विमान के ऑपरेटिंग सिस्टम को नुकसान आदि के मामले में लागू होता है. लेवल 3 के अपराध के मामले में, एयरलाइन किसी भी यात्री को कम-से-कम दो साल या बिना किसी समय सीमा वाली बाध्यता के साथ उससे अधिक की अवधि के लिए उड़ान भरने से रोक सकती है.
एयरलाइन को डीजीसीए को अपनी ‘नो फ्लाई लिस्ट’ के बारे में बताने की जरूरत होती है.
कथित रूप से ऐसे ‘अनियंत्रित व्यवहार’ वाली घटनाओं की जांच पड़ताल के लिए प्रत्येक एयरलाइन को एक आंतरिक समिति बनाने की आवश्यकता होती है. इस समिति में एक सेवानिवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, किसी अन्य एयरलाइन का एक प्रतिनिधि और किसी यात्री या उपभोक्ता संघ का एक प्रतिनिधि शामिल होता है. यही समिति तय करती है कि कोई भी अपराध किस स्तर (लेवल) के तहत आता है और क्या यात्री को उड़ान भरने से रोका जाना चाहिए अथवा नहीं.
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‘अक्सर पशोपेश वाली स्थिति में होते हैं पायलट‘
इस दिशानिर्देशों के अनुसार, पायलट-इन-कमांड को जल्दी से इस बात का आकलन करना होता है कि क्या केबिन क्रू ‘बेकाबू हो चुके’ यात्री को नियंत्रित कर सकता है या नहीं, और फिर इसी के अनुसार वह इस सूचना को एयरलाइन के केंद्रीय नियंत्रण को आगे बढ़ा सकता है.
पांच दशकों से अधिक के उड़ान अनुभव वाले एक सेवानिवृत्त पायलट ने दिप्रिंट को बताया, ‘ये दिशा निर्देश पायलट-इन-कमांड पर बहुत सारी ज़िम्मेदारी डालते हैं और अक्सर पायलट खुद को पशोपेश वाली स्थिति में पाता है.’
उन्होंने कहा, ‘किसी घटना को रिपोर्ट करने (उसकी सूचना देने) से अक्सर पायलट को इस बात के लिए आलोचना का सामना करना पड़ता है कि उन्होंने इसे अपने स्तर पर इसे हल करने की कोशिश क्यों नहीं की. क्योंकि किसी घटना को रिपोर्ट करने का मतलब इसके ऊपर प्रेस का ध्यान जाना भी है, इसलिए पायलट अक्सर इस बारे में सोचते रहते हैं कि क्या वे इसे अपने स्तर पर सुलझा सकते हैं.’
साल 2016 के ब्रसेल्स आतंकी हमले का चेहरा बनी जेट एयरवेज के केबिन क्रू की पूर्व वरिष्ठ सदस्य निधि चापेकर ने दिप्रिंट को बताया कि चालक दल के सदस्य आमतौर पर ऐसी किसी भी अनियंत्रित व्यवहार को चार-चरणों वाले दृष्टिकोण के साथ संभालने की कोशिश करते हैं.
वे कहती हैं, ‘सबसे पहले, आप एक नरम रवैया अपनाते हैं. अगर वह काम नहीं करता है तो यात्री के साथ ‘जुबानी कुश्ती’ होती है. आपको अपने शब्दों से खेलना होता है. फिर एक आधिकारिक रूप से सख्त रवैया अपनाने और विपरीत परिणामों की चेतावनी दिए जाने की बात आती है. अंतिम चरण यह है कि आप कार्रवाई करें. लेकिन इन सबके लिए दूसरे यात्रियों की गवाही होना बहुत जरूरी है.‘
उन्होंने कहा कि सबसे पहले वरिष्ठ स्तर का केबिन क्रू हालात को संभालने की कोशिश करता है, जिसके बाद यह मामला कैप्टेन के पास जाता है, लेकिन ऐसी हर घटना के बारे में कैप्टन को सूचित करना अहम होता है.
चापेकर ने कहा कि ऐसे मामलों में पुलिस के पास की गई शिकायतें कम होती हैं क्योंकि इसकी प्रक्रिया काफी लंबी होती है जिसमें पांच से छह घंटे का समय शामिल होता है, और इस दौरान एयरलाइन के सुरक्षा दल के सदस्य, यात्री, संबंधित चालक दल के सदस्यों – और यदि संभव हो तो गवाहों को भी – सभी को उपस्थित रहने की आवश्यकता होती है. उन्होंने कहा, ‘आप नहीं जानते कि यात्री की पृष्ठभूमि क्या है, और यह एयरलाइन के लिए ‘बैड प्रेस’ का कारण बन सकती है.’ साथ ही, उनका कहना था कि युवा केबिन क्रू सदस्य इस डर से कार्रवाई करने के बारे में विशेष रूप से सतर्क रहते हैं कि सारा मामला उनके ऊपर उल्टा पड़ सकता है.
अपना नाम न बताने की शर्त पर एक अन्य वरिष्ठ स्टीवर्ड ने कहा कि एयरलाइंस को इस बात का भी डर होता है कि यात्री एयरलाइंस की सेवाओं की आलोचना करते हुए उसके खिलाफ एक जवाबी शिकायत दर्ज करा सकते हैं. उन्होंने कहा, ‘वे कह सकते हैं कि उन्हें खाना नहीं दिया गया, केबिन क्रू ने उनके साथ बदतमीजी की, एसी ठीक से काम नहीं कर रहा था, आदि-आदि.’
उन्होंने कहा, ‘इसलिए, ज्यादातर समय, ऐसे मामलों को या तो दबा दिया जाता है या चालक दल के सदस्य यात्री के साथ किसी तरह के सुलह-समझौते तक पहुंच जाते हैं.’
(अनुवाद: राम लाल खन्ना | संपादन: ऋषभ राज)
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