नई दिल्ली: झांसी में पुलिस एनकाउंटर में बेटे असद के मारे जाने के दो दिन बाद उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में गैंगस्टर-राजनेता अतीक अहमद की हत्या ने पुलिस और अपराधियों को फिर से सुर्खियों का केंद्र बना दिया है. जब आपराधिक न्याय प्रणाली के पहिए धीमी रफ्तार से घूमते हैं तो आक्रामक पुलिस वाले अक्सर आदर्श बन जाते हैं. ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलेपमेंट की पूर्व डायरेक्ट जनरल, रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी मीरान चड्ढा बोरवंकर का कहना है कि आक्रामक पुलिसवाले इस देश में लोगों के लिए ‘जुगाड़’ हैं.
फिल्में उनकी हिंसक विरासत का महिमामंडन करती हैं. लोग उनकी ‘ठोक दो’ नीति को आदर्श मानते हैं और अपराधी उनसे डरते हैं.
उन्होंने कहा, “आप उन्हें पसंद करते हैं. नागरिक, राजनेता, मीडिया और जमीन हड़पने वाले उन्हें पसंद करते हैं. आपको उनपर बनीं फिल्में पसंद हैं.” यह आक्रामकता पुलिस मुठभेड़, हिरासत में मौत और थर्ड-डिग्री यातना समेत कई चाजों में होती है.
बोरवंकर ने बुधवार को दिल्ली के प्रेस क्लब में ‘टैकलिंग रॉग कॉप्स’ शीर्षक से एक वार्ता में कहा, “वे आपराधिक न्याय के लिए खतरा हैं.”
इसके बावजूद लोग ऐसे पुलिस कर्मियों के कार्यों को सही ठहराते हैं और आक्रामकता को बहादुरी के साथ जोड़कर देखते हैं क्योंकि वे एक सीधे समाधान करते हैं. वे प्रतिशोध के वादे को निभाते हैं.
बोरवंकर ने कहा, “अपराध और उसके ट्रायल और फैसले के बीच एक बड़ी खाई है. इसे खत्म करने के लिए लोगों ने आक्रामक पुलिस वालों को अपना जुगाड़ समझ लिया है.”
रिटायर शीर्ष पुलिस वाले समाज, मीडिया और नेताओं को जिम्मेदार ठहराते हैं कि उन्हें क्यों पूजा जाता है.
महाराष्ट्र में पहली महिला जिला पुलिस प्रमुख और ‘सिंघम’ के नाम से लोकप्रिय बोरवंकर ने चर्चा की कि जब न्याय के रक्षक भारत के संविधान के खिलाफ काम करते हैं तो यह समस्याग्रस्त क्यों है.
रानी मुखर्जी अभिनीत 2014 की बॉलीवुड हिट मर्दानी बोरवंकर से प्रेरित थी. इस काल्पनिक थ्रिलर फिल्म में, शिवानी शिवाजी रॉय (मुखर्जी), मुंबई पुलिस अपराध शाखा की एक वरिष्ठ निरीक्षक होती हैं और एक बाल तस्करी गिरोह को खत्म करने का अपना मिशन बनाती हैं. सख्त लेहज़े में बात करने वाली लेकिन सहानुभूति रखने वाली पुलिस ऑफिसर दर्शकों और आलोचकों के बीच समान रूप से हिट थी.
एक पुलिस वाले को नागरिकों का दिल जीतने के लिए बदमाश बनने की जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा, “कुछ अधिकारियों ने मुझे बताया कि वे इस तरह के पुलिस [अधिकारियों] के व्यवहार से खुश नहीं हैं.”
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‘राजनेताओं की दखलअंदाजी खत्म हो’
पूर्व शीर्ष पुलिस अधिकारी पुलिस के काम में कथित राजनीतिक दखलअंदाजी पर टिप्पणी करने से भी पीछे नहीं हटीं. राजनेताओं द्वारा कानून प्रवर्तन एजेंसियों के दुरुपयोग का खतरा हमेशा बना रहता है.
उन्होंने कहा कि काउंटर इंटेलिजेंस का इस्तेमाल राजनीतिक खुफिया के रूप में किया जा रहा है और पुलिस विभाग में राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण बदमाश पुलिस वालों की संख्या भी बढ़ी है.
“राजनेताओं को बेअसर करना बहुत जरूरी है. कई अधिकारियों का कहना है कि जहां भी प्रभावशाली व्यक्ति जांच में शामिल होते हैं, वहां बहुत राजनीतिक दबाव होता है.’
अतीक के खिलाफ आपराधिक मामलों की लंबी फेहरिस्त थी. छोटा राजन और दाऊद इब्राहिम जैसे गैंगस्टरों के खिलाफ कई मामले दर्ज हैं. उन्हें किसने आश्रय दिया? उन्हें रोका क्यों नहीं गया? उन्होंने राजनेताओं पर हस्तक्षेप का आरोप लगाया.
बोरवंकर ने अतीक की हत्या की निंदा की, जिसकी पुलिस हिरासत में उसके भाई अशरफ के साथ गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. यह कैमरे में कैद हो गया था और कुछ लोगों न हत्या पर खुशी जाहिर की.
बोरवंकर ने बहुत सावधानी से बोलते हुए कहा, “सैद्धांतिक रूप से, मैं कहूंगा एक ऐसे व्यक्ति का शूटआउट जिसके खिलाफ केवल एक मामला है, मैं इसके पक्ष में नहीं हूं. लेकिन अगर वह मेरी जिंदगी को खतरा है, तो मुझे पूरा अधिकार है. मैं मालूम नहीं है कि वास्तव में वहां क्या हुआ था.” उन्होंने आगे कहा, “मानवाधिकार आयोग के अनुसार, सभी मुठभेड़ों की मजिस्ट्रेट द्वारा जांच की जानी चाहिए. अगर मजिस्ट्रेट जांच पर्याप्त नहीं है, तो न्यायिक जांच की मांग होनी चाहिए.”
उत्तर प्रदेश स्पेशल टास्क फोर्स द्वारा मुठभेड़ में उनके बेटे असद की मौत ने भी सवाल खड़े कर दिए हैं.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के फरवरी के बयान, जहां उन्होंने कहा कि वह “इन माफियाओं को मिट्टी में मिला देंगे”, ने मीडिया में काफी सुर्खियां बटोरीं. हालांकि बोरवंकर इसे गलत नहीं मानते और इसके पीछे का लॉजिक भी देती हैं.
उन्होंने कहा, “इस बयान में कुछ भी गलत नहीं है कि ‘मैं माफिया को मिट्टी में मिला दूंगा’, जब तक कि यह संविधान और कानून के जरिए किया जाता है.”
बोरवंकर के पास आक्रमाक पुलिस वालों की समस्या से निपटने का एक समाधान है. उनका मानना है कि इसके लिए आर्म्स ड्रिल और परेड ही काफी नहीं हैं. पुलिस को प्रशिक्षण देते समय संविधान और मानवाधिकारों का पूरा ज्ञान शामिल किया जाना चाहिए, और अधिक महिलाओं को पुलिस बल में भर्ती किया जाना चाहिए.
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