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Saturday, 16 November, 2024
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मणिपुर की ताजा हिंसा के बाद बिष्णुपुर की महिलाओं ने सुरक्षा बलों का रास्ता रोका, बोलीं- मूक दर्शक है RAF

लाठी और गुलेल से लैस, सैकड़ों महिलाएं बिष्णुपुर जिले में अपने गांवों की रखवाली कर रही हैं. इससे पहले दिन में, हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी, जिसमें कुकी, मेइती के घरों में आग लगा दी गई थी.

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बिष्णुपुर: मणिपुर के बिष्णुपुर जिले के क्वाक्टा क्षेत्र में मैतेई गांवों की सैकड़ों महिलाओं ने बुधवार को केंद्रीय सशस्त्र बलों की गांवों में एंट्री को रोक दिया. जहां सुबह भड़की हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई और एक अन्य घायल हो गया.

लाठी और गुलेल से लैस, महिलाएं, पारंपरिक पोशाक पहने और तख्तियां लिए हुए, वर्दी में पुरुषों पर चिल्लाईं, उनसे वापस जाने को भी कहा .

एक रैपिड एक्शन फोर्स (आरएएफ) का कर्मी जो महिलाओं से बातचीत करने की कोशिश कर रहा था ने कहा, “हम चले जाएंगे, फिर क्या होगा? क्या चीजें वापस सामान्य हो जाएंगी?”

इसपर एक महिला ने कहा, “आपने हमारा भरोसा तोड़ा. हमने आपको अपनी सुरक्षा के लिए गांवों में अंदर जाने दिया था, ”जिस पर जवान ने जवाब दिया:“ हमें एक और मौका दें. हम आपके लिए ही आए हैं.”

लेकिन महिलाएं टस से मस नहीं हुईं. जैसे ही बूंदाबांदी शुरू हुई, उन्होंने अपने छाते खोल लिए और किसी भी वाहन को गुजरने नहीं देने का संकल्प लेकर सड़क पर बैठ गईं.

Women blocking main road connecting Imphal to Bishnupur & Churachandpur | Suraj Singh Bisht | ThePrint
इंफाल को बिष्णुपुर और चुराचांदपुर से जोड़ने वाली मुख्य सड़क को महिलाओं ने जाम कर दिया/सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

आखिरकार सुरक्षाबलों को वापस लौटना पड़ा.

केंद्रीय सुरक्षा बलों के खिलाफ यह आक्रोश उसी दिन पहले सुबह हुई हिंसा का नतीजा था, जिसमें क्वाक्टा क्षेत्र में मैतेई और कुकी दोनों समुदायों के छोड़े गए घरों को आग के हवाले कर दिया गया था. बुधवार की घटना के बाद बिष्णुपुर, इंफाल पूर्व और इंफाल पश्चिम में सुबह 5 बजे से शाम 4 बजे के बीच कर्फ्यू में ढील रद्द कर दी गई.

Women at site of blockade | Suraj Singh Bisht | ThePrint
महिलाओं ने सुरक्षाबलों का रास्ता रोक दिया और गांव में उन्हें एंट्री नहीं दी/ सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र, कोआक्ता में अभी भी मैतेई और कुकी गांवों के छोटे हिस्से हैं. कोआक्ता टोरबंग के करीब स्थित है, जो इस महीने की शुरुआत में पहली बार पहाड़ी और घाटी के लोगों के बीच तनाव के बाद से हिंसा का केंद्र रहा है.

RAF personnel at site of blockade | Suraj Singh Bisht | ThePrint
महिलाओं द्वारा रास्ता रोके जाने के बाद आरएएफ के जवान इंतजार करते हुए/सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

ग्रामीणों और स्थानीय प्रशासन के सूत्रों के अनुसार, ट्रोंगलाओबी गांव में मैतेई लोगों के छोड़े गए कुछ घरों को जलाने से तनाव बढ़ गया. इसके तुरंत बाद, पास के तुइसेनफाई गांव में कुकी घरों को भी आग लगा दी गई.

मृतक की पहचान चुराचंदपुर निवासी 40 वर्षीय तोजम चंद्रमणि के रूप में हुई है, जो त्रोंग्लोबी और तुइसेनफाई दोनों के पास स्थित मोइरांग के एक राहत शिविर में रह रहे थे. क्षेत्र में हिंसा की खबर फैलते ही वह कुछ अन्य लोगों के साथ बाहर निकल गए थे, जब उन्हें पता नहीं कहां से आकर एक गोली लगी. उसी कैंप में रहने वाला एक अन्य व्यक्ति घायल हो गया.

चंद्रमणि को इंफाल के एक निजी अस्पताल में ले जाया गया, जहां उनका निधन हो गया. उनके शरीर को बाद में इंफाल के क्षेत्रीय चिकित्सा विज्ञान संस्थान (रिम्स) में स्थानांतरित कर दिया गया था.

इस बीच, एक प्रेस ब्रीफिंग में, राज्य सरकार के सुरक्षा सलाहकार कुलदीप सिंह ने कहा, “करीब आधी रात को, कुछ हथियारबंद बदमाश पहाड़ी की तरफ से मोलनगेट तलहटी (ट्रोंगलाओबी) की ओर आए और लगभग तीन घरों को जला दिया. इसके बाद, प्रतिद्वंद्वी समुदायों के कई घरों को जला दिया गया या फिर क्षतिग्रस्त कर दिया गया. पहले हुई हिंसा में ये लोग अपने घरों को छोड़ गए थे या फिर वह पहले से ही क्षतिग्रस्त हो गए थे या आंशिक रूप से जला दिए गए थे.

उन्होंने कहा कि चंद्रमणि को थमनपोकपी तलहटी में सुबह करीब 9.30 बजे “पहाड़ी की तरफ से संदिग्ध सशस्त्र आतंकवादियों” द्वारा गोली मार दी गई थी.

सिंह ने कहा, “बड़ी संख्या में ग्रामीण बाहर आए और मोइरांग लमखाई में एकत्र हुए और सुरक्षा बलों के सभी वाहनों को रोकने की कोशिश की. बड़ी संख्या में लोगों ने कानून व्यवस्था की स्थिति भी पैदा कर दी. आरएएफ और अन्य बलों की दो अतिरिक्त कंपनियां मौके पर पहुंचीं और स्थिति को नियंत्रित किया.”

हालांकि सेना, असम राइफल्स, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) और राज्य पुलिस के जवान बिष्णुपुर के घाटी जिले में तैनात हैं, सुबह की झड़पों के बाद और भेजे गए.

हालांकि, उनके प्रवेश को रोकने वाली मैइती महिलाओं ने दावा किया कि जब भी हिंसा भड़कती है तो सुरक्षा बल “मूक दर्शक” बन जाते हैं.

थिनुंगेई गांव की इरोम नमिता देवी ने कहा,“आज तक हमने सेना को हमारे गांवों में इस उम्मीद में आने दिया कि वे हमारी रक्षा करेंगे. 20 दिन से ज्यादा हो गए हैं. लेकिन वे हमारे लिए यहां नहीं आए हैं. अब, हम उन्हें नहीं चाहते. वे नागरिकों की रक्षा क्यों नहीं कर रहे हैं?”

जब से मणिपुर में पहली बार हिंसा भड़की है, समूहों में पुरुष चुराचंदपुर तक अपने-अपने गांवों के प्रवेश बिंदुओं की रखवाली कर रहे हैं, जहां सबसे ज्यादा तबाही हुई है. लेकिन बुधवार की झड़पों में महिलाएं पहली बार इतनी बड़ी तादाद में सड़क पर उतरीं. महिलाओं ने कहा, पुरुष रात को जागते हैं और नजर बनाए रखते हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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