नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी (आप) के वरिष्ठ नेता संजय सिंह की गिरफ्तारी के छह महीने बाद, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली आबकारी नीति मामले में उन्हें जमानत दे दी.
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी. वराले की पीठ ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के यह कहने के बाद कि अब उनकी हिरासत की आवश्यकता नहीं है, उन्हें जमानत दे दी.
सिंह को इस मामले में पिछले साल अक्टूबर में ईडी ने गिरफ्तार किया था और अब तक वह न्यायिक हिरासत में थे. पिछले साल दिसंबर में ट्रायल कोर्ट और फरवरी में दिल्ली हाई कोर्ट ने उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी, जिसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
लंच ब्रेक से पहले शीर्ष अदालत ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू से निर्देश मांगा कि क्या ईडी को अब भी सिंह की हिरासत की जरूरत है. इसने राजू को यह भी याद दिलाया कि यदि अदालत योग्यता के आधार पर कोई आदेश पारित करती है तो इसके क्या मायने होंगे.
धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 की धारा 45 में जमानत देने के लिए दो पूर्व शर्तें हैं – प्रथम दृष्टया इस बात की संतुष्टि होनी चाहिए कि आरोपी ने अपराध नहीं किया है और जमानत पर रहते हुए उसके कोई अपराध करने की संभावना नहीं है. सरकारी वकील को जमानत अर्जी का विरोध करने का अवसर दिया जाना चाहिए.
बार एंड बेंच के मुताबिक कोर्ट ने कहा, “श्री राजू कृपया ध्यान रखें कि हमें धारा 45 के अनुसार याचिकाकर्ता के पक्ष में निरीक्षण करना होगा; कृपया परीक्षण के दौरान इसके निहितार्थ को समझें. इसलिए निर्देश प्राप्त करें कि क्या आपको आगे की हिरासत की आवश्यकता है,”
‘न्याय का उपहास’
ईडी ने सिंह के आधिकारिक आवास पर व्यवसायी दिनेश अरोड़ा द्वारा 2 करोड़ रुपये के भुगतान किए जाने का आरोप लगाया है. अरोड़ा बाद में मामले में सरकारी गवाह बन गये और सिंह को उनके आरोपों के आधार पर गिरफ्तार कर लिया गया.
फरवरी में जमानत देने से इनकार करते हुए, उच्च न्यायालय ने कहा था, “इस प्रकार, प्रथम दृष्टया, यह स्पष्ट है कि वर्तमान आवेदक (संजय सिंह) पुरानी आबकारी नीति की तैयारी का हिस्सा थे और उसके बाद, नई एक्साइज पॉलिसी को को इस तरह से बनाया गया कि वह सह-अभियुक्तों को लाभ पहुंचा सके. इसके एवज़ में होने वाले लाभ का कुछ हिस्सा वर्तमान आवेदक और अन्य सह-अभियुक्तों को रिश्वत के रूप में देनी थी.”
मंगलवार को सुनवाई के दौरान, वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने अदालत को बताया कि सिंह का नाम शुरू में मामले में नहीं था, और उनका नाम एक सरकारी गवाह के बयान पर जोड़ा गया था. उन्होंने बताया कि ईडी की “अनापत्ति या नो-ऑब्जेक्शन” के बाद अरोड़ा को मामले में जमानत दे दी गई थी, जिसका फायदा उन्हें सरकारी गवाह बनने के लिए राजी करने के लिए उठाया गया था.
सिंघवी ने इस तथ्य पर भी आपत्ति जताई कि अरोड़ा द्वारा दिए गए कुछ दोषमुक्ति (किसी से दोष हटाने से संबंधित) बयानों को “अविश्वसनीय दस्तावेजों” में रखा गया था, जिन तक सिंह की पहुंच नहीं हो सकती है.
उन्होंने कहा, “दिनेश अरोड़ा को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया, जिसके बाद उन्होंने पहली बार आरोप लगाए. इसके अलावा, अविश्वसनीय दस्तावेज़ हैं, जो न्याय का एक और उपहास उड़ाने जैसा है.”
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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