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Thursday, 14 November, 2024
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गंगा सफाई की मुहिम के साथ लौटे 134 दिनों से गायब संत गोपालदास

वापस लौटे गोपालदास ने कहा है कि समय आने पर वे विश्व में जगह-जगह जाकर गंगा के मुद्दे से लोगों को जोड़ेंगे और समर्थन के लिए अपील करेंगे.

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नई दिल्ली: दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) से अचानक गायब हुए संत गोपालदास 134 दिन बाद वापस आ गए हैं और वे एक बार फिर गंगा को अविरल और निर्मल बनाने की मांग पर जुट गए हैं. देश में इस समय लोकसभा चुनाव चल रहे हैं. गंगा की सफाई सरकार का अहम मुद्दा रहा है. इसके नाम पर सरकार ने वोट मांगे थे लेकिन पांच साल बीत जाने की बाद भी गंगा की स्थिति में कोई सुधार नहीं आया. चार चरण के चुनाव बीत जाने के बाद गंगा की अविरल और निर्मल धारा को लेकर अनशन पर बैठे संत गोपालदास का अचानक से लौटना सवाल खड़ा करता है. दिप्रिंट ने संत गोपालदास से उनके अचानक गायब होने, फिर बीच चुनाव वापस लौटने और उनकी आगे की योजनाओं पर बात की.

बता दें कि संत गोपालदास को बिगड़ती तबीयत को देखते हुए उन्हें 10 नवंबर 2018 को दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती कराया गया था. वे एम्स के आईसीयू वार्ड में वेंटिलेटर पर जिंदगी मौत से संघर्ष कर ही रहे थे कि 5 दिसंबर को उनके लापता होने की सूचना मिलती है. दिप्रिंट हिंदी में छपे एक लेख के अनुसार एम्स में उनके गायब होने की सूचना पर पहले तो अनभिज्ञता जाहिर की लेकिन बढ़ते राजनीतिक दबाव के कारण एम्स निदेशक रणदीप गुलेरिया ने सामने आकर स्पष्टीकरण दिया. उन्होंने कहा कि गोपालदास पूरी तरह स्वस्थ थे और उनको इच्छानुसार छुट्टी दी गई है. उसके बाद क्या हुआ इस पर कई कयास लगाए गए. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एम्स दिल्ली से उनके अचानक लापता होने पर ट्वीट भी किया था.

लेकिन 134 दिनों बाद संत गोपाल दास अचानक से वापस लौट आए हैं. इस दौरान वे कहां रहे और उन्हें अचानक से कहां ले जाया गया. इस पर वह बताते हैं, ‘मैं एम्स दिल्ली के आईसीयू में एडमिट था. 5 दिसंबर 2018 की रात कुछ लोग आए और बोले कि मुझे कहीं और शिफ्ट करना है. मुझे एम्स के डॉक्टर उठाकर ले गए. वहां की आठवीं मंजिल से मुझे डी-2 में शिफ्ट कर दिया गया. उनके साथ डायरेक्टर ऑफिस की एक महिला भी थीं, उनका नाम मैं भूल रहा हूं टाइटल उनका जैन है. उनके साथ 20-30 लोग थे और एक प्राइवेट गाड़ी में मुझे रोल करके फेंका गया. वो पुलिस के टच में थे. मैंने उनसे बोला कि आप अपने नाम के आगे जैन लगाती हैं और जैन लोग तो भले लोग होते हैं. लेकिन उन्होंने मेरी कोई बात नहीं सुनी. वे गाड़ी की डिग्गी में डालकर मुझे ले गए. मेरे साथ अभद्र व्यवहार किया गया. गाड़ी आगे बढ़े इसके लिए रास्ता साफ किया गया. इसमें प्रशासनिक मिलीभगत थी. वो लोग गुंडे थे. सामान्य लोग नहीं थे.’

‘मेरी नाक से बराबर ब्लीडिंग हो रही थी. लेकिन उन्हें फर्क नहीं पड़ा. गंगनगर के रास्ते वे मुझे देहरादून ले गए. मुझे सुनसान जगह ले जाकर छोड़ दिया. फिर मैं एक दुकान तक गया. वहां मैंने 100 नंबर पर फोन किया. लेकिन पुलिस ने आने में असमर्थता दिखाई. फिर कुछ साथियों ने मुझे देहरादून के मैक्स अस्पताल में भर्ती करा दिया. वहां भी पहले मुझे एडमिट करने से मना कर दिया गया. जिसके बाद मेरे साथियों ने मुझे दून अस्पताल में एडमिट कराया. एक अस्पताल के एक कोने में डंप करा दिया गया. वहां मैं लावारिस के तौर पर एडमिट था. चूंकि मैंने एम्स का कपड़ा पहन रखा था इसलिए उन लोगों को धीरे-धीरे समझ आ गया था कि मैं कौन हूं. फिर अचानक से लोग हरकत में आए. मेरा अनशन तोड़ने के लिए मुझे दूध पिलाने की भी कोशिश की गई. लेकिन मैंने मना कर दिया. फिर उन्होंने मेरे हाल पर मुझे छोड़ दिया. मुझे लगा कि अब मेरे पर ध्यान नहीं दिया जा रहा था तो मैं वहां से निकल गया. मेरा अनशन टूट चुका था. मैं अपने आप को ठीक करने में लग गया.’


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इस दौरान आप कहां थे?

‘कुछ दिनों तक देहरादून में रहने के बाद मैं चुपचाप दक्षिण भारत की तरफ निकल गया. वहां गंगा से जुड़े मुद्दे को लेकर कुछ लोगों से बातचीत की. मेरा स्वास्थ चाहे जैसा भी हो, मैं किसी भी स्थिति परिस्थिति में हूं, हर समय मेरे खयाल में मां गंगा की सफाई का ही मुद्दा रहता है.’

सत्ताधारी पार्टी भाजपा ने पिछले लोकसभा चुनाव में गंगा को साफ करने के नाम पर वोट मांगा था लेकिन अब पांच साल बीत जाने के बाद देश की धरोहर और राष्ट्रीय नदी की दशा और दिशा में कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ है. इस समय देश में आम चुनाव चल रहे हैं और गंगा फिर से एक अहम मुद्दा है. लेकिन गंगा को लेकर लंबे समय से अनशन कर रहे गोपालदास लगभग आधा चुनाव बीत जाने के बाद वापस आए हैं.

ऐसे में अभी अचानक से आने की क्या वजह रही होगी?

इस पर वे कहते हैं, ‘मैं देश में हो रहे चुनाव के कारण सामने नहीं आया हूं. चुनाव में तो इनकी (सरकार) पूरी मशीनरी लगी है. पूरा प्रचार तंत्र लगा है. 112 दिनों से अनशन पर बैठे जीडी अग्रवाल जी की अचानक हुई मौत के बाद लोगों को ये समझ आ जाना चाहिए कि वर्तमान सरकार गंगा को लेकर कितनी सजग है.’

कौन हैं संत गोपाल दास

स्वच्छ गंगा की मांग कर रहे संत गोपाल दास हरियाणा के पानीपत जिले के राजाखेड़ी गांव के रहने वाले हैं. 28 साल की उम्र में इन्होंने अपना घर छोड़ दिया था. इसके बाद जंगलों में जाकर साधना शुरू की और पिछले कई सालों से हरियाणा में गाय के मुद्दे से लेकर गंगा सफाई का मुद्दा उठाते रहे हैं. अपने अनशन प्रदर्शन से सरकार को झकझोर देने वाले गोपालदास अब तक 28 बार जेल जा चुके हैं. कई-कई दिनों तक लगातर अनशन करने के कारण इनको 50 से भी ज्यादा बार इलाज के लिए अस्पताल भेजा जा चुका है. इन्होंने हरियाणा में गोचर भूमि विकास बोर्ड की गठन की मांग को लेकर आंदोलन किया था जिसने वहां सत्ता परिवर्तन कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

प्रकृति के संरक्षण को लेकर बहुत ही संजीदे गोपालदास कुछ साल पहले स्वामी सानंद यानी जीडी अग्रवाल के संपर्क में आए और गंगा को बचाने की मुहिम में उनके साथ जुड़े. वे पिछले 24 जून से अनशन पर बैठे थे जिसके बाद उनकी हालत को देखते हुए उन्हें एम्स ऋषिकेश भर्ती कराया गया था. वहां से उन्हें पीजीआई चंडीगढ़ भेजा गया लेकिन उनकी हालत में कोई सुधार होता न देख उन्हें एम्स दिल्ली रेफर कर दिया गया.

राष्ट्रीय नदी गंगा का आंदोलन राष्ट्रव्यापी नहीं 

गंगा को बचाने के अभियान को लेकर देशभर में खासकर उत्तर भारत में तरह-तरह से लोग सक्रिय हैं. चाहे वो देहरादून स्थित मातृसदन हो या फिर गंगा बचाने के नाम पर चल रहे विभिन्न संगठन. पिछले 180 दिनों से मातृसदन में ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद भी गंगा बचाने को लेकर अनशन पर बैठे हैं. लेकिन सब एक मंच पर एक साथ आते दिखाई नहीं रहे. वहीं इस साल फरवरी में पर्यावरणविद मेधा पाटेकर और संदीप पांडे के नेतृत्व और वाटरमैन राजेंद्र सिंह के मार्गदर्शन में जंतर-मंतर पर गंगा बचाने के लिए एक मार्च निकाला गया था. लेकिन उसमें भी पत्रकारों और आदोंलनकारियों को छोड़ दें तो बहुत कम संख्या में आमजन थे. ऐसे में सवाल उठता है कि ये आंदोलन राष्ट्रव्यापी क्यों नहीं बन पा रहा.

संत गोपाल कहते हैं, ‘कहीं न कहीं लोगों में चेतना की कमी और सरकार की तानाशाही है जो किसी आंदोलन को मुखर नहीं होने दे रही. सरकार अपना पूरा जोर लगा रही है कि गंगा के साथ जो भी दोहन सरकार के इशारे पर हो रहा है उस पर सवाल उठाने वालों और उस पर किसी तरह का विरोध करने वालों को किस तरह से शांत किया जाए. लेकिन हम सबका मकसद एक ही है. मां गंगा को बचाना.’

मुख्य मांगें क्या हैं

संतगोपाल दास ने अनशन को लेकर अपनी मांगों के बारे में बताया कि सबसे प्रमुख है कि गंगा एक्शन प्लान लागू किया जाए. गंगा पर निर्माणधीन बांध पर तुरंत रोक लगाई जाए. इसके अलावा हिमालय को इकोसेंसेटिव जोन घोषित किया जाए. उस पर हो रहे किसी भी तरह के डिस्ट्रक्शन के कार्य को रोका जाना चाहिए.

दोनों सरकारों में कितना अंतर

संत गोपालदास पिछले कई वर्षों से विभिन्न मुद्दे पर अनशन कर रहें हैं. उन्होंने कांग्रेस की सरकार के समय भी आंंदोलन किया था और वर्तमान सरकार से भी लोहा ले रहे हैं. ऐसे में दोनों सरकार के मुद्दों को डील करने के तरीकों पर वे कहते हैं, ‘कांग्रेस के समय कम से कम हमारी बात सुनी तो जाती थी. सरकार मध्यस्ता के लिए अपने नुमाइंदों को भेजती थी लेकिन भाजपा सरकार तो हमारी बातों को सुनती ही नहीं है. बल्कि वो हमेशा हमारे आंदोलनों को कुचलने के प्रयास में लगी रहती है.’

आगे की रणनीति क्या होगी

आईआईटी कानपुर के पूर्व हेड ऑफ डिपार्टमेंट और गंगा अभियान से जुड़े जीडी अग्रवाल ने 111 दिनों के अनशन के बाद अपना दम तोड़ दिया था. लेकिन सरकार इस पर भी नहीं चेती. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भले ट्वीट किया लेकिन गंगा को साफ करने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाए गए.

ऐसे में इस मुहिम से जुड़े संतगोपाल दास आगे क्या करेंगे. इस पर वे कहते हैं, ‘मुझे लगता है कि गंगा को लेकर लोगों में चेतना जगानी है. हमारी नीयत साफ है और ये कोई एक व्यक्ति, समाज, या संस्था की लड़ाई नहीं है. ये पूरे देशवासियों का संघर्ष है. हम सबको आगे आना होगा, साथ मिलकर लड़ना होगा.

इरोम शर्मिला को अपना आदर्श मानने वाले गोपाल दास कहते हैं, ‘समय आने पर मैं वर्ल्ड फोरम में भी जाकर भारत का प्रतिनिधित्व करूंगा. और विश्व के लोगों को इस मुद्दे पर साथ आने की अपील करूंगा.’

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