नयी दिल्ली, 17 नवंबर (भाषा) राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने जौनपुर जिले में आदिगंगा गोमती नदी की पारिस्थितिकी को बनाए रखने के लिए उत्तर प्रदेश के प्राधिकारियों को उन नालों के पानी का शोधन करने के लिए तेजी से कदम उठाने के निर्देश दिए हैं, जिनका पानी सीधे नदी में जाता है।
अधिकरण नदी के सूखने और इसके रासायनिक प्रदूषण से संबंधित मामले की सुनवाई कर रहा था, जिसके कारण बड़ी संख्या में मछलिया मर गईं।
आठ नवंबर के आदेश में, एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने कहा कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) और जिला अधिकारियों की एक संयुक्त टीम ने नदी का निरीक्षण किया था तथा एक रिपोर्ट प्रस्तुत की।
पीठ में न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी और विशेषज्ञ सदस्य ए सेंथिल वेल भी शामिल थे।
इसने कहा कि रिपोर्ट के अनुसार, नदी में बहने वाले दो नालों से पानी बिना शोधन के नदी में बहाया जाता है।
पीठ ने कहा कि रिपोर्ट मानसून के दौरान टीम के दौरे पर आधारित है जब नदी में प्रवाह अधिक था, जबकि अधिकरण मानसून पूर्व मौसम के दौरान नदी की बिगड़ती स्थिति के मुद्दे की पड़ताल कर रहा है जब इसका प्रवाह काफी कम था।
अधिकरण ने कहा, ‘‘हालांकि, रिपोर्ट/उत्तरों में बताए गए तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, हमारा मानना है कि दो नालों- बजरंग घाट नाला एक और बजरंग घाट नाला दो -के जरिये पानी बिना शोधन के बहाया जा रहा है। इन नालों के पानी का जल्द शोधन करने की जरूरत है।’’
इसने उत्तर प्रदेश सरकार के वकील की ओर से कही गई बातों पर गौर किया कि दोनों नालों के पानी को ‘अटल मिशन फॉर रिजुवेनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन’ (एएमआरयूटी) 2 योजना के तहत मोड़ा जाएगा और उसका शोधन किया जाएगा।
अधिकरण ने कहा, ‘‘इसलिए, हम मूल आवेदन का निस्तारण करते हैं और प्राधिकारियों को दो नालों के पानी का शोधन करने के लिए शीघ्र कदम उठाने तथा यह सुनिश्चित करने का निर्देश देते हैं कि गर्मियों के दौरान जब नदी में पानी का स्तर कम होता है तब नदी की पारिस्थितिकी को बनाए रखने के लिए सभी संभव उपाय किए जाएं।’’
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अमित नेत्रपाल
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