नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से संबद्ध पत्रिका ‘ऑर्गनाइज़र’ के नवीनतम संस्करण में कहा गया है कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर अखिल भारतीय स्तर पर की गई सख्त कार्रवाई से ‘देश में इस्लामी कट्टरपंथ के प्रसार को रोकने’ में एक काफी हद तक मदद मिलगी और सरकार को इस संगठन पर दबाव बनाए रखना चाहिए.
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा संकलित 2017 के एक डोजियर का हवाला देते हुए, इस संपादकीय में कहा गया है कि यह ‘पीएफआई की रणनीतियों को उजागर करता है जो मुसलमानों पर धार्मिक रूढ़िवादिता को थोपना चाहता है, समाज में पहले से मौजूद तनाव की रेखाओं को और चौड़ा करना चाहता है तथा अपने कैडरों से भोली भाली गैर-मुस्लिम लड़कियां को ‘लव जिहाद’ में फंसने और फिर उनका जबरन धर्म परिवर्तन करवाने के लिए देश भर में फ़ैल जाने को कहता हैं.’
यह संपादकीय आगे कहता है कि एजेंसी (एनआईए) ने नागरिकता संशोधन अधिनियम के अधिनियम के मद्देनजर देश के कुछ हिस्सों में हुए विरोध प्रदर्शनों को फंड करने और इसकी आड़ में हिंसा को अंजाम देने के लिए ‘उसकी [पीएफआई की] नापाक योजना का पर्दाफाश कर दिया है.’
इस ओर इशारा करते हुए कि केरल के पलक्कड़ में आरएसएस के एक सदस्य की हत्या के सिलसिले में एक पीएफआई कार्यकर्ता की गिरफ्तारी के बाद सीएए के विरोध में हुए प्रदर्शनों में पीएफआई की कथित संलिप्तता सामने आई, संपादकीय में कहा गया है कि पीएफआई ने कुछ संदिग्ध दलित संगठनों, गैर सरकारी संगठनों और अति-वामपंथी संगठनों के साथ अपने संबंधों को बढ़ावा दिया है और इसके साथ ही इस ‘पारस्परिक रूप से लाभप्रद सहयोग के तहत इस्लामी संगठन आरएसएस और भाजपा पर वामपंथ के नैरेटिव को आगे बढ़ाते हैं.’
पीएफआई पर लगाए गए प्रतिबंध के अलावा, कांग्रेस द्वारा संघ का मजाक उड़ाते हुए किया गया एक ट्वीट, लीसेस्टर में हो रहा धार्मिक संघर्ष, आरएसएस प्रमुख मोहन भगवंत की मुस्लिम विचारकों के साथ बैठकें और अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये की कीमत में आई गिरावट, वे अन्य कुछ मुद्दे हैं जिनका हिंदू दक्षिणपंथी प्रेस में पिछले पखवाड़े के दौरान प्रमुख रूप से उल्लेख किया गया है.
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राष्ट्र निर्माण में संघ का योगदान
आरएसएस से संबद्ध हिंदी पत्रिका ‘पांचजन्य’ के संपादक हितेश शंकर ने अपने एक लेख के जरिये राष्ट्र निर्माण में संघ की भूमिका के बारे में लिखकर कांग्रेस द्वारा खाकी शॉर्ट्स की एक जलती हुई जोड़ी दिखाते हुए इस सुझाव को देने के लिए किये गए ट्वीट का जवाब दिया कि उसकी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ आरएसएस को असहज कर रही है.
उन्होंने दावा किया कि कांग्रेस और राहुल गांधी को ‘यह अवश्य याद रखना चाहिए कि नेहरू, जो संघ के मुखर आलोचक थे, को भी साल 1962 के चीन युद्ध के दौरान संघ की भूमिका को देखते हुए साल 1963 की गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होने के लिए इसे (संघ को) आमंत्रित करना पड़ा था.’
संपादकीय में आगे कहा गया है कि ‘साल 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान, तत्कालीन प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने संघ से कानून-व्यवस्था की स्थिति को संभालने और दिल्ली के यातायात नियंत्रण को अपने हाथ में लेने का आग्रह किया था. फिर साल 1977 में, इंदिरा गांधी ने वरिष्ठ आरएसएस प्रचारक एकनाथ रानाडे के निमंत्रण पर विवेकानंद रॉक मेमोरियल का उद्घाटन किया था.’
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इंडिया गेट के पास अनावरित की गई नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा का उल्लेख करते हुए, शंकर ने लिखा, ‘जो पार्टी खुद को नेता जी से भी जोड़ न सकी, वह भारत को जोड़ने (भारत जोड़ो) का प्रयास कैसे कर सकती है?’
‘लीसेस्टर के हिंदू आतंक के साये में जी रहे हैं‘
‘ऑर्गनाइज़र’ के लिए एक लिखे गए एक लेख में, लेखिका रश्मि सावंत ने कहा कि इस महीने की शुरुआत में यूके के लीसेस्टर में हिंदुओं और मुसलमानों के समूहों के बीच हुई झड़पें हर हिंदू के लिए चिंता का विषय होनी चाहिए. उन्होंने लिखा, ‘लीसेस्टर में अल्पसंख्यक हिंदू आबादी अभी भी आतंक के साये में जी रही है, क्योंकि इस्लामवादी नेताओं द्वारा उकसावे और झूठे प्रचार की संभावना के साथ काफी अधिक तनाव व्याप्त है. ‘
वे लिखतीं हैं, ‘यह एक लोकप्रिय और व्यापक रूप से स्वीकृत थ्योरी है कि हाल ही में हुआ भारत बनाम पाकिस्तान [क्रिकेट] मैच लीसेस्टर में रह रहे हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच बढ़ते तनाव का स्रोत है, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है.‘
‘बहुत लंबे समय से, मुस्लिम बहुल सड़कों पर बने हिंदू घरों में तोड़ फोड़ की जाती रही है ताकि उन्हें घेर लिया जा सके और उन इलाकों से भागने के लिए उन्हें आतंकित किया जा सके.‘
सावंत ने मांग की कि भारत सरकार के लिए यूके में रहने वाले अपने लोगों का समर्थन करने का समय आ गया है, खासकर तब जब कश्मीर, जो भारत का आंतरिक मामला है, अक्सर ब्रिटिश संसद में चर्चा में बना रहता हो.
विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने भी ब्रिटेन की प्रधानमंत्री लिज़ ट्रस को लिखे एक पत्र में आरोप लगाया है कि लीसेस्टर में हुई हिंसा में शामिल शरारती तत्व इस बारे में ‘झूठे आरोप’ लगा रहे हैं कि पहले स्थानीय हिंदुओं ने उन्हें नुकसान पहुंचाया था.
विहिप के अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने लिखा, ‘अगर ऐसा होता, तो अस्पतालों में भर्ती होने वाले सभी लोग हिंदू पक्ष से नहीं होते. मुसलमानों के घर, संपत्ति या धार्मिक स्थलों को भी नुकसान पहुंचता. लीसेस्टर में कई हिंदू पूजा स्थलों का अपमानित और अपवित्र किया गया है.’
कुमार ने यह भी दावा किया कि ‘बर्मिंघम के स्मेथविक नमक स्थान में भी एक प्रमुख हिंदू धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र के पास हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए हैं.’
लीसेस्टर में हुई हिंसा को ‘इस्लामिक कट्टरवाद का नवीनतम प्रकरण’ करार देते हुए उन्होंने लिखा है कि ‘इस्लामी कट्टरवाद ने पिछले कई दशकों में ब्रिटेन और अन्य देशों को त्रस्त कर दिया है.
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‘सनातन धर्म और हिंदुत्व एक ही हैं‘
आरएसएस के राष्ट्रीय कार्यकारी सदस्य राम माधव ने अपनी नई किताब ‘द हिंदुत्व पैराडाइम’ के बारे में हो रही एक चर्चा के दौरान दिए गए एक साक्षात्कार में कहा कि हिंदू धर्म के विरोधियों ने ‘हिंदुत्व और हिंदू धर्म के बीच एक कृत्रिम भेद’ पैदा कर दिया है.
माधव ने कहा, ‘हिंदुत्व शब्द के बारे में बहुत सी गलत धारणाएं हैं, जो मुख्य रूप से इसके विरोधियों द्वारा प्रेरित नकारात्मक प्रचार के कारण हैं. ऐसा ही एक प्रयास हिंदुत्व और हिंदुत्व के बीच एक कृत्रिम विभेद पैदा करना है. इस शब्द का इस्तेमाल हिंदू धर्म के विरोधियों द्वारा किसी व्यक्ति या संगठन को ‘चरमपंथी’ कहने के लिए किया जाता है.’
अपनी पुस्तक के बारे में बात करते हुए, माधव ने कहा कि उन्होंने ‘हिंदुत्व को इक्कीसवीं सदी के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है और इसके लिए उन्होंने इसके महान प्रस्तावक, दीन दयाल उपाध्याय द्वारा अपनी मौलिक कृति, एकात्म मानवतावाद, में दिए गए परिप्रेक्ष्य का सहारा लिया है.’
माधव ने कहा कि भारत ने कार्ल मार्क्स या जॉन स्टुअर्ट मिल तो पैदा नहीं किये, लेकिन इसने गौतम बुद्ध, श्री अरबिंदो, महात्मा गांधी और आदि शंकराचार्य जैसों को जरूर पैदा किया है. उनका कहना था, ‘हिन्दुत्व उन सभी महान संतों, संतों और विद्वानों के दर्शन का सार है जो भारत में कई सहस्राब्दियों के दौरान रहे हैं.’
माधव ने कहा, ‘हिंदुत्व एक विचारधारा नहीं है, यह हिंदू धर्म या सनातन धर्म के समान ही है.’ साथ ही, उनका कहना था कि विचारधारा ‘विचारों का एक बंद समुच्चय है, लेकिन दर्शन (फिलॉसफी) काफी समृद्धकारी होता है.’
‘अन्य मुद्राओं के मुकाबले रुपया मजबूत बना हुआ है’
अपनी मासिक पत्रिका ‘स्वदेशी पत्रिका’ में छापे गए एक संपादकीय में, आरएसएस से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच ने तर्क दिया है कि भले ही भारतीय रुपये का मूल्य अमेरिकी डॉलर के मुकाबले गिर गया है, लेकिन यह अन्य मुद्राओं की तुलना में मजबूत हो रहा है.
संपादकीय में कहा गया है, ‘पिछले पांच महीनों में रुपये के मूल्य में डॉलर के मुकाबले 5.41 प्रतिशत की गिरावट आई है, मगर इस बीच, रुपये के मुकाबले में पाउंड स्टर्लिंग की कीमत में 4.87 प्रतिशत, जापानी येन की कीमत में 6.10 प्रतिशत और यूरो की कीमत में 4.97 प्रतिशत की गिरावट आई है.’
इसमें कहा गया है कि देश के औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (इंडेक्स ऑफ़ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन-आईआईपी) ने जून महीने में 12.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है और ‘सभी क्षेत्रों में आईआईपी की वृद्धि में निरंतरता आर्थिक विकास में तेजी का संकेत देती है.’
इसमें लिखा गया है, ‘हालांकि, यह एक साल पहले के इसी महीने (13.8 प्रतिशत) की तुलना में थोड़ा कम है, मगर अभी भी यह पिछले साल की तुलना में बेहतर है, क्योंकि तब महामारी के प्रभाव के कारण विकास लोअर बेस (निम्न आधार) से हुआ था. जून 2022 में खनन क्षेत्र की आईआईपी में 7.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई, विनिर्माण की आईआईपी वृद्धि दर 12.5 प्रतिशत दर्ज की गई, जबकि विद्युत् क्षेत्र के लिए यह 16.4 प्रतिशत दर्ज की गई.‘
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इमाम ने RSS प्रमुख के बारे में जो कहा, वह किसी हिंदू ने कभी नहीं कहा था
दक्षिणपंथी झुकाव वाले पत्रकार हरि शंकर व्यास ने ‘नया इंडिया’ के लिए लिखे गए अपने एक कॉलम में मुस्लिम विचारकों के साथ मुलाकात हेतु आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की मस्जिद और मदरसे की यात्रा के एक दिन बाद इस मुद्दे पर अपनी राय दी.
हरि शंकर व्यास ने लिखा, ‘मुझे यह हास्यास्पद लगता है कि मोहन भागवत के लिए एक मुसलमान के मुंह से ‘राष्ट्रपिता’ और ‘राज ऋषि’ जैसे शब्द निकले. एक इमाम ने जो कुछ कहा है, वह कभी किसी हिंदू ने नहीं कहा. यह भी दुखद बात है कि मोहन भागवत और संघ के शीर्ष अधिकारी अपना सम्मान प्रकट करने के लिए केवल मौलाना इलियासी की अवैध मस्जिद को ही ढूंढ पाए.’
उन्होंने तर्क दिया कि यदि मुसलमान अब कहें कि मोहन भागवत मस्जिद में शांति के कबूतर उड़ाने आए थे तो भी यह ‘गलत नहीं होगा’.
व्यास ने कहा, ‘नरेंद्र मोदी चीते छोड़ते हैं और भागवत मस्जिद में आकर कबूतर उड़ाते हैं.’
दूसरी तरफ, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता हृदय नारायण दीक्षित ने भागवत के मुस्लिम संपर्क अभियान पर दैनिक जागरण के लिए लिखे गए एक कॉलम में लिखा कि सद्भाव के लिए संवाद का होना महत्वपूर्ण है.
उन्होंने लिखा कि हालांकि उनकी धार्मिक मान्यताएं अलग- अलग हैं, मगर हिन्दुओं और मुसलमानों के पूर्वज एक ही हैं.
उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष ने लिखा, ‘संविधान में ‘अल्पसंख्यक’ की कोई परिभाषा नहीं है, लेकिन तुष्टिकरण की राजनीति ने इस शब्द को लोगों के ध्यान में ला रखा है. इस हद तक कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक बार कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार अल्पसंख्यकों का है. मुस्लिम बुद्धिजीवियों को इस पर विचार करना चाहिए.’
यह कहते हुए कि ‘समुदायों के बीच डर पैदा करना व्यर्थ है’ और ‘संवाद ही आगे बढ़ने का एकमात्र तरीका है’, दीक्षित ने लिखा कि आरएसएस प्रमुख की ‘मुस्लिम बुद्धिजीवियों के साथ बातचीत करने की इस पहल से सामाजिक सद्भाव बनाए रखने में मदद मिलेगी’.
‘योगी मॉडल ऑफ लॉ एंड ऑर्डर‘
योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार के दूसरे कार्यकाल के छह महीने पूरे होने पर ‘पंजाब केसरी’ में प्रकाशित एक लेख में दक्षिणपंथी रुझान वाले लेखक स्वदेश सिंह ने कहा कि उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था में सुधार हुआ है.
उन्होंने लिखा, ‘यूपी में बेहतर कानून व्यवस्था के आधार पर विकास के पैमानों में हुई प्रगति का अध्ययन किया जाना चाहिए. योगी सरकार का यह प्रयोग विकासशील देशों और साथ ही हमारे देश के अन्य राज्यों के लिए कारगर साबित हो सकता है.’
उन्होंने आगे लिखा कि भाजपा सरकार ने राज्य में कानून व्यवस्था को मजबूत करने के लिए साल 2018 के बाद से अब तक 6,000 करोड़ रुपये खर्च किए हैं.
सिंह ने लिखा, ‘बेहतर सुरक्षा हालात के कारण, लड़कियां स्कूल जा सकती हैं, दुकानदार देर रात तक अपनी दुकानें खोल सकते हैं और इससे विकास सूचकांक भी प्रभावित हुए हैं. 7-8 करोड़ से अधिक आबादी वाले देशों के लिए योगी सरकार का यह कानून व्यवस्था वाला मॉडल प्रेरणादायक साबित हो सकता है.‘
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