चित्रदुर्ग, कर्नाटक: अगर आप बेंगलुरु से मध्य कर्नाटक की तरफ ड्राइव कर रहे हैं, तो आपके लिए राज्य के राजनीतिक रूप से शक्तिशाली लिंगायत समुदाय के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक संस्थानों में से एक माने जाने वाले मुरुघ मठ की व्यापक उपस्थिति को नजरअंदाज करना लगभग असंभव होगा.
पथरीले इलाके वाले चित्रदुर्ग के लिए 18वीं सदी का पत्थर से बना यह विशाल मठ परिसर एक प्रमुख आकर्षण केंद्र है, लेकिन इसका प्रभाव 82 एकड़ के परिसर से बहुत दूर तक यानी कि इसके संरक्षण में चलने वाले लगभग 150 शैक्षणिक और चिकित्सा संस्थानों से लेकर राज्य के राजनीतिक क्षेत्र तक फैला हुआ है.
हालांकि, पिछले 10 दिनों में यह चित्रदुर्ग मठ विवादों के घेरे में घिर गया है.
पिछले गुरुवार की देर रात, पुलिस ने मठ के शैक्षिक और सांस्कृतिक संस्थानों का प्रबंधन करने वाली संस्था श्री जगद्गुरु मुरुगराजेंद्र विद्यापीठ (एसजेएमवी) द्वारा संचालित एक अनाथालय में रहने वाली 15 और 16 साल की दो युवा लड़कियों के साथ कथित रूप से बलात्कार करने के आरोप में, इस पीठ (आध्यात्मिक स्थल) के 20वें प्रमुख शिवमूर्ति मुरुघ शरणारू को गिरफ्तार कर लिया.
इन किशोरवय लड़कियों ने दावा किया है कि अपने यौन उत्पीड़न का विरोध करने के लिए उन्हें संस्था से ‘बेदखल’ कर दिया गया था, जिसके बाद उन्होंने वह जगह छोड़ दे थी और फिर मैसूर के एक एनजीओ ओदानदी, जो मानव तस्करी के पीड़ितों की सहायता करता है, की संरक्षण में आ गए थे.
इन दोनों शिकायतकर्ता लड़कियों ने जनवरी 2019 और जून 2022 के बीच इस शांत से लगने वाले मठ में अपने कथित यौन शोषण का एक खौफनाक विवरण प्रस्तुत किया है.
एनजीओ ओदानदी के अनुसार, इस तरह के काम करने के लिए अपनाया गया कथित तरीका लड़कियों को स्वामी से उनके शयनकक्ष में ‘फल या आशीर्वाद’ प्राप्त करने के लिए आमंत्रित करना था. जाहिर तौर पर, उनके पास ‘ना’ कहने का कोई विकल्प नहीं होता था और ऐसा करने पर कथित तौर पर वार्डन (संरक्षिका) से ‘गालियां’ और ‘धमकियां’ सुनने की मिलती थीं. एक बार जब बच्चियां उस कमरे में पहुंच जाती, तो उन्हें आश्वासन दिया जाता था कि अगर उनके परिवारों को किसी भी प्रकार की सहायता की जरुरत होगी तो इसे मठ द्वारा मुहैया करवाया जाएगा.
उसके बाद, शिवमूर्ति कथित तौर पर लड़कियों के निजी अंगों को छूता था और उनका यौन शोषण करता था. शिकायतकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि उनके के संघर्ष करने के बावजूद वो उन्हें ‘जाने नहीं देता था’. पीड़िताओं ने यह भी दावा किया है कि कभी-कभी उन्हें अधिक ‘आज्ञाकारी’ बनाने के लिए फल या मिठाई दी जाती थी जिसमें बेहोशी की दवा मिली होती थी. उन्होंने आरोप लगाया कि उत्पीड़न का दौर खत्म होने के बाद, वह (स्वामी) खुद की सफाई के लिए ‘टिश्यू पेपर’ का उपयोग करता था और लड़कियों को बाथरूम का इस्तेमाल करने के लिए कहता था. लड़कियों का दावा है कि उन्हें चुप रहने या फिर मारे जाने की चेतावनी भी दी गई थी.
इसके अलावा, एनजीओ ने यह भी आरोप लगाया है कि लड़कियों के दावे के अनुसार वहां (मठ में) अन्य पीड़िताएं भी मौजूद हैं.
इस मामले में ओदानदी के साथ-साथ जिला बाल कल्याण समिति – जिससे एनजीओ ने संपर्क किया था- की एक शिकायत के आधार पर मैसूर के नजरबाद पुलिस स्टेशन में एक प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज की गई है, जिसे दिप्रिंट ने भी देखा है.
यह प्राथमिकी प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन अगेंस्ट सेक्सुअल ऑफेंसेस (पोक्सो) एक्ट की धाराओं के साथ-साथ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 (बलात्कार) के तहत दर्ज की गई है. और चूंकि कथित पीड़िताओं में से एक दलित है, इसलिए एससी/एसटी अधिनियम भी लगाया गया है. इस प्राथमिकी में शिवमूर्ति, अनाथालय की वार्डन रश्मि, एक कनिष्ठ पुजारी, मठ के कानूनी सलाहकार गंगाधरैया और एसजेएमवी के प्रशासक परमशिवैया के नाम दर्ज है.
फोटो कैप्शन – एक खुला मार्ग जो चित्रदुर्ग मठ के मुख्य भवन, जहां शिवमूर्ति रहा करता था, को अनाथालय सहित परिसर की अन्य संरचनाओं से जोड़ता है. ऐसा आरोप है कि इसी रास्ते से लड़कियों को शिवमूर्ति के आवास तक लाया जाता था.
इस समुदाय में कई लोगों के लिए, यौन उत्पीड़न और शोषण की इस लंबी सूची को एक ऐसे आध्यात्मिक नेता के साथ जोड़ कर देखना मुश्किल बात है, जिसे राज्य में सबसे प्रगतिशील आध्यात्मिक लोगों में से एक माना जाता था और जिसका आशीर्वाद भारतीय जनता पार्टी के अमित शाह और बी.एस. येदियुरप्पा के साथ-साथ कांग्रेस के राहुल गांधी सहित राजनीतिक नेताओं के एक बड़े समूह द्वारा मांगा जाता रहा है.
अपनी ओर से, शिवमूर्ति ने दावा किया है कि वह एक ‘साजिश’ का शिकार हुए हैं और ‘सच्चाई जल्द ही सबके सामने आ जाएगी.’ लेकिन जब इस रविवार को उसे मठ के घटना स्थल के महाजर (पैमाइश) के लिए लाया गया था, तो वह हतोत्साहित सा लग रहा था.
यह पूछे जाने पर कि क्या शिवमूर्ति अब कमजोर पड़ते जा रहे हैं, उनके वकील एम. उमेश ने दिप्रिंट को बताया, ‘बिल्कुल नहीं. हम जल्द ही उनकी जमानत के लिए अदालतों का रुख करेंगें. स्वामीजी अभी बस थके हुए हैं.. यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें जमानत मिलने का भरोसा है, उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, ‘ देखते हैं. हम तो केवल उम्मीद कर सकते हैं. बाकी सब भगवान पर छोड़ दिया गया है.’
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राजनीतिक रूप से बारूदी सुरंग के जैसा है यह मामला
इस बीच, इस मामले में गिरफ्तार सह आरोपी और अनाथालय की वार्डन रश्मि ने एक पूर्व मठ प्रशासक और जनता दल (सेक्युलर) के पूर्व विधायक एस.के. बसवराजन, जिनके कथित तौर पर शिवमूर्ति के साथ विवादों भरे संबंध रहे हैं, के ऊपर बलात्कार और अपहरण की एक काउंटर एफआईआर (विपरीत प्राथमिकी) दर्ज करवाई है.
उनके अनुसार, बसवराजन ने इन लड़कियों द्वारा मठ छोड़ने के बाद उन्हें दो दिनों तक अपने घर में रखा था. हालांकि, बसवराजन और उनकी पत्नी का कहना है कि उन्होंने लड़कियों की मदद के लिए ऐसा किया था.
समुदाय के एक वर्ग का मानना है कि एक समय में शिवमूर्ति के विश्वासपात्र रहे बसवराजन ने ही इन लड़कियों को ओदानदी से संपर्क करने और खुद को फायदा पहुंचाने की साजिश के तहत शिकायत दर्ज करवाने के लिए प्रोत्साहित किया. बसवराजन ने इस बात का खंडन किया.
दूसरी ओर, कर्नाटक में कई लोग इस बात से नाराज हैं कि 26 अगस्त को मैसूर पुलिस द्वारा शिवमूर्ति के खिलाफ शिकायत दर्ज किए जाने के बाद भी वह एक सप्ताह तक खुले में घूमता रहा.
तब और 1 सितंबर के बीच, अधिकांश बलात्कार के आरोपियों के विपरीत, शिवमूर्ति बैठकें आयोजित करने, एक प्रभारी को शामिल करने और अन्य कमजोर कड़ियों को दुरुस्त करने में सक्षम रहा था.
तब तक, इस मामले ने राष्ट्रीय मीडिया का ध्यान खींच लिया था, जिसने भाजपा राज्य सरकार की मशीनरी पर कार्रवाई करने और तगड़ा दबाव डाला और आखिरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मंगलुरु यात्रा से एक दिन पहले मामले में कार्रवाई की गई.
हालांकि, जिस बात पर हर कोई सहमत हो सकता है वह यह है कि यह मामला एक राजनीतिक बारूदी सुरंग जैसा है, खासकर कर्नाटक में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर.
साल 2011 की जनगणना के अनुसार, लिंगायत कर्नाटक में कुल आबादी का लगभग 17 प्रतिशत हिस्सा रखते है, जो उन्हें अनुसूचित जाति (दलितों) के बाद राज्य का सबसे बड़ा जाति समूह बनाता है और इसी वजह से यह समुदाय काफी अधिक राजनीतिक दबदबा रखता है. कर्नाटक में अब तक हुए 22 मुख्यमंत्रियों में नौ लिंगायत समुदाय से ही थे.
इसके अलावा, लिंगायत समुदाय भाजपा के लिए एक प्रमुख वोट-बैंक रहा है और माना जाता है कि यह राज्य में इस पार्टी के सत्ता में आने का प्रमुख कारण है. वर्तमान मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई एक लिंगायत हैं और उनके पूर्ववर्ती बी.एस. येदियुरप्पा भी इसी समुदाय से थे. सीधे शब्दों में कहें तो भाजपा लिंगायत वोट खोने का जोखिम नहीं उठा सकती. साथ ही, वह बलात्कार जैसे गंभीर आरोपों से आंखें मूंदते भी नहीं देखा जा सकती है. कांग्रेस भी किसी एक दिशा या दूसरी दिशा में बहुत अधिक दृढ़ता से झुकने का जोखिम नहीं उठा सकती है.
चित्रदुर्ग में भी धरातल पर मौजूद भक्त बंटे हुए नजर आ रहे हैं. एक तरफ कुछ का मानना है कि उनके नेता ने कुछ भी गलत नहीं किया होगा, वहीं अन्य लोग उनकी बेगुनाही को लेकर कम आश्वस्त हैं. कुछ लोगों ने तो यहां तक कहा है कि ये लिंगायत नेता थोड़े ‘ज्यादा ही प्रगतिशील’ हो गए थे और उनकी इस तरह पतन एक प्रकार की दैवीय सजा है.
एक शक्तिशाली मठ के ‘क्रांतिकारी’ नेता
श्री जगद्गुरु मुरुगराजेंद्र बृहनमठ या मुरिगे / मुरुघ मठ की स्थापना सन 1704 में विजयनगर साम्राज्य के सेनापति बारामन्ना नायक और उनके बेटे हिरे मदकरी नायक की मदद से की गई थी. तब से, यह लगातार मजबूत होता चला गया.
मठ के पहले प्रमुख मुरुघ शांतावीरा स्वामीजी थे और साल 1991 में, शिवमूर्ति शरणारू केवल 33 वर्ष की आयु में इसके 20वें प्रमुख बने. वास्तव में, उन्हें उस समय राज्य के सभी लिंगायत संप्रदायों के प्रमुखों में सबसे कम उम्र का कहा जाता था.
वचन (एक कन्नड़ कविता रूप) साहित्य में डॉक्टरेट की उपाधि के साथ एक विद्वान व्यक्ति रहे और अब 64 वर्ष के हो चुके शिवमूर्ति को लिंगायत समुदाय, जो पहले से ही विद्रोह की एक भावना के रूप में परिभाषित है, में हमेशा से एक पथप्रदर्शक के रूप में जाना जाता है.
लिंगायत एक शैव संप्रदाय हैं और 12 वीं शताब्दी के उन समाज सुधारक और वाचनकर (जो वचन लिखते हैं) के अनुयायी हैं जिन्हें बसवन्ना कहा जाता है और जो राजा बिज्जल के दरबार में कोषाध्यक्ष भी थे. बासवन्ना ने जाति व्यवस्था और वैदिक अनुष्ठानों की अवहेलना करने के प्रयास किए थे ताकि समाज को भेदभाव से मुक्त बनाया जा सके. वह अपने गुरु अल्लामप्रभु सहित अन्य लोगों के साथ भक्ति आंदोलन में शामिल एक प्रमुख नाम थे.
हालांकि, आधुनिक कन्नड़ समाज में शामिल लिंगायतों के बीच भी शिवमूर्ति द्वारा बसवन्ना की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार किए जाने के प्रयासों को कुछ हद तक मिली जुली प्रतिक्रिया ही प्राप्त हुई थी.
एक कदम जो काफी हद तक नाक-भौं सिकोड़े जाने का कारण बना, वह था उप मठों, या सहायक मठों, की स्थापना, जिसने हाशिए पर रह रहे समूहों / निचली जातियों को सशक्तिकरण के एक स्वरूप के तहत अपने स्वयं के स्वामी रखने के लिए प्रोत्साहित किया.
उनके अन्य उग्र सुधारवादी कदमों में मठ में मनाए जाने वाले समारोहों के इर्द-गिर्द के कुछ अनुष्ठानों को समाप्त करने के प्रयास शामिल थे, जैसे कि अड्डा पल्लक्की उत्सव (पाली में बैठे गुरु के साथ जुलूस) को त्यागना, और शमशानों में या अमावस्या की रातों में पूजा करके सदियों पुरानी वर्जनाओं को तोड़ने की कोशिश करना.
शिवमूर्ति ने विधवा पुनर्विवाह, जो कि ‘प्रगतिशील’ लिंगायत समुदाय में भी अनसुनी बात जैसी थी, को प्रोत्साहित और संपन्न करवा के एक हलचल सी पैदा कर दी थी.
उनके सबसे अधिक ध्रुवीकरण वाले फैसलों में से एक उनके नाम से ‘जगद्गुरु’ (विश्व के गुरु) की उपाधि को हटा देना और इसे ‘शरानारू’, एक ऐसा शब्द जो समर्पण और विनम्रता का प्रतीक है, से बदल देना था.
एक लिंगायत संस्था होने के बावजूद चित्रदुर्ग मठ ने अपने दरवाजे सभी जातियों और धर्मों के लोगों के लिए खुले रखे हैं. मुसलमानों और ईसाइयों को मठ में अपना सम्मान प्रकट करने के लिए आते देखना कोई अजीब बात नहीं है.
आम दिनों में यह जगह आगंतुकों से गुलजार रहती है. विशाल कड़ाहियां रसोई में हमेशा खुदबुदती रहती हैं, और कोई भी दोपहर और शाम के समय भोजन के लिए मठ में आ सकता है. औसतन, एक दिन में लगभग 2,000 लोगों को भोजन कराया जाता है, और सप्ताहांत के दिनों में यह संख्या बढ़कर 5,000-6,000 हो जाती है
हालांकि, शिवमूर्ति की गिरफ्तारी के बाद भी रसोई ने सामूहिक भोजन, या ‘दसोहा’ बंद नहीं किया है, लेकिन मठ में माहौल दबा-दबा सा है और आरोपों और प्रतिवादों के लगाए जाने बाद, एक ऐसी भावना भी है कि संस्था में सब कुछ उतना शांत और सुंदर नहीं है जैसा कि यह पहले लगता था.
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मठ की अंदरूनी साजिश और एक आत्महत्या
ऐसा लगता है कि मठ के दो शिविरों के बीच आपसी विद्वेष का लंबा इतिहास अब खुल कर सामने आ गया है.
शिवमूर्ति के समर्थकों का मानना है कि उनका नाम लगाए जाने के साथ की गयी यौन शोषण की शिकायत के पीछे एस.के. बसवराजन का दिमाग हो सकता है, जो एक समय में मठ के नेता के पद के दावेदार थे. लेकिन इसके बजाय, उन्होंने शादी कर ली और एक जद (एस) नेता के रूप में राजनीति में आ गए. उनके राजनीतिक जीवन का शिखर 2008 में चित्रदुर्ग विधायक के रूप में चुना जाना रहा था.
हालांकि, बासवराजन ने मठ के साथ अपना संबंध बनाए रखा. उन्होंने 2007 तक इसके प्रशासक के रूप में कार्य किया, और उसी साल वे संदेह के साये के साथ यहां से चले गए थे. उन्हें मार्च 2022 में वापस लाया गया था, लेकिन उन्हें काम करने के लिए कोई शक्ति नहीं दी गई थी. बसवराजन को इस साल 26 अगस्त को एसजेएमवी के सचिव के पद से हटा दिया गया था.
पोक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज होने के बाद, आरोपी वार्डन रश्मि ने बसवराजन के खिलाफ एक मामला दर्ज करते हुए आरोप लगाया कि उसने उसके साथ छेड़छाड़ की थी और लड़कियों द्वारा मठ छोड़े जाने के बाद उनका ‘अपहरण’ कर लिया था.
हालांकि, बासवराजन ने मीडिया को बताया कि उन्होंने और उनकी पत्नी ने दोनों किशोरियों को केवल ‘संरक्षित’ किया था और उन्हें दो दिनों तक आश्रय दिया क्योंकि वे मठ में वापस नहीं लौटना चाहतीं थीं. बासवराजन फिलहाल जमानत पर बाहर हैं.
बसवराजन के समर्थकों का कहना है कि उन्होंने केवल एक गलत काम का पर्दाफाश करने में सहायता की है और इसके लिए उनकी आलोचना नहीं की जानी चाहिए.
चित्रदुर्ग के एक रियाल्टार (अचल संपत्ति की खरीद बिक्री करने वाले) और अनाज व्यापारी 74 वर्षीय डी रुद्रप्पा ने कहा, ‘बसन्ना (बसवराजन) ने शरणारू के आने से पहले से मठ में सेवा की है. स्वामीजी के स्थान पर बसन्ना को ही शामिल किया जाना था. लेकिन चूंकि उन्होंने शादी करने का फैसला किया इसलिए शरणारू आगे आए.’
उन्होंने कहा, ‘बसन्ना तो कभी भी मठ या समुदाय को कोई नुकसान पहुंचाने वाली बात का सपना भी नहीं देख सकते. गलत क्या है! यहां के लोगों के पास इस बात के सबूत हैं कि यह पाप हुआ है.’
हालांकि मामले की जांच अभी जारी है पर ऐसा लगता कि इस मामले ने भानुमती का पिटारा खोल दिया है.
इस सोमवार, बेलगावी जिले के नेगिनहाल में स्थित श्री गुरु मदीवालेश्वर मठ के नेता बसवा सिद्धलिंग स्वामी अपने कमरे में लटके पाए गए थे. वह शिवमूर्ति शरणारू के शिष्य थे और उन्होंने चित्रदुर्ग मठ में ही अपना दीक्षा संस्कार पूरा किया था.
वह कथित तौर पर इस बात को लेकर परेशान थे कि उनका नाम एक ऑडियो क्लिप में आया था जो वर्तमान में प्रसारित हो रहा है.
इसमें, दो महिलाओं को लिंगायत संतों, जिसमें एक ‘नेगिनहाल स्वामी’ भी शामिल है, द्वारा किए गए कथित यौन अपराधों पर चर्चा करते हुए सुना जा सकता है. उनकी लाश के पास मिले तथाकथित सुसाइड नोट में कथित तौर पर लिखा है, ‘मैंने कुछ भी गलत नहीं किया है. कृपया किसी से कोई पूछताछ न करें.’
बंटे हुए हैं भक्त
चूंकि मध्य और उत्तरी कर्नाटक में चित्रदुर्ग मठ के करोड़ों भक्त हैं जो नियमित रूप से इसके परिसर में होने वाले कार्यक्रमों में शामिल होते हैं, इसलिए यह माना जाता था कि शिवमूर्ति की गिरफ्तारी के बाद वे बड़ी संख्या में सड़कों पर उतरेंगे. हालांकि, आश्चर्यजनक रूप से उनकी प्रतिक्रिया मंद रही है.
इसका एक कारण यह हो सकता है कि अनुयायी इस बात को लेकर अनिश्चित हैं कि किस पर विश्वास किया जाए. इनमें से कई लड़कियों के प्रति सहज सहानुभूति रखते हैं, जबकि अन्य का मानना है कि किसी बाहरी ताकत के बजाय मठ की आंतरिक राजनीति असल समस्या है. कुछ प्रतिक्रियाओं में शैडेनफ्रूड (दूसरों के दुर्भाग्य अथवा पीड़ा में खुश होने) का यह संकेत भी है कि शिवमूर्ति को उनके ‘अति-प्रगतिशील’ तौर-तरीकों के लिए उचित प्रतिफल मिला है.
शिवमूर्ति के लंबे समय से विश्वासपात्र रहे और मठ के कट्टर भक्त रामचंद्रप्पा ने कहा, ‘हमें नहीं पता था कि वह इतना जघन्य अपराध कर रहे हैं.’
रामचंद्रप्पा ने नमी से भरी हुई आंखों के साथ सिर हिलाते हुए कहा, ‘हमें उनके (शिवमूर्ति के) द्वारा सदियों पुरानी परंपराओं को तोड़ने, अमावस्या के दिन पूजा करने, बिल्व के पेड़ को उखाड़ने और मठ के अंदर मौजूद चौदम्मा देवी की मूर्ति को विस्थापित करने पर आपत्ति थी. यह सब कभी किसी के लिए सौभाग्य नहीं लाता है.’
एक अन्य भक्त और मठ कार्यकर्ता, जिसने उसका नाम न बताने की शर्त रखी थी, पहले तो अपनी राय देने के प्रति अनिच्छुक थी, लेकिन अंत में उसने ऐसा किया. उसने कहा, ‘ये गलत है. उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था.’
इस सब के व्यावहारिक नतीजे भी सामने हैं: अब यहां काफी कम लोग आ रहे हैं, जिसका मतलब है कि मठ के आसपास अपना माल बेचने वाले विक्रेताओं के लिए व्यापार मंदा हो गया है.
उनमें से दो विक्रेताओं ने उनका नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि वे इस कांड से पहले हर दिन लगभग 3,000 रुपए की बिक्री करते थे लेकिन अब मुश्किल से 300 रुपए कमा पाते हैं.
यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें पता है कि स्वामी कहां हैं, दोनों महिलाओं ने मतलब भरी नजरों का आदान-प्रदान करने के बाद आम सहमति के साथ कहा : यदि वह दोषी है, तो भगवान उसे ‘दंड’ दे रहे हैं.
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राजनीतिक संतुलन की कठिन राह
मुरुघा मठ कोई साधारण मठ नहीं है. राज्य भर में फैली इसकी कई शाखाओं, 150 संबद्ध शैक्षणिक और चिकित्सा संस्थान, लिंगायत और यहां तक कि अन्य समुदायों में अनुयायियों की संख्या के साथ, यह अपने पास जमा अकूत धन (जिसकी वजह से इसे ‘नवा कोटि नारायण मठ’, या करोड़ों के धन के साथ नया मठ, का उपनाम मिला है) और राजनीतिक दबदबे के लिए जाना जाता है.
राज्य के कई मुख्यमंत्रियों के इसके साथ घनिष्ठ संबंध रहे हैं. एकीकृत कर्नाटक के पहले मुख्यमंत्री एस. निजलिंगप्पा, और बाद में जे.एच. पटेल भी, इस मठ और उसकी परंपराओं के प्रबल अनुयायी थे.
हाल फिलहाल में, बीएस येदियुरप्पा भी मठ के साथ अपनी संबद्धता के बारे में मुखर रहे हैं. प्राथमिकी दर्ज होते ही इन पूर्व मुख्यमंत्री ने शिवमूर्ति के खिलाफ लगे आरोपों को ‘झूठा’ बताया था. पिछली गर्मियों में, जब येदियुरप्पा का मुख्यमंत्री पद खतरे में था तो शिवमूर्ति सहित कई लिंगायत स्वामियों ने उनकी पैरवी की थी. हालांकि येदियुरप्पा वह लड़ाई हार गए थे. लेकिन उनके उत्तराधिकारी, वर्तमान मुख्यमंत्री बोम्मई, भी लिंगायत समुदाय से ही हैं.
हालांकि, खुद बोम्मई ने यौन उत्पीड़न के मामले के बारे में चुप्पी साधे रखी है और केवल इतना कहा है कि पुलिस को पूरी आजादी है. उन्होंने शिवमूर्ति की गिरफ्तारी में देरी पर भी कोई टिप्पणी नहीं करने का फैसला किया है, जिसके लिए उन्हें कुछ आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है.
यह देखते हुए कि कर्नाटक में लिंगायत समुदाय सही मायने में ‘किंगमेकर’ हैं, राजनीतिक धरातल के दोनों ओर इस बारे में एक बेचैनी की भावना है कि इस यौन शोषण कांड से कैसे निपटा जाए, विशेष रूप से 2023 के विधानसभा चुनावों से पहले के हालात में.
हालांकि, पूर्व मुख्यमंत्री और जद (एस) नेता एच.डी. कुमारस्वामी ने अगस्त में खुल कर बात की थी और कहा था कि वह इस मामले से ‘आश्चर्यचकित नहीं’ हैं, मगर कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों में से किसी और ने इस बारे में बहुत कुछ नहीं कहा है.
शिवमूर्ति के खिलाफ ये आरोप कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा लिंगायत संप्रदाय के भीतर एक महत्वपूर्ण आशीर्वाद माने जाने वाली ‘इष्टलिंग दीक्षा‘ प्राप्त करने के कुछ ही हफ्तों बाद लगे हैं.
ध्यान देने की बात है कि इस समारोह से कुछ समय पहले, शिवमूर्ति ने अपनी राजनैतिक भावनाओं की असल जगह को कथित तौर पर यह कहकर स्पष्ट कर दिया था कि देश को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे नेताओं की जरूरत है.
लेकिन मठ की इस नई बदनामी ने उसकी अपनी राजनीतिक वांछनीयता पर सवाल खड़ा कर दिया है. इसने एक अलग लिंगायत धर्म के उस आंदोलन को भी धक्का पहुंचाया है, जिसके सीमित अर्थों में शिवमूर्ति भी समर्थक रहे हैं.
पूर्व आईएएस अधिकारी और इस आंदोलन में सबसे आगे रहे एस.एम.जामदार ने स्वीकार किया कि आध्यात्मिक नेता की छवि खराब होने की वजह से पॉक्सो के तहत आने वाला यह मामला उनके लिए एक झटका है.
उन्होंने कहा, ‘हम इससे उबर जाएंगें. अगर आरोप सही हैं तो शरणारू के करनामों की निंदा की जानी चाहिए. पहली नजर में तो सब कुछ उसी ओर इशारा करता है. हम अदालतों के फैसले का इंतिजार करेंगे.’
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