नई दिल्ली: जैसा कि साल 2019 और 2021 के बीच किए गए पांचवें राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-एनएफएचएस-5) के निष्कर्षों से पता चलता है, भारतीय अब उतनी शराब नहीं पी रहे हैं जितनी वे इस सदी के पहले दशक में पीते थे.
एनएफएचएस-5 के आंकड़ों के मुताबिक, 2021 तक भारत में केवल 22.9 फीसदी पुरुष और 0.7 फीसदी महिलाएं, जिनकी उम्र 15 से 54 साल के बीच थी, ही शराब का सेवन करते थे. यह एनएफएचएस डेटा में देखी गई उस बड़ी प्रवृत्ति का हिस्सा है जो 2006 और अब के बीच शराब पीने वाले भारतीयों की संख्या में लगातार गिरावट के रूप में सामने आई है.
एनएफएचएस-3 (2005-06) और एनएफएचएस-4 (2015-16) के बीच शराब पीने वाले भारतीय पुरुषों की संख्या 32 प्रतिशत से घटकर 29 प्रतिशत हो गई. महिलाओं के मामले में यह संख्या 2.2 प्रतिशत से घटकर 1.2 प्रतिशत हो गई थी.
6 मई को जारी एनएफएचएस-5 रिपोर्ट में कहा गया है, ‘शराब पीने वाले पुरुषों का अनुपात 2015-16 में किए गए एनएफएचएस-4 और 2019-21 में हुए एनएफएचएस-5 के बीच 29 प्रतिशत से घटकर 22 प्रतिशत हो गया. इसी अवधि के दौरान, शराब पीने वाली महिलाओं के अनुपात में कोई बदलाव नहीं आया है.‘
हालांकि, इन निष्कर्षों के विपरीत दिल्ली स्थित एक पॉलिसी थिंक टैंक (नीतिगत विचार समूह), इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस (आईसीआरआईइआर) ने पिछले अगस्त में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा था कि भारत का शराब उद्योग 52.5 बिलियन डॉलर का था और इसके साल 2023 तक सालाना आधार पर 6.8 फीसदी की दर से बढ़ने की सम्भावना व्यक्त की गई थी.
एनएफएचएस-5 का यह डेटा विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की 2018 की अल्कोहल और स्वास्थ्य पर वैश्विक स्थिति रिपोर्ट के निष्कर्षों की भी पुष्टि नहीं करता है, जिसमें साल 2010 से 2017 की अवधि के दौरान भारत में 15 वर्ष या उससे अधिक आयु के व्यक्तियों के बीच प्रति व्यक्ति शराब की खपत में 38 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगाया गया है.
गुरुग्राम स्थित थिंक टैंक पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पीएचएफआई) में स्वास्थ्य संवर्धन प्रभाग (हेल्थ प्रमोशन डिवीज़न) की निदेशक मोनिका अरोड़ा ने कहा, ‘यह सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) 2019 और 2021 के बीच आयोजित किया गया था, जिन्हें असामान्य वर्ष माना जा सकता है. इसलिए, घरेलू साक्षात्कारों में व्यापक विविधता की उम्मीद है. इस अवधि के दौरान, हमने दो महत्वपूर्ण लॉकडाउन देखे और इनके परिणामस्वरूप, शराब तक लोगों की पहुंच सीमित हो गई थी.’
नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर – एनडीडीटीसी, एम्स-दिल्ली – में मनोचिकित्सा के एडिशनल प्रोफेसर यतन पाल सिंह बल्हारा का कहना है कि शराब पीने वाले भारतीयों की संख्या में आई गिरावट के बावजूद भारत में शराब के बाजार के आकार में वृद्धि का मतलब यह भी हो सकता है कि जो लोग शराब का सेवन करते हैं, वे पहले की तुलना में अधिक पी रहे हैं.
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लॉकडाउन की वजह से आई गिरावट?
अरोड़ा ने कहा कि एनएफएचएस-5 और कोविड-19 लॉकडाउन के लिए रिफरेन्स पीरियड (संदर्भ अवधि) होने की वहज से यह डेटा एनएफएचएस-4 डेटा के साथ तुलना के लायक नहीं है. उन्होंने कहा, ‘अगर भारत में शराब उपभोक्ताओं की संख्या में गिरावट आई है, तो यह बिक्री, राजस्व और इस बाजार के अन्य आंकड़ों में भी परिलक्षित होना चाहिए, लेकिन यह यहां दिखाई नहीं दे रहा है. वास्तव में तो साल 2021 में भारत में बीयर और स्प्रिट की बिक्री के आंकड़ों में तेज वृद्धि देखी गई है, और (शराब निर्माता) कंपनियों ने भी कोविड से पहले होने वाली बिक्री की तुलना में अधिक मात्रा में बिक्री की सूचना दी.’
अरोड़ा ने कहा कि यदि इस डेटा का संग्रह लॉकडाउन की अवधि के साथ मेल खाता है तो उत्तरदाताओं द्वारा शराब की खपत के बारे में किये गए सवालों का ईमानदारी से जवाब नहीं देने की भी संभावना है. ऐसा इसलिए क्योंकि उस समय शराब नहीं बेची जा रही थी और अगर उत्तरदाताओं ने अवैध रूप से शराब खरीदी होगी तो उन्होंने इसके उपयोग की सूचना नहीं दी होगी.
वे कहती हैं, ‘एक और कारण यह भी हो सकता है कि शराब तक पहुंच पर लगे प्रतिबंधों और लॉकडाउन के दौरान कोविड के गंभीर परिणामों से बचने के लिए विभिन्न स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा स्वस्थ रहने की सलाह जारी किये जाने की वजह से यह एक ‘अस्थायी व्यवहार परिवर्तन’ हो. मगर, शराब निर्माता कंपनियों द्वारा साल 2021 में बाजार में हुई रिकवरी के बारे में दी गयी सूचना भारत में शराब के उपयोग में किसी भी तरह की कमी को नहीं दर्शाती है.’
‘कुछ भारतीय ज्यादा शराब पी रहे हैं
बाजार के रुझान और एनएफएचएस-5 डेटा के बीच व्याप्त विरोधाभास का जिक्र करते हुए बलहारा ने कहा, ‘इसका मतलब यह है कि लोगों का अपेक्षाकृत कम अनुपात अपेक्षाकृत रूप से बड़ी मात्रा में शराब का सेवन कर रहा है.’ बल्हारा ने अन्य शोधकर्ताओं के साथ मिलकर 16 राज्यों के लिए उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर भारत भर में शराब की खपत में हुई गिरावट पर एक अध्ययन किया.
एनएफएचएस-5 के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि जहां शराब का सेवन करने वाले भारतीयों की संख्या में गिरावट आई है, वहीं शराब की खपत की आवृत्ति (फ्रीक्वेंसी) में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है.
साल 2005-06 में, लगभग 10 प्रतिशत भारतीय पुरुष ही प्रतिदिन शराब का सेवन करते थे. एक दशक बाद, यह संख्या 12.4 प्रतिशत हो गई थी और 2019-21 तक यह बढ़कर 15.4 प्रतिशत पहुंच गई थी.
सप्ताह में कम-से-कम एक बार शराब पीने वाले भारतीयों की संख्या में भी वृद्धि हुई है – 2005-06 के 26.9 प्रतिशत से 2019-21 में 43.5 प्रतिशत तक. साथ-ही-साथ, सप्ताह में एक बार से कम शराब पीने वाले पुरुषों की संख्या 2005-06 में 63 प्रतिशत से घटकर 2019-21 में 41 प्रतिशत हो गई है.
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शराब की खपत में सबसे तेज वृद्धि गोवा में देखी गई
त्रिपुरा में 15-49 साल के आयु वर्ग के पुरुषों में शराब की खपत में सबसे अधिक गिरावट दर्ज की गई – यह 2015-16 में 57.6 प्रतिशत से घटकर 2019-21 में 35.9 प्रतिशत तक हो गई जो अभी भी राष्ट्रीय औसत – 22.9 प्रतिशत – से काफी ऊपर है.
कम-से-कम सात राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों – मिजोरम, छत्तीसगढ़, सिक्किम, तमिलनाडु, चंडीगढ़, बिहार और केरल – में पुरुषों द्वारा शराब की खपत में 10 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है.
हालांकि, चार भारतीय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में शराब पीने वाले पुरुषों की संख्या में वृद्धि दर्ज की गई.
गोवा में, 59.1 प्रतिशत पुरुषों ने कहा कि उन्होंने 2019-21 की अवधि में शराब का सेवन किया, जो 2015-16 में 44.7 प्रतिशत से अधिक है और यह किसी भी राज्य में देखी गई सबसे अधिक वृद्धि है. दमन और दीव एवं दादरा और नगर हवेली के केंद्र शासित प्रदेश भी इससे बहुत पीछे नहीं है, और यहां शराब पीने वाले पुरुषों की संख्या 2019-21 में बढ़कर 41.8 प्रतिशत हो गई, जो 2015-16 में 34.8 प्रतिशत ही थी.
दिल्ली और झारखंड में भी शराब पीने वाले पुरुषों की संख्या में मामूली रूप से बढ़ोत्तरी दर्ज की गई.
भारत में, महिलाएं हमेशा से शराब उपभोक्ताओं की संख्या का एक छोटा सा हिस्सा रही हैं. यही एक कारण है कि पुरुषों में शराब की खपत की प्रवृत्ति में आये किसी भी महत्वपूर्ण बदलाव द्वारा राष्ट्रीय औसत को प्रभावित करने की अधिक संभावना है.
किसी भी अन्य जाति/जनजाति समूह की तुलना में अनुसूचित जनजाति की महिलाओं में शराब पीना (4 प्रतिशत) अधिक आम बात है. ईसाई पुरुषों (36 प्रतिशत) और ‘अन्य’ धर्मों के पुरुषों (49 प्रतिशत), पांच साल से कम स्कूली शिक्षा वाले पुरूषों (33 प्रतिशत), अनुसूचित जनजाति के पुरूषों (34 प्रतिशत), तथा 35-49 आयु वर्ग के पुरूषों (30 प्रतिशत) के बीच शराब पीने का शगल सबसे आम है,
यह स्वीकार करते हुए कि शराब की खपत के रुझान में आया बदलाव काफी अहम है, बलहारा का मानना है कि इस बदलाव को प्रभावित करने वाले कारकों की और गहन पड़ताल की आवश्यकता है.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘एनएफएचएस शराब के सेवन के पीछे के कारणों का पता नहीं लगता है और इसलिए उस पर कोई टिप्पणी भी नहीं करता है. दुर्भाग्य से, भारत में कोई अन्य ऐसा सर्वेक्षण नहीं है जिसने एक सुसंगत (सिलसिलेवार) पद्धति का उपयोग किया हो, ताकि हम इस तरह के परिवर्तन के बारे में कोई निष्कर्ष भी निकाल सकें. अभी इस बदलाव की वजहें पूरी तरह से अस्पष्ट हैं.’
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