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नयी दिल्ली, 17 अप्रैल (भाषा) भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ के पूर्व प्रमुख ए एस दुलत ने बृहस्पतिवार को मीडिया में आईं उन खबरों को खारिज करते हुए ‘बकवास’ करार दिया, जिनमें उनके हवाले से कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने ‘‘निजी तौर पर’’ संकेत दिया था कि अगर उन्हें विश्वास में लिया जाता तो वह 2019 में संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाने में मदद करते।
देश के बाहर काम करने वाली खुफिया एजेंसी ‘रिसर्च एंड एनालिसिस विंग’ (रॉ) के पूर्व प्रमुख ने कहा कि न तो नेशनल कांफ्रेंस (नेकां) अध्यक्ष ने कभी ऐसा कहा और न ही उन्होंने अपनी किताब में इसका उल्लेख किया है।
यह विवाद दुलत की नई किताब ‘‘द चीफ मिनिस्टर एंड द स्पाई’’ से उपजा है, जिसका शुक्रवार को विमोचन होना है। इसमें उन्होंने कथित तौर पर संकेत दिया है कि अब्दुल्ला पांच अगस्त, 2019 को हिरासत से आहत थे और पूर्व में परामर्श किये जाने पर सहयोग की इच्छा जताई थी।
दुलत ने ‘पीटीआई-भाषा’ को दिए साक्षात्कार में अपनी टिप्पणी को स्पष्ट करने का प्रयास करते हुए कहा, ‘‘क्या उन्होंने कभी ऐसा कहा? क्या मैंने कभी ऐसा कहा? यह पूरी तरह से बकवास है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘कुछ अखबारों ने इसे उठाया और बड़ा मुद्दा बना दिया और अब कश्मीर में भी इसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है।’’
उनकी पुस्तक में अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर उठे विवाद के बारे में पूछे जाने पर, जिसमें उन्होंने लिखा है कि अब्दुल्ला ने उनसे कहा था कि दिल्ली को उनसे परामर्श करना चाहिए था और शायद वह मदद कर सकते थे, दुलत ने स्पष्ट किया कि नेशनल कॉन्फ्रेंस प्रमुख ने कहा था कि केंद्र को जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक नेतृत्व को विश्वास में लेना चाहिए।
दुलत ने बताया कि अब्दुल्ला बहुत आहत थे और कहा था, ‘‘क्या हमें नजरबंद करने की कोई जरूरत थी?।’’ उन्होंने आगे स्पष्ट किया कि मुद्दा नजरबंद करने और आहत होने का है।
भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने पांच अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को निरस्त कर दिया था और तत्कालीन राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया था।
यह पूछे जाने पर कि क्या अब्दुल्ला ने उनसे कहा था कि वह अनुच्छेद 370 को कमजोर करने में मदद कर सकते थे? दुलत ने कहा, ‘‘बिल्कुल नहीं। यह पूरी तरह से बकवास है। यह पुस्तक डॉ. अब्दुल्ला की आलोचना नहीं है।’’
उन्होंने कहा कि कुछ अखबारों ने इसे उठाकर बड़ा मुद्दा बना दिया है और अब कश्मीर में दो पक्ष इस पर अलग-अलग विचार रख रहे हैं।
दुलत ने उन खबरों को भी खारिज कर दिया कि अब्दुल्ला ने निजी तौर पर अनुच्छेद 370 को हटाने पर सहमति जताई थी।
रॉ के पूर्व प्रमुख ने कहा, ‘‘यह (पुस्तक) डॉ. फारूक अब्दुल्ला की सराहना है, आलोचना नहीं।’’
दुलत ने 1990 के दशक का एक उदाहरण देते हुए कहा कि अब्दुल्ला ने उनसे कहा था कि वह अपने पिता शेख अब्दुल्ला की तरह नहीं हैं और जेल जाने के लिए राजनीति में नहीं आये हैं।
उन्होंने याद दिलाया कि अब्दुल्ला ने उनसे कहा था कि उनकी राजनीति सीधी है और दिल्ली में जो भी सत्ता में होगा, वह उसके साथ रहेंगे।
दुलत ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा के साथ उनके संबंध सबसे अच्छे थे, क्योंकि देवेगौड़ा ने उन्हें कभी परेशान नहीं किया।
दुलत ने कहा कि दिल्ली ने अब्दुल्ला को कभी नहीं समझा और केवल देवेगौड़ा ही उन्हें समझते हैं।
पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के पूर्व प्रमुख असद दुर्रानी द्वारा अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद अब्दुल्ला की हिरासत पर संतोष व्यक्त करने के सवाल पर, दुलत ने कहा कि लोग ‘‘और बोलो जय माता की’’ और ‘‘अच्छा है कि उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया’’ जैसी बातें कह रहे थे।
दुलत ने कहा कि अब्दुल्ला और कश्मीरी पंडितों के बीच अविश्वास की स्थिति शेख अब्दुल्ला की गिरफ्तारी के समय से है।
दुलत ने कहा, ‘‘मैं पूरी तरह से विस्तार से नहीं बता सकता, लेकिन मैं आपको बता सकता हूं कि 2014 में जब मैं अपनी पहली किताब लिख रहा था, खालिदा (शेख अब्दुल्ला की बेटी) ने मुझसे कहा था, ‘हमें पता था कि कुछ होने वाला है, पापा को गिरफ्तार किया जा सकता है। मैंने उनसे पूछा कि उन्हें कैसे पता चला। उन्होंने कहा कि लोगों ने अलग तरह से व्यवहार करना शुरू कर दिया था।’’
उन्होंने कहा कि अब्दुल्ला ने जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के नेता यासीन मलिक से मुलाकात की थी और गिरफ्तारी के दौरान उन्हें फटकारा था।
अब्दुल्ला को उपराष्ट्रपति पद दिए जाने के वादे पर दुलत ने कहा, ‘‘मैंने देखा था कि ब्रजेश मिश्रा ने उनसे वादा किया था। फारूक साहब ने कहा था कि प्रधानमंत्री और उप प्रधानमंत्री ने भी उन्हें इस बारे में बताया था।’’
भाषा धीरज रंजन
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