scorecardresearch
Saturday, 21 December, 2024
होमदेशदिल्ली का एक डॉक्टर Covid-19 मरीजों के इलाज के दौरान फुल PPE नहीं पहनता, जानिए क्यों

दिल्ली का एक डॉक्टर Covid-19 मरीजों के इलाज के दौरान फुल PPE नहीं पहनता, जानिए क्यों

डॉ. जैन ने कहा, 'इसका मतलब यह नहीं है कि मैं लापरवाह हूं और मैं न इसकी वकालत कर रहा हूं न ही किसी को अपनी राह पर चलने के लिए प्रोत्साहित कर रहा हूं.'

Text Size:

नई दिल्ली: दिल्ली स्थित राजीव गांधी सुपर स्पेशिएलिटी हॉस्पिटल (आरजीएसएसएच) के डॉ. अजीत जैन का किसी को चौंकाने का तो कोई इरादा नहीं है लेकिन जब वह कोविड-19 मरीजों का इलाज कर रहे होते हैं तो उन्हें पूरे पीपीई (PPE) गियर में रहना पसंद नहीं है.

यद्यपि उनके सहयोगी कोविड वार्ड और आईसीयू में रहने के दौरान पूरी तरह पर्सलन प्रोटेक्शन इक्विपमेंट में रहते हैं, जिसमें एक कवरऑल सूट, सर्जिकल कैप, फेस शील्ड, एन 95 मास्क, शू कवर और ग्लव्स शामिल होते हैं. लेकिन डॉ. जैन सिर्फ तीन सुरक्षा उपायों के साथ होते हैं जिसमें ट्रिपल-लेयर सर्जिकल मास्क के साथ कवर एक अच्छा एन 95 मास्क, एक फेस शील्ड और एक सर्जिकल कैप शामिल है.

राजीव गांधी सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल के नोडल अधिकारी और प्रमुख हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. जैन ने कहा, ‘इसका मतलब यह नहीं है कि मैं लापरवाह हूं. मैंने एक सुनियोजित फैसला लिया है, और मैं न इसकी वकालत कर रहा हूं न ही किसी को अपनी राह पर चलने के लिए प्रोत्साहित कर रहा हूं. लेकिन अभी तक यह मेरे लिए बेहतरीन साबित हुआ है.’


यह भी पढ़ें: आईसीएमआर के अध्ययन में कहा गया कि कोविड-19 मोर्टेलिटी रेट को कम करने में प्लाज्मा थेरेपी प्रभावी नहीं है


दुनियाभर में कोविड-19 के खिलाफ जंग लड़ रहे हेल्थकेयर स्टाफ के पीपीई से लैस होने वाली छवि इतिहास का एक हिस्सा बन चुकी है. महामारी फैलने के बाद चिकित्सा समुदाय लगातार अच्छी गुणवत्ता वाले पीपीई पर्याप्त संख्या में होने की जरूरत बताता रहा है, जिसे इस महामारी से लड़ने में अग्रिम मोर्चे पर तैनात लोगों के लिए अपरिहार्य अनिवार्यता माना जाता है.

हालांकि, जैन ने अपनी इच्छा से पूरा पीपीई सूट छोड़ा है. उनका यह फैसला तीन बातों पर निर्भर है, -लंबे समय तक पूरा पीपीई सूट पहनने से चक्कर आने जैसा अनुभव होना, एक पूरी किट पर आने वाला लंबा-चौड़ा खर्चा, और कोविड फैलने के पीछे का विज्ञान.

उन्होंने कहा, ‘मैंने अपने सहयोगियों के साथ अच्छे खासे तर्क-वितर्क और परिचर्चा के बाद यह फैसला लिया है. यह मैंने सोच-समझकर किया है. हम जानते हैं कि वायरस एरोसोल स्प्रे से फैलता है जो नाक और मुंह के जरिये शरीर में पहुंचता है. यदि शरीर के ये दोनों ही हिस्से ठीक से कवर हैं, और आप इस बात को लेकर सावधान हैं कि शरीर के बाकी खुले हिस्से का आपके नाक और मुंह से संपर्क न हो तो वायरस अंदर कैसे पहुंचेगा?

उन्होंने आगे कहा कि पीपीई का कुछ हिस्सा हटाकर वह रक्षात्मक उपायों को लेकर और ज्यादा सतर्क हो गए हैं. उन्होंने बताया, ‘मैं अपने शरीर के उन सभी हिस्सों को तत्काल डिसइन्फेक्ट करता हूं जो संपर्क में आए होते हैं, अपने चेहरे को कभी नहीं छूता हूं, और जैसे ही राउंड पूरा होता है जल्द से जल्द स्नान करता हूं.’

जैन 16 जून तक पूरी पीपीई किट पहनते थे. डॉ. जैन ने बताया कि उसके बाद ढाई महीने में उन्होंने कम से कम 1,000 मरीजों का इलाज किया है. उनका पांच बार कोरोनावायरस टेस्ट किया जा चुका है- दो बार आरटी-पीसीआर, दो बार रैपिड एंटीजन के जरिये और एक बार एंटीबॉडी टेस्ट- और उनके सभी परिणाम निगेटिव रहे हैं.

क्या है पीपीई का विज्ञान

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के दिशानिर्देशों में पीपीई को एक जैविक एजेंट का जोखिम घटाकर स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की सेहत की सुरक्षा करने के लिए तैयार उपकरण बताया गया है.

ब्रिटिश मेडिकल जर्नल (बीएमजे) में जून में प्रकाशित एक ऑब्जर्वेशनल स्टडी में कहा गया है कि ‘उपयुक्त पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट अत्यधिक जोखिम वाले वातावरण में काम करने वाले स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं में संक्रमण रोकने में प्रभावी है.

चीन और ब्रिटेन के शोधकर्ताओं की तरफ से किए गए अध्ययन में कोविड-19 मरीजों की देखभाल में लगे 420 प्रतिभागियों को शामिल किया गया था जो प्रोटेक्टिव सूट, मास्क, ग्लव्स, गॉगल्स, फेस सूट और गाउन से लैस थे. अन्य बातों के अलावा प्रतिभागी एरोसोल-जेनरेट करने की प्रक्रिया में शामिल हुए जो वायुजनित कोविड-19 फैलने के संभावित जोखिम से जुड़ी है.

अध्ययन के अनुसार, छह से आठ सप्ताह की अवधि में किसी भी प्रतिभागी में कोविड-19 के लक्षणों की जानकारी नहीं मिली और न ही इस दौरान उनका टेस्ट पॉजिटिव आया.

अध्ययनकर्ताओं ने बताया, ‘हालांकि, अध्ययन इस सवाल को संबोधित नहीं करता है कि स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों को संक्रमण से बचाने के लिए पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट का न्यूनतम स्तर क्या होना चाहिए.’

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि चपेट में अधिकांश स्वास्थ्यकर्मी ‘महामारी के शुरुआती चरण में संक्रमित हुए थे और इसका मुख्य कारण शायद उपयुक्त पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट की कमी थी.’

आरजीएसएसएच के निदेशक डॉ. बी.एल. शेरवाल ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि डॉ. जैन सभी सावधानियां बरत रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘डॉ. जैन अपने खुद के अनुभव के लिए यह देखना चाहते थे क्या अन्य सभी सावधानियों का सख्ती से पालन करने की स्थिति में क्या वह कवरऑल, गाउन और दस्ताने आदि पहने बिना कोविड मरीजों का इलाज कर सकते हैं.

उन्होंने आगे कहा, ‘शुरुआत में पूरी पीपीई के बिना उन्हें स्वीकार करना मुश्किल था, लेकिन साथ ही वह ऐसा करने का साहस भी दिखा रहे थे. हमें लगा कि उनका निरीक्षण करना इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि हम पीपीई की भूमिका के बारे में और ज्यादा जान पाएंगे.’

उन्होंने कहा, ‘मैं इस पर जोर देना चाहता हूं कि वह हर एहतियात बरतें. हमारे लिए यह जानना आवश्यक है कि एरोसोल से संबंधित संक्रमण किस रास्ते से होता है. अगर उसे ही बंद कर जाए तो वह सबसे अच्छा पीपीई होगा.’

शेरवाल ने इस पर जोर दिया कि वे कर्मचारियों को सुरक्षा सुनिश्चित करने में कोई ढिलाई नहीं बरतते हैं.

शेरवाल ने बताया, ‘हमारे 800 या उससे अधिक स्टाफ में केवल 50-सदस्य ही वायरस की चपेट में आए. यह शहर के अन्य अस्पतालों की तुलना में सबसे कम है. इनमें से अधिकांश शुरुआत में संक्रमित हुए. बाद में हमने डनिंग और डॉफिंग (पीपीई लगाकर और इसे हटाकर) पर एक कार्यशाला आयोजित की तो संक्रमण फैलना काफी कम हो गया.’

कीटाणुशोधन दिनचर्या में शामिल

कोविड वार्ड या आईसीयू का राउंड लेने के बाद डॉ. जैन सब कुछ छोड़-छाड़कर सीधे निकटतम शॉवर हाउस पहुंचते हैं. वहां पर पूरे साढ़े सात मिनट तक अपने पूरे शरीर को अच्छी तरह रगड़कर धोते हैं. पहला चरण साढ़े तीन मिनट का होता है, जिसके बाद वह नहा लेते हैं. इसके बाद दो-दो मिनट के दो चरणों में वह इसे दोहराते हैं.

डॉ. जैन ने कहा, ‘यह वही तरीका होता है जिस तरह आप कार्डियक सर्जरी के लिए जाने से पहले अपने हाथों और बांहों को साफ करते हैं. मैंने इसे कोविड मामले में अपनाया है. इसलिए मैं अपने चेहरे और सिर समेत पूरे शरीर को इसी तरह रगड़ता हूं.’

जैन ने कह कि पूरी पीपीई के बिना मरीजों को देखने में उन्हें काफी आसानी रहती है. साथ ही एक तथ्य यह भी है कि आइसोलेशन के कारण सहमे से रहने वाले मरीज ‘मेरा चेहरा देख और पहचान सकते हैं और कुछ राहत महसूस कर सकते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘उनका इस तरह मुझे देख पाना वास्तव में काफी मददागार है. वे थोड़ा सुकून महसूस करते हैं और खुद को कम अलग-थलग पाते हैं. मुझे सर्जरी करते हुए 28 साल हो गए हैं. मुझे चेहरे को छुए बिना अपने हाथों को घंटों पूरी तरह स्थिर रखने की आदत पड़ गई है.’

जैन ने कहा कि वह अपने फैसले को लेकर चिकित्सा जगत से आलोचना सुनने के लिए पूरी तरह तैयार हैं लेकिन उम्मीद है कि इससे एक नई चर्चा की भी शुरुआत होगी. हालांकि, एक नियम कभी नहीं बदलेगा.

उन्होंने कहा, ‘यदि आप वायरस से सुरक्षित रहना चाहते हैं तो सतर्क रहने के अलावा कोई चारा नहीं है. पीपीई बुनियादी सावधानियों का विकल्प नहीं बन सकता.’


यह भी पढ़ें: डॉक्टरों की आत्महत्या पर एम्स फैकल्टी और छात्रों ने कहा, ‘हमने नहीं उठाए पर्याप्त कदम’


 

share & View comments

1 टिप्पणी

  1. PPE replaced with Compulsory bath after the round.
    Alternative to PPE means a large number of washrooms/bathrooms for every staff so that each staff after the duty takes compulsory bath for more than 7 minutes. it’s not only for covid but for other communicable diseases and microorganisms also which are the common in hospitals.

Comments are closed.