इंदौर (मध्यप्रदेश), 12 नवंबर (भाषा) सूचना प्रौद्योगिकी और कृत्रिम मेधा (एआई) के मौजूदा दौर में टाइपराइटर पर काम करना पुराने जमाने की बात हो गई है, लेकिन इंदौर के राजेश शर्मा (68) के लिए अतीत की यह मशीन उनकी सबसे कीमती मिल्कियत की तरह है।
शहर में एक विज्ञापन एजेंसी चलाने वाले शर्मा ने अपने घर में टाइपराइटर का संग्रहालय-सा बना रखा है जिसमें अलग-अलग तरह के करीब 570 टाइपराइटर हैं। इनमें हिन्दी, मराठी, गुजराती, तमिल, तेलुगु और कन्नड़ सरीखी भारतीय भाषाओं के साथ ही अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, रूसी, जापानी, अरबी और अन्य विदेशी भाषाओं के की-बोर्ड वाले टाइपराइटर शामिल हैं।
शर्मा ने मंगलवार को ‘‘पीटीआई-भाषा’’ को बताया, ‘‘मैंने पिछले 12 साल में देश-विदेश के लगभग 570 टाइपराइटर जमा किए हैं। इनमें से कई टाइपराइटर मैंने कबाड़ियों से खरीदे हैं। मेरे बारे में जानने के बाद देश-विदेश के लोगों ने मुझे 125 टाइपराइटर मुझे बिना किसी पुराने परिचय के उपहार में भेजे हैं।’’
शर्मा ने बताया कि टाइपराइटर से उनका ‘पुश्तैनी रिश्ता’ है क्योंकि उनके पिता इंदौर की जिला अदालत परिसर के पास टाइपिंग का काम करते थे और वह इस मशीन की आवाज सुनते हुए बड़े हुए।
उन्होंने बताया, ‘‘मेरे संग्रह में जो सबसे पुराना टाइपराइटर है, वह वर्ष 1905 में अमेरिका में बना था। यह 25 किलोग्राम वजनी टाइपराइटर मुझे मेरे पिता ने दिया था। लिहाजा इस टाइपराइटर से मेरी भावनात्मक यादें जुड़ी हैं।’’
शर्मा ने कहा कि वह टाइपराइटर के अपने संग्रह को किसी बड़े स्थान पर व्यवस्थित स्वरूप देना चाहते हैं ताकि आने वाली पीढ़ियां इस मशीन की ऐतिहासिक विरासत से वाकिफ रहें। उन्होंने बताया, ‘मैं इन दिनों कोशिश कर रहा हूं कि हिन्दी के कुछ नामचीन साहित्यकारों के इस्तेमाल टाइपराइटर मेरे संग्रह में शामिल हो जाएं।’ भाषा हर्ष मनीषा
मनीषा
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