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Monday, 9 December, 2024
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स्वतंत्र, निष्पक्ष चुनाव के लिए केंद्र सरकार की मशीनरी पर रखें नियंत्रण—87 पूर्व सिविल सेवकों का EC को पत्र

पत्र में लिखा है, ‘पिछले महीने की घटनाओं ने निर्वाचन आयोग से जनता के बढ़ते संदेह को खत्म करने की मांग की है लेकिन वो चुप बैठी है, जबकि विपक्ष को चुनाव प्रक्रिया में भाग लेने की आज़ादी से वंचित किया जा रहा है.’

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नई दिल्ली: राज्य और केंद्र दोनों सरकारों में सेवारत रहे 87 सेवानिवृत्त सिविल सेवकों के एक समूह ने गुरुवार को भारत के निर्वाचन आयोग (ईसीआई) को आम चुनाव से पहले समान अवसर की चुनौतियों के बारे में चिंता जताने के लिए कड़े शब्दों में एक पत्र लिखा. इन हस्ताक्षरकर्ताओं में पूर्व आईएएस, आईपीएस, आईएफएस और आईएफओएस अधिकारी शामिल हैं.

किसी भी राजनीतिक दल के साथ अपनी “गैर-संबद्धता और भारत के संविधान में निहित आदर्शों” के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर जोर देते हुए हस्ताक्षरकर्ताओं ने अब समाप्त हो चुकी आबकारी नीति में कथित घोटाले के मामले में प्रवर्तन निदेशायल (ईडी) द्वारा दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के समय पर सवाल उठाना शुरू किया.

11 अप्रैल 2024 को लिखे गए पत्र में कहा गया है, “जब लोकसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी थी और आदर्श आचार संहिता लागू थी, ऐसे समय में एक वरिष्ठ विपक्षी राजनीतिक नेता की गिरफ्तारी से हमें जानबूझकर की गई कार्रवाई की बू आ रही है.”

पूर्व सिविल सेवकों ने “आम चुनाव के दौरान विपक्षी दलों और विपक्षी नेताओं को परेशान करने वाले पैटर्न” पर भी चिंता जताई और कहा कि “यह एजेंसियों की प्रेरणा पर सवाल उठाता है”.

उन्होंने आम चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस के खिलाफ आयकर विभाग की पुनर्मूल्यांकन कार्यवाही और विपक्षी नेताओं को नोटिस के बारे में भी आपत्ति जताई.

पत्र में कहा गया, “यह हैरान करने वाली बात है कि चुनाव से ठीक पहले आयकर विभाग को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ-साथ अन्य विपक्षी दलों के पुराने आकलन को फिर से क्यों खोलना पड़ा. इस समय, लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार, तृणमूल कांग्रेस की नेता महुआ मोइत्रा से संबंधित परिसरों की तलाशी लेना और अन्य विपक्षी उम्मीदवारों को नोटिस जारी करना, फिर से स्पष्टीकरण की अवहेलना करता है.”

इसमें कहा गया है, “जांच पूरी करने और आरोप पत्र दाखिल करने में केंद्रीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों के सुस्त रिकॉर्ड को देखते हुए, इन मामलों को चुनिंदा तरीके से आगे बढ़ाने में अनुचित उत्साह इस संदेह को बढ़ाता है कि प्रेरणा केवल न्याय लागू करने की इच्छा से परे है”.

हस्ताक्षरकर्ताओं ने यह भी कहा कि वे इस मामले में तत्काल कार्रवाई करने में “ईसीआई की विफलता” से परेशान हैं. पत्र में कहा गया, “पिछले महीने की घटनाओं के पैटर्न में ईसीआई द्वारा जनता के बढ़ते संदेह को दबाने के लिए कड़ी कार्रवाई की मांग की गई है, लेकिन ईसीआई चुप बैठी है जबकि विपक्षी दलों को चुनाव प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेने की स्वतंत्रता से वंचित करने के लिए प्रतिशोध की राजनीति की जा रही है.”

इसमें आगे लिखा है, “हमारे समूह ने 2019 के लोकसभा चुनावों में ऐसे कई उदाहरणों की ओर इशारा किया था, लेकिन कलाई पर मामूली थप्पड़ के अलावा, ईसीआई बार-बार अपराधियों पर अपना आदेश लागू करने में विफल रहा. वर्तमान चुनावों में भी प्रधानमंत्री के अलावा किसी अन्य व्यक्ति द्वारा आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन पर ईसीआई द्वारा कार्रवाई नहीं की गई है, भले ही इसे उसके संज्ञान में लाया गया हो.”

हस्ताक्षरकर्ताओं ने चुनाव पैनल की आलोचना करते हुए कहा कि उसने “विशेष रूप से स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के संचालन को प्रभावित करने वाले कार्यों से निपटने में एक अजीब अविश्वास प्रदर्शित किया है”.

उन्होंने चुनाव आयोग से संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए “केंद्र सरकार के स्तर पर मशीनरी की गतिविधियों, विशेष रूप से कानून प्रवर्तन एजेंसियों” को अपने नियंत्रण में लाने का आह्वान किया, जैसा कि आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) के दौरान राज्य सरकार के स्तर पर मशीनरी के मामले में है.

अंत में, हस्ताक्षरकर्ताओं ने ईसीआई से “पिछले 70 साल में ईसीआई का नेतृत्व करने वाले प्रतिष्ठित व्यक्तियों द्वारा दी गई शानदार विरासत” को बनाए रखने का आग्रह किया. उन्होंने कहा कि “देश दुनिया की सबसे बड़ी चुनावी प्रक्रिया की प्रतिष्ठा और पवित्रता बनाए रखने के लिए दृढ़ता और दृढ़ संकल्प के साथ कार्य करने के लिए आपकी (ईसीआई) ओर आशा की जाती है”.

हस्ताक्षरकर्ताओं में पूर्व विदेश सचिव शिवशंकर मेनन, यूके में पूर्व उच्चायुक्त शिव शंकर मुखर्जी, पंजाब के पूर्व पुलिस महानिदेशक जूलियो रिबेरो, पूर्व उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार विजय लता रेड्डी, पूर्व स्वास्थ्य सचिव के. सुजाता राव, कश्मीर पर पूर्व ओएसडी, पीएमओ, ए.एस. दुलत, दिल्ली के पूर्व एलजी नजीब जंग और पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह शामिल हैं.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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