लखनऊः योगी सरकार पर कई विपक्ष के नेता दलितों व पिछड़ों की अनदेखी का आरोप लगाते आए हैं. इसी बीच एक आरटीआई में खुलासा हुआ है कि यूपी की राजधानी के 60 फीसदी थानों की जिम्मेदारी क्षत्रिय या ब्राह्मण समुदाय के पास है. अखिलेश सरकार के दौर में यादववाद का आरोप लगता था लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि लखनऊ के 43 थानों में से एक पर भी यादव थाना प्रभारी नहीं है.
यह भी पढ़ेंः गन्ने के जूस के कारोबार से जोड़कर युवाओं को रोजगार देगी यूपी सरकार
आईजी अमिताभ ठाकुर की पत्नी डॉ. नूतन ठाकुर ने आरटीआई के तहत लखनऊ के थाना प्रभारियों की सूचना मांगी थी. इस आरटीआई पर एसएसपी लखनऊ कलानिधि नैथानी ने थाना प्रभारियों की सूचना दी है. इस लिस्ट में दी गई सूचना के मुताबिक लखनऊ के कुल 43 थाने हैं, जिनमें से 14 थानों पर क्षत्रिय, 11 पर ब्राह्मण, 9 पर अन्य पिछड़ा वर्ग, 8 पर अनुसूचित जाति और महज 1 थाने पर सामान्य मुस्लिम थाना प्रभारी नियुक्त है. इस प्रकार लखनऊ के कुल थाना प्रभारियों में 60 फीसदी थाना प्रभारी क्षत्रिय या ब्राह्मण जाति के हैं, जिसमें अकेले क्षत्रिय जाति के एक-तिहाई थाना प्रभारी हैं.
बीजेपी पहले लगाती थी यादववाद का आरोप
सत्ता पर काबिज बीजेपी सपा सरकार पर ‘यादववाद’ और बसपा पर ‘जाटववाद’ के खिलाफ अक्सर तंज कसती थी. अखिलेश सरकार में नियुक्तियों पर सवाल खड़े करने से लेकर पुरस्कार वितरण तक में जातिवाद का इल्जाम लगता रहा. यहां तक कि ये भी कहा जाता रहा कि यूपी के अधिकतर थानेदार यादव हैं. अब योगी सरकार उसी राह पर है. लखनऊ के 60 फीसदी थानों की जिम्मेदारी क्षत्रिय या ब्राह्मण समुदाय के पास है.
यह भी पढ़ेंः अटल के अस्थि विसर्जन का खर्च उठाने को तैयार हुआ सूचना विभाग
केवल दो मुस्लिम थाना प्रभारी
आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक लखनऊ में पिछड़ा वर्ग के मात्र 20 फीसदी और अनुसूचित जाति के 18 फीसदी थाना प्रभारी वर्तमान समय में लखनऊ में तैनात हैं. आरटीआई से मांगी गई सूचना के अनुसार पिछड़ा वर्ग में 6 थाना प्रभारी कुर्मी, 1 काछी, 1 मौर्य और 1 मुस्लिम हैं. जबकि लखनऊ के किसी भी थाने में यादव समुदाय का कोई भी थाना प्रभारी नियुक्त नहीं है. लखनऊ जिले में दो 2 मुस्लिम थानाध्यक्ष हैं, जिनमें सामान्य वर्ग के फरीद अहमद अलीगंज और पिछड़ा वर्ग के मोहम्मद अशरफ थाना जानकीपुरम में तैनात हैं. इस पर आरटीआई एक्टिविस्ट डॉ. नूतन ठाकुर ने कहा कि थाना प्रभारियों की तैनाती में शासनादेश का साफ उल्लंघन है. ये भी विचार का विषय है.