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Sunday, 22 December, 2024
होमदेशअधिकांश भारतीयों के लिए 5G फोन खरीदना इतना महंगा क्यों - 'पहुंच के भीतर आने में अभी समय लगेगा'

अधिकांश भारतीयों के लिए 5G फोन खरीदना इतना महंगा क्यों – ‘पहुंच के भीतर आने में अभी समय लगेगा’

विश्लेषकों का कहना है कि 5जी फोन आम लोगों की पहुंच से दूर होने का कारण मैक्रोइकोनॉमिक्स स्थितियां और फोन निर्माताओं की खराब मार्केटिंग रही है. इसका सबसे ज्यादा खामियाजा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को भुगतना पड़ रहा है.

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नई दिल्ली: 5जी तकनीक वाले फोन 4जी फोन की तुलना में कुछ ज्यादा ही महंगे हैं. ऐसे में जब भारत में लोग इसे तेजी से पसंद करने लगे हैं, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों के लिए इन्हें खरीद पाना मुश्किल हो गया है. टेलीकॉम मार्केट एनालिटिक्स फर्म Techharc के डेटा और दिप्रिंट के विश्लेषण से यह जानकारी सामने आई है.

गुड़गांव स्थित टेकहार्क के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि 2022 में आए 5जी फोन की औसत कीमत 2007 में रिलीज किए गए 2जी फोन की कीमत से दोगुनी से भी अधिक है. यह तब की बात है जब 2जी तकनीक लोगों के बीच खासी लोकप्रिय हो चुकी थी. इतना ही नहीं 5जी फोन की कीमत क्रमशः 2010 और 2015 में रिलीज किए गए 3जी और 4जी फोन की कीमतों से भी बहुत ज्यादा हैं.

साल 2007 में 2जी फोन की औसत कीमत 11,230 रुपये थी. अगर यह फोन आज रिलीज हुआ होता तो बढ़ती महंगाई को ध्यान में रखते हुए कीमत लगभग 27,000 रुपये बैठती. इसी तरह से 3जी फोन की कीमत आज की तारीख में 29,000 रुपये से ज्यादा होती.

लेकिन 4जी फोन के साथ यह ट्रेंड कुछ बदला हुआ नजर आया. 2015 में 4जी फोन की कीमत 15 हजार थी. मौजूदा समय और महंगाई के हिसाब से उसकी कीमत आज लगभग 22,000 रुपये है. अगर यही ट्रेंड बना रहता तो 5जी फोन आबादी के एक बड़े हिस्से की पहुंच में होते. लेकिन स्थितियां इसके विपरीत हैं. इस साल आए 5जी फोन की औसत कीमत 29,200 रुपये है.

टेकहार्क के मुख्य विश्लेषक और संस्थापक फैसल कावूसा ने कहा कि यह विश्लेषण देश में दूरसंचार के क्षेत्र में आने वाली जनरेशन या तकनीक (3जी, 4जी आदि), उसके रिलीज होने वाले साल और उस तकनीक से जुड़े फोन की बाजार में औसत कीमत की गणना करने पर आधारित है.

कावूसा ने कहा, ‘दूरसंचार की प्रत्येक जनरेशन यानी तकनीक के लिए अलग-अलग मॉडल हैं. जिन फोन मॉडलों का विश्लेषण किया गया है, वे विभिन्न विशेषताओं वाले ब्रांड थे. फोनों में iOS और Android फ़ोन शामिल हैं, जिनकी शुरुआत 3G के समय के साथ हुई थी.’ उनके मुताबिक, उन्होंने प्रत्येक जनरेशन के 80 से 200 मॉडल तक का आकलन किया है.

ग्राफिक: दिप्रिंट टीम

2G को भारत में 1991 में लॉन्च किया गया था. लेकिन 2007 के आसपास ही यह लोगों के बीच में अपनी जगह बना पाया. तब से देश तकनीक के मामले में तेजी से आगे बढ़ा है. अभी कुछ समय पहले ही एक अक्टूबर, 2022 को प्रधानमंत्री ने 5G सेवाओं को लॉन्च किया था.

कावूसा का कहना है कि एक फोन को महंगा बनाने का मतलब है कि 10 से 15 हजार रुपये की कीमत वाले फोन को पसंद करने वाले संभावित ग्राहक के एक बड़े लगभग 55 फीसदी हिस्से को खो देना. उन्होंने समझाते हुए कहा, ‘इससे भारत के लिए नई तकनीक को बड़े पैमाने पर अपनाना मुश्किल हो जाएगा. हम अभी भी 2जी युग में फंसे होने की पहचान को छोड़ने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.’


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5जी फोन महंगे क्यों हैं?

नई तकनीक वाले फोन की बढ़ती कीमतें खासकर भारत जैसे निम्न से मध्यम आय वाले देशों को परेशान कर रही हैं.

कुछ विश्लेषकों ने इसके लिए मैक्रोइकोनॉमिक्स कारकों को जिम्मेदार ठहराया है. तो वहीं दूसरों का तर्क है कि फोन-निर्माताओं ने शुरू में 5जी फोन को प्रीमियम उत्पादों के तौर पर पेश करके खुद को फंसा लिया है.

टेलीकॉम रिसर्च फर्म काउंटरप्वाइंट रिसर्च के सीनियर रिसर्च एनालिस्ट प्रचिर सिंह ने कहा, ‘5जी को लोगों की पहुंच के भीतर बनाना अभी बाकी है. मौजूदा समय में अगर भारतीय ब्रांड लावा को छोड़ दें, तो आपको 10 हजार रुपये के आसपास कोई 5G फोन नहीं मिल पाएगा.’

सिंह का कहना है कि 5G फोन को अधिक किफायती बनाने के लिए कीमत में गिरावट की अपेक्षाकृत धीमी दर, आंशिक रूप से मैक्रोइकोनॉमिक कारकों की वजह से है.

उन्होंने कहा, ‘डॉलर के मुकाबले रुपये के कमजोर होने से कंपोनेंट इंपोर्ट कॉस्ट बढ़ गई है और 5जी फोन की कीमत कम होना आर्थिक रूप से संभव नहीं है.’ वह आगे कहते हैं, ‘इसके अलावा सिर्फ फोन को सस्ता किया जाना काफी नहीं है, बल्कि टैरिफ योजनाओं को भी लोगों की पहुंच के भीतर लाना होगा. ऐसे ऐप और यूज केस होने चाहिए जहां उपभोक्ताओं को 5G की जरूरत महसूस हो.

कावूसा ने कहा कि वैसे देखा जाए तो मैक्रोइकोनॉमिक स्थितियों के अलावा, फोन निर्माता भी 5जी फोन की ऊंची कीमत के लिए जिम्मेदार हैं.

कावूसा ने कहा, ‘मैक्रोइकोनॉमिक कारकों की वजह से ही फोन की कीमतें बढ़ी हैं, यह कहना पूरी तरह से ठीक नहीं है. फोन निर्माताओं ने अपने खास मकसद से 5G को एक प्रीमियम तकनीक के रूप में पेश किया और अब उनका ये दांव उल्टा पड़ रहा है. क्योंकि एक बार जब इसे प्रीमियम के रूप में ब्रांडेड कर दिया गया है तो ब्रांडिंग को उलटना या बड़े पैमाने पर आम लोगों के लिए बनाना आसान नहीं होगा.’

गैर-लाभकारी दूरसंचार उद्योग निकाय ITU-APT फाउंडेशन ऑफ इंडिया (IAFI) के अध्यक्ष भारत भाटिया एक अलग नजरिया रखते हैं. वह एक 5G फोन को एक निवेश के रूप में देखते हैं जो धीरे-धीरे भुगतान करेगा.

भाटिया ने कहा, ‘फोन की कीमत भले ही बढ़ गई हो, लेकिन फोन कितना उपयोगी है, यह भी तो देखिए. उदाहरण के तौर पर मान लें कि दो साल पहले एक हजार डॉलर के आईफोन ने एक महीने में लगभग 40 जीबी डेटा खपत की है. लेकिन अब 12,00 डॉलर का आईफोन एक महीने में 100 जीबी तक खर्च कर सकता है. यह इंगित करता है कि हमें फोन के लिए ज्यादा यूज और यूज-केश या एप्लिकेशन मिले हैं. इसलिए लंबे समय में फोन के लिए चुकाई गई कीमत अधिक रिटर्न देती है.

महंगे फोन लोगों को फायदे से वंचित कर देंगे

संयुक्त राष्ट्र ने मानवाधिकारों को सुनिश्चित करने में दूरसंचार की भूमिका को ‘सबसे गरीब’ लोगों तक ‘स्मार्टफोन के जरिए इंटरनेट एक्सेस’ उपलब्ध कराने की योजना को रेखांकित किया था.

5G तकनीक बहुत मायने रखती है. यह कंपनियों और व्यक्तियों को समान रूप से हाई-स्पीड इंटरनेट देने के अलावा, भारत के वित्तीय समावेशन कार्यक्रम को भी बढ़ावा देती है.

एरिक्सन जैसी कंपनियों ने कहा है कि 5जी तकनीक ग्रामीण भारत में डिजिटल माध्यम लाने में काफी मददगार साबित हो सकती है, लेकिन फिलहाल, ग्रामीण क्षेत्रों में ‘ब्रॉडबैंड इंटरनेट एक्सेस की कमी’ है.

कावूसा ने कहा, ‘दूरसंचार की प्रत्येक जनरेशन के साथ फोन की औसत कीमत बढ़ना वास्तव में फायदेमंद नहीं है. 10,000 रुपये से कम में कुछ या कोई विश्वसनीय, उच्च गुणवत्ता वाले 5G फोन उपलब्ध नहीं हैं. इससे कम कीमत जनता की पहुंच को इस तक बढ़ा देगी.’

स्मार्टफोन ने न सिर्फ निजी क्षेत्र द्वारा जनता को सेवाएं प्रदान करने में सक्षम बनाया है, बल्कि सरकार की तरफ से सीधे मिलने वाले फायदों को भी उन तक पहुंचने में मदद की है. वास्तव में, मोबाइल सरकार के बहुप्रचारित JAM (जन धन-आधार-मोबाइल) तिकड़ी के स्तंभों में से एक है, जो गरीबों के बैंक खातों में कल्याणकारी सब्सिडी के प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करता है.

(अनुवाद: संघप्रिया मौर्या | संपादन: अलमिना खातून)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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