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Sunday, 22 December, 2024
होमदेशमोदी सरकार के 55% शीर्ष सचिव साइंस बैकग्राउंड वाले हैं, उनमें से भी करीब आधे IIT से पढ़े हैं

मोदी सरकार के 55% शीर्ष सचिव साइंस बैकग्राउंड वाले हैं, उनमें से भी करीब आधे IIT से पढ़े हैं

सिविल सेवा में शीर्ष के 84 सचिव और निदेशक पदों पर आसीन अधिकारियों में 46 विज्ञान से स्नातक हैं, 28 इंजीनियर हैं. वहीं 22 अधिकारी, चार आईआईटी कानपुर, दिल्ली, मद्रास, बाम्बे से पढ़े हुए हैं.

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नई दिल्ली: दिप्रिंट के एक विश्लेषण के मुताबिक मौजूदा समय में नरेंद्र मोदी सरकार के तहत काम कर रहे आधे से अधिक शीर्ष सचिव और विभागीय निदेशक विज्ञान पृष्ठभूमि से आते हैं.

मौजूदा प्रशासन में सेवारत 84 सचिवों में से 46 ने सिविल सेवा में शामिल होने से पहले विज्ञान माध्यम से शिक्षा हासिल की थी. इसमें 28 इंजीनियर हैं, जबकि बाकी ने जूलॉजी, जैव प्रौद्योगिकी, भौतिकी और वनस्पति विज्ञान का अध्ययन किया. एक एमबीबीएस डॉक्टर और एक आयुर्वेद डॉक्टर भी इसमें शामिल हैं. दिप्रिंट ने यह जानकारी सरकारी वेबसाइटों और पब्लिक डोमेन में मौजूद अन्य स्रोतों से जुटाई है.

28 में से कम से कम 22 इंजीनियर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) से आते हैं, जिसमें 13 आईआईटी कानपुर से स्नातक या स्नातकोत्तर हैं, सात आईआईटी दिल्ली से हैं और एक-एक आईआईटी मद्रास और आईआईटी बॉम्बे से संबद्ध रहे हैं. अन्य इंजीनियर सचिवों— खेल मंत्रालय के रवि मित्तल और पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय में तरुण कपूर— के कार्यालयों में कॉल और ईमेल किए जाने के बावजूद इसका कोई जवाब नहीं मिल पाया कि उन्होंने किन संस्थानों से इंजीनियरिंग की है.


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आईआईटी का दबदबा

सिविल सेवा के शीर्ष स्थानों में आईआईटी कानपुर के पूर्व छात्र सबसे आगे हैं, इसमें रक्षा सचिव डॉ. अजय कुमार (केरल कैडर के 1985 बैच के आईएएस अधिकारी), रक्षा उत्पादन सचिव राज कुमार (1987, गुजरात), ग्रामीण विकास सचिव नागेंद्र नाथ सिन्हा (1987, झारखंड) शामिल हैं.

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत इसी नाम वाले विभाग के निदेशक के तौर पर सेवारत आशुतोष शर्मा एक वैज्ञानिक हैं जो लगभग 30 वर्षों तक आईआईटी कानपुर से जुड़े रहे हैं. वह नैनो प्रौद्योगिकी के प्रोफेसर के रूप में कार्यरत रहे थे.

आईआईटी कानपुर बैकग्राउंड वाले अन्य लोगों में वित्त मंत्रालय में राजस्व निदेशक डॉ. ए.बी.पी. पांडे (1984, महाराष्ट्र), कौशल विकास और उद्यमिता सचिव प्रवीण कुमार (1987, तमिलनाडु) और अन्य विभिन्न विभागों के सचिव डॉ. संजीव रंजन, दुर्गा शंकर मिश्रा, उपेंद्र सिंह, संजय अग्रवाल, रामेश्वर प्रसाद गुप्ता, इंदु शेखर चतुर्वेदी और संजीव गुप्ता शामिल हैं.

नौकरशाही में आईआईटी दिल्ली के सात शीर्ष पूर्व छात्रों की सूची के. शिवाजी (1986, महाराष्ट्र) से शुरू होती है, जो इस समय कई अहम जिम्मेदारियां संभाल रहे हैं. इसमें कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के तहत प्रशासनिक सुधार और पेंशन और पेंशनभोगी कल्याण निदेशक और सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के सचिव का पद शामिल है.

आईआईटी दिल्ली के पूर्व छात्र रहे अन्य सचिवों में योगेंद्र त्रिपाठी, दीपक खांडेकर, प्रदीप खजरोला, राजेश वर्मा, अजय सावने और अपूर्व चंद्र शामिल हैं.

सूची में आईआईटी मद्रास के पूर्व छात्र गिरधर अरामने (1988, आंध्र प्रदेश) भी हैं, जो परिवहन मंत्रालय में सचिव हैं.

विज्ञान विभाग के सचिव और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के अध्यक्ष के शिवन आईआईटी बॉम्बे के पूर्व छात्र रहे हैं.


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यह ट्रेंड क्यों

अक्टूबर में दिप्रिंट द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार 2020 बैच के सिविल सेवकों के आंकड़ों से पता चला है कि 60 फीसदी इंजीनियर हैं. मसूरी स्थित लाल बहादुर शास्त्री नेशनल एकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन (एलबीएसएनएए) में प्रशिक्षण लेने गए 2020 बैच के 428 सिविल सेवकों में 245 यानी 57.25 प्रतिशत इंजीनियर हैं. आठ अन्य का बैकग्राउंड इंजीनियरिंग के साथ प्रबंधन का भी है. इस बैच में केवल 84 सिविल सेवक ही आर्ट्स बैकग्राउंड वाले हैं जो मात्र 19.6 फीसदी होते हैं.

कई वर्तमान और पूर्व सिविल सेवक कहते हैं कि हमेशा से ही विज्ञान बैकग्राउंड वाले छात्र यूपीएससी परीक्षा पास करने में ‘अपेक्षाकृत अधिक सफल’ रहते हैं क्योंकि उन्हें प्रतियोगी परीक्षा देने के लिए बेहतर ढंग से तैयार किया जाता है.

हाल में सेवानिवृत्त एक अधिकारी, जो अपनी पहचान उजागर नहीं करना चाहते थे, ने कहा, ‘यह ट्रेंड तो 1980 के दशक में ही बन गया था. कर्मचारी चयन आयोग परीक्षा (एसएससी), रेलवे और अन्य भर्ती परीक्षाओं में भी यही ट्रेंड देखा जा सकता है— एसएससी पास करने वालों में से 70 प्रतिशत इंजीनियर होते हैं. हर संकाय के छात्र परीक्षा में हिस्सा लेते हैं, लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि वे कौन से वैकल्पिक विषय चुन रहे हैं. इसके कई उदाहरण हैं कि ये विषय उन्हें बेहतर स्कोर करने में मदद करते हैं.’

प्रशिक्षण संस्थान मेरिडियन कोर्सेस फॉर यूपीएससी एस्पायरेंट चलाने वाले ए.के. सिंह इससे सहमति जताते हैं. सिंह ने दिप्रिंट से कहा, ‘पिछले चार दशकों में यूपीएससी परीक्षाओं में प्रौद्योगिकी छात्रों के ज्यादा सफल होने की सबसे बड़ी वजह यह है कि उन्हें कठिन परीक्षा प्रक्रिया से गुजरने का पूर्व अनुभव होता है. आईआईटी छात्र कुशाग्र दिमाग वाले हैं, इसलिए वे सिविल सेवा परीक्षा में भी अच्छा प्रदर्शन करते हैं.’

सिंह खुद आईआईटी कानपुर के पूर्व छात्र हैं, जिन्होंने 1983 में यूपीएससी परीक्षा पास की थी. उनके मुताबिक, 2013 में बदला परीक्षा पैटर्न भी प्रौद्योगिकी छात्रों के पक्ष में रहा है.

सिंह ने आगे कहा, ‘दो वैकल्पिक विषयों को लेने के पिछले पैटर्न को बदला गया और घटाकर केवल एक विषय कर दिया गया. जनरल स्टडीज का वैकल्पिक विषय काफी हद तक करंट अफेयर्स पर आधारित होता है और हार्ड वर्किंग और टेक-सैवी होने के कारण सिविल सेवाओं में शामिल होने के इच्छुक प्रौद्योगिकी छात्रों को इसमें खुद को अप-टू-डेट रखना आसान लगता है.

उन्होंने बताया, ‘1990 के दशक में अर्थव्यवस्था और निजीकरण की राह खुलने के कारण यह ट्रेंड घट गया था क्योंकि तब प्रौद्योगिकी छात्रों के सामने कैरियर के बहुत सारे विकल्प थे. लेकिन 2000 के दशक में जब अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी पड़ने लगी, हमने देखा कि इस क्षेत्र में विज्ञान के छात्रों की संख्या फिर बढ़ रही है.’


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आईआईटी की कड़ी मेहनत और अनुशासन सिविल सेवा में मददगार

नाम न छापने के अनुरोध पर एक अन्य अधिकारी ने कहा कि आईआईटी में पढ़ाई के साथ जो अनुशासन आता है, वो वैसा ही है जो इंजीनियरिंग छात्रों के लिए यूपीएससी परीक्षा पास करने में मददगार होता है.

कोयला मंत्रालय के पूर्व सचिव अनिल स्वरूप ने कहा, ‘यह आईआईटी में जाने से योग्यता बढ़ जाने जैसा कुछ नहीं है बल्कि वहां पढ़ने के साथ सीखा गया अनुशासन काम आता है. सिविल सेवा परीक्षा को पास करने के लिए किसी के लिए अनुशासित, बेहद मेहनती और तार्किक होना जरूरी होता है.’

स्वरूप ने कहा, ‘यदि आप नवीनतम ट्रेंड देखें तो सिविल सेवा परीक्षा पास करने वालों में बहुत सारे इंजीनियर नजर आएंगे. सामान्यत: ह्यूमैनिटी छात्रों को स्नातक होने के लिए इंजीनियरिंग छात्रों की जितनी मेहनत नहीं करनी पड़ती है. अब आप पहले की तुलना में ह्यूमैनिटी छात्रों के बीच अपवाद पा सकते हैं. लेकिन आईआईटी का पाठ्यक्रम आपको एकदम अनुशासित बना देता है क्योंकि इसके लिए कठिन परिश्रम करना आवश्यक होता है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘ऐसा नहीं है कि तकनीकी कौशल ही हमेशा अधिकारियों की मदद करता है, बल्कि नेतृत्व कौशल और कोई भी काम करा पाने की क्षमता भी मायने रखती है. 30 साल पहले हासिल किया गया तकनीकी ज्ञान एक आईएएस अधिकारी के लिए मददगार नहीं हो सकता है.’

आईआईटी कानपुर के छात्र रहे एक सेवारत सचिव ने दिप्रिंट को बताया, ‘1980 का दशक था जब हममें से कई आईआईटी छात्र सिविल सेवाओं में शामिल हो गए थे. यही स्थिति अब सचिव स्तर तक आ गई है. उदाहरण के तौर पर गृह, उद्योग और कार्मिक विभागों के मुख्य सचिव और प्रभारी मुख्य सचिव सभी आईआईटी कानपुर से हैं.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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