नई दिल्ली: सबसे पहले इसे एक दुर्घटना घोषित किया गया, फिर एक हत्या का मामला बताया गया और फिर यह एक दुर्घटना का मामला बन कर रह गया. राजस्थान पुलिस द्वारा 22 वर्षीय विक्रांत नगाइच का शव नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (एनएलयू), जोधपुर के बाहर रेलवे पटरियों से करीब 10 फीट दूर पाए जाने के पांच साल बाद भी अभी तक इस मामले का सुलझाया जाना बाकी है. उन्होंने कानून के इस छात्र की मौत की असल वजह के बारे में कई बार यू-टर्न लिया है और इस सबने अनुत्तरित प्रश्नों के कई सारे निशान पीछे छोड़ दिए हैं.
विक्रांत की मृत्यु हुए पांच साल हो चुके हैं और उनके माता-पिता कर्नल (सेवानिवृत्त) जयंत नगाइच और डॉ. नीतू नगाइच, अभी भी अपने बेटे की मौत की असल वजह के बारे में जवाब मांगते हुए एक लंबी कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं.
विक्रांत जोधपुर के मुख्य शहर से 12 किमी दूर राष्ट्रीय राजमार्ग-65 पर स्थित इस प्रतिष्ठित लॉ स्कूल में तीसरे वर्ष का छात्र था. उसे 14 अगस्त 2017 को संदिग्ध परिस्थितियों में मृत पाया गया था.
पुलिस द्वारा इस मामले में अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने के लिए विक्रांत के माता-पिता को पहले राजस्थान उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर करनी पड़ी और बाद में उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में एक और अपील की. शीर्ष अदालत ने पूरी जांच प्रक्रिया की वास्तविकता पर सवाल उठाते हुए इस अंतिम रिपोर्ट को ही खारिज कर दिया था.
पुलिस ने शुरू में उच्च न्यायालय के साथ-साथ सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष भी यही दावा किया था कि यह मौत दुर्घटना वाली प्रकृति की थी. हालांकि, अपनी पहली अंतिम रिपोर्ट में, पुलिस ने अपनी बात से पलटी मारते हुए यह घोषित किया कि उसकी मौत वास्तव में एक ‘मानव हत्या’ थी लेकिन इस बात का कोई सुराग नहीं है कि यह किया किसने. फिर पिछले साल मार्च में एक दूसरी अंतिम रिपोर्ट दायर की गई थी, जिसमें फिर से दावा किया गया था कि विक्रांत की मौत ‘दुर्घटनावश’ हुई थी.
हालांकि, इस मामले से जुडी तमाम रिपोर्ट्स और जांच ने विक्रांत की मौत पर जवाबों की तुलना में सवाल ही ज्यादा खड़े किए हैं. किस वजह से जांच अधिकारियों ने इस बात पर कई यू-टर्न लिए कि यह मौत एक दुर्घटना थी या हत्या?
मृतक के फोन पर उसकी मृत्यु के 25 दिन बाद एक मैसेज कैसे पहुंचा जबकि पुलिस ने कहा था कि उसका फोन क्षतिग्रस्त हो गया था और कोई डेटा प्राप्त करने के लिए उसकी मरम्मत नहीं की जा सकती थी? जिस जगह पर विक्रांत की लाश मिली थी वहां उसका खून क्यों नहीं मिला था? अगर विक्रांत की मौत के बाद उसके शव को हिलाया या हटाया नहीं गया था तो उसकी एक चप्पल कभी बरामद क्यों नहीं हुई? क्या वह अपराधियों द्वारा इस वजह से निशाना बनाया गया था क्योंकि उसने अभियोजन पक्ष के कुछ वकीलों को ‘अवैध शराब के व्यापार में लगी स्थानीय भीड़’ के खिलाफ मामला खड़ा करने में मदद करने की कोशिश की थी?
सपने देखने वाला एक बच्चा जो अभी हाल ही में स्कूल से निकला था, के रूप में विक्रांत ने साल 2013 में देश भर में घूमने और ‘खुद की तलाश करने’ के लिए एक साल की छुट्टी ली थी. इसके बाद उसने आईआईटी-जेईई सहित कई प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता प्राप्त की और फाइटर पायलट के रूप में चयन के लिए एनडीए की प्रवेश परीक्षा में अखिल भारतीय स्तर पर 19वीं रैंक हासिल की थी. कर्नल नगाइच हंसते हुए कहते हैं, ‘उसने ऐसा सिर्फ यह साबित करने के लिए किया कि वह मेरे जितना ही अच्छा है.’
इसके बाद उसने अपने अभिभावकों से कहा था कि वह कानून का अध्ययन करना और फिर नीतिगत बदलाव लाने के लिए प्रशासनिक सेवाओं में शामिल होना चाहता है. और इसलिए उसने एनएलयू, जोधपुर में दाखिला ले लिया था.
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वह दुर्भाग्यशाली दिन
55 एकड़ में फैला एनएलयू, जोधपुर का परिसर शहरी जीवन की नीरसता से दूर, एक तारों से भरे, अपेक्षाकृत प्रदूषण मुक्त आकाश के नीचे स्थित है. इस परिसर के सामने कुछ रेस्तरां और दुकानें हैं. 13 अगस्त 2017 को शाम के लगभग 7:30 बजे विक्रांत अपने दो दोस्तों के साथ एक ऐसे ही ‘रेस्तरां स्वीट ड्रीम लैंड’- जिसे यहां के छात्रों के बीच ‘एसडीएल’ के नाम से जाना जाता है और जो विश्वविद्यालय से लगभग 300 मीटर की दूरी पर स्थित है- में डिनर के लिए बाहर निकला था.
हालांकि, उसके दोस्त उसी रात कुछ समय बाद कॉलेज लौट आये थे, मगर विक्रांत का शव अगली सुबह लक्ष्मी गेस्ट हाउस नामक एक प्रतिष्ठान के पास उस रेलवे ट्रैक के पास पाया गया, जो कॉलेज के सामने बनी दुकानों के पीछे से गुजरती है. दिप्रिंट द्वारा देखी गई पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के अनुसार, विक्रांत की मौत कई सारी चोटों की वजह से लगे सदमे और अत्यधिक रक्तस्राव के कारण हुई थी. इसने उसके सिर और रीढ़ सहित शरीर पर लगी कई चोटों पर ध्यान दिया, और इस बात का जिक्र किया कि ये चोटें मृत्यु पूर्व (मौत से पहले) वाली प्रकृति की थीं.
इस दुःखद घटना के तुरंत बाद, कॉलेज के अधिकारियों ने दावा किया कि विक्रांत के दोस्तों के अनुसार, वह अवसादग्रस्त था और उसका इलाज चल रहा था. इसलिए, शुरुआत में उसकी मौत को ट्रेन से टकराने या आत्महत्या के रूप में हुई ‘आकस्मिक मृत्य’ के रूप से पेश करने की कोशिश की गई थी. मगर विक्रांत के माता-पिता ने इस दावे का पुरजोर विरोध किया था .
दिप्रिंट द्वारा देखी गई रेलवे अधिकारियों की एक रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है कि 13 और 14 अगस्त के बीच की रात के दौरान उन पटरियों से गुजरने वाली ट्रेनों ने किसी भी अप्रिय घटना की कोई सूचना नहीं दी थी. अमूमन जब भी ऐसी कोई अप्रिय घटना होती है तो ट्रेन का पायलट या गार्ड ट्रेन को रोक देता है और घटना की लिखित सूचना अगले स्टेशन पर दे देता है.
कई महीनों तक इस मामले में कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं किये जाने के बाद, विक्रांत के अभिभावकों ने क्राइम इन्वेस्टीगेशन डिपार्टमेंट-क्राइम ब्रांच (सीआईडी-सीबी), जयपुर के अधिकारियों से संपर्क किया. इसके बाद ही इस मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी और वह भी 10 महीने बाद, 29 जून 2018 को.
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‘लापरवाह और संवेदनहीन’
हालांकि, जांच में कोई प्रगति न होते देख विक्रांत के पिता ने मार्च 2019 में राजस्थान उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. अदालत ने जुलाई 2019 में मामले की जांच के लिए एक विशेष जांच दल के गठन का आदेश दिया था. फिर इसने फरवरी 2020 में जांच अधिकारी को मामले की गहन जांच करने के निर्देश के साथ याचिका का निपटारा कर दिया था.
इसके बाद विक्रांत की मां ने जून 2020 में सुप्रीम कोर्ट में एक और याचिका दायर की. इसके जवाब में 3 जुलाई 2020 को दायर किये गए एक हलफनामे में जांच अधिकारियों ने जोर देकर कहा कि यह एक एक्सीडेंटल (दुर्घटनावश हुई) मौत थी. उन्होंने इसी तरह का दावा हाई कोर्ट के सामने भी किया था. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट में दायर एक लंबी क्लोजर रिपोर्ट (मामले की अंतिम रिपोर्ट) में अधिकारियों ने स्वीकार किया कि हालांकि यह मौत ‘मानव हत्या थी, उन्हें इस बात का कोई सुराग नहीं है कि यह किया किसने.
सितंबर 2020 में शीर्ष अदालत द्वारा दिया गया फैसला इस मामले में जांच के लिए अपनाये गए तरीके पर एक तीखी टिप्पणी थी. पेश किये गए सबूतों पर सरसरी निगाह डालते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि ‘यह इस बात की कल्पना करने के लिए बहुत जगह नहीं छोड़ता है कि मृतक के ऊपर रेलवे ट्रैक पर नहीं, बल्कि कहीं और हमला किया गया था.’
इसने आगे कहा कि ‘पुलिस की लापरवाही और संवेदनहीनता इस तथ्य से परिलक्षित होती है कि न तो अपराध स्थल को सील किया गया था और न ही घटना के दिन की प्रासंगिक अवधि के दौरान की सीसीटीवी फुटेज, डिजिटल फुटप्रिंट्स और मोबाइल लोकेशन तथा व्हाट्सएप चैट सहित संबंधित गवाहों की तत्परता से आवश्यक जांच की गई थी.‘
अदालत ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि जहां विक्रांत के कपड़ों पर खून लगा था, वहीं जिस जगह से उसकी लाश मिली थे वहां खून नहीं मिला था. यह भी नोट किया गया कि उसके मृत शरीर के पास उसकी केवल एक ही चप्पल पाई गई थी.
इस क्लोजर रिपोर्ट को सिरे से दरकिनार करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने राज्य के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की अध्यक्षता में जांचकर्ताओं की एक नई टीम द्वारा ‘नए सिरे से’ जांच का निर्देश दिया था.
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लाश को सबसे पहले किसने देखा?
नए जांच दल ने पिछले साल 27 मार्च को एक नई रिपोर्ट दायर की, जिसमें फिर से दावा किया गया कि विक्रांत की मौत एक्सीडेंटल थी. यह पांच डमी (नकली पुतले) और एक ट्रेन के इंजन के साथ अपराध के दृश्य को फिर से तैयार करने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंची थी. इस इंजन को अलग-अलग तरीकों से डमी के ऊपर चलाया गया ताकि यह पता चल सके कि विक्रांत के शरीर की स्थिति और उसकी चोटें किसी ट्रेन दुर्घटना का परिणाम हो सकती हैं या नहीं.
इस दूसरी अंतिम रिपोर्ट में कहा गया है कि विक्रांत की मृत्यु रात करीब 10:58 बजे रूणिचा एक्सप्रेस से हुई ‘हल्की टक्कर’ के बाद हुई और वह ट्रेन के ‘पिछले भाग’ के संपर्क में आया था. रिपोर्ट में कहा गया है कि जब ट्रेन के कुछ हिस्सों से किसी को हल्की चोट लगती है तो लोको पायलट (इंजन चला रहे चालक) को इस तरह की टक्कर का पता नहीं चलता.
हालांकि, विक्रांत के पिता ने इसके बाद से इस जांच में कई विसंगतियां और खामियां बताई हैं. मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष दायर किये गए एक आवेदन में इस रिपोर्ट को चुनौती देते हुए उन्होंने कहा है कि जांच अधिकारियों ने गूगल या व्हाट्सएप जैसे ऐप के डेटा का उपयोग करके अपराध स्थल के डिजिटल फुटप्रिंट को फिर से तैयार नहीं किया.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘यह शक्तियों का खुल्लम-खुल्ला दुरुपयोग है. इससे ज्यादा सख्त बात कुछ भी नहीं हो सकती है जो यह कहे कि जहां तक किसी अपराध के पीछे अंतर्निहित सच्चाई का पता लगाने के लिए प्रौद्योगिकी के उपयोग का संबंध है, राजस्थान पुलिस एकदम से दिवालिया है.’
इसके अलावा, दिप्रिंट द्वारा देखे गए समाचार पत्र की खबरों के अनुसार, मंडोर की पूर्व स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ) मुक्ता पारीक भी रेलवे पटरियों के पास अपराध स्थल को फिर से तैयार किये जाने वाली कवायद का हिस्सा थीं, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की जांच करने के लिए एक पूरी तरह से नई टीम बनाने का निर्देश दिया था.
इस नई अंतिम रिपोर्ट में कई ऐसे गवाहों के बयानों को भी खारिज कर दिया गया है, जो पुलिस के इस दावे का खंडन करते हैं कि विक्रांत की मौत एक दुर्घटना थी. मिसाल के तौर पर, पुलिस रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि विक्रांत का शव सबसे पहले एक स्थानीय मजदूर सोना लाल ने सुबह करीब 9:30 बजे देखा था, जिसके बाद उसने गेस्ट हाउस के मालिक को सूचित किया.
हालांकि, लक्ष्मी गेस्ट हाउस में रह रहे एनएलयू के एक अन्य छात्र ने पुलिस को बताया था कि जब वह 14 अगस्त की सुबह करीब 8 बजे एनएलयू के मैदान से वापस लौट रहा था, तो गेस्ट हाउस के लोगों ने उसे एक शव के मिलने की सूचना दी. उसने देखा कि शव के पास लोगों का एक समूह खड़ा है. उसने मृतक के शरीर को दूर से देखा लेकिन उसे पहचान नहीं पाया और अपने दैनिक कामों में लग गया.
दूसरी अंतिम रिपोर्ट में इस लाश के बारे में बताए जाने के बाद इस छात्र द्वारा किये गए आचरण पर सवाल उठाते हुए उसकी गवाही को खारिज कर दिया गया. रिपोर्ट में कहा गया है कि यह तथ्य कि छात्र ने इसके बाद अपने कपड़े पहने और किसी से इस घटना का जिक्र किए बिना अपनी कक्षाओं में भाग लिया, यह दर्शाता है कि वह घटना के बारे में पर्याप्त रूप से ‘गंभीर’ नहीं था. हालांकि, इससे आगे इस छात्र के दावे की विस्तार से कोई जांच नहीं की गई.
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मौत के 25 दिन बाद मिला टेक्स्ट मैसेज
इसके अलावा, अधिकारियों ने दावा किया था कि विक्रांत का फोन इस कदर नष्ट हो गया था और इसकी मरम्मत के बाद भी इससे कोई डेटा फिर से प्राप्त नहीं किया जा सका. हालांकि, उसकी खुद की दूसरी अंतिम रिपोर्ट के मुताबिक, विक्रांत के फोन पर उसकी मौत के 25 दिन बाद- 9 सितंबर 2017 को एक ‘हे’ का मैसेज आया था जो उसके दोस्त ने उसे 14 अगस्त 2017 को भेजा था. यह उसके दोस्त के फोन पर मैसेज मिलने की रिसीट रिपोर्ट के अनुसार है.
हालांकि, अंतिम रिपोर्ट में दावा किया गया था कि विक्रांत के फोन से कोई डेटा बरामद नहीं किया जा सका क्योंकि ‘डेटा चिप मेमोरी ‘बहुत बुरी तरह क्षतिग्रस्त’ हो गई थी.
विक्रांत के अभिभावकों ने यह भी आरोप लगाया है कि वह ‘अवैध शराब के कारोबार में लगी एक स्थानीय भीड़’ के खिलाफ मामला खड़ा करने के लिए अभियोजन पक्ष के कुछ स्थानीय वकीलों की मदद करने पर काम कर रहा था. फिर वे प्रतिबंधित पदार्थों और नशीले पदार्थों का कारोबार करने वाले अपराधियों के इस गिरोह या उससे संबद्ध स्थानीय समूहों की संभावित संलिप्तता के बारे सवाल उठाते हैं.
हालांकि, पुलिस द्वारा दायर की गई अंतिम रिपोर्ट ने इस सिद्धांत को केवल इस आधार पर खारिज कर दिया कि विक्रांत के कुछ दोस्तों ने विक्रांत के ऐसे किसी भी ड्रग माफिया के खिलाफ आवाज उठाने के बारे में कोई जानकारी होने से इनकार किया था. इस रिपोर्ट में विक्रांत के दो दोस्तों के कथन को भी काफी वेटेज दिया गया है, जिसमें दावा किया गया है कि वह ‘कभी-कभी वीड (चरस) का सेवन करता था.
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‘किसे दोष दिया जाए?’
पिछले साल अगस्त में, विक्रांत की मां ने सुप्रीम कोर्ट में एक अवमानना याचिका दायर की, जिसमें इस बात का जिक्र था कि अदालत को यह सूचित किये जाने के बाद कि यह हत्या का मामला था, उसकी मौत को फिर से ‘दुर्घटना’ कहा गया था. यह याचिका राजस्थान के पुलिस महानिदेशक, पुलिस उपायुक्त (पूर्वी) जोधपुर और सहायक पुलिस आयुक्त, मंडोर के खिलाफ दायर की गई थी. शीर्ष अदालत ने इस याचिका पर पिछले साल नवंबर में नोटिस जारी किया था. मगर, यह मामला अभी तक भी सुनवाई के लिए नहीं आया है.
कर्नल (सेवानिवृत) जयंत नगाइच ने भी जोधपुर के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष एक आवेदन दायर कर ताजा जांच में कई खामियां गिनाई हैं. इसलिए उन्होंने मांग की है कि इस अंतिम रिपोर्ट को खारिज कर दिया जाना चाहिए और अधिकारियों को इन त्रुटियों की नए सिरे से जांच करने का निर्देश दिया जाना चाहिए.
उसकी विरासत को जीवित रखना
इस हादसे के बाद से विक्रांत के माता-पिता अपने बेटे की ‘विरासत’ को जीवित रखने की भी कोशिश कर रहे हैं. इसके लिए उन्होंने एक ‘विक्रांत नगाइच वेलफेयर ट्रस्ट’ की स्थापना की है.
उसके पिता कहते हैं, ‘विक्रांत एक मेधावी बच्चा था. उसने अपनी 22 साल की उम्र में उससे कहीं ज्यादा हासिल किया, जितना मैंने अपने 63 साल में हासिल किया है.’ वह याद करते हैं कि कैसे विक्रांत ने हाल के दिनों में हुई सबसे भयानक प्राकृतिक त्रासदियों में से एक के दौरान बाढ़ प्रभावित केदारनाथ में लगभग 50 दिनों तक स्वयंसेवक के रूप में काम किया था.
उसने अपने कॉलेज के दिनों के दौरान झारखंड के नक्सल प्रभावित क्षेत्र जोभीपथ में राजकीय अनुसूचित जनजाति आवासीय उच्च विद्यालय, जोभीपथ के कक्षा 10 की परीक्षा के लिए छात्रों को पढ़ाने के लिए भी कुछ समय निकाला था. यह ज्यां द्रेज के ‘हार्ड वर्क, नो पे’ कैंपेन के तहत किया गया था.
इसके बाद उसने जोभीपथ स्कूल के तीन बच्चों को एक सप्ताह के होमस्टे के तहत एक मेट्रोपॉलिटन शहर के तौर-तरीकों से परिचित कराने और उन्हें दिल्ली विधानसभा के एक सत्र में ले जाने के लिए अपने सभी इंटर्नशिप और प्रतियोगिता में जीते गए पैसों का उपयोग किया. और उसने यह सब दिल्ली डायलॉग कमीशन में आशीष खेतान के अधीन इंटर्नशिप करने के दौरान किया था.
विक्रांत के माता-पिता ने कहा, ‘यह उन बच्चों द्वारा अनुभवात्मक रूप से सीखने में सहायता करने और उन्हें कड़ी मेहनत करने और यह देखने के लिए प्रेरित करने हेतु था कि वे अपने जीवन का क्या कर सकते हैं.’
जहां तक कर्नल नागाइच का सवाल है, उन्होंने साल 2003 में सेना से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थे और साल 2017, जिस वर्ष विक्रांत का निधन हुआ था, तक कॉर्पोरेट क्षेत्र के साथ काम किया था. विक्रांत की मौत के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी, क्योंकि वह अपने काम पर ‘ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रहे थे’. वह अब बस इस लड़ाई को जीवित रखने का इरादा रखते हैं. उन्होंने कहा, ‘विक्रांत के लिए न्याय पाने के मामले में मैं उसे फिर से निराश नहीं करना चाहता.’
इन सेवानिवृत्त कर्नल ने दिप्रिंट को बताया, ‘वे (अधिकारी) मामले को बंद करना चाहते हैं, जिसे हम स्वीकार नहीं करने जा रहे हैं. हम अपनी लड़ाई लड़ते रहेंगे.’
उन्होंने कहा, ‘मैं उनसे जवाबदेही तय करने के लिए कहूंगा. आधुनिक तकनीक के इस युग में यह पता लगाना आवश्यक है कि इस जघन्य अपराध के लिए कौन जिम्मेदार है. हम इसे ऐसे ही जाने नहीं दे सकते.’
(अनुवाद: रामलाल खन्ना | संपादन: कृष्ण मुरारी)
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