नई दिल्ली: देश के एक प्रमुख वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थान, भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी), अब अपने छात्रावास के कमरों से सीलिंग फैन्स (छत में टंगे पंखे) हटा रहा है. जाहिर तौर पर यह छात्रों को आत्महत्या जैसा कदम उठाने से रोकने के लिए किया जा रहा है. यह कदम इस साल मार्च से लेकर अब तक संस्थान के चार छात्रों द्वारा अपने छात्रावास के कमरों में कथित तौर पर आत्महत्या करने के बाद उठाया गया है. ज्ञात हो कि इनमें से तीन ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी.
हालांकि, छत के पंखे अभी ही हटाए जा रहे हैं, उनकी जगह टेबल या दीवार पर लगे पंखों को लगाए जाने की योजना है.
दिप्रिंट को शुक्रवार को भेजे गए दो ई-मेल वाले जवाब में, आईआईएससी ने इस बात की पुष्टि की कि छात्रावास के कमरों से सीलिंग फैन्स हटाए जा रहे हैं, और इसने यह दावा किया कि यह ‘परिसर के अंदर खुद को नुकसान पहुंचाने के किसी भी साधन तक छात्रों की पहुंच को प्रतिबंधित करने के लिए किये जा रहे कई उपायों में से एक है. संस्थान ने यह भी बताया कि वह ‘आईआईएससी समुदाय के मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए’ अपनी तरफ से सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर रहा है.
इनमें से एक ई-मेल में आगे कहा गया है, ‘हम जो भी उपाय कर रहे हैं, वे उन सिफारिशों पर आधारित हैं जो हमें मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा दी गई हैं.’
संस्थान द्वारा किए गए अन्य उपायों का उल्लेख करते हुए, इस ई-मेल में कहा गया है कि ‘इसमें से एक अन्य पहल यह थी कि एक परामर्शदाता (काउंसलर) परिसर के छात्रों से व्यक्तिगत रूप से उनके हाल-चाल के बारे में बातचीत करे और यह काम पहले ही पूरा हो चुका है’.
इसमें लिखा गया है, ‘हालांकि, हम इस बात पर जोर देना चाहेंगे कि ये हाल के दिनों में किए गए कई उपायों में से सिर्फ कुछ उदाहरण हैं.’
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दिप्रिंट ने आईआईएससी के स्टूडेंट्स काउंसिल (छात्र परिषद) के अध्यक्ष से छात्रावास के कमरों से सीलिंग फैन्स हटाए जाने पर उनकी टिप्पणी के लिए फोन से संपर्क किया.
हालांकि, उन्होंने इस मुद्दे पर कोई भी टिप्पणी करने से इंकार कर दिया, मगर समाचार पत्र डेक्कन हेराल्ड में गुरुवार को प्रकाशित एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि उसने परिसर के भीतर किए गए एक सर्वेक्षण के बारे में जानकारी हासिल की थी, ‘जिसमें पाया गया कि 305 उत्तरदाताओं में से 90 प्रतिशत यह नहीं चाहते थे कि सीलिंग फैन्स को दीवार पर लगे पंखे से बदल दिया जाये, जबकि 6 फीसदी ने कहा कि उन्हें इसकी कोई परवाह नहीं है.
इससे पहले यहां के छात्रों ने आरोप लगाया था कि संस्थान ने उन छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर कोई ध्यान नहीं दिया, जिन्हें महामारी की वजह से लगे कई महीनों के लॉकडाउन के दौरान भी छात्रावास में ही रहना पड़ा था.
अपना नाम सामने न आने की शर्त पर बात करते हुए, एक छात्रा ने सितंबर में दिप्रिंट को बताया था, ‘विज्ञान के छात्रों को प्रयोगशाला में रहने की आवश्यकता होती है क्योंकि सभी प्रयोग ऑनलाइन नहीं किए जा सकते हैं, इसलिए कई छात्र संस्थान में हीं रुक गए थे. जो लोग यहां रुके थे उन्हें केवल अपनी कक्षा में जाने और इसके बाद छात्रावास में वापस आने की ही अनुमति थी.’
उसने कहा, ‘हम अपना खाना कैफेटेरिया से टिफिन बॉक्स में लेते थे और फिर अपने-अपने कमरों में बैठकर खाते थे. एक ‘कोविड ब्रिगेड’ की स्थापना की गई थी जो इस बात की निगरानी करती थी कि छात्र क्या कर रहे हैं या फिर उन्होंने किसके साथ बातचीत की. हमें अपने सहपाठियों के साथ खुले मैदान में बात करने की भी इजाजत नहीं थी. यह बेहद परेशान करने वाला समय था और वहां सबसे अलग-थलग रहने की जहमत ने हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर काफी बुरा असर डाला.’
आईआईएससी में मानसिक स्वास्थ्य के लिए की जा रही पहल
छात्रों के अंदर जड़ जमा रहे मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को दूर करने के लिए संस्थान ने महामारी के दौरान एक वेलनेस सेंटर भी स्थापित किया था.
दिप्रिंट को भेजे गए जवाब वाले अपने ई-मेल में संस्थान ने दावा किया कि उसके द्वारा अपने छात्रों के मानसिक स्वस्थता सुनिश्चित करने के लिए किए गए अन्य उपायों में संस्थान के समूचे समुदाय के लिए वेलनेस सेंटर्स की उपलब्धता बढ़ाना, एक चौबीसों घंटे काम करने वाली आपातकालीन कॉल सेवा, चौबीसों घंटे उपलब्ध ऑनलाइन परामर्श, योरदोस्त (YourDost) प्लेटफॉर्म के माध्यम से दी जा रही सहायता और परामर्श (काउंसलिंग) भी शामिल है.
इसमें कहा गया है: ‘ऑन-कैंपस काउंसलर (परिसर के भीतर मौजूद परामर्शदाता) के अलावा, बाहरी सलाहकारों के एक पैनल को भी छात्रों के लिए ऑनलाइन या व्यक्तिगत रूप से अपॉइंटमेंट के साथ उपलब्ध कराया जाता है. वेलनेस सेंटर भी इनविटेशन टॉक्स (आमंत्रण वार्ता), कार्यशालाएं और सेमिनार के कई सत्र आयोजित कर मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण से संबंधित जागरूकता बढ़ाता रहा है.
‘मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े संसाधनों के बारे में जानकारी के साथ-साथ वेलनेस सेंटर द्वारा आयोजित कार्यक्रमों को पूरे संस्थान में ई-मेल के माध्यम से परिसर के सभी सदस्यों के बीच प्रचारित किया जाता है. आईआईएससी के प्रत्येक विभाग/केंद्र में एक वेलनेस कमेटी भी है – जिसमें दो शिक्षक वर्ग के सदस्य और दो छात्र शामिल होते हैं – जिनसे छात्र अपनी किसी भी समस्या या चिंता के मामले में संपर्क कर सकते हैं. वर्तमान में कई छात्र वेलनेस सेंटर द्वारा दी जा रही सुविधाओं का उपयोग कर रहे हैं.’
हालांकि, सितंबर में दिप्रिंट से बात करने वाले छात्रों ने दावा किया कि वेलनेस सेंटर में केवल दो परामर्शदाता चिकित्सक हैं, जो केवल सप्ताहांत में हीं उपलब्ध रहते हैं.
संस्थान के जीव विज्ञान विभाग में पीएचडी कर रहे एक शोध छात्र का कहना था कि मानसिक स्वास्थ्य सेवा की स्थापना के बावजूद संस्थान द्वारा इसके संचालन के लिए उपलब्ध कराई गई धनराशि पर्याप्त नहीं है. इस छात्र ने अपनी पहचान न उजागर करने की शर्त पर कहा था, ‘मैं संस्थान द्वारा प्रदान किए गए काउंसलर और मनोचिकित्सक के साथ परामर्श सत्र में भाग लेता हूं, लेकिन वे सप्ताह में केवल दो दिन ही 3 घंटों के लिए इन सत्रों के लिए उपलब्ध होते हैं. इतने कम समय में ये मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ केवल कुछ ही छात्रों से बात कर सकते हैं.’
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