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Friday, 22 November, 2024
होमदेश'मंदिर मनोरंजन के लिए नहीं होते..', उत्तराखंड के 3 मंदिरों में महिलाओं के छोटे कपड़ों में जाने पर रोक

‘मंदिर मनोरंजन के लिए नहीं होते..’, उत्तराखंड के 3 मंदिरों में महिलाओं के छोटे कपड़ों में जाने पर रोक

ये तीन मंदिर हरिद्वार के अंखल का दक्ष प्रजापति मंदिर, पौड़ी जिले में नीलकंठ महादेव मंदिर और देहरादून का तापकेश्वर महादेव मंदिर हैं. 

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देहरादून (उत्तराखंड) : उत्तराखंड के तीन बड़े मंदिरों में जो कि महानिर्वाणी अखाड़ा के अधीन आते हैं, वहां महिलाओं और लड़कियों को छोटे कपड़े पहन कर जाने पर रोक लगा दी गई है और ड्रेस कोड लागू कर दिया गया है.

महानिर्वाणी अखाड़ा के सचिव और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रवींद्र पुरी ने कहा महानिर्वाणी अखाड़ा के अंतर्गत आने वाले तीन मंदिरों में महिलाएं और लड़कियों छोटे कपड़ों में प्रवेश नहीं कर सकतीं. इन मंदिरों में हरिद्वार के अनखल का दक्ष प्रजापति मंदिर, पौड़ी जिले में नीलकंठ महादेव मंदिर और देहरादून का तापकेश्वर महादेव मंदिर शामिल है.

पुरी ने कहा, ‘महिलाएं और लड़कियां इन तीन मंदिरों में छोटे कपड़ों के साथ प्रवेश नहीं कर सकतीं. ये तीनों मंदिर महानिर्वाणी अखाड़ा के अधीन आते हैं.’

उन्होंने आगे कहा कि अखाड़े ने इन मंदिरों में जाने वाले श्रद्धालुओं से अपील की है कि ये मंदिर आत्मनिरीक्षण के लिए होते हैं न कि मनोरंजन के लिए.

उन्होंने कहा, ‘महानिर्वाणी अखाड़े की तरफ से जो महिलाओं और लड़कियों यहां पूजा करने के लिए आ रही हों, वे भारतीय परंपरा के मुताबिक कपड़े धारण करके आएं, तभी उन्हें मंदिर में प्रवेश मिलेगा.’

श्रीमंत रवींद्र पुरी ने लड़कियों और महिलाओं उनके परिवार के सदस्यों से अपील की है कि वे मंदिर में कम से कम 80 प्रतिशत ढंकी शरीर के साथ आएं. उन्होंने दावा किया कि यह नियम पहले से ही दक्षिण भारत और महाराष्ट्र के मंदिरों में लागू है. उन्होंने कहा, ‘अब यह व्यवस्था यहां भी लागू की जा रही है. ताकि श्रद्धालु मंदिर आएं तो उन्हें किसी असहज स्थिति का सामना न करना पड़े.’

केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर हो चुका है विवाद

गौरतलब है कि इससे पहले केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 साल से कम उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगा दी गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने बाद में मामले में सुनवाई कर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक को गलत माना था और उनके प्रवेश को इजाजत दे दी थी. अदालत ने इसे सार्वजनिक जगह बताया था जो कि सब के लिए होती है.

उस समय के मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा ने कहा था कि देश में प्राइवेट मंदिर का कोई सिद्धांत नहीं है. यह सार्वजनिक संपत्ति होते हैं. उन्होंने कहा था, ‘मंदिर जब खुलता है तो उसमें कोई भी जा सकता है. किसी भी आधार प्रतिबंध नहीं जा लगाया सकता, यह संविधान की भावना के खिलाफ है.’

वहीं जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत सभी नागरिकों को अपने धर्म की प्रैक्टिस करने और उसका प्रचार-प्रसार करने का अधिकार है. लिहाजा किसी महिला का यह अधिकार किसी विधान के तहत नहीं बल्कि संवैधानिक अधिकार के तहत है.

कोर्ट के फैसले के बाद सबरीमाला मंदिर में बिंदु अस्मिनी और कनकदुर्गा प्रवेश कर इतिहास रचा था. बिंदु की उम्र 40 साल की थी जबकि कनदुर्गा उनसे एक साल छोटी थीं. कनकदुर्गा ने तब कहा था, ‘महिलाओं के प्रति समाज की सोच बिलकुल नहीं बदली है.’

वहीं सबरीमाला मंदिर की ओर से कहा गया था कि इस मंदिर के भगवान अयप्पन ब्रह्मचारी थे. इसलिए मंदिर में वहीं बच्चियां या स्त्रियां जा सकती थीं, जिनका मासकि धर्म शुरू न हुआ हो या जो इससे निवृत्त हो चुके हैं.


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