हैदराबाद: सिजेरियन सेक्शन या सर्जिकल डिलीवरी के बढ़ते मामलों पर अंकुश लगाने के लिए तेलंगाना के एक जिले ने खुद से प्रयास करते हुए एक लघु फिल्म का निर्माण किया है. इसका मकसद राज्य में आंख मूंदकर सिजेरियन के पीछे भागने वाले लोगों के बीच जागरूकता पैदा करना और उसके दुष्प्रभावों को लेकर उन्हें आगाह करना है. इसके अलावा प्रशासन एक ‘म्यूजिकल रेमेडी’ पर भी काम कर रहा है.
राजन्ना-सिरसिला प्रशासन के कर्मचारियों ने न केवल इस फिल्म का निर्माण किया है, बल्कि अभिनय से लेकर पटकथा लिखने जैसी अन्य सभी भूमिकाओं को भी निभाया है. यह फिल्म तीन मिनट की है. इसका शीर्षक है ‘सीजेरियन ला कू कथेरेधम’ (आइए सिजेरियन डिलीवरी को कम करें) है.
जिला जनसंपर्क अधिकारी एम दशरथम ने बताया कि फिलहाल ये पोस्ट-प्रोडक्शन चरण में है और इस सप्ताह के अंत तक फिल्म के रिलीज होने की उम्मीद है.
सिजेरियन डिलीवरी काफी हद तक एक सुरक्षित प्रक्रिया है जिसे डॉक्टर प्रसव के दौरान आने वाली कुछ जटिलताओं से बचने के लिए अपनाने की सलाह देते हैं.
डब्ल्यूएचओ का कहना है, ‘अगर चिकित्सकीय रूप से इसकी जरूरत है तो एक सिजेरियन सेक्शन प्रभावी रूप से मातृ और प्रसवकालीन मृत्यु दर और बीमारियों को रोक सकता है.’
लेकिन साथ ही यह भी कहा गया कि किसी भी सर्जरी की तरह, ‘सीजेरियन सेक्शन के साथ छोटे और दीर्घकालिक जोखिम जुड़े होते हैं जो वर्तमान प्रसव से लेकर आने वाले कई सालों में सामने आ सकते हैं. महिला, उसके बच्चे और भविष्य के गर्भधारण के स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकते हैं.’ डब्ल्यूएचओ के मुताबिक ‘ये जोखिम व्यापक प्रसूति देखभाल तक सीमित पहुंच वाली महिलाओं में अधिक हैं.’
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट-अहमदाबाद के एक अध्ययन के अनुसार, सिजेरियन से नवजात शिशुओं की सेहत पर भी असर पड़ता है. जैसे स्तनपान में देरी, जन्म के समय कम वजन, सांस संबंधी परेशानी और अस्पताल में भर्ती होने की दर में वृद्धि.
विशेषज्ञों के अनुसार, दर्द से बचने के लिए बहुत सी महिलाएं नॉर्मल डिलीवरी की जगह सी-सेक्शन का विकल्प चुनतीं हैं जो गलत है. इसके अलावा वे इसके लिए प्राइवेट अस्पतालों को भी दोषी मानते हैं जो पैसा कमाने के लिए सर्जरी पर जोर देते हैं. सर्जरी का मतलब है एक लंबा-चौड़ा बिल जो अस्पतालों को फायदा पहुंचाता है.
लेकिन इस सबसे अलग तेलंगाना में सिजेरियन डिलीवरी अपनाये जाने का एक बड़ा कारण अंधविश्वास से जुड़ा है. माना जाता है कि राजन्ना-सिरसिला और तेलंगाना के अन्य हिस्सों में लोग ऑपरेशन के जरिए डिलीवरी को तरजीह देते हैं ताकि पुजारियों के बताए गए शुभ समय पर बच्चे का जन्म सुनिश्चित किया जा सके.
जिले में बड़ी संख्या में होने वाली सी-सेक्शन की समस्या से निपटने के लिए स्थानीय प्रशासन ने इस साल की शुरुआत में एक सर्वे कराया था. सर्वे के मुताबिक, करीमनगर में होने वाली सिजेरियन डिलीवरी के पीछे अन्य कारणों में से एक बड़ा कारण अंधविश्वास था.
राजन्ना-सिरसिला जिला चिकित्सा और स्वास्थ्य अधिकारी सुमन राव ने कहा, ‘अधिकांश जिलों की कहानी एक जैसी ही है. अंधविश्वास की वजह से सी-सेक्शन की संख्या तेजी से बढ़ रही है.’
वह बताती हैं, ‘सिरसिला में भी लोगों के बीच ये धारणा काफी मजबूत है कि एक निश्चित समय पर पैदा होने वाला बच्चा परिवार के लिए बेहतरी लेकर आएगा. हम डॉक्टरों के साथ लगातार संपर्क में हैं और उनसे बातचीत कर रहे हैं. हमने उनसे कहा है कि जब तक जरूरी न हो सी-सेक्शन का विकल्प न चुनें.’
राव के मुताबिक, राजन्ना-सिरसिला में निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम में मार्च तक लगभग 97 प्रतिशत डिलिवरी सिजेरियन थीं.
उन्होंने कहा, ‘इन अस्पतालों में डॉक्टरों के साथ जिला प्रशासन द्वारा आयोजित समीक्षा बैठकों के बाद से यह संख्या घटकर 87 प्रतिशत हो गई.’
देश भर के जिला अस्पतालों पर 2021 की एक रिपोर्ट में, नीति आयोग ने इस बात का खुलासा किया कि तेलंगाना में देश में सर्जिकल डिलीवरी की दूसरी सबसे बड़ी दर– 53.51 प्रतिशत है जो राष्ट्रीय औसत 20.8 प्रतिशत से दोगुने से भी ज्यादा है.
रिपोर्ट के मुताबिक, तमिलनाडु में देश में सबसे ज्यादा सी-सेक्शन डिलीवरी हुई हैं.
स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों ने बताया कि पिछले कुछ हफ्तों में इस मुद्दे को तेलंगाना के स्वास्थ्य मंत्री हरीश राव ने भी उठाया था. उन्होंने जिला कलेक्टरों और स्वास्थ्य अधिकारियों के साथ कई बैठकों में उन जिलों की खिंचाई की, जहां सी-सेक्शन के मामले काफी ज्यादा थे.
पता चला है कि मंत्री ने जिला कलेक्टरों को अपने-अपने क्षेत्रों में सर्जिकल डिलीवरी में कमी लाने के लिए कार्य योजना के साथ आने के लिए भी कहा है.
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‘स्टाफ बना अभिनेता, निर्देशक और पटकथा-लेखक’
राजन्ना-सिरसिला जिले की फिल्म मां और बच्चे के लिए नॉर्मल डिलीवरी के फायदे और सी-सेक्शन डिलीवरी के दुष्प्रभावों को उजागर करने पर केंद्रित है.
दशरथम ने कहा, ‘यह विचार कलेक्टर (अनुराग जयंती) की तरफ से आया था. उन्होंने हमें ये लघु फिल्म बनाने की सलाह दी क्योंकि लोगों तक इनकी पहुंच बेहतर है. और इसे व्हाट्सएप और अन्य प्लेटफॉर्म पर आसानी से साझा किया जा सकता है.’
फिल्म को पूरी तरह से इन-हाउस बनाया गया है. जिला प्रशासन के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग (आईपीआर) और भाषा एवं संस्कृति विभाग के कर्मचारियों ने पटकथा लेखन और शूटिंग के काम को अंजाम दिया है.
दशरथम ने कहा कि स्टाफ के ग्यारह सदस्यों ने अभिनेता, डॉक्टर, नर्सिंग स्टाफ और गर्भवती महिलाओं की भूमिका निभाई.
विभाग द्वारा रविवार को जारी एक बयान के अनुसार, जिले के एक सरकारी अस्पताल में शूट की गई इस फिल्म का निर्देशन आईपीआर कर्मचारी डोबबाला प्रकाश ने किया है.
सी-सेक्शन के संभावित दुष्प्रभावों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए जिला प्रशासन गानों पर भी काम कर रहा है. इनमें से एक गीत ’शुभ सी-सेक्शन समय’ को नजरअंदाज करने की बात करता है. क्योंकि सर्जरी से मां और बच्चे की सेहत पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. गांवों और अस्पतालों में बांटने के लिए पर्चे भी छापे जा रहे हैं.
आईपीआर ने अपने बयान में कहा कि जिले के संस्कृति विभाग के कलाकार प्राकृतिक रूप से बच्चे के जन्म (नॉर्मल डिलिवरी) पर जागरूकता फैलाने और परफॉर्म करने के लिए गांवों का दौरा कर रहे हैं.
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