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Friday, 22 November, 2024
होमदेशदिल्ली में 25% कोविड केस कंटेनमेंट जोन से बाहर सामने आए, 'ज्यादातर के स्रोत का पता नहीं'

दिल्ली में 25% कोविड केस कंटेनमेंट जोन से बाहर सामने आए, ‘ज्यादातर के स्रोत का पता नहीं’

दिल्ली में जिला और स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि आइसोलेट किए गए मामलों में कांटैक्ट ट्रेस करना काफी मुश्किल काम है क्योंकि मरीज उन लोगों की पूरी सूची देने में असमर्थ होते हैं जिनके संपर्क में वो रहे हैं.

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नई दिल्ली: दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक दिल्ली के कोविड-19 मामलों में से कम से कम 25 फीसदी कंटेनमेंट जोन के बाहर सामने आए हैं. कुछ जिलों में तो यह संख्या 80 फीसदी तक हो सकती है और दिल्ली सरकार के अधिकारियों का कहना है कि उन्हें इनमें से अधिकांश मामलों में संक्रमण के स्रोत का पता नहीं है.

दिल्ली में जिला और स्वास्थ्य अधिकारियों के साथ साक्षात्कार, विशेषज्ञों के इस अनुमान का समर्थन करते नजर आते हैं कि राजधानी काफी हद तक सामुदायिक संचरण, महामारी का तीसरा चरण जहां संक्रमण का स्रोत निर्धारित नहीं किया जा सकता, का सामना कर रही है.

दिल्ली में स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक (डीजीएचएस) नूतन मुंडेजा ने कहा कि कुल मामलों में से लगभग 25 प्रतिशत ‘आइसोलेटेड’ हैं, जिसका मतलब है कि वह कंटेनमेंट जोन से बाहर सामने आए हैं, वहीं जिले के अधिकारियों ने दावा किया है कि राजधानी के कुछ इलाकों में यह संख्या 80 प्रतिशत हो सकती है.

इन सभी ने स्वीकार किया कि आइसोलेट मामलों के लिए कांटैक्ट ट्रेस करना बेहद कठिन है, क्योंकि कई बार मरीज उन लोगों के बारे में सटीक सूची देने में असमर्थ होते हैं जिनके साथ संपर्क में रहे हैं.

उनके ये बयान पिछले महीने दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री की उस टिप्पणी के अनुरूप ही हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि कोविड-19 के 50 फीसदी मामलों में संक्रमण का स्रोत अज्ञात है, जिससे राजधानी में कोरोनावायरस की सटीक स्थिति पर ताजा सवाल उठते हैं.


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सामुदायिक ट्रांसमिशन का डर

सामुदायिक संचरण का मतलब व्यावहारिक रूप से हर किसी को संक्रमण का खतरा है- चाहे उसने कोविड-19 क्लस्टर की यात्रा की हो या नहीं, ज्ञात तौर पर किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आया हो या नहीं.

डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देश बताते हैं कि सामुदायिक संचरण का मतलब है ‘एकल मामलों की पहचान और ट्रेस करने के गहन प्रयास’- जिसे भारत में मौजूदा निगरानी प्रयासों में अपनाया जा रहा है- ‘अब मुख्य प्राथमिकता नहीं रह जाते हैं.’

इसमें कहा गया है, ‘संसाधनों के लिहाज से पूरा ध्यान इसके बजाय वायरस के प्रसार और अभिलक्षणों की निगरानी, गंभीर मामलों की पहचान और प्रबंधन, वायरस का प्रसार और बढ़ने से रोकने, स्वास्थ्य सेवाओं पर बोझ घटाने, जनता को जागरूक करने और समग्र रूप से सामाजिक और आर्थिक दुष्प्रभाव घटाने पर केंद्रित किया जाना चाहिए.’

दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने नए मामलों में से करीब आधे में स्रोत का पता न होने की बात कहने के एक दिन बाद 10 जून को कहा था कि दिल्ली में सामुदायिक संचरण शुरू हो चुका है. हालांकि उन्होंने साथ ही स्पष्ट किया था कि सामुदायिक संचरण एक तकनीकी शब्द है और केवल केंद्र सरकार ही यह घोषणा कर सकती थी कि क्या दिल्ली वास्तव में उस स्तर पर पहुंच गई है.

इस बीच, भारत सरकार लगातार इस बात से इंकार करती आ रही है कि देश सामुदायिक संचरण की स्थिति में पहुंच गया है, इसके बावजूद कि पूर्व में मार्च में इसके विपरीत यह तथ्य माना गया था.


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‘इनकार से बात नहीं बनेगी’

कंटेनमेंट जोन वो क्षेत्र हैं जिनमें समूह में कोविड-19 केस सामने आए- दो-तीन या इससे अधिक और इसके बाद इन्हें ऐहतियातन सील कर दिया गया ताकि लोगों की आवाजाही सीमित हो और संक्रमण को फैलने से रोका जा सके.

आइसोलेट केस वे हैं जो इस क्षेत्र के बाहर सामने आए.

15 जुलाई तक दिल्ली में 1,16,993 कोविड-19 मामले दर्ज किए गए थे. अगर न्यूनतम अनुमानों पर जाएं तो भी इनमें से कम से कम 29,248 केस कंटेनमेंट जोन के बाहर के थे.

डीजीएचएस नूतन मुंडेजा के मुताबिक, ‘आंकड़ों में दैनिक आधार पर 17 प्रतिशत से 25 प्रतिशत तक भिन्नता होती है लेकिन आइसोलेट केस की संख्या बढ़ रही है और इसलिए, हम कह सकते हैं कि कुल मामलों में से 25 प्रतिशत मामले आइसोलेटेड या कंटेनमेंट जोन से बाहर के हैं.’

अधिकारियों का कहना है कि आइसोलेटेड मामलों में कांटैक्ट-ट्रेसिंग कठिन है और अधिकांश मामलों में संक्रमण के मूल स्रोत का पता तक नहीं है.

एक जिला मजिस्ट्रेट ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए कहा, ‘जबसे हमने अनलॉक किया है तब से मामलों की संख्या बढ़ने लगी है, ऐसे मामलों में कांटैक्ट ट्रेसिंग भी आसान नहीं है.’

मुंडेजा ने दावा किया कि उन्हें ‘उन परिस्थितियों में बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है जहां कोई एक मामला सामने आया और यहां-वहां घूमते रहे लोगों ने कह दिया कि उन्हें याद ही नहीं कि उस अवधि में किस किससे मिले थे या फिर किसी भी तरह वे कोई जानकारी साझा नहीं करना चाहते थे.’

उन्होंने कहा कि लोगों को कांटैक्ट ट्रेस करने में अधिकारियों का सहयोग करना चाहिए.

दिल्ली के 11 जिला मजिस्ट्रेटों में से नौ ने कहा कि उनके इलाकों में आइसोलेटेड केस की संख्या कंटेनमेंट क्षेत्र में सामने आए मामलों से ज्यादा रही है.

शाहदरा में जिला मजिस्ट्रेट संजीव कुमार ने बताया कि 13 जुलाई तक दर्ज किए गए 8,312 मामलों में से 7,804 मामले ‘आइसोलेटेड’ थे. दक्षिण दिल्ली जिले में 13 जुलाई तक रिपोर्ट 1,799 सक्रिय मामलों में यह संख्या 1,293 आंकी गई थी.

पूर्वी जिले के डीएम अरुण कुमार मिश्रा ने बताया, 13 जुलाई तक आए 1,400 से अधिक सक्रिय मामलों में से कम से कम 700 ऐसे थे, जहां संक्रमण का संबंध किसी कंटेनमेंट जोन से नहीं पाया गया.

मिश्रा ने दिप्रिंट को बताया, ‘ऐसे मामलों में अब हम प्रभावित क्षेत्रों में डिस्पेंसरी के साथ मिलकर रैपिड एंटीजेन टेस्ट की संख्या बढ़ा रहे हैं.’

मध्य दिल्ली में जिला मजिस्ट्रेट निधि श्रीवास्तव ने बताया कि कम से कम 60-70 प्रतिशत मामले कंटेनमेंट क्षेत्र से बाहर के हैं.

अधिकारियों ने बताया कि जिले में सोमवार तक दर्ज किए गए 1,499 मामलों में से लगभग 700 आइसोलेट केस थे.

उत्तरी दिल्ली के जिला निगरानी अधिकारी (डीएसओ) डॉ. संजय सागर ने बताया कि 1,000 सक्रिय मामलों में से कम से कम 800 कोविड-19 कंटेनमेंट जोन से बाहर के हैं.

दक्षिण-पश्चिम दिल्ली के अधिकारियों ने कहा कि कुल सक्रिय मामलों में से 80 फीसदी कंटेनमेंट जोन के नहीं हैं.

जिला मजिस्ट्रेट राहुल सिंह ने कहा, ‘महामारी की शुरुआत के समय से ही यही ट्रेंड रहा है, लेकिन लॉकडाउन एक बार खत्म होने के साथ ही यह और बढ़ गया है… कोई किसी व्यक्ति को बाहर निकलने से कैसे रोक सकता है?’ उन्होंने आगे कहा कि स्थिति को नियंत्रण में रखने के लिए उन्होंने टेस्ट तेज कर दिए हैं.

एक जिला मजिस्ट्रेट ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘इनमें से बहुत से मामलों में कांट्रैक्ट ट्रेसिंग मुश्किल हो जाती है, हालांकि हम अपने स्तर पर हरसंभव बेहतर प्रयास कर रहे हैं.’

जिला मजिस्ट्रेट ने कहा, ‘मानो, एक दुकानदार का टेस्ट पॉजिटिव आता है….अब कोई अपने परिवार के सदस्यों, अपने आस-पड़ोस के दुकानदारों और ज्यादा खतरे में होने वाले कुछ अन्य श्रेणियों के मुताबिक अपने कांटैक्ट के बारे में बता सकता है, लेकिन उसकी दुकान पर आने वाले हर ग्राहक के बारे में कैसे पता लग सकता है, इसकी कोई सूची तो बनाई नहीं जाती है.’

यह पूछे जाने पर कि क्या दिल्ली में बड़ी संख्या में ऐसे मामले होने, जिसमें स्रोत का पता नहीं है, को सामुदायिक संचरण कहा जा सकता है, डीजीएचएस मुंडेजा ने कहा कि यह ऐसा मामला नहीं है जिस पर वह कोई टिप्पणी कर सकें.

उन्होंने आगे कहा, ‘यह एक वैज्ञानिक शब्द है और कुछ ऐसा है जिसे तय करना महामारी विज्ञानियों का काम है. यह हुआ है या नहीं इस पर मैं कुछ भी नहीं कह सकती, इसे घोषित करने के लिए भारत सरकार है क्योंकि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय हर रोज स्थिति की समीक्षा कर रहा है.’

हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि दिल्ली अब और ज्यादा समय इनकार की मुद्रा में नहीं रह सकती है.

दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में सामुदायिक चिकित्सा के प्रमुख जुगल किशोर ने कहा, ‘हम इससे इनकार करते नहीं रह सकते. सामुदायिक संचरण दिल्ली में बहुत पहले ही शुरू हो चुका है और ऐसे मामले जहां सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद कांटैक्ट का पता नहीं लगाया जा सका, केवल इसे साबित करते हैं.’


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निगरानी बढ़ाई गई

दिल्ली में इस महीने के शुरू में जारी संशोधित कोविड रिस्पांस प्लान मुख्यत: कंटेनमेंट जोन से बाहर सामने आए मामलों के संबंधित है जिसमें कहा गया है कि ‘यह चिंता का विषय है’ जिस पर ‘ध्यान देने की जरूरत है.’

दिल्ली के स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने कहा, ‘ये ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें कभी सामूहिक रूप से मामले दर्ज नहीं किए गए और न ही इन्हें कंटेनमेंट क्षेत्र के तौर पर सील किया गया.’

संशोधित योजना के अनुसार, आइसोलेटेड मामलों में ‘प्रभावी निगरानी’ के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) अपनाए जाने की जरूरत है.

जियोस्थानिक दिल्ली लिमिटेड (जीएसडीएल), जो दिल्ली सरकार के तहत व्यापक स्तर पर स्थानिक डाटा को संभालने वाली एक सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई है, लगातार ऐसे क्षेत्रों की मैपिंग कर रहा है जहां पिछले दो महीने के दौरान अक्सर आइसोलेटेड कोविड केस सामने आए हैं.

दिल्ली सरकार के अधिकारी ने कहा, ‘फिलहाल जीएसडीएल हमें ऐसे इलाकों की पहचान करने में मदद देगा. बाद में, जरूरत पड़ने पर इन क्षेत्रों को भी कंटेनमेंट जोन में बदला जा सकता है.’

इसके अलावा, सरकार द्वारा नियुक्त जिला निगरानी अधिकारी या डीएसओ ने भी न केवल जीएसडीएल की मैपिंग बल्कि केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की तरफ से हर दिन के हिसाब से तैयार की जा रही क्लस्टर रिपोर्ट के आधार पर भी आइसोलेटेड मामले वाले क्षेत्रों को चिह्नित करने की रणनीति तैयार की है.

एक बार आइसोलेट कोविड-19 मामले वाली जगह चिह्नित होने पर जिले के अधिकारी ज्यादा जोखिम वाले व्यक्ति विशेषों और विशेष निगरानी वाले समूहों की स्थिति पर गौर करेंगे.

इस संदर्भ में दिल्ली सरकार की तरफ से जारी एसओपी में 60 साल से अधिक आयु के लोगों, गर्भवती महिलाओं, इन्फ्लूएंजा जैसे लक्षणों वाले लोगों और दो से ज्यादा गंभीर रोगों से पीड़ित लोगों को ज्यादा जोखिम वाले वर्ग में रखा गया है.

विशेष निगरानी समूह में घरेलू सहायक, आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति या सेवा में लगे सेल्फ-इंप्लायड लोगों जैसे प्लंबर, इलेक्ट्रीशियन, मैकेनिक आदि के अलावा क्षेत्र में काम कर रहे टैक्सी, रिक्शा, ऑटोरिक्शा, और लॉरी चालक भी शामिल हैं.

बहरहाल, कोरोनावायरस के खिलाफ लंबे संघर्ष जिसमें राष्ट्रीय राजधानी नियंत्रण खोती नजर आई थी और फिर केंद्र सरकार को आगे आना पड़ा, के बाद अब दिल्ली आशाजनक प्रदर्शन करती दिखाई दे रही है.

पिछले कुछ दिनों से हर दिन जारी होने वाले स्वास्थ्य बुलेटिन में नए मामलों की संख्या में ठीक होने वाले मामलों की संख्या अधिक रही है. उदाहरण के तौर पर, दिल्ली में बुधवार को 1,647 नए कोविड-19 मामले सामने आए 2,463 मरीज ठीक हुए. वहीं मंगलवार को 1,924 मरीजों के ठीक होने की तुलना में 1,606 नए मामले आए, सोमवार को यह संख्या क्रमशः 1,344 और 1,246 दर्ज की गई.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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