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Friday, 26 April, 2024
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माखनलाल यूनिवर्सिटी से 23 बच्चों को निकाला गया, आरएसएस के माथे फूटा निष्कासन का ठीकरा

निकाले गए छात्रों का दावा है कि एक-दो को छोड़कर कोई भी छात्र आरएसएस के छात्र संघ अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़ा हुआ नहीं है

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नई दिल्ली: मध्यप्रदेश स्थित पत्रकारिता संस्थान माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय (एमसीयू) से 23 छात्रों को निष्कासित कर दिया गया है. इन छात्रों पर अनुशासनहीनता, तोड़फोड़, कानून हाथ में लेने और कुलपति ऑफ़िस को घेरने और बंधक बनाने के अलावा शरारती तत्वों को प्रदर्शन का हिस्सा बनने का आरोप है.

यूनिवर्सिटी द्वारा गठित की गई 10 सदस्यों की समिति ने इन छात्रों को निकालने का फ़ैसला लिया है. निष्कासन से जुड़े एक पत्र में लिखा है, ’14 दिसंबर को अनुशासन समिति की बैठक की अनुशंसा के बाद नियम का पलान करते हुए इन छात्रों को अगली सुनवाई तक विश्वविद्यालय से निष्कासित किया जाता है.’

 

जातिगत भेदभाव का आरोप लगा रहे छात्रों का ये विरोध 11 दिसंबर को शुरू हुआ और 13 दिसंबर को छात्र धरने पर बैठ गए. इसी दिन छात्रों को हिसारत में लिया गया जिसके बाद 17 दिसंबर को छात्रों को निकालने का फ़ैसला लिया गया.

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मामले में एमसीयू के कुलपति दीपक तिवारी ने दिप्रिंट से कहा, ‘बच्चों ने जो किया अगर वो उसपर खेद प्रकट करते हैं तो प्रशासन उन्हें माफ़ करने की सोचेगा.’ तोड़फ़ोड़ के आरोपों पर पत्रकारिता में एमसीयू से एमए कर रहे सौरभ कुमार (21) का कहना है, ‘दो शिक्षक यहां छात्रों से जातिगत भेदभाव करते हैं. उनके सोशल मीडिया पोस्ट जाति विशेष के ख़िलाफ़ बातों से भरे होते हैं. बच्चों से निजी तौर पर भी उनकी जाति पूछी जाती है.’

सौरभ कुमार ने कहा कि इसके ख़िलाफ़ छात्रों के एक समूह ने एक ज्ञापन दिया था जिसपर सुनवाई के बाद कुलपति ने उनकी कोई मांग नहीं मानीं तो वो धरने पर बैठ गए जिसके बाद उन्हें निष्काषित कर दिया गया. विज्ञापन एवं जनसंपर्क ( एडवरटाइज़िंग और पब्लिक रिलेशन) में एमए की पढ़ाई कर रही विधि सिंह (21) भी निकाले गए छात्रों में शामिल हैं. उन्होंने कहा कि हिंसा के नाम पर बस एक शीशे का गेट टूटा है. विधि ने कहा, ‘कोई शिक्षक जाति के आधार पर भेदभाद कैसे कर सकता है? इसी भेदभाव के ख़िलाफ़ लड़ने पर हमें यूनिवर्सिटी से निकाल दिया गया.’


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माखनलाल में पत्रकारिता में बीए की पढ़ाई कर रहे एक और छात्र ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि इस प्रदर्शन में एबीवीपी और शिवसेना वाले शामिल थे. प्रशासन से जुड़े एक व्यक्ति ने भी नाम नहीं बताने की शर्त पर इसकी पुष्टी की और प्रदर्शन को ‘राजनीतिक’ करार दिया.

हालांकि, निकाले गए छात्रों का दावा है कि एक-दो को छोड़कर कोई भी छात्र राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के छात्र संघ अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़ा हुआ नहीं है और ये जातिगत भेदभाव झेल रहे छात्रों का स्वतंत्र प्रदर्शन था.

आपको बता दें कि जिन दो शिक्षकों का विरोध हो रहा है उनमें प्रोफेसर दिलीप सी मंडल और मुकेश कुमार के नाम शामिल हैं.

इस बारे में प्रोफेसर मंडल का कहना है, ‘विद्यार्थियों के निष्कासन का फैसला वहां की हिंसा के कारण किया गया. मेरे लिए सुखद है कि मेरे विभाग का कोई विद्यार्थी इस लिस्ट में नहीं है. मैं निवेदन करता हूं कि ये फैसला सहानुभूति के आधार पर रद्द हो. ये बच्चे आरएसएस की साजिश के शिकार हो गए हैं. उन मासूम विद्यार्थियों का कोई दोष नहीं है.’

प्रोफेसर मंडल ने ये भी कहा, ‘उनके ऊपर सोशल मीडिया पर किसी जाति विशेष के ख़िलाफ़ पोस्ट करने का आरोप ग़लत है.’

उन्होंने यह भी कहा, ‘उनका ट्वीट किसी जाति विशेष के ख़िलाफ़ नहीं बल्कि जातिवाद के ख़िलाफ़ होता है और उनके विभाग के बच्चों को उनसे कोई शिकायत नहीं है.’


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मुकेश कुमार ने दिप्रिंट से कहा, ‘यूनिवर्सिटी पर लंबे समय तक आरएसएस का कब्ज़ा रहा है. अब जब सरकार बदली है तो वो यहां कुछ कर नहीं पा रहे. उन्होंने ही बच्चों को हमारे ख़िलाफ़ भड़काया है और ये मामला राजनीतिक है. मुझे पूरी तरह से नहीं पता कि आख़िर बच्चों को निकाले जाने का फै़सला क्यों लिया गया है, लेकिन बच्चों का निष्कासन सही नहीं है.’

आपको बता दें कि कैंपस के कुछ छात्रों का कहना है कि अभिव्यक्ति की आज़ादी के समर्थक छात्रों ने प्रोफेसर मंडल और कुमार से समर्थन में प्रदर्शन किए हैं.

(प्रोफेसर दिलीप सी मंडल दिप्रिंट के साथ स्तंभकार हैं)

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