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Tuesday, 16 April, 2024
होमदेशमाखनलाल का 'कांग्रेसीकरण': पढ़ें, सरस्वती मूर्ति हटाए जाने समेत तमाम विवादों का सच

माखनलाल का ‘कांग्रेसीकरण’: पढ़ें, सरस्वती मूर्ति हटाए जाने समेत तमाम विवादों का सच

वीसी ने कहा, 'महात्मा गांधी, माखनलाल चतुर्वेदी, रविन्द्र नाथ टैगोर और भीमराव अंबेडकर की तस्वीरें लगाना 'कांग्रेसीकरण' कहां से हो गया.' 

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नई दिल्ली: भोपाल के माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय पर लंबे समय से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रभाव में होने के आरोप लगते रहे हैं. 1990 में स्थापित इस विश्वविद्यालय के बारे में कहा जाता रहा है कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की शिवराज सिंह चौहान की सरकार के तहत विश्वविद्यालय का ‘भगवाकरण’ किया गया. सरकार बदलने के बाद मीडिया से बातचीत में राज्य के नए सीएम और कांग्रेस नेता कमलनाथ ने भी यही बता दोहराई और उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा कि अपने सबसे शुरुआती कामों में उन्होंने यूनिवर्सिटी के वीसी को बदलने का काम किया. लेकिन वर्तमान सरकार आने के बाद यूनिवर्सिटी के ‘कांग्रेसीकरण’ की बात कही जा रही है और यहां तक कहा जा रहा है कि नया प्रशासन सरस्वती की मूर्ति तक हटाने वाला है.

कुलपति कार्यालय में बदली तस्वीर, लगा ‘कांग्रेसीकरण’ का आरोप

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू

कुलपति कार्यालय में पहले आरएसएस विचारक पंडित दीन दयाल उपाध्याय की तस्वीर लगी हुई थी. सरकार बदलने और माखनलाल में प्रशासनिक बदलाव होने के बाद उपाध्याय की तस्वीर हटाकर नेहरू और अंबेडकर की तस्वीरें लगाई गई हैं. इसे कैंपस का ‘कांग्रेसीकरण’ बताया जा रहा है. इस मामले पर कुलपति तिवारी ने सवाल उठाते हुए कहा, ‘महात्मा गांधी, माखनलाल चतुर्वेदी, रविन्द्र नाथ टैगोर और भीमराव आंबेडकर की तस्वीरें लगाना ‘कांग्रेसीकरण’ कहां से हो गया?’

वहीं, कैंपस के कांग्रेसीकरण के आरोप पर पूर्व कुलपति कुठियाला ने कहा कि ये प्रश्न राजनैतिक है. मीडिया के विद्यार्थियों को राष्ट्र की हर राजनैतिक और सांस्कृतिक धारा से परिचय कराना अनिवार्य है. कांग्रेस हमारे देश की मुख्यधारा का महत्वपूर्ण अंग है, इसलिए कांग्रेस के किसी श्रेष्ठ नेता को विश्वविद्यालय में बुलाना अनुचित नहीं है. लेकिन केवल कांग्रेस तक ही सीमित रहना अनुचित होगा.

‘विशेष विचारधारा’ पर ज़ोर वाले माखनलाल में मार्क्स और नेहरू की एंट्री

संघ विचारक पंडित दीन दयाल उपाध्याय

जैसे ही राज्य में कांग्रेस की सरकार आई, माखनलाल विश्वविद्यालय में भी परिवर्तन दिखने शुरू हो गए. सबसे पहले सरकार ने कुलपति को बदला. इसके बाद कुछ समय तक इसका ज़िम्मा एक आईएएस अधिकारी को सौंपा. कुलपति बदलने के लिए तीन लोगों की कमेटी का गठन हुआ. इसके बाद दीपक तिवारी को नया कुलपति बनाया गया.

राज्य में सरकार बदलने के बाद माखनलाल के कोर्स में भी बदलाव हुआ. यूनिवर्सिटी के पाठ्यक्रम में जर्मनी के विद्वान कार्ल मार्क्स और देश के पहले पीएम और कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे जवाहर लाल नेहरू ने एंट्री ली. पाठ्यक्रम में हुए इस बदलाव को लेकर विवाद चल रहा है. इस विवाद पर कुलपति तिवारी का कहना है कि वो चाहते हैं कि माखनलाल के छात्र विश्व की सभी विचारधाराओं को पढ़ें. उन्होंने आरोप लगाए कि उन्होंने जो देखा उसके मुताबिक अभी तक एक ‘विचारधारा विशेष’ पर ज़ोर था.

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उन्होंने कहा कि वो छात्रों की आंखों पर पट्टी लगकार उन्हें बाहर नहीं भेजना चाहते, बल्कि उन्हें पेशेवर पत्रकार बनाने पर ज़ोर दे रहे हैं. पाठ्यक्रम में नेहरू-मार्क्स को शामिल किए जाने के सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि अब लक्ष्य ये है कि छात्र देश के स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में विस्तार से पढ़ें. माखनलाल के छात्र देश की संस्कृति के साथ विश्व की अन्य संस्कृतियों को भी विस्तार से भी समझें.

वहीं, इस मामले में पूर्व कुलपति कुठियाला ने कहा कि मार्क्स विश्व प्रसिद्ध दार्शनिक हैं, उन्हें तो पढ़ाया ही जाना चाहिए. नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमंत्री थे और श्रेष्ठ राजनीतिज्ञ थे. इस दृष्टि से उनको भी पढ़या जाना चाहिए. लेकिन यह भी सर्वमान्य तथ्य है कि एकात्म मानव दर्शन (इसके जनक दीन दयाल उपाध्याय रहे हैं) भी पूंजीवाद और साम्यवाद के विकल्प के रूप में सारी दुनिया में उभर रहा है. युवा मीडियाकर्मियों को उसे न पढ़ाना संकुचित और दकियानूसी सोच है.

‘पाक मीडिया वॉच’ और जम्मू-कश्मीर स्टडी सेंटर बंद

‘पाक मीडिया वॉच’ और ‘जम्मू-कश्मीर स्टडी’ के कोर्स यूनिवर्सिटी में कई वर्षों से चले आ रहे थे. इनको ऐसे विषयों के रूप में देखा जाता रहा है जो दक्षिणपंथी विचारधारा (आरएसएस) से प्रेरित हैं. अब इन्हें बंद कर दिया गया है. इन्हें बंद किए जाने को लेकर सवाल खड़े किए जा रहे हैं.

इस मसले पर कुलपति ने कहा, ‘अपनी मीडिया को तो हम वॉच कर नहीं पा रहे हैं. हमारे बच्चों को कोर्स के तहत जो अख़बार निकालने चाहिए वो तक हम निकाल नहीं पा रहे.’ इन्हीं का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि इसका कोई औचित्य नहीं है. इसलिए इन्हें बंद कर दिया गया.

इन्हें बंद किये जाने को लेकर पूर्व वीसी कुठियाला ने कहा कि अनेक मीडिया संस्थानों में ‘पाकिस्तान मीडिया वॉच’ का प्रयोग किया जा रहा है. विदेश मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय भी इनका अध्ययन करते हैं. माखनलाल यूनिवर्सिटी अगर इसे बंद करेगा तो और किसी संस्थान में इसे शुरू किया जाएगा.

संघ से जुड़ी न्यूज़ एजेंसी बंद

वहीं संघ से जुड़ी माने जाने वाली हिंदुस्थान समाचार एजेंसी को बंद किए जाने को लेकर भी सवाल खड़े किए जा रहे हैं. इससे जुड़े आरोपों पर वीसी ने कहा, ‘हमारे यहां पीटीआई और यूएनआई जैसी एजेंसियों को बंद कर दिया गया था. हमने वापस उनको चालू करने का निर्णय लिया है.’ उन्होंने कहा कि इन दोनों के अलावा बाकी एजेंसियां बंद कर दी गई हैं.

अगले साल बंद हो जाएंगे कई कोर्स

माखनलाल में अगले साल दाख़िले होंगे या नहीं इसे लेकर शिक्षकों से छात्रों तक संशय की स्थिति बनी हुई है. अफवाहें हैं कि अगले साल कोई दाख़िला नहीं होगा. वीसी ने इस अफवाह को झूठ बताते हुए सिरे से ख़ारिज कर दिया. उन्होंने कहा कि सारे प्रमुख कोर्स जैसे कि पत्रकारिता, मास कम्युनिकेशन, मीडिया प्रबंधन, फिल्म प्रोडक्शन बिना किसी बाधा के जारी रहेंगे. उन्होंने कहा कि माखनलाल यूनिवर्सिटी का एक्ट जिन कोर्स की बात करता है उनमें से किसी कोर्स को बंद नहीं किया जाएगा. प्रिंट पैकेजिंग, क्लाउड कंप्यूटिंग जैसे कोर्स जिन्हें आईआईटी और मैनेजमेंट कॉलेजों को पढ़ाना चाहिए, वो बंद कर दिए जाएंगे. उन्होंने ये भी कहा कि जिन कोर्सों में दाख़िले नहीं हैं या जो छात्रों के बीच मशहूर नहीं हैं वो यूनिवर्सिटी पर बोझ हैं. वो बस उन्हें बंद करने वाले हैं.

क्या बंद किया जाएगा नोएडा कैंपस?

छात्रों के बीच नोएडा कैंपस को बंद किए जाने को लेकर भी भारी डर व्याप्त है. इस पर जब दिप्रिंट की बात वीसी से हुई तो उन्होंने कहा कि यूजीसी के नियमों का पालन करना हमारी ज़िम्मेदारी है. उन्होंने कहा कि इस बात की जांच की जा रही है कि नोएडा कैंपस में सुप्रीम कोर्ट और यूजीसी के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन तो नहीं हुआ है. इस मामले पर उन्होंने जो कहा है उससे इस बात को बल मिलता है कि नोएडा कैंपस के भविष्य में बंद होने के प्रबल आशंका है. गौरतलब है कि नोएडा सेंटर में संघ से जुड़ी गतिविधियों के पुरज़ोर तरीके से चलने के आरोप लगते रहे हैं. कैंपस को बंद कराए जाने की बात के पीछे इसे एक बड़ी वजह बताया जा रहा है.

सरस्वती की मूर्ति हटाने को लेकर मचा बवाल

माखनलाल यूनिवर्सिटी कैंपस में लगी सरस्वती की मूर्ति
कैंपस के प्रागंण में स्थापित मां सरस्वती की मूर्ति को हटाने को लेकर कई दिनों से विवाद चल रहा था. इसके अलावा छात्रों और अध्यापकों द्वारा जब अंदरखाने इसका विरोध तेज हो गया तो इसे टाल दिया गया. बताया जाता है कि जब से इस मूर्ति को कैंपस में लगाया गया था तब से इसकी तरफ कोई ध्यान तक नहीं देता था. विवि के कुलपति दीपक तिवारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम सरस्वती की मूर्ति हटाने के बारे में सोच भी नहीं सकते. यह लोगों के द्वारा फैलाया गया एक भ्रम है. इसके पहले जो विश्वविद्यालय का प्रशासन था उसे धर्म पर राजनीति करने से ही फुर्सत नहीं थी. वे लोग मूर्ति पर माला तक नहीं चढ़ाते थे. ‘मैंने ये सुनिश्चित कराया है कि मूर्ति पर हर रोज़ ताज़ा माला चढ़े.’
वहीं इस मामले में पूर्व कुलपति बीके कुठियाला ने दिप्रिंट को बताया कि अगर कुछ सुधार हुआ है तो प्रशंसनीय है और नए कुलपति बधाई के पात्र हैं. शिक्षण संस्थान में मां सरस्वती की जितनी अराधना हो उतनी ही कम है.

पिछले प्रशासन ने स्वच्छ भारत अभियान को दिया धक्का?

वीसी ने ये जानकारी भी दी कि 180 करोड़ की लागत से नया कैंपस बनवाया जा रहा था. लेकिन उसमें महिला छात्रों के लिए अटैच वॉशरूम की व्यवस्था नहीं थी. इसलिए उन्होंने इस पर रोक लगवा दी है. हालांकि, उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फ्लैगशिप प्रोग्राम स्वच्छ भारत अभियान का नाम नहीं लिया. लेकिन उन्होंने कहा कि 2019 में लड़कियों को आधा किलोमीटर दूर शौचालय के लिए जाना पड़े तो ये कहां कि समझदारी है.

विवादों में बीजेपी सांसद राकेश सिन्हा

पिछले हफ्ते राज्यसभा सांसद और संघ विचारक राकेश सिन्हा द्वारा किया गया एक ट्वीट भी चर्चा का विषय बना हुआ है. उन्होंने इसमें मध्य प्रदेश में अघोषित आपातकाल लागू होने का आरोप लगाया है. साथ ही आरोप लगाते हुए कहा कि राज्य की कमलनाथ सरकार शिक्षकों को विचारधारा के नाम पर प्रताड़ित कर रही है. शिक्षा के क्षेत्र में स्वायत्तता समाप्त किए जाने का आरोप लगाते हुए इस ट्वीट में सिन्हा ने पीएम नरेंद्र मोदी, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को टैग भी किया है.

नेशनल हेराल्ड में छपी एक ख़बर के मुताबिक कुलपति दीपक तिवारी को ये जानकारी मिली है कि यूनिवर्सिटी के नोएडा कैंपस में कार्यरत सिन्हा ने कभी कैंपस में जाने की ज़हमत नहीं उठाई. यूनिवर्सिटी में सहायक प्रोफेसर रहे सिन्हा पर एक भी क्लास नहीं लेने का आरोप है. मामले पर वीसी तिवारी ने दिप्रिंट से कहा कि सिन्हा माखनलाल से जुड़े थे और उनके बारे में जानकारी जुटाई जा रही है और आरोपों की जांच की जा रही है.

राकेश सिन्हा ने दिप्रिंट से कहा, ‘ये सारे मानहानि के मामले में फंसेंगे. इन लोगों ने मेरा नियुक्ति पत्र ही नहीं देखा. नियुक्ति पत्र में क्लास की कोई बात ही नहीं है. नियुक्ति पत्र के मुताबिक महीने में सिर्फ छह दिन कैंपस में रहना था और ये सब दर्ज है.’ उन्होंने कहा कि सबके ऊपर मानहानि के मामलों के लिए वकीलों को तैनात किया गया है. ख़ुद को दिल्ली यूनिवर्सिटी का टॉपर बताते हुए उन्होंने कहा कि माखनलाल पर उनके छह लाख़ रुपए बकाया हैं. यूनिवर्सिटी के ‘कांग्रेसीकरण’ के आरोप पर उन्होंने कहा कि इसे लेकर भी लड़ाई चलेगी.

नए युद्ध का मैदान बने विश्वविद्यालय

2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी की पूर्ण बहुमत की सरकार आने के बाद से देश के तमाम बड़े विश्वविद्यालय युद्ध के मैदान में तब्दील हो गए हैं. इनमें सबसे बड़ा नाम जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) का है. 2016 की फरवरी में जेएनयू में शुरू हुए कथित देशद्रोह के विवाद के बाद से ये कैंपस हमेशा से विवादों के केंद्र में रहा है. वहीं, 2016 में ही 17 जनवरी को दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या ने देशव्यापी आंदोलन का रूप ले लिया. वेमुला हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के छात्र थे और उनकी आत्महत्या के पीछे दक्षिणंथी छात्रसंठन की राजनीति और उन्हें प्राप्त यूनिवर्सिटी प्रशासन का हाथ बताया गया.

दिल्ली यूनिवर्सिटी के रामजस कॉलेज में भी आरएसएस के छात्रसंगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) और लेफ्ट के छात्रसंगठन की जमकर भिड़ंत हुई. इसके केंद्र में वो सेमिनार था, जिसमें जेएनयू के पूर्व छात्र रहे शेहला राशीद और उमर ख़ालिद को बोलना था. वहीं, बीएचयू में भी कुलपति के ख़िलाफ़ लड़कियां तब सड़क पर आ गईं जब वो उन्हें सुरक्षा मुहैया कराने में नाकाम रहीं. एबीवीपी पर आरोप लगे थे कि उन्होंने लड़कियों के इस प्रदर्शन का विरोध किया है.

आज़ादी के बाद से शिक्षा जगत पर कांग्रेस का प्रभुत्व होने की बात कही जाती है. ऐसा इसलिए भी रहा है कि आज़ादी के बाद से इमरजेंसी के बाद बनी गैर-कांग्रेसी सरकार, दो बारी की तीसरे मोर्चे के सरकार और अटल बिहारी वाजपेयी की गठबंधन सरकार और वर्तमान में पूर्ण बहुत वाली पहले गैर कांग्रेस सरकार यानी मोदी सरकार के पूरे कार्यकाल को जोड़ दें तो भी ये 10 से 12 साल के करीब बैठेगा.

ऐसे में संघ के करीब माने जाने वाली नरेंद्र मोदी सरकार के ऊपर शिक्षा के ढर्रे को फिर से गढ़ने के आरोप लगते रहे हैं. वैसे भी संघ पर भारत के इतिहास और संस्कृति के पुनर्लेखन के आरोप लगते हैं. ज़ाहिर सी बात है कि सबसे लंबे समय तक देश की सत्ता चलाने वाली कांग्रेस का देश की शिक्षा नीति पर पूरा प्रभाव रहा होगा. माखनलाल यूनिवर्सिटी पर इसी प्रभाव के विपरीत धारा में बहते रहने के आरोप रहे हैं. ऐसा इसलिए भी रहा है क्योंकि एमपी के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान को संघ का करीबी माना जाता है. ऐसे में अब जब 15 साल बाद एमपी की सरकार बदली है तो ज़ाहिर सी बात है कि कांग्रेस माखनलाल को अपने ढर्रे पर लाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ना चाहेगी.

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