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Saturday, 20 April, 2024
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माखनलाल विवि: पूर्व कुलपति कुठियाला ने संघ, शराब, पत्नी पर फंड के दुरुपयोग के आरोपों को नकारा

कुलपति कुठियाला का कहना है कि जिनको आरोपी बनाया गया है उनका पक्ष तो सुना ही नहीं गया. उन्होंने कहा, 'यह पूरी तरह से अन्यायपूर्ण और ग़ैरक़ानूनी है.'

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नई दिल्ली: मध्य प्रदेश में सरकार बदलने के बाद से भोपाल स्थित माखनलाल यूनिवर्सिटी से आए दिन नई विवादित जानकारियां निकल कर सामने आ रही हैं. ताज़ा मामले में साल 2010-2018 के बीच माखनलाल विश्वविद्यालय के कुलपति रहे प्रोफेसर बृज किशोर कुठियाला पर गंभीर आरोप लगे हैं जिसे लेकर मामला भी दर्ज कर लिया गया है. ये आरोप उस समिति की जांच के बाद सामने आए हैं जिसे वर्तमान कमलनाथ सरकार ने गठित किया था. हालांकि, कुलपति कुठियाला ने इन आरोपों को सिरे से ख़ारिज किया है और जांच में सहयोग की बात कही है.

ईओडब्ल्यू ने कुठियाला सहित 20 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया

विश्वविद्यालय में पिछले सालों के दौरान हुईं नियुक्तियों और अन्य प्रशासनिक फैसलों से जुड़े मामले में की गई शिकायत पर आर्थिक अन्वेषण शाखा (ईओडब्ल्यू) ने पूर्व कुलपति ब्रजकिशोर कुठियाला सहित 20 लोगों के खिलाफ रविवार को एक मामला दर्ज कर लिया है. ईओडब्ल्यू सूत्रों ने रविवार को बताया, ‘विश्वविद्यालय की शिकायत के परीक्षण के बाद ईओडब्ल्यू ने कुठियाला सहित 20 लोगों और अन्य को प्रथम दृष्टया दोषी पाते हुए धारा आपराधिक उल्लंघन (409), धोखाधड़ी और बेईमानी से संपत्ति के वितरण को प्रेरित करना (420), आपराधिक षडयंत्र (120बी) के तहत केस दर्ज किया गया है.’

सूत्रों के अनुसार, ‘विश्वविद्यालय की ओर से की गई शिकायत में कहा गया था कि साल 2010 से 2018 के बीच कुठियाला ने कुलपति के पद पर रहते हुए कई नियुक्तियां यूजीसी के मानकों का अवहेलना कर की गईं. इसके साथ ही कुठियाला ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए अवैध तरीके से विश्वविद्यालय की राशि को अपने व अपने परिवार पर ख़र्च किया.’

ईओडब्ल्यू में की गई शिकायत में कहा गया था कि साल 2003 से साल 2018 के बीच जिन शिक्षकों की नियुक्तियां की गईं, कथित रूप से वो यूजीसी के नियमों के विपरीत थीं और उनके ज़रिए लोगों को अनुचित लाभ पहुंचाया गया. आरोप है कि कुठियाला ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को, श्री श्री रविशंकर के आश्रम, भारतीय शिक्षण मंडल आदि को कार्यक्रमों के लिए पैसे दिये. इस मामले में संघ विचारक और राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा की भी ग़लत तरीके से नियुक्ति के अलावा उनपर कई अन्य आरोप लगाए गए हैं.

इन लोगों पर दर्ज हुए हैं मामले

ब्रज किशोर कुठियाला
डॉक्टर अनुराग सिठा
डॉक्टर पी शशि कल
डॉक्टर पवित्रा श्रीवास्तव
डॉक्टर अरुण कुमार भगत
डॉक्टर रजनी नागपाल
डॉक्टर संजय द्विवेदी
डॉक्टर अनुराग बाजपेयी
डॉक्टर कंचन भाटिया
डॉक्टर मनोज कछारिया
डॉक्टर आरती सारंग
डॉक्टर रंजन सिंह
डॉक्टर सुरेन्द्र पोल
डॉक्टर सौरभ मालवीय
डॉक्टर सूर्य प्रकाश
डॉक्टर प्रदीप डहेरिया
डॉक्टर सतेंद्र डहेरिया
डॉक्टर गजेंद्र सिंह
डॉक्टर कपिल राज
डॉक्टर मोनिका वर्मा

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संघ विचारक सिन्हा ने दी मानहानि की धमकी

इन आरोपों पर पूर्व कुलपति कुठियाला का कहना है कि ‘बगैर सुनवाई किए और पक्ष सुने बिना लोगों को आरोपी बनाया गया है. यह अन्यायपूर्ण और ग़ैरक़ानूनी तरीका है.सात दशकों (70 साल) से अधिक की आज़ादी के बाद भी नागरिक अधिकारों का ऐसा हनन होना अनुचित है.’

वहीं, इस रिपोर्ट में आरएसएस विचारक राकेश सिन्हा आरोप लगाए गए है. इस मामले में जब सिन्हा से दिप्रिंट ने बात की तो उन्होंने कहा कि इस मामले से संबंधित जो भी लिखेगा उसके ऊपर वो मानहानि का केस दर्ज करवाएंगे.

इस समिति ने मुख्यमंत्री कमलनाथ को अपनी रिपोर्ट सात मार्च को सौंप दी थी. सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी में पता चला है कि कमलनाथ सरकार ने कुलपति तिवारी के रिपोर्ट के आधार पर कार्यवाही करने को कहा था. उन्हें इकनॉमिक ऑफेंस विंग (ईओडब्ल्यू) से इसकी जांच कराने को कहा गया जिसके बाद उन्होंने इसे ईओडब्ल्यू को सौंप दिया.


यह भी पढ़ें: माखनलाल का ‘कांग्रेसीकरण’: पढ़ें, सरस्वती मूर्ति हटाए जाने समेत तमाम विवादों का सच


रिपोर्ट में पूर्व कुलपति कुठियाला पर आरोप लगे हैं कि उन्होंने कथित रूप से विश्‍वविद्यालय के सारे नियमों को ताक पर रखते हुए राज्‍य के बाहर और एक विशेष राजनैतिक विचारधारा (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ- आरएसएस) से जुड़े हुए संस्‍थानों को पैसा बांटा. उनपर शराब और पत्नी को लंदन यात्रा पर भेजने के लिए विश्वविद्यालय के पैसे ख़र्च करने के आरोपों के अलावा  संघ विचारक और राज्यसभा सांसद को कथित रूप से नियमों को ताक पर रखकर नौकरी देने के आरोप लगे हैं.

रिपोर्ट में कुलपति कुठियाला पर लगे हैं ये बड़े आरोप

  • विद्यार्थी कल्‍याण न्‍यास द्वारा जुलाई 2018 में राष्‍ट्रीय सामाजिक कार्यशाला आयोजित की गई जिसमें 8 लाख रुपये खर्च किये गये. इसके प्रमुख आयोजकों में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) शामिल थी. एबीवीपी, आरएसएस का छात्र संघ है.
  • रीवा में 40 करोड़ की लागत से एक नये कैम्‍पस को खड़ा करने के लिए 22 करोड़ में भूमि खरीदी गई और नये भवन के लिए 40 करोड़ रुपये स्‍वीकृत किये गये. भवन निर्माणाधीन है. इसी तरह नोएडा कैम्‍पस में हर साल 60 लाख रुपये किराये के भवन में खर्च किए जाते हैं जिस पर आरएसएस से जुड़े लोगों को रुकने के लिए एक एअर कण्‍डीशंड विशेष डॉरमेट्री और रेस्‍ट हाउस बनाया गया जिसकी कोई उपयोगिता शैक्षणिक कार्य में नहीं थी.
  • आरएसएस से जुड़े लोगों के लए भोपाल में दिसंबर 2017 में एक सेमिनार का आयोजन किया. इस पर नौ लाख रुपये का ख़र्च आया जिसे विश्‍वविद्यालय ने उठाया.
  • जम्‍मू कश्‍मीर अध्‍ययन केन्‍द्र को कई बार आर्थिक लाभ पहुंचाया गया और लगभग छह लाख रुपये की करीब उन्‍हें अलग-अलग समय पर दिये गये.
  • भारतीय शिक्षण मण्‍डल, नागपुर को लगभग चार लाख रुपये दिये गये जिसका उद्देश्‍य शिक्षा नीति बनाना था लेकिन शिक्षा नीति आज तक नहीं बनी.
  • इसी तरह तत्‍कालीन दो जनसम्‍पर्क मंत्रियों को खुश करने के लिए क्रमश: रीवा और दतिया में एक-एक कैम्‍पस खोला गया. इसी तरह का एक कैम्‍पस अमरकंटक में खोला गया जिसका उद्देश्‍य केवल एक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता से जुड़ी संस्‍था को 60,000 रुपये मासिक किराया देना था.
  • भारती वेब प्राइवेट लिमिटेड, नागपुर को 46,607 रुपये अवैधानिक रुप से विश्‍वविद्यालय के फंड से जारी किए गए. इसके अतिरिक्‍त कुलपति कुठियाला ने पंचनद शोध संस्‍थान, हरियाणा एवं पुनरुत्‍थान विद्यापीठ, नासिक की बार-बार यात्राएं दिखा कर फंड की बर्बादी की.
  • प्रो. कुठियाला ने राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ के विचारक डॉ. राकेश सिन्‍हा को विश्‍वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर रखा और उन्‍हें अध्‍यापन कार्य से छूट दी गई. डॉक्टर सिन्‍हा राजनीति शास्‍त्र के शिक्षक थे. लेकिन उन्हें पत्रकारिता से जुड़ा काम दिया गया था. विश्‍वविद्यालय के सेट-अप में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर के लिए कोई पद अंकित नहीं है. इसलिये उन्‍हें वेतन का भुगतान अनियमितता की श्रेणी में आता है. उन्‍हें 10 लाख रुपये वेतन में दिये गये.
  • उन्‍होंने इसी तरह नियम के ख़िलाफ़ अपनी आंख के इलाज पर रुपये 1,69,647 रुपए का खर्च किए.
  • कुलपति कुठियाला ने विश्‍वविद्यालय के खर्चे पर दिल्‍ली के इंडिया इंटरनेशनल सेन्‍टर में शराब पी और शराब के बिलों का भुगतान विश्‍वविद्यालय से कराया.
  • प्रो. कुठियाला ने ग़लत तरीके से अपनी पत्‍नी की लंदन यात्रा का टिकिट विश्‍वविद्यालय के खर्चे से कराया.
  • प्रो. कुठियाला ने विश्‍वविद्यालय के फंड से रुपये 22,430 के खर्च पर अपने बंगले पर वाइन कैबिनेट खरीदा.
  • प्रो. कुठियाला ने इसके अतिरिक्‍त 2010 के बाद प्रोफेसरों एवं शिक्षकों की अवैधानिक नियुक्तियां की जिनमें यूनिवर्सिटी ग्रांट कमिशन यूजीसी के नियमों को ताक पर रखा गया. अपने कार्यकाल के दौरान उन्‍होंने एक विचारधारा विशेष (आरएसएस) के लोगों को शिक्षक के रुप में रखा जिनके पास यूजीसी द्वारा तय योग्‍यताएं नहीं थी. इसमें बड़े लेन-देन की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता.

इन आरोपो पर क्या है कुलपति कुठियाला की प्रतिक्रिया

मीडिया रिलीज़ में कुलपति कुठियाला ने लिखा है, ‘कल रात (रविवार) को पत्रकार मित्रों से मालूम हुआ कि भोपाल में मेरे और माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय में कार्यरत 19 मित्रों के ख़िलाफ़ रिपोर्ट दर्ज की गई है. रिपोर्ट का आधार तीन सदस्यीय कमेटी की जांच है.’ उनका कहना है कि इससे उन्हें हैरानी भी और दुख भी और जिनको आरोपी बनाया गया है उनका पक्ष तो सुना ही नहीं गया.

उन्होंने आगे लिखा है, ‘यह पूरी तरह से अन्यायपूर्ण और ग़ैरक़ानूनी है.’ सात दशकों से अधिक की आज़ादी के बाद भी नागरिक अधिकारों का ऐसा हनन होना ग़लत है. उनका कहना है कि एक व्यवस्था (भाजपा सरकार) में किसी के काम की सराहना होती है और उसके लिए उसे पुरस्कृत किया जाता है, लेकिन दूसरी व्यवस्था (कांग्रेस सरकार) उसी काम को दण्डनीय बनाने का प्रयास करती है. उनका कहना है कि यह तो प्रजातांत्रिक व्यवस्था को ही हास्यास्पद बना देती है.

उन्होंने ये भी कहा कि राजनीतिक मतभेदों की वजह से शिक्षा जगत को तहस-नहस करने का बहाना बनाना अनुचित ही नहीं, अनैतिक भी है. उन्होंने कहा, ‘मैं स्पष्ट रूप से कहना चाहता हूं कि मेरे कुलपति के कार्यकाल में सारे काम विश्वविद्यालय, राज्य सरकार और यूजीसी के नियमानुसार हुए हैं.’

वहीं, उन्होंने कहा कि कुलपति होने के नाते वो उनकी टीम के सभी कामों के लिए ज़िम्मेदार हैं. उन्होंने ये भी कहा कि झूठ और आधे सच पर आधारित आरोप अधिक दिन नहीं चल सकेंगे. जांच व्यवस्था पर उनका पूर्ण विश्वास है और वो हर तरह का सहयोग करने के लिए तैयार हैं. इस मामले में दिप्रिंट ने आरएसएस से संपर्क साधने की कोशिश की लेकिन अभी तक हमें उनका पक्ष नहीं मिला है. उनका पक्ष मिलते ही हम इस आर्टिकल को अपडेट कर देंगे.

नए युद्ध का मैदान बने विश्वविद्यालय

2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी की पूर्ण बहुमत की सरकार आने के बाद से देश के तमाम बड़े विश्वविद्यालय युद्ध के मैदान में तब्दील हो गए हैं. इनमें सबसे बड़ा नाम जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) का है. 2016 की फरवरी में जेएनयू में शुरू हुए कथित देशद्रोह के विवाद के बाद से ये कैंपस हमेशा से विवादों के केंद्र में रहा है. वहीं, 2016 में ही 17 जनवरी को दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या ने देशव्यापी आंदोलन का रूप ले लिया. वेमुला हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के छात्र थे और उनकी आत्महत्या के पीछे दक्षिणंथी छात्रसंठन की राजनीति और उन्हें प्राप्त यूनिवर्सिटी प्रशासन का हाथ बताया गया.

दिल्ली यूनिवर्सिटी के रामजस कॉलेज में भी आरएसएस के छात्रसंगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) और लेफ्ट के छात्रसंगठन की जमकर भिड़ंत हुई. इसके केंद्र में वो सेमिनार था, जिसमें जेएनयू के पूर्व छात्र रहे शेहला राशीद और उमर ख़ालिद को बोलना था. वहीं, बीएचयू में भी कुलपति के ख़िलाफ़ लड़कियां तब सड़क पर आ गईं जब वो उन्हें सुरक्षा मुहैया कराने में नाकाम रहीं. एबीवीपी पर आरोप लगे थे कि उन्होंने लड़कियों के इस प्रदर्शन का विरोध किया है.

आज़ादी के बाद से शिक्षा जगत पर कांग्रेस का प्रभुत्व होने की बात कही जाती है. ऐसा इसलिए भी रहा है कि आज़ादी के बाद से इमरजेंसी के बाद बनी गैर-कांग्रेसी सरकार, दो बारी की तीसरे मोर्चे के सरकार और अटल बिहारी वाजपेयी की गठबंधन सरकार और वर्तमान में पूर्ण बहुत वाली पहले गैर कांग्रेस सरकार यानी मोदी सरकार के पूरे कार्यकाल को जोड़ दें तो भी ये 10 से 12 साल के करीब बैठेगा.

ऐसे में संघ के करीब माने जाने वाली नरेंद्र मोदी सरकार के ऊपर शिक्षा के ढर्रे को फिर से गढ़ने के आरोप लगते रहे हैं. वैसे भी संघ पर भारत के इतिहास और संस्कृति के पुनर्लेखन के आरोप लगते हैं. ज़ाहिर सी बात है कि सबसे लंबे समय तक देश की सत्ता चलाने वाली कांग्रेस का देश की शिक्षा नीति पर पूरा प्रभाव रहा होगा. माखनलाल यूनिवर्सिटी पर इसी प्रभाव के विपरीत धारा में बहते रहने के आरोप रहे हैं. ऐसा इसलिए भी रहा है क्योंकि एमपी के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान को संघ का करीबी माना जाता है. ऐसे में अब जब 15 साल बाद एमपी की सरकार बदली है तो ज़ाहिर सी बात है कि कांग्रेस माखनलाल को अपने ढर्रे पर लाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ना चाहेगी.

(आईएएनएस के इनपुट के साथ)

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