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Sunday, 22 December, 2024
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2 सीटें कश्मीरी प्रवासियों और 1 सीट PoJK शरणार्थियों के लिए, क्या कहता है जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक

बुधवार को लोकसभा में पेश किया गया विधेयक, जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 में संशोधन का प्रस्ताव करता है ताकि विस्थापित समुदायों के नॉमिनेटेड सदस्यों के लिए विधायी कोटा प्रदान किया जा सके.

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नई दिल्ली: मणिपुर पर संसद में हंगामे के बीच, केंद्र सरकार ने बुधवार को लोकसभा में जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2023 पेश किया, जिससे विस्थापित समुदायों के मनोनीत सदस्यों के लिए जम्मू-कश्मीर विधानसभा में तीन सीटें आरक्षित करने का मार्ग प्रशस्त हो गया.

इनमें से दो सीटें “कश्मीरी प्रवासी समुदाय” के लिए आरक्षित हैं, जिसमें कम से कम एक महिला उम्मीदवार का होना आवश्यक है. इसके अतिरिक्त, एक सीट “पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू और कश्मीर के विस्थापित व्यक्तियों” की श्रेणी के एक सदस्य को आवंटित की जाएगी. विधेयक में कहा गया है कि इन सदस्यों को जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल द्वारा नामित किया जाएगा.

यह विधेयक, जम्मू-कश्मीर परिसीमन आयोग की रिपोर्ट के अनुरूप, जम्मू-कश्मीर विधानसभा में सीटों की संख्या को 107 से बढ़ाकर 114 करने का प्रावधान करता है.

इन 114 सीटों में से 24 सीटें पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर (पीओजेके) के लिए आरक्षित हैं. शेष 90 सीटों में से नौ को पहली बार अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित किया गया है और सात अन्य को अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित किया गया है.

विधेयक को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की ओर से गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने पेश किया. यह जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 में कई संशोधनों का प्रस्ताव करता है, जिसने जम्मू और कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों, अर्थात् जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया. इस अधिनियम को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है, जो अभी भी मामले की समीक्षा कर रहा है.

इस तथ्य का हवाला देते हुए, जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस के लोकसभा सांसद हसनैन मसूदी ने बुधवार को संसद के पटल पर इस विधेयक को “संवैधानिक रूप से संदिग्ध” बताते हुए आपत्ति जताई.

मसूदी ने कहा, “आप ऐसे अधिनियम में संशोधन नहीं कर सकते जो न्यायिक जांच के अधीन है. जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम की सुप्रीम कोर्ट द्वारा जांच की जा रही है.”

आइए बिल में कुछ प्रस्तावित बदलावों और कुछ समुदायों के नामांकित सदस्यों के लिए सीटें आरक्षित करने के कारणों पर विचार करते हैं.

जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम में क्या संशोधन किए गए हैं?

विधेयक में कुल सीटों की संख्या 114 तक बढ़ाने के लिए जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 14 में संशोधन करने का प्रस्ताव है.

इसमें कहा गया है कि “जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) अधिनियम, 2023 के प्रारंभ होने की तारीख से, इसकी उप-धारा (3) के प्रावधान इस प्रकार प्रभावी होंगे जैसे कि संख्या ‘107’ के स्थान पर संख्या ‘114’ प्रतिस्थापित किया गया हो.”

आगे इसके तहत कानून में धारा 15ए और 15बी को शामिल किया गया है, जिसमें कश्मीरी प्रवासी समुदाय से दो विधायकों और पीओजेके से “विस्थापित व्यक्तियों” में से एक विधायक के नामांकन का प्रावधान है.

मौजूदा पुनर्गठन अधिनियम के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए, तीन नामांकित सदस्यों को केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में विधायी मॉडल के समान विधानसभा में मतदान का अधिकार होगा.

पुनर्गठन अधिनियम 2019 की धारा 13 में कहा गया है: “नियुक्ति के दिन से, अनुच्छेद 239 ए में निहित प्रावधान, जो ‘पुडुचेरी के केंद्र शासित प्रदेश’ पर लागू होते हैं, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर पर भी लागू होंगे.”

पिछले साल, विशेष रूप से, सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई के नेतृत्व में जम्मू-कश्मीर परिसीमन आयोग ने “कश्मीरी प्रवासी” और “पीओजेके के विस्थापित व्यक्तियों” के समुदायों के लिए विधानसभा में आरक्षण प्रदान करने के लिए सिफारिशें करते हुए एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी.

मई 2022 में एक प्रेस विज्ञप्ति में, आयोग ने कहा कि कम से कम एक महिला सहित दो कश्मीरी प्रवासी सदस्यों को पुडुचेरी विधान सभा में नामांकित सदस्यों के बराबर शक्तियां दी जानी चाहिए.

पीओजेके से विस्थापित व्यक्तियों के मामले में आयोग की सिफारिशें कम विशिष्ट थीं.

विज्ञप्ति में कहा गया है, “केंद्र सरकार पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर के विस्थापितों को प्रतिनिधियों के नामांकन के माध्यम से जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कुछ प्रतिनिधित्व देने पर विचार कर सकती है.”

2023 का विधेयक अब निर्दिष्ट करता है कि तीन विधायकों को जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल द्वारा नामित किया जाएगा.


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कोटा के कारण

प्रस्तावित संशोधन की धारा 15बी स्पष्ट करती है कि पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर के विस्थापित सदस्यों में वे लोग शामिल हैं जो विभाजन के दौरान और 1947-48, 1965 और 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष के कारण क्षेत्र में अशांति के दौरान विस्थापित हुए थे.

विधेयक में पीओजेके के शरणार्थियों को एक सीट आवंटित करने का कारण बताते हुए कहा गया है कि विभिन्न संघर्षों के दौरान समुदाय को काफी दर्द का सामना करना पड़ा है.

इसमें कहा गया है कि क्षेत्र में “1947 के पाकिस्तानी आक्रमण के मद्देनजर”, कुल 31,779 परिवार कब्जे वाले क्षेत्रों से पूर्ववर्ती जम्मू और कश्मीर राज्य में चले गए.

इसमें कहा गया है कि 26,319 परिवार इसी क्षेत्र के भीतर ही बस गए, जबकि 5,460 देश के अन्य हिस्सों में चले गए.

इसमें आगे कहा गया है कि 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्धों के दौरान, छंब नियाबत क्षेत्र के अन्य 10,065 परिवार विस्थापित हो गए थे. इनमें से 3,500 परिवार 1965 के युद्ध के दौरान और 6,565 परिवार 1971 के युद्ध के दौरान विस्थापित हुए थे.

इसका निष्कर्ष है कि कुल 41,844 परिवार “1947-48, 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्धों के दौरान विस्थापित हुए थे”.

कश्मीरी प्रवासियों के मामले में, विधेयक जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के समय, “विशेष रूप से 1989-90 में कश्मीर (डिवीजन) में” का हवाला देकर प्रस्तावित संशोधन को उचित ठहराता है.

इसमें कहा गया है कि इस अवधि के दौरान बड़ी संख्या में लोग “विशेष रूप से कश्मीरी हिंदू और पंडित, तथा सिख और मुस्लिम समुदायों के कुछ परिवार” कश्मीर प्रांत में अपने पैतृक घरों से चले गए.

विधेयक में कहा गया है कि 46,517 परिवारों, जिनमें 158,976 व्यक्ति शामिल हैं, ने पिछले तीन दशकों में “जम्मू और कश्मीर सरकार के राहत संगठन” के साथ पंजीकरण कराया है.

‘नहीं है पर्याप्त’

प्रस्तावित कोटा पर अब तक मिली-जुली प्रतिक्रियाएं आई हैं. प्रमुख कश्मीरी पंडित कार्यकर्ता सुनील पंडिता ने दिप्रिंट को बताया कि आरक्षण समुदाय के लिए विपरीत असर डाल सकता है.

उन्होंने कहा, ”बिल तो ठीक है, लेकिन जिस तरह से इसे लाया गया है वह उपयुक्त नहीं है. हम चाहते थे कि हमारे समुदाय के लोग निर्वाचित हों, न कि चयनित. नामांकित व्यक्ति उस राजनीतिक दल के प्रति वफादार होगा जिसने उसे नामांकित किया है. हालांकि, हम चाहते थे कि हमारे लोग निर्वाचित हों ताकि वे लोगों के लिए काम करें.”

पीओजेके विस्थापितों के लिए काम करने वाले संगठन एसओएस इंटरनेशनल के अध्यक्ष राजीव चुनी ने भी इसी तरह की भावनाएं व्यक्त कीं.

चुनी ने इसे “विश्वासघात” करार दिया कि परिसीमन के बाद जम्मू-कश्मीर के अन्य हिस्सों में निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या बढ़ने के बावजूद उनकी सीटें स्थिर रहीं.

उन्होंने कहा, ”हम आठ सीटें चाहते थे और उन्होंने हमें केवल एक ही दी.”

चुनी ने गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति की 183वीं रिपोर्ट का भी हवाला दिया, जिसमें जम्मू-कश्मीर में शरणार्थियों और विस्थापित व्यक्तियों के सामने आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया है.

“2014 में संसदीय स्थायी समिति ने आठ सीटों की सिफारिश की थी. भाजपा नेतृत्व ने भी हमसे आठ सीटों का वादा किया था.”

उपरोक्त रिपोर्ट 22 दिसंबर, 2014 को सदन के पटल पर रखी गई थी. इसमें पीओजेके के लिए आरक्षित 24 में से आठ सीटों को डीफ्रीज करने की सिफारिश की गई थी.

इस बीच, जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रमन भल्ला ने भी पीओजेके शरणार्थियों को दी गई सीटों की संख्या पर असंतोष व्यक्त किया.

दिप्रिंट से बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘हम कश्मीरी पंडितों के लिए सीटों का स्वागत करते हैं लेकिन पीओजेके शरणार्थियों के लिए कम से कम आठ सीटों की मांग की गई थी. यह ऊंट के मुंह में जीरे जैसा है.”

इस कदम को “राजनीतिक स्टंट” बताते हुए उन्होंने कहा कि सिख समुदाय ने भी सीटों की मांग की थी, लेकिन इसे नजरअंदाज कर दिया गया.

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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