नई दिल्ली: भारत में बीते कुछ सालों में स्वास्थ्य बीमा कवरेज में बढ़ोतरी तो हुई है लेकिन अभी भी बड़ी आबादी किसी भी बीमा या स्वास्थ्य बीमा योजना से वंचित है. वहीं बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच भी लोगों के लिए एक बड़ी चुनौती है खासकर जब देश की 90 प्रतिशत से ज्यादा आबादी असंगठित क्षेत्र में काम करती है.
2019-21 के बीच जुटाए गए एनएफएचएस-5 के आंकड़ों से ये जानकारी मिली है जिसे हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी किया गया. देश में 15-49 वर्ष की आयु के बीच की 30% महिलाएं और 33% पुरुष आबादी किसी न किसी स्वास्थ्य बीमा और हेल्थ स्कीम से जुड़े हैं.
देश में हर पांच में से 2 लोग स्वास्थ्य बीमा के अंतर्गत कवर हैं. वहीं उनमें से 46% लोग राज्य हेल्थ इंश्योरेंस और तकरीबन 16% राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (आरएसबीवाई) के अंतर्गत कवर हैं. और 3-6% महिलाएं और 4-7% पुरुष ईएसआईएस और केंद्र सरकार की हेल्थ स्कीम से जुड़े हैं.
लेकिन राज्य स्तर पर स्वास्थ्य बीमा से जुड़ी आबादी के बीच काफी अंतर है. राजस्थान देश का अकेला ऐसा राज्य है जहां हर 10 में से तकरीबन 9 लोगों (यानि की 88 प्रतिशत) के पास स्वास्थ्य बीमा है या किसी न किसी स्वास्थ्य योजना से जुड़े हैं. लेकिन अंडमान निकोबार आइलैंड और जम्मू कश्मीर में 15% से भी कम लोगों के पास स्वास्थ्य बीमा है.
राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार ने हर परिवार के लिए 5 लाख रुपए के हेल्थ बीमा की शुरुआत की थी जिसका नाम मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना है. वहीं भारत सरकार की तरफ से चलाई जाने वाली स्वास्थ्य बीमा योजनाओं में आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, आम आदमी बीमा योजना, राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना समेत और भी कई योजनाएं शामिल हैं.
मई 2022 में स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया था कि आयुष्मान भारत के तहत अब तक 18 करोड़ से ज्यादा हेल्थ कार्ड्स जारी किए गए हैं वहीं अब तक 3.2 करोड़ लोगों ने इसके तहत अस्पताल में सुविधाओं का इस्तेमाल किया है.
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ग्रामीण भारत में बीमा कवरेज ज्यादा
दिलचस्प है कि भारत के ग्रामीण इलाकों की 42 प्रतिशत आबादी किसी न किसी स्वास्थ्य बीमा से जुड़ी योजना का लाभ ले रही है वहीं शहरों में ये आंकड़ा 38 प्रतिशत है. 26.8 प्रतिशत शहरी महिलाएं और 31.2 प्रतिशत ग्रामीण महिलाएं स्वास्थ्य बीमा कवरेज के अंतर्गत आती हैं. वहीं पुरुषों में ये आंकड़ा 30.2 प्रतिशत और 35 प्रतिशत है.
2015-16 के एनएफएचएस-4 के 29% की तुलना में एनएफएचएस-5 के अनुसार भारत में 41% परिवार का कोई न कोई एक व्यक्ति हेल्थ इंश्योरेंस या हेल्थ स्कीम से जुड़ा है जिसमें 29.08 प्रतिशत महिलाएं और 33.3 प्रतिशत पुरुष शामिल हैं.
आंकड़ों के अनुसार 55% ईसाई परिवार ऐसे हैं जो हेल्थ इंश्योरेंस या हेल्थ स्कीम से जुड़े हैं, जो देश के अन्य समुदाय की तुलना में सबसे ज्यादा है. जिन परिवारों के मुखिया सिख हैं और जिन परिवारों की आमदनी कम है, वहां हेल्थ बीमा कवरेज काफी कम है.
जैन और हिंदू समुदाय के 42 प्रतिशत से ज्यादा परिवार स्वास्थ्य बीमा कवरेज से जुड़े हैं वहीं सिर्फ 31 प्रतिशत मुस्लिम परिवार ही बीमा कवरेज से जुड़े हैं.
हालांकि 2015-16 के आंकड़ों के अनुसार 45 प्रतिशत परिवार ही सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं का इस्तेमाल करते थे जो कि 2019-21 के बीच बढ़कर 50 प्रतिशत हो गई है.
शहरी क्षेत्रों में 42.4 प्रतिशत परिवार राज्य सरकार द्वारा चलाए जा रहे स्वास्थ्य बीमा योजना का इस्तेमाल करते हैं वहीं ग्रामीण भारत में ये आंकड़ा 47.8 प्रतिशत है. केंद्र सरकार द्वारा चलाए जा रही स्वास्थ्य बीमा योजना का कम ही लोग इस्तेमाल करते हैं.
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भारत की आधी आबादी को ही सरकारी अस्पतालों पर भरोसा
भारत में 50% परिवारों के लोग जब बीमार पड़ते हैं तो वे सार्वजनिक क्षेत्र से जुड़े हेल्थ केयर में अपना इलाज कराते हैं वहीं 48% लोग निजी क्षेत्रों से जुड़े हेल्थ केयर का इस्तेमाल करते हैं.
वहीं 50% परिवार सार्वजनिक क्षेत्र से जुड़ी स्वास्थ्य सेवाओं का इस्तेमाल नहीं करते. बिहार के 80%, उत्तर प्रदेश के 75% परिवार सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं पर भरोसा नहीं करते. वहीं ये स्थिति सबसे कम (5% से भी कम) लद्दाख, लक्षद्वीप और अंडमान एंड निकोबार आइलैंड में है.
गौरतलब है कि भारत की 46% ग्रामीण आबादी स्वास्थ्य के लिए प्राइवेट हेल्थ सेक्टर का इस्तेमाल करती हैं वहीं 52% शहरी परिवार इसका इस्तेमाल करते हैं.
पंजाब के 67.5 प्रतिशत, उत्तराखंड के 55.7 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश के 75 प्रतिशत, बिहार के 80.2 प्रतिशत, झारखंड के 61.9 प्रतिशत, महाराष्ट्र के 63.9 प्रतिशत, तेलंगाना के 63.8 प्रतिशत, गुजरात के 45.9 प्रतिशत परिवार सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं का इस्तेमाल नहीं करते हैं.
एनएफएचएस-5 के आंकड़ों से पता चलता है कि सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की खराब गुणवत्ता के कारण लोग इसका इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं. भारत में ऐसा करने वाले 49.9% परिवार हैं.
वहीं 46% परिवार मानते हैं कि सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के लिए लंबे समय तक इंतजार करने के कारण भी लोग इसका इस्तेमाल नहीं करते हैं. वहीं 40 % परिवार मानते हैं कि उनके घर के आसपास सरकारी सेवाएं मौजूद नहीं है.
एनएफएचएस-5 के अनुसार 15-49 वर्ष की आयु के बीच की हर पांच में से 2 महिलाएं मानती हैं कि उन्हें मेडिकल केयर पाने में दिक्कत का सामना करना पड़ता है. 21% महिलाएं पैसों की समस्या से जूझती हैं वहीं 23% महिलाओं को अपने आसपास स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध नहीं हो पाती. 22% महिलाओं के सामने परिवहन की सुविधा न मिल पाना भी एक बड़ी समस्या है.
देश की 31% महिलाएं मानती हैं कि उन्हें महिला हेल्थ प्रोवाइडर उपलब्ध नहीं होती वहीं 39% महिलाओं की शिकायत है कि स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं देने वाला कोई व्यक्ति मौजूद नहीं होता वहीं 40% महिलाओं को दवाइयां उपलब्ध नहीं हो पाती.
एनएफएचएस-5 की रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण भारत की महिलाएं स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के साथ ज्यादा संपर्क में रहती हैं. लेकिन ज्यादातर महिलाओं का स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं से संपर्क अपने घर पर या आंगनबाड़ी केंद्रों पर ही होता है.
शादीशुदा महिलाएं ज्यादातर टीकाकरण के संबंध में या अपने बच्चों की बीमारी, डिलीवरी के सिलसिले में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं से मिलती हैं. एनएफएचएस-4 के 24 प्रतिशत की तुलना में एनएफएचएस-5 के अनुसार 32 प्रतिशत महिलाओं का स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं से संपर्क होता है.
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राज्यों के बीच असमानता
स्वास्थ्य बीमा और स्वास्थ्य बीमा योजना को लेकर देश के अलग-अलग राज्यों के बीच काफी असमानता है.
एनएफएचएस-5 के आंकड़ों के अनुसार भारत के 16 ऐसे राज्य और केंद्रशासित प्रदेश हैं जहां राष्ट्रीय औसत (41 प्रतिशत) से ज्यादा लोग स्वास्थ्य बीमा के अंतर्गत कवर हैं. वहीं 20 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में स्वास्थ्य बीमा कवरेज की सुविधा कमजोर है.
जम्मू-कश्मीर, अंडमान-निकोबार, उत्तर प्रदेश, मणिपुर, लद्दाख, बिहार, नागालैंड जैसे राज्यों में काफी कम लोग स्वास्थ्य बीमा की सुविधा से जुड़े हैं. वहीं राजस्थान, आंध्र प्रदेश, गोवा, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, मेघालय की अच्छी खासी आबादी को स्वास्थ्य बीमा का लाभ मिलता है.
2021 की नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के 42 करोड़ लोग यानि कि 30 प्रतिशत आबादी, स्वास्थ्य संबंधी कोई भी आर्थिक मदद से वंचित है.
नीति आयोग के अनुसार स्वास्थ्य बीमा कवरेज का विस्तार भारत में सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज के लिए काफी महत्वपूर्ण है. आयोग ने माना है कि भारत अपनी जीडीपी का मात्र 1.5 प्रतिशत स्वास्थ्य पर खर्च करता है जो कि दुनिया में सबसे कम है.
रिपोर्ट में सरकार की भूमिका को लेकर कहा गया है कि जिन लोगों को स्वास्थ्य बीमा का लाभ नहीं मिल पाता है उनके लिए रेगुलेशन, बीहेवियर चेंज, सरकारी इन्फ्रास्ट्रक्चर, प्रोविजन और फाइनेंसिंग के स्तर पर काम किया जा सकता है.
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