नई दिल्ली: एक महीने पहले जब भारी बारिश के कारण राजधानी का बड़ा हिस्सा जलमग्न हो गया और यमुना खतरे के निशान और 45 साल के रिकॉर्ड को तोड़ते हुए 208.6 मीटर के सर्वकालिक उच्चतम स्तर पर पहुंच गई, तो केंद्र और दिल्ली सरकार ने बाढ़ के कारणों की जांच करने और निवारक उपाय सुझाने के लिए दो अलग-अलग समितियों का गठन किया गया.
जबकि केंद्र सरकार की समिति हरियाणा में हथिनीकुंड बैराज और दिल्ली में ओखला बैराज के बीच यमुना और उसकी पहुंच का बाढ़ प्रबंधन अध्ययन करेगी, साथ ही राजधानी में आईटीओ बैराज को बंद करने की संभावना पर भी गौर करेगी, दिल्ली सरकार की समिति बाढ़ के कारणों की जांच करेगी.
जल संसाधन पर एक संसदीय स्थायी समिति भी इसी मुद्दे पर विचार कर रही है.
आईटीओ बैराज, जिसका रखरखाव हरियाणा द्वारा किया जाता है और जिसके गेट बाढ़ के दौरान जाम पाए गए थे, बाढ़ के दौरान AAP के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार और भाजपा के नेतृत्व वाली हरियाणा सरकार के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी रहा.
भारी बारिश के कारण दिल्ली में आई बाढ़ के कई अन्य कारण भी थे. जिसमें से एक हथिनीकुंड बैराज (जो यमुना के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र में स्थित है) से पानी का भारी मात्रा में आना, जल निकासी का पर्याप्त बुनियादी ढांचा न होना और यमुना बाढ़ के क्षेत्रों पर अतिक्रमण इन कारणों में प्रमुख हैं.
बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों में सिविल लाइन्स जैसे महंगे इलाके, यमुना पुश्ता के झुग्गी-झोपड़ी , लाल किला, राजघाट, आईटीओ और रिंग रोड और कॉमर्शियल जोन शामिल थे.
जैसे ही दोनों समितियां काम पर लगीं वह नए रिकमेंनडेशन के साथ सामने आईं हैं, आईटीओ और लाल किले जैसे केंद्रीय स्थानों में बाढ़ आने से राजधानी की कई एजेंसियों के लिए खतरे की घंटी बजनी चाहिए ताकि वे अपने दायरे से बाहर निकलें और यह सुनिश्चित करें कि दिल्ली आपात स्थितियों से निपटने के लिए बेहतर तरीके से तैयार हो.
ऐसी जल्दबाजी का एक कारण और भी है. साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल (SANDRP) के एसोसिएट कोऑर्डिनेटर, पर्यावरण विशेषज्ञ भीम सिंह रावत के अनुसार, 13 जुलाई के बाद से, यमुना का जल स्तर छह बार खतरे के निशान (205.33 मीटर) को पार कर चुका है.
रावत ने कहा कि 2013 और 2019 में भी जब हथिनिकुंड बैरास से 7-8 लाख क्यूसेक पानी छोड़ा गया था तब भी इस स्थिति में नहीं पहुंचे थे.
रावत ने दिप्रिंट को बताया, “लेकिन अब, 16 अगस्त की तरह 78,000 क्यूसेक पानी छोड़े जाने पर भी खतरे का निशान टूट रहा है. इसकी जांच होनी चाहिए.”
यमुना के खतरे के निशान का बार-बार टूटना भी इन्हीं समस्याओं में से एक है. सिविक एजेंसियों के सामने एक अधिक गंभीर समस्या यह है कि दिल्ली के खस्ताहाल जल निकासी नेटवर्क को कैसे ठीक किया जाए, जो अभी भी 1976 के मास्टर प्लान पर काम कर रहा है और पिछले कुछ दशकों में कोई बड़ा बदलाव या फिर अपग्रेडेशन नहीं हुआ है.
पर्यावरण और शहरी नियोजन विशेषज्ञों ने दिप्रिंट को बताया कि खराब जल निकासी बाढ़ के कई कारणों में से एक थी और शहर की सदियों पुरानी जल निकासी प्रणाली में तत्काल सुधार की आवश्यकता है.
दिल्ली में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) ने शहर के लिए एक नया ‘ड्रेनेज मास्टर प्लान’ बनाया था और इसे 2018 में सरकार को सौंप दिया था, लेकिन कथित तौर पर इसे खारिज कर दिया गया था.
दिल्ली की बाढ़ ने यह भी उजागर कर दिया है कि कैसे कई एजेंसियां – चाहे दिल्ली में हों या हरियाणा में – बाढ़ से निपटने के लिए बुनियादी ढांचे को बनाए रखने में लड़खड़ा गईं, इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण आईटीओ बैराज के जाम हुए स्लुइस गेट हैं.
15 जुलाई को, दिल्ली में यमुना के 208.6 मीटर तक बढ़ने के दो दिन बाद, हरियाणा सरकार ने भी बाढ़ की जांच के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया, जिसने 26 जुलाई को अपनी रिपोर्ट सौंपी.
रिपोर्ट तक पहुंचने वाले हरियाणा के सिंचाई और जल संसाधन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, समिति ने रिंग रोड पर बाढ़ के मुख्य कारणों में से एक के रूप में आईटीओ तक बाढ़ क्षेत्र पर अतिक्रमण को बताया.
यही बात उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना ने भी 17 अगस्त को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को एक पत्र लिखा. उन्होंने नालों से गाद निकालने और यमुना के बाढ़ के मैदानों में मलबा डंप करने को उन कारकों में गिनाया, जिन्होंने यमुना के प्रवाह को बाधित किया था.
आईटीओ बैराज को बंद किया जा रहा है
6 अगस्त को गठित और केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) के अध्यक्ष कुशविंदर वोहरा की अध्यक्षता में केंद्र सरकार की समिति आईटीओ बैराज को बंद करने की संभावना पर गौर करेगी.
वोहरा ने दिप्रिंट को बताया, “समिति का काम हथिनीकुंड और ओखला बैराज के बीच अपनी पहुंच के लिए यमुना नदी का संयुक्त बाढ़ प्रबंधन अध्ययन करना है.”
उन्होंने कहा, “पैनल नदी के किनारे बने बांधों (तटबंधों) की ऊंचाई, मौसम संबंधी कारक, बैराजों की डिस्चार्जिंग क्षमता और आईटीओ बैराज की कार्यात्मक आवश्यकता जैसे पहलुओं पर गौर करेगा. यह दो महीने के भीतर एक अंतरिम रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा, ” अंतिम रिपोर्ट छह महीने के भीतर प्रस्तुत की जाएगी.
वोहरा ने कहा, समिति में हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली सरकारों के सदस्यों के साथ-साथ विशेषज्ञ भी शामिल होंगे, जिनमें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की प्राथमिक इकाइयों में से एक, हैदराबाद में राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग सेंटर के अधिकारी भी शामिल होंगे.
सरकारी अधिकारियों ने कहा कि दिल्ली प्रशासन भी भविष्य में जुलाई जैसी बाढ़ की स्थिति को रोकने के लिए प्रयास कर रहा है.
9 अगस्त को, दिल्ली सरकार ने बाढ़ के कारणों का आकलन करने के लिए सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग के तीन पूर्व मुख्य इंजीनियरों की पांच सदस्यीय समिति का गठन किया.
दिल्ली सरकार के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया,“समिति राजघाट सहित उत्तरी दिल्ली में बाढ़ के कारणों की जांच करेगी, जो असामान्य थी. हम नदी के किनारे बांधों को ऊंचा करने की संभावना भी तलाश रहे हैं, जिनकी वर्तमान में न्यूनतम ऊंचाई 208 मीटर है.” उन्होंने कहा कि पैनल तीन सप्ताह में अपनी रिपोर्ट सौंप देगा.
भाजपा सांसद परबतभाई सवाभाई पटेल की अध्यक्षता वाली जल संसाधन पर एक संसदीय स्थायी समिति भी इसी मुद्दे पर विचार कर रही है.
हरियाणा सरकार के अधिकारी ने पहले कहा था, “संसदीय समिति के सदस्यों ने स्थिति की समीक्षा करने के लिए 8 अगस्त को हरियाणा का दौरा किया और 23 अगस्त को दिल्ली में आईटीओ और ओखला बैराज का निरीक्षण करेंगे.”
क्या आईटीओ बैराज की जरूरत है?
दिल्ली में प्रवेश करने के बाद यमुना पर तीन बैराज हैं – वज़ीराबाद, ओखला और आईटीओ .
आईटीओ बैराज का निर्माण पंजाब सरकार द्वारा 1960 के दशक में किया गया था – जब हरियाणा अभी भी पंजाब का हिस्सा था – इंद्रप्रस्थ पावर जेनरेशन कंपनी की दो थर्मल इकाइयों को पानी उपलब्ध कराने के लिए. पानी टर्बाइनों के लिए शीतलक के रूप में काम करता था. हालांकि, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के एक आदेश के बाद 2000 के दशक में थर्मल पावर प्लांट बंद कर दिया गया था.
आईटीओ बैराज में 32 गेट हैं जो बाढ़ के पानी का भारी प्रवाह होने पर खोल दिए जाते हैं और उनके माध्यम से पानी छोड़ा जाता है.
दिल्ली में बाढ़ के मद्देनजर, बैराज के पांच स्लुइस गेट जाम हो गए थे क्योंकि वे नीचे भारी गाद और सीवेज से भर गए थे.
गेट खोलने के लिए भारतीय सेना और नौसेना के कर्मियों को बुलाया गया. जबकि दो को तुरंत खोल दिया गया था, सभी पांच गेट कथित तौर पर पिछले सप्ताह खोले गए थे.
अपनी रिपोर्ट में, हरियाणा समिति ने हरियाणा सिंचाई और जल संसाधन विभाग के इंजीनियरों – जिन्हें आईटीओ बैराज को बनाए रखने का काम सौंपा गया था – को मानक संचालन प्रक्रियाओं और प्रथाओं का पालन नहीं करने के लिए जिम्मेदार ठहराया.
हरियाणा सरकार के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘समिति के निष्कर्षों के आधार पर, हरियाणा सरकार ने विभाग के चार अधिकारियों के खिलाफ आरोपपत्र दायर किया, जिसमें एक निलंबित भी था.’
अधिकारी ने कहा, “उच्च-स्तरीय समिति ने यह भी कहा कि बाढ़ प्रबंधन की स्थिति की समीक्षा के लिए मानसून से पहले मुख्य अभियंता द्वारा कोई बैठक आयोजित नहीं की गई थी और आईटीओ बैराज पर कोई ध्यान नहीं दिया गया था, जो अपने स्थान के कारण महत्वपूर्ण है. ”
हालांकि, पर्यावरण विशेषज्ञों ने आईटीओ बैराज के महत्व पर सवाल उठाया है.
SANDRP के समन्वयक, हिमांशु ठक्कर ने दिप्रिंट को बताया: “बैराज का कोई उद्देश्य नहीं है क्योंकि थर्मल प्लांट अब चालू नहीं है. उचित मूल्यांकन के बाद इसे डीकमीशन किया जाना चाहिए.”
गैर-लाभकारी संस्था INTACH के प्रमुख निदेशक, पर्यावरण विशेषज्ञ मनु भटनागर ने इस विचार को दोहराया.उन्होंने कहा, “बैराज को बहुत पहले ही हटा दिया जाना चाहिए था. INTACH द्वारा दिल्ली के पिछले उपराज्यपाल को यह सुझाव दिया गया था. ”.
केंद्र सरकार के एक अधिकारी ने कहा, अब केंद्र सरकार की कमेटी इस मामले को देख रही है. “बैराज के कार्यात्मक उपयोग का आकलन करने की आवश्यकता है. समिति इस पहलू पर गौर करेगी. ”
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यमुना और बाढ़ क्षेत्र की स्थिति
हरियाणा समिति की रिपोर्ट के अनुसार, इस साल जुलाई में दिल्ली की जल निकासी आपदा में असंख्य असमान मुद्दों ने योगदान दिया.
हरियाणा सरकार के अधिकारी ने कहा कि पैनल ने रिंग रोड पर बाढ़ के मुख्य कारणों में से एक के रूप में आईटीओ तक यमुना बाढ़ क्षेत्र के अतिक्रमण को इंगित किया है.
सबसे पहले, दिल्ली के बाढ़ क्षेत्रों को “खाली जगह” मानकर एक गंभीर गलती की गई, एक ऐसी धारणा जिसने दशकों से यमुना के प्राकृतिक बाढ़ आउटलेटों पर व्यवस्थित रूप से अतिक्रमण करने की अनुमति दी. समिति ने कहा कि परिणामस्वरूप, नदी के आसपास अत्यधिक और अनियोजित निर्माण से यमुना का प्रवाह बाधित हो रहा है.
दूसरे, गर्मी के मौसम के दौरान, वजीराबाद बैराज के ऊपर की ओर नदी का प्रवाह लगभग पूरी तरह से बंद हो जाता है, जिससे सेडीमेनटेशन और खर पतवार नदी में तेजी से बढ़ता है.
तीसरा, विभिन्न नालों के माध्यम से प्रदूषित जल को नदी में छोड़े जाने से गाद जमा हो जाती है और नदी का तल कम होता जाता है. समिति के अनुसार, नियमित रूप से गाद निकालने के अभाव में पांच (आईटीओ बैराज) गेटों के जाम होने से समस्या और बढ़ गई है.
हरियाणा के अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “समिति ने सिफारिश की है कि दिल्ली से गेट नंबर 28 से 32 के सामने ‘रेतीले बेला’ द्वीप को हटाने का अनुरोध किया जाना चाहिए ताकि इन गेटों पर बाढ़ के पानी का प्रवाह हो सके.”
दिल्ली के सीएम को लिखे अपने पत्र में, एलजी ने यह भी कहा कि दिल्ली में यमुना के 44 किलोमीटर में से, वज़ीराबाद से ओखला तक 22 किलोमीटर की दूरी में 18 प्रमुख रुकावटें थीं, जो पानी के प्रवाह में बाधा डाल रहीं थीं.
उपराज्यपाल ने आगे कहा कि दिल्ली सरकार के विभाग निर्माण और विध्वंस कचरे के साथ-साथ उन साइटों से अन्य कचरे को साफ नहीं करने की “अन प्रोफेशनल प्रैक्टिस” में लिप्त थे, जहां पुलों पर काम चल रहा था, और इससे नदी का प्रवाह बाधित हो गया.
उपराज्यपाल ने आगे कहा कि “मानव निर्मित” अवरोधों ने यमुना में पानी के वेग को कम कर दिया था, और इसके परिणामस्वरूप जल स्तर में वृद्धि हुई जो अतिरिक्त “छह घंटे” तक शहर की सीमा के भीतर बनी रही.
पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार, हथनीकुंड और ओखला बैराज के बीच, विशेषकर दिल्ली में नदी के विस्तार के विस्तृत मूल्यांकन की आवश्यकता है.
हालांकि, भटनागर ने बताया कि उत्तरी दिल्ली और राजघाट और लाल किले जैसे क्षेत्रों में बाढ़ असामान्य थी और इसके लिए अतिक्रमण को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “समस्या का आकलन करने की आवश्यकता है. बाढ़ क्षेत्र पर अतिक्रमण इसका कारण नहीं हो सकता, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में कोई अतिक्रमण नहीं हुआ है. वास्तव में, मिलेनियम बस डिपो को बाढ़ क्षेत्र से हटा दिया गया था.”
उन्होंने कहा, “नदी के पार और बारापुला फेज -3 फ्लाईओवर के पास बनाई गई अस्थायी (कच्ची) सड़कें पानी के प्रवाह को बाधित कर सकती हैं, जिसके परिणामस्वरूप आईटीओ बैराज के ऊपर पानी जमा हो सकता है. नदी तल के स्तर की जांच करने की भी आवश्यकता है. ”
नालियों से बैकफ्लो
राजघाट और सिविल लाइंस इलाकों में बाढ़ के लिए दिल्ली सरकार के अधिकारियों ने नालों के बैकफ्लो को भी जिम्मेदार ठहराया है, जिनमें अक्सर अनट्रीटेड सीवेज पानी बहता है.
पिछले महीने, दिल्ली के बाढ़ और सिंचाई विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया था कि जब यमुना का स्तर बढ़ गया, तो 12 जुलाई को दिन के अधिकांश समय में हथिनीकुंड बैराज से लगभग एक से तीन लाख क्यूसेक पानी दिल्ली में छोड़ा गया था. सुबह 11 बजे अधिकतम डिस्चार्ज 3.59 लाख क्यूसेक था.
इसके बाद, नाले के पानी के बैकफ्लो के परिणामस्वरूप उत्तरी दिल्ली के मॉडल टाउन, सिविल लाइंस और राजघाट जैसे निचले इलाकों के बड़े हिस्से में बाढ़ आ गई.
केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) के एक वरिष्ठ अधिकारी, जो राजघाट और आसपास के स्थानों पर पानी साफ करने में शामिल थे, ने कहा: “नदी का पानी राजघाट क्षेत्र में प्रवेश नहीं करता है क्योंकि बांध बहुत ऊंचा है. नाले का पानी बैकफ्लो होने से इलाका जलमग्न हो गया. इसे साफ़ करने में हमें लगभग एक सप्ताह लग गया.”
दिल्ली सरकार के एक दूसरे अधिकारी ने कहा कि अधिकतम बाढ़ का स्तर अब 208.66 मीटर है, जल प्रवाह नियामकों के स्तर (नदी के पास की संरचनाएं यह सुनिश्चित करने के लिए उपयोग की जाती हैं कि शहर में पानी का कोई बैकफ्लो न हो) को ऊंचाई के संदर्भ में बदलने की जरूरत है.
यह पूछे जाने पर कि हथिनीकुंड बैराज से सिर्फ 78,000 क्यूसेक पानी छोड़े जाने पर यमुना खतरे के निशान पर क्यों पहुंच रही है, अधिकारी ने कहा: “हमें छोड़े गए पानी के समग्र डेटा का विश्लेषण करना होगा.”
उन्होंने कहा, “जल निकासी के लिए सही तंत्र का पता लगाने के लिए अंतर-विभागीय चर्चा भी हो रही है. संस्थागत और तकनीकी समाधानों पर ध्यान देने की आवश्यकता होगी और रातोरात कोई निर्णय नहीं लिया जा सकता है, ”
जल निकासी योजना बनाई जा रही है
दिल्ली की सदियों पुरानी जल निकासी प्रणाली में प्राकृतिक नालियां और कुछ ऐसी नालियां शामिल हैं जिनका निर्माण आज़ादी के बाद के समय में किया गया था.
लेकिन दिल्ली सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग के अधिकारियों के अनुसार, अंतिम प्रमुख जल निकासी बुनियादी ढांचे का उन्नयन 1976 के बाद हुआ.
“जल निकासी में सुधार के लिए पिछले दो-तीन दशकों में कोई बड़ा बुनियादी ढांचा विकास कार्य नहीं हुआ है. विभाग के एक अधिकारी ने कहा, 1980 के दशक में, एक सप्लीमेंट्री ड्रेन जिसकी लंबाई 34 किलोमीटर है, के साथ-साथ अन्य नालियों का निर्माण 1976 के जल निकासी मास्टर प्लान के आधार पर किया गया था.
आईआईटी दिल्ली द्वारा तैयार जल निकासी मास्टर प्लान के अनुसार, शहर में कुल 426.55 किमी लंबी प्राकृतिक जल निकासी लाइनें और 3,311.54 किमी लंबी इंजीनियर द्वारा बनाई गईं नालियां हैं, जिनका रखरखाव उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग सहित 11 विभिन्न एजेंसियां करती हैं.
आईआईटी योजना राजधानी के नालों को तीन प्रमुख जल निकासी बेसिनों में विभाजित करती है: नजफगढ़ बेसिन जिसमें 123 नालियां हैं, बारापुला बेसिन 44 नालों के साथ और ट्रांस-यमुना बेसिन 34 नालों के साथ.
57.4 किलोमीटर लंबा नजफगढ़ नाला, जिसे कभी साहिबी नदी कहा जाता था, राष्ट्रीय राजधानी का सबसे बड़ा नाला है जो शहर के लगभग दो-तिहाई हिस्से पानी को निकालता है.
स्ट्रोम वाटर ड्रेन के रखरखाव के संबंध में, आईआईटी योजना स्ट्रोम वाटर ड्रेन के अंदर निर्माण – जैसे कि मेट्रो खंभे – को रोकने, कोई अतिक्रमण नहीं करने और नालियों में सीवेज के शून्य निर्वहन की सिफारिश करती है.
आईआईटी-दिल्ली में प्रोफेसर एमेरिटस ए.के. गोसाईं, जिन्होंने जल निकासी मास्टर प्लान तैयार करने वाली टीम का नेतृत्व किया, ने दिप्रिंट को बताया: “शहर में नई नालियां बनाने के लिए ज्यादा जगह नहीं है, लेकिन हमने कई उपायों की सिफारिश की है जिसके माध्यम से जल निकासी की व्यवस्था की जाएगी.” ड्रेनज जो एक गंभीर चिंता का विषय बन गई है, का समाधान किया जा सकता है.”
उन्होंने कहा, “नालों से नियमित गाद निकालने, अतिक्रमण हटाने, वर्षा जल भंडारण सुविधाएं बनाने आदि से समस्या का समाधान करने में मदद मिल सकती है. हमने यह भी सिफारिश की कि पार्क भूजल को रिचार्ज करने के लिए एक अच्छी जगह हो सकते हैं, ”
हालांकि, 2021 में दिल्ली सरकार की एक तकनीकी समिति ने कथित तौर पर सिफारिश की थी कि डेटा में सीमाओं के कारण आईआईटी जल निकासी योजना को खारिज कर दिया जाए.
सरकार अब शहर के लिए नया ड्रेनेज प्लान बनवा रही है.
सरकारी अधिकारियों के मुताबिक, इस साल जून में नजफगढ़ बेसिन के लिए एक सलाहकार को नियुक्त किया गया था, जबकि अन्य दो बेसिनों के लिए सलाहकारों को नियुक्त करने के लिए बोलियां मंगाई गई हैं.
दिल्ली सरकार के एक तीसरे वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘सरकार वहां से आगे बढ़ी है जहां आईआईटी योजना समाप्त हुई थी, और इसमें की गई कुछ सामान्य सिफारिशों को लागू कर सकती है.’
नई जल निकासी योजना के कार्यान्वयन के लिए दिल्ली पीडब्ल्यूडी को नोडल एजेंसी बनाया गया है.
सरकारी अधिकारी ने बताया कि योजना बनाने से पहले शहर के ड्रेनेज नेटवर्क का सर्वे भी कराया जायेगा.
उन्होंने समझाया, “सर्वेक्षण टोपोग्राफी और जल निकायों की क्षमता जैसे कारकों पर आधारित होगा, जिसमें ऐसे परिदृश्य भी शामिल होंगे जहां वर्षा होती है. निष्कर्षों के आधार पर, स्थानीय और वैश्विक समाधानों की सिफारिश की जाएगी. ”
जबकि दिल्ली सरकार जल निकासी मास्टर प्लान पर काम कर रही है, पर्यावरण और जल विशेषज्ञ “स्पंज सिटी” की अवधारणा का सुझाव देते हैं – बाढ़ प्रबंधन के लिए एक नया शहरी निर्माण मॉडल जिसमें वर्षा जल को अवशोषित करने और बाढ़ रोकने के लिए प्रचुर प्राकृतिक क्षेत्रों, जल निकायों और जंगलों को विकसित करना शामिल है.
SANDRP के ठक्कर ने कहा: “चीन, जर्मनी आदि में स्पंज शहरों की अवधारणा पर काम किया जा रहा है. विचार यह है कि वर्षा जल की अधिकतम मात्रा को एकत्र किया जाए और बाद में उपयोग के लिए इसे संग्रहीत किया जाए. इससे नदियों में बाढ़ का प्रवाह कम हो जाता है.”
उन्होंने कहा, “जितना अधिक हम जलग्रहण क्षेत्रों में वर्षा जल को रोकने और भूजल को रिचार्ज करने में सक्षम होंगे, बाढ़ की घटनाएं उतनी ही कम होंगी.”
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